Rasbi kee chitthee Kinzan ke naam - 2 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 2

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 2

वो कौन थी?
वो मेरी मां थी। बताया ना।
बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी... पर ये मुश्किल जगह क्या होती है!
मुश्किल माने ऐसी जगह जहां अच्छे लोग नहीं होते। उसे इस बात का दुख नहीं होता था कि उसे चार किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है और गांव में ज़रूरत की चीज़ों तक की कोई दुकान नहीं है, बिजली नहीं आती, उबड़- खाबड़ रास्तों पर पैदल ही इधर - उधर जाना पड़ता है, कोई सवारी नहीं मिलती।
दुख तो था इस बात का कि यहां लोग अच्छे नहीं थे, एक नंबर के लड़ाका, एक- दूसरे से जलने वाले, बात बेबात के दूसरे को नुक़सान पहुंचाने वाले।
मेरी मां सुबह - सुबह दिन निकलने से भी पहले इतनी दूर जाकर नल से पानी भर के लाती थी। ज़रा सी देर हो जाए तो वहां भी नंबर नहीं आता था। फिर दिन भर गड्ढे का मटमैला पानी ही छान - छान कर पीना पड़ता था।
एक दिन मां को सुबह उठने में ज़रा सी देर हो गई। जब अपनी मटकियां लेकर नल पर पहुंची तो बहुत भीड़ थी। वो नज़दीक ही खड़ी थी कि उसने नल के पास रखी हुई एक बाल्टी के कुछ टेढ़ा होने के कारण उसमें से पानी छलकता देखा। शायद बाल्टी के नीचे कोई ईंट या पत्थर आ गया था। मां ने उसे उठा कर ठीक करना चाहा। वह बाल्टी को खिसका ही रही थी कि कहीं से भीड़ को चीरती हुई एक बूढ़ी औरत दनदनाती चली आई और मां को धक्का दिया। शायद उसे लगा कि मां उसका बर्तन हटा कर बीच में अपना बर्तन रख रही है। मां धक्के से तो संभल गई पर उसके हाथ की दोनों मटकियां गिर कर फूट गईं।
मां कुछ समझ पाती इसके पहले ही बूढ़ी औरत ने मां को मारना शुरू कर दिया और दोनों के बीच हुए इस एकतरफा झगड़े को तमाशबीन बनी भीड़ देखती रही। बूढ़ी औरत ने मां को बुरा- भला कहना जारी रखा। बड़बड़ाते हुए उसने मां को कोई भद्दी सी गाली भी दी। मटकियां फूटने से तिलमिलाई मां अपना आपा खो बैठी। उसने आव देखा न ताव, और एक ख़ाली चरी उठा कर पूरी ताक़त से बूढ़ी औरत के सिर पर दे मारी। बुढ़िया वहीं निढाल होकर गिर पड़ी। उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
घर में पीने का पानी तो नहीं आया पर गांव से कुछ दूर के थाने की पुलिस ज़रूर आ गई।
मां को जेल हो गई। सलाखों के पीछे चली गई मेरी मां।
उसे घर के रोटी - पानी के झंझट से मुक्ति मिली।
मेरा पिता तो मज़दूर था। सुबह खेत जाकर लौटा तो उसे घर के चूल्हे में आग नहीं दिखी। उसे सुबह काम पर जाने से पहले रोटी नहीं मिली तो उसने खीज कर किसी दूसरी औरत का ठीहा सूंघना शुरू दिया। इस तरह मेरा घर खत्म हो गया।
गनीमत ये थी कि तब मैं नहीं थी। मैं इस दुनिया में आई ही नहीं थी। हां, आने वाली थी।