सोना ✍🏻
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'बीच में बड़ा बंगला बनेगा और चारों तक ख़ूबसूरत लाॅन होगा' ।
'हाँ गगन, लेकिन लाॅन में बच्चों के लिए झूलों की भी व्यवस्था होनी चाहिए' ।
'आरती ! यह भी सोचा है मैंने ' गगन ने मुस्कुराते हुए कहा
थोड़ी दूरी पर खड़े राधेश्याम ने बेटे-बहू को नये घर की बात करते सुना तो नजदीक आकर कहा-- 'क्या बातें हो रही हैं भई' ?
आरती ने अपनी कुर्सी राधेश्याम जी को देते हुए कहा-- 'पिता जी ! गगन यह घर तुड़वाकर हम सबके लिए नया बंगला बनवाना चाहते है ।'
गगन---'हाँ पिता जी, आप तो जानते ही है कि हम कैसे-कैसे दिन देखकर आज इस अवस्था में आएँ है कि सुख-सुविधा का जीवन जी सकें ।'
राधेश्याम ने प्रसन्नतापूर्वक कहा--- 'यह तो बहुत अच्छी बात है बेटा,मैं भी यही चाहता हूँ कि मेरे बच्चें खूब तरक्की करें और वैभवपूर्ण जीवन जियें ।'
'आपसे एक बात और करनी थी पिता जी'--- गगन ने कहा
राधेश्याम ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
'पिता जी बात यह है कि अब नया घर बनवा रहे हैं तो क्यों न हम सोना ( गाय) को किसी गऊशाला में दे दे या बेच दे क्योंकि उसके रहने की जगह खाली हो जाएगी तो वहाँ पर एक अच्छा पार्किग प्लेस निकल जाएगा' ।
राधेश्याम को मौन देखकर आरती ने कहा --- 'पिता जी ! सोना अब बूढ़ी हो गयी है और उतना दूध भी नहीं देती, फिर क्या फ़ायदा '।
राधेश्याम ने आरती से कहा ---' बिटिया ! तुमने ऐसा सोचा और कहा, कोई बात नहीं लेकिन मुझे हैरानी गगन पर हो रही हैं क्योंकि यह तो जानता है कि सोना नहीं होती तो हमारे कितने विपदा और गरीबी में दिन गुज़रते कि दो वक्त का भोजन परिवार को कठिन हो जाता ।एक सड़क दुर्घटना के बाद शारीरिक तौर पर सक्षम न होने की वज़ह से मुझे अपनी नौकरी को खोना पड़ा ,उस वक्त गगन छोटा था ।तब गगन के मामा ने गाँव से सोना को भिजवाया था ताकि घर में दूध-दही का सुख हो जाए और दूध बेचकर घर का ख़र्चा भी चल सके ।तुम्हारी सासू माँ तो कहती ही आयी है कि गाय के रूप में साक्षात लक्ष्मी जी आई है ।दुर्घटना के कई साल तक तो मैं कोई काम कर ही नहीं पाया, सोना ने ही परिवार का पालन-पोषण किया और आज जब हमारे थोड़े से दिन बदले हैं तो हम इस माँ का उपकार भूल जाएँ और घर से निकाल दें इसे ।बूढ़ा तो मैं भी हो गया हूँ और कल तुम भी हो जाओगे, यही सृष्टि का नियम है लेकिन परिवार का सदस्य हर रूप में परिवार का सदस्य ही होता है फिर चाहे वह इंसान हो या मूक जानवर ' ।
यह कहकर राधेश्याम जी जब कुर्सी से उठकर जाने लगे तो गगन ने कहा ---'पिता जी ! आप सही कह रहे है ।मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी ।सोना हमारे साथ हमेशा रहेगी बल्कि उसके रहने के स्थान को भी ओर अच्छा करवा देंगे ।मैं न जाने कैसे उसके उपकार को भूलकर कृतघ्न हो गया था लेकिन आपने सही समय पर मेरी आँखें खोल दी '।
राधेश्याम ने मुस्कुराकर गगन और आरती को आशीर्वाद दिया और अपने कमरे में चले गए ।
पुष्प सैनी 'पुष्प'