सबिता दुपहर तक प्रजापति मैंशन पहुंच गई थी। देव ने उससे ज़िद्द की थी की वोह भी उसके साथ आएगा इसलिए दोनो साथ प्रजापति मैंशन आ गए थे। जैसे ही उनकी गाड़ी प्रजापति मैंशन के गेट पर पहुंची, सबिता तुरंत गाड़ी एस उतरकर दनदनाते हुए प्रजापति मैंशन के अंदर चली गई। उसके दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थी। उसे पूछना था नीलांबरी से की उन्होंने उसके साथ ऐसा क्यों किया? उसे उन्हे उनके किए की सज़ा देनी थी। इसी उम्मीद से की जैसे ही नीलांबरी उसके सामने आएगी वोह उसे गोली मार देगी, सबिता अपने मन में एक द्रिण लिए वोह अंदर चली जा रही थी।
जैसे ही वोह नीलांबरी के कमरे के पास पहुंची, उसने देखा की नीलांबरी का कमरा बाहर से बंद था और ताला लगा हुआ था।
"कहां गई वोह?" सबिता अपने में चिल्लाई।
"वोह कल रात ही कहीं चली गईं, जब उन्हे पता चला की कल रात को आप कहीं जल्दबाजी में कहीं निकल गाएं हैं। आपके जाने के थोड़ी देर बाद वोह भी कहीं चली गई," ध्रुव ने जवाब दिया। उसे सबिता के वापिस आने का जैसे ही पता चला वोह सबिता के पीछे पीछे दौड़ आया।
"वोह कहां गई हैं?" सबिता ने गुस्से से पूछा।
"हमें नही पता, मैडम। उन्होंने हम में से किसी को नही बताया की वोह कहां जा रहीं है," ध्रुव ने जवाब दिया।
"उनकी गाड़ी कौन चला कर ले गया है?"
कुछ पल ध्रुव ने कोई जवाब नही दिया। थोड़ी देर बाद वोह बोला, "मेरे बाबा।"
यह सुनते ही सबिता की मुट्ठी भींच गई, उसे जो शक था वोह अब यकीन में बदल चुका था। उसे हमेशा लगता था की कोई तोह है जो नीलांबरी की मदद करता है। और उसे बताता होगा की सबिता की सहाना को ढूंढने की इन्वेस्टिगेशन कहां तक सफल हुई।
सबिता को हर किसी पर शक था सिवाय एक इंसान के वोह है संजय। किसी कारणों से उसे लगता था की संजय उसकी बुआ से ज्यादा सबिता के लिए लॉयल है। यही कारण था की उसने यह बात मान ली थी की उसका बच्चा जिंदा है और उसे कहीं भेज दिया गया क्योंकि वोह बात उसे संजय ने भी बताई थी।
"उन्हे ढूंढो," सबिता ने धीरे लेकिन कड़क आवाज़ में कहा।
"उन्हें ढूंढ कर मेरे पास वापिस लाओ और वोह भी ज़िंदा," सबिता ने आदेश दिया। वोह नही चाहती थी कोई उसकी बुआ को एक खरोच भी लगाए। वोह तोह खुद अपने हाथों से अपनी बुआ नीलांबरी को मारना चाहती थी। जो दुख दर्द उसने सहा है इतने सालों तक उसका हर्जाना कोई नीलांबरी को यूहीं गोली मार कर नही चुका सकता। नीलांबरी को अपने सामने तड़प तड़प कर मरते हुए देखना चाहती थी सबिता।
ध्रुव सिर हिला दिया बिना किसी आर्गुमेंट किए। सबिता जानती थी की भले ही संजय ध्रुव के पिता है लेकिन फिर भी ध्रुव अपनी ड्यूटी को ज्यादा वैल्यू देता है। उसके लिए सबसे ऊपर उसकी ड्यूटी है बाद में कुछ और।
देव ने भी अपने आदमियों से बात करके सबको नीलांबरी और संजय को ढूंढने के लिए लगा दिया। और अपने इन्वेस्टिगेटर को नीलांबरी और संजय की सारी डिटेल्स भेज दी ताकि अंक बारे में वोह कुछ पता लगा सके।
सबिता देख रही थी की उसके कुछ आदमी जा रहें थे नीलांबरी की तलाश में।
"मुझे तोह यकीन ही नहीं हो रहा, की इतनी आसानी से नीलांबरी भागने में सफल हो गई," सबिता ने फ्रस्ट्रेशन से कहा।
"हम उसे जल्द ही ढूंढ लेंगे," देव ने सबिता से प्रोमिस किया।
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उन्होंने थोड़ी देर बाद बिना और उसकी नतनी सहाना को उनके घर छोड़ दिया जहां वोह पहले रहा करते थे, जहां उनके बाकी के रिश्तेदार रहते थे। अपने लोगों के बीच वापिस आके बिना बहुत खुश हो गई थी।
सबिता उन्हे वापिस मिलते हुए दूर से देख रही थी।
कुछ देर बाद बिना अपने लोगों को छोड़ कर सबिता के पास आई। "थैंक यू, साबी," बिना ने अपनी आंखों में आंसू लिए हुए कहा। "मैने कभी नही सोचा था की मरने से पहले मैं अपने लोगों के बीच वापिस आ पाऊंगी और अपना घर अपना परिवार कभी देख पाऊंगी।"
सबिता ने सिर हिला दिया। "यहां तुम पूरी तरह से सुरक्षित हो। मैने तुम्हारी जरूरत की सभी चीजों का इंतज़ाम करवा दिया है अब तुम्हे कभी किसी चीज़ की जरूरत नहीं होगी। अगर तुम्हे और सहाना को कभी भी किसी भी चीज़ की जरूरत पड़े तोह बेझिझक मुझे कॉल कर लेना।"
सबिता ने अपने आदमी को यहां की सुरक्षा के लिए और जरूरत की चीज़े मुहैया करवाने के लिए आदेश दिया और फिर अपनी मां के रिश्तेदारों या फिर यूं कहो की मां के मायके की जगह से निकल गई।
सबिता ने पहले एक गहरी सांस ली और फिर अपनी आंखें बंद कर ली। वोह सब भूलना चाहती थी जो भी इन सात सालों में उसके साथ हुआ। उसने अपनी आंखे बंद करने के बाद ही तुरंत खोल ली क्योंकि उसे अपने हाथ पर देव की पकड़ महसूस हुई। देव उसके हाथ को हल्का दबा रहा था जैसे उसे रीएश्योर कर रहा हो की सब ठीक हो जायेगा।
"देव, अब तुम्हे भी घर वापिस चले जाना चाहिए," सबिता ने धीरे से कहा जब वोह दोनो अपनी गाड़ी की तरफ बड़ रहे थे।
"तुम चाहती हो की मैं चला जाऊं?" देव ने पूछा।
"नही," सबिता ने भी सच्चाई से जवाब दिया। "पर...."
"तोह किसी और बात से फर्क नही पड़ता," देव ने सबिता की बात काटते हुए कहा। "मैं तब तक तुम्हारे साथ रहूंगा जब तक की तुम मुझे खुद जाने को नही कहती।"
सबिता ने कुछ नही कहा। वोह खुद बहुत इमोशनल फील कर कर रही थी। उसे भी उसकी और उसके साथ की जरूरत थी। वोह थोड़ा सेलफिश होने लगी।
जब वोह दोनो गाड़ी में बैठ गए तब देव ने गाड़ी प्रजापति मैंशन की तरफ बढ़ा दी। सबिता ने देव की तरफ देखा जो गाड़ी चला रहा था। सबिता को नही पता था की देव किस तरह रिएक्ट करेगा, कहीं वोह उससे नाराज़ ना हो जाए। लेकिन फिर भी हिम्मत करके उसने देव से पूछा, "क्या हम कॉटेज चल सकते हैं?"
देव की आंखें हैरानी से फैल गई और अनकहे एहसास उमड़ पड़े। एक उम्मीद की किरण उसे दिखाई दी लेकिन फिर उसे नज़र अंदाज़ करके उसने हां में सिर हिला दिया।
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सबिता कॉटेज में ही बैड पर उस आदमी की बाहों में सुकून से लेटी हुई थी जिससे वोह बहुत प्यार करती है। उसकी बाहों में उसे बहुत ही सुकून मिल रहा था। उसे उस जगह से भी कंफर्ट महसूस हो रहा था, जिस जगह पर आ कर वोह अपनी चिंताएं, जिमेदारियां और परेशानियां सब भुला दिया करती थी। वोह यहां वोह होती थी जो वोह असल में खुद है।
देव काफी देर तक हुईं चुपचाप लेटा हुआ था, सबिता को थामे हुए। वोह अपनी सोच में गुम था। जब उसने महसूस किया की सबिता की नज़रे उसी पर हैं तोह उसने भी सबिता की तरफ देखा। "मैं तुमसे कुछ पूछूं?" देव ने पूछा। सबिता ने हां में सिर हिला दिया। सबिता उसके चेहरे पर तड़प देख पा रही थी।
"क्या उस वक्त तुम प्रेगनेंट थी जब तुम उस लड़के के साथ भागी थी, सात साल पहले?" देव ने पूछा।
"हां," सबिता ने आराम से जवाब दिया। यह सुनते ही देव को ऐसा लगा जैसे उसके हाथों बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो।
"आई एम सॉरी, बेबी," देव ने कहा। "मेरी वजह से तुमने दो ऐसे लोगों को खो दिया जिससे तुम प्यार करती थी।"
"नही। ऐसा नहीं है, देव," सबिता ने देव का हाथ पकड़ कर कहा। देव के स्पर्श मात्र से ही सबिता को तुरंत कंफर्ट महसूस होता था और वोह उम्मीद कर रही थी की उसके स्पर्श से देव को भी ऐसा ही लगता होगा। उसने उसकी तरफ आंखों में देखा। "मैने अब रियलाइज किया है की जो भी राघव के साथ था वोह बस कुछ वक्त के लिए लगाव था पर प्यार नही। उससे ज्यादा मुझे बस इस बात की खुशी थी की उसके साथ भागने के बाद मैं इस जालिम दुनिया से दूर चली जाऊंगी और आज़ादी से अपनी जिंदगी जियूंगी।" सबिता ने अपने एक हाथ देव के गाल पर रख दिया। "मैने तुम्हारी वजह से अपना बेटा नही खोया है। मैने उसे इसलिए खोया क्योंकि मैं उस वक्त बहुत स्ट्रेस में रहती थी। तुम बस उस किस्से में इंवॉल्व थे जब मैं पहली बार भागी थी। उसके बाद मैने कई बार भागने की कोशिश की, और हर बार मुझे पकड़ कर वापिस ले जाया जाता था। मुझे नफरत होती थी उस जगह से। मैं अपने बच्चे को उस नर्क में पैदा नहीं करना चाहती थी और ना ही उसे वैसी ज़िंदगी देना चाहती थी जो मैने सही।"
सबिता ने अब देव पर से अपनी नज़रे हटा ली। वोह अपने दिमाग में चल रही बहुत सारी बातों को आवाज़ देना चाहती थी। अपना मन हल्का करना चाहती थी। "शायद मेरा बेटा इसलिए मर गया क्योंकि वोह जान गया था की मैं उसे इस बेरहम दुनिया में नही लाना चाहती थी," सबिता ने फुसफुसाते हुए कहा।
"ऐसा मत कहो। मैं जानता हूं की तुम अपने बच्चे को कितना चाहती हो। तुम पिछले छह साल से अपने बच्चे को लगातार ढूंढ रही थी और उसकी सुरक्षा के लिए जो बल तुमसे पड़ा वोह तुमने किया।"
जैसे ही देव ने यह कह सबिता के आंखों से फिर से आंसू बरस पड़े। उसने अपने हाथ देव के ऊपर ले जाते हुए उसे कस कर पकड़ लिए और उसकी गर्दन में मुंह छुपा कर रोने लगी। वोह उसे लिपटी हुई अपने मन को हल्का के रही थी। रोते रोते उसने महसूस किया देव उसकी पीठ को सहला रहा है और उसे कंफर्ट महसूस कराने के लिए उसके कान में धीरे धीरे कुछ कुछ बोले जा रहा है।
कुछ देर बाद जब उसका मन हल्का हो गया और रोना बंद हो गया तोह उसने अपने आंसू पोछे और सिर उठा कर देव के चेहरे की तरफ देखा। उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। "आई एम सॉरी। मैं तुम्हे...."
"इट्स ओके अगर तुम्हे मेरी ज़रूरत है तोह, सबिता। मुझे भी तुम्हारी जरूरत है। इसमें कोई शर्म की बात नही है उस इंसान को अपने पास चाहना जिससे हम बहुत प्यार करते हैं।"
"तुम....तुम मुझसे अभी भी प्यार करते हो?" सबिता ने हैरत में पूछा।
"ऑफ़ कोर्स, आई लव💕 यू," देव ने सबिता की आंखों में देखते हुए कहा। और सबिता को अपने आप को कोसने लगी की उसने देव पर डाउट किया। "मैने तुम्हे पहले भी कहा था की मैं हमेशा तुमसे प्यार करता रहूंगा। मेरे लिए अच्छा बुरा किंतु परंतु नही है। तुम हो, बस तुम ही हो मेरे लिए," देव ने प्यार से कहा।
यह सुनते ही सबिता का दिल जोरों से धड़कने लगा। "तुम्हारा सेनानी से रिश्ते का क्या?" सबिता ने पूछा। "तुम तोह नर्मदा सेनानी से शादी करने वाले थे ना?"
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(पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏)