अगले कुछ दिन अमायरा के लिए बहुत ही मुश्किल भरे थे। वोह चाहती थी की जितना दूर हो सके उतना कबीर से दूर रहेगी। लेकिन उसकी हर कोशिश नाकामयाब हो रही थी। कबीर अपने विश्वास पर अटल था। वोह सुबह यह ध्यान रखता था की अमायरा सब के साथ ही नाश्ता करे। और उसे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता था की उसकी फैमिली उसके बदले स्वरूप को देख कर उसे चिढ़ाने लगी है। रोज़ अमायरा को कबीर फूल देता था जो की सभी फैमिली मेंबर्स नोटिस करते थे जिसकी वजह से अमायरा को गुस्सा आता था। लेकिन खेरियत की बात यह थी की कोई भी अमायरा को कुछ नही कहता था इसलिए वोह ऑकवर्ड सिचुएशन से बच जाती थी। रोज़ शाम को कबीर उसे अनाथ आश्रम में लेने आता और फिर अपने ऑफिस की, दिन भर की बातें उसे बताता। अमायरा ना के बराबर रेस्पोंड करती लेकिन इससे कबीर निराश नही होता और ना ही उसने अपने बारे में बताना छोड़ा। एक दिन जब कबीर ने उसे फोन किया की वोह आएगा उसे लेने तोह अमायरा ने मना कर दिया की वोह खुद चली जायेगी। रोज़ रोज़ उसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। जब वोह शाम को अनाथ आश्रम से बाहर निकली तो कबीर की गाड़ी बाहर ही खड़ी थी। वोह पैर पटकते हुए गाड़ी में बैठ गई। उसकी हर कोशिश नाकाम हो रही थी। वोह जितना कबीर से दूर भागती उतना कबीर उसके करीब आने की कोशिश करता। उसने सोचा अगले दिन वोह जल्दी ही अनाथ आश्रम से निकल जायेगी लेकिन कबीर के साथ नही जायेगी। अगले दिन वोह अपने रोज़ के समय से थोड़ा जल्दी निकल गई ताकि वोह कबीर को अवॉइड कर सके। जब वोह बाहर आई तो फिर हैरान रह गई। कबीर की गाड़ी आज भी बाहर खड़ी थी वोह भी समय से पहले। अमायरा कबीर के पास जा कर बिगड़ पड़ी की वोह उसे अपने हिसाब से चला रहा है। वोह अपने हिसाब से कुछ नही कर पा रही है, उसे कबीर के मुताबिक चलना पड़ रहा है। कबीर ने कोई जवाब नही दिया बस मुस्कुराते हुए गाड़ी का दरवाज़ा उसके लिए खोल दिया। अमायरा पैर पटकते हुए गाड़ी में बैठ गई। वोह गुस्से से बिलकुल चुप रही और कबीर के किसी भी बात का जवाब नही दिया। इसी तरह एक हफ्ता गुज़र गया था। कबीर उसे रोज़ लेने आता और किसी न किसी टॉपिक पर उसके साथ गाड़ी में बात करता। और अमायरा किसी बहरी और गूंगी की तरह बैठी रहती।
और रात में भी कबीर उसे पकड़ कर ही सोता। जिस रात वोह पहली बार उसे पकड़ कर सोया था उसके अगली रात को ही अमायरा ने उसे पकड़ कर सोने के लिए मना कर दिया था ताकी वोह आराम और शांति से सो सके। पर कबीर ने उसे यह कह कर मना कर दिया था की उसे उस पर विश्वास नहीं है। और वोह मौका पा कर बैड छोड़ कर सोफे पर चली जायेगी इसलिए मैं अपना हाथ नही हटाऊंगा। वोह जितना कसमसाती उतनी कबीर की पकड़ मजबूत हो जाती। हार कर अमायरा ने स्ट्रगल करना छोड़ दिया था। कबीर अपने टाइट शेड्यूल की वजह से दिन भर काम करते करते थक जाता था इसलिए बैड पर लेटते ही वोह सो जाता था। अमायरा को लगता था की अगर वोह हिलेगी तोह कबीर की नींद खराब हो जायेगी इसलिए वोह चुपचाप ऐसे ही कबीर के हाथ के साथ ही सो जाती थी। उसने बैड छोड़ कर सोफे पर जाने का स्ट्रगल छोड़ दिया था। इसलिए तीन दिन के अंदर ही अमायरा ने कोशिशें करना छोड़ दिया था कबीर की पकड़ से छूटने का और कबीर यह देख कर मुस्कुरा पड़ा था। और चौथे दिन वोह बिना तंग किए चुपचाप आराम से सो गई थी की क्योंकि वोह अब यूज्ड टू हो गई थी कबीर की नज़दीकी से।
सातवा दिन अमायरा के लिए एक बड़े खुलासे का दिन था। कबीर को एक कांफ्रेंस अटेंड करनी थी बैंगलोर में इसलिए वोह सुबह जल्दी ही घर से निकल गया था। अपने शेड्यूल के हिसाब से वोह अगले दिन आने वाला था। अमायरा यह जान कर बहुत खुश थी क्योंकि आज वोह अपना पूरा दिन अपनी मर्जी के मुताबिक जी सकती थी। और तो और बिना कबीर के वोह आज सुकून से सो सकती थी। जब शाम को वोह अनाथ आश्रम के बच्चों को पढ़ा कर वहां से निकली तो सामने खड़ी गाड़ी देख कर फिर इरिटेट हो गई। उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और चुपचाप जा कर वोह गाड़ी में बैठ गई। उसने एक बार भी कबीर की तरफ नही देखा। गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी और थोड़ी देर में ही उसे अजीब लगने लगा। आज कबीर उससे अपने दिन भर के बारे में नही बता रहा था। उसने एक बार सोचा की कबीर से पूछ ले की आज वोह चुप क्यों है? क्या आज ऑफिस में कोई काम नही हुआ? पर फिर कुछ सोच कर उसने अपने मन में उठे सवालों को शब्द नही दिए। वोह इतनी आसानी से गिव अप नही करने वाली थी। उसने सोचा की अगर वोह कबीर से बात करेगी तोह कबीर को उम्मीद मिल जायेगी। उसने जो मौखौटा ओढ़ रखा था नाराज़गी का उसे वोह उतरना नही चाहती थी। इसलिए उसने अपनी आंखें बंद कर ली और चुपचाप सीट से सिर टिका दिया।
"अमायरा मैम, हम पहुंच गए।" अमायरा ने ड्राइवर की आवाज़ सुनी और चौंक कर उठी। अब उसे शर्मिंदगी महसूस होने लगी। उसके गले में शब्द भी अटक गए, वोह कुछ बोल ही नहीं पाई। वोह तुरंत गाड़ी से उतर गई और जल्दी जल्दी अपने कमरे की तरफ चली गई।
वोह तोह भूल ही गई थी की आज कबीर उसके आसपास है ही नही। उसे आज दुपहर में उसके कुछ मैसेजेस आए थे लेकिन उसने इग्नोर कर दिया था। शायद हो सकता है वोह उसके बाद कॉन्फ्रेंस में बिज़ी हो गया हो। अमायरा ने वैसे भी दुपहर लंच के बाद से अपना फोन चैक नही किया था इसलिए उसे पता ही नही की कबीर ने बाद में भी कोई मैसेज भेजा हो।
पर इस वक्त अमायरा को अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि वोह कबीर को अनाथ आश्रम के बाहर एक्सपेक्ट कर रही थी?
*नही*
*मैं उन्हे एक्सपेक्ट नही कर रही थी की वोह मुझे लेने आएं।*
*मैं बस थोड़ा सरप्राइज्ड थी।*
*हां, मुझे पता है की वोह यहां नही थे पर मैं भी बिज़ी थी इसलिए भूल गई थी।*
*नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नही है की मैं उनका इंतजार कर रही थी।*
अमायरा अपने मन को समझा रही थी और उसमे आखिर जीत भी गई थी। या फिर उसे ऐसा लग रहा था की वोह जीत गई है। उसने अपने डिनर के बाद अपने डेली के नाइट रिचुअल्स पूरा किया और बैड पर सोने के लिए लेट गई। वोह खुश थी क्योंकि आज वोह बैड पर अकेली सोने वाली थी, एक दम फ्री होक। वोह खुश थी क्योंकि वोह अपने कंफर्ट के अकॉर्डिंग जैसे मन वैसे सो सकती थी। उसने करवट बदली और एक कंफर्टेबल पोजीशन ले ली। उसने फिर करवट बदली और पोजीशन बदल ली। वोह किसी एक पोजीशन को डिसाइड ही नही कर पा रही थी की कंफर्टेबल कौन सी है। ऐसे ही कुछ मिनट्स गुजरे जो की घंटों में बदल गए लेकिन वोह करवटें बदलती रही और नींद आंखों से कोसों दूर चली गई।
*यह सब उनकी गलती है। उन्होंने मेरे सोने के पैटर्न को ही खराब कर दिया। मैं पहले कितना अच्छे से सोती थी जब वोह....... उह्ह.......पहले.......वोह....... ऊंह...... मुझे बस जल्द से जल्द सोना चाहिए।*
अमायरा अपनी नींद न आने का ब्लेम कबीर पर डाल रही थी पर इससे भी उसका मन शांत नही हुआ। थोड़ी देर बाद वोह उठी और दूसरा नाइट सूट लेकर चेंज करने चली गई। वोह जो कबीर ने उसे गिफ्ट किया था। उसके बाद वोह तुरंत बैड पर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। उसने ऐसा क्यों किया था वोह नही जानती थी। थोड़ी बेचैनी के बाद वोह जल्द ही सो गई। उसे कुछ अजीब अजीब से डरावने सपने आने लगे जिसकी वजह से वोह थोड़ी थोड़ी देर में उठ जाती थी। एक ऐसे ही सपने ने उसे डरा दिया था जब उसे किसी की गरमाहट अपने आसपास महसूस हुई।
*वोह एक भूल भुलैया में खो गई थी। उसने है मुमकिन कोशिश की बाहर निकलने की लेकिन निकल नही पा रही थी। उसे बाहर जाने का रास्ता ही नही मिल रहा था। वोह डरी हुई सी इधर उधर भाग रही थी। उसे पक्का यकीन था की थोड़ी देर पहले उसने अपनी मॉम को देखा था लेकिन अब वोह उसे नही मिल रहीं थी। उसे डर लग रहा था, वोह अकेली थी, वोह बाहर निकलने का रास्ता खोज रही थी, तभी उसे महसूस हुआ की किसी हाथ ने उसे पकड़ लिया है और बाहर जाने का रास्ता दिखा रहा है। धीरे धीरे वोह उसके बताए इशारों की बढ़ने लगी और कुछ ही पलों बाद वोह उस भूल भुलैया से बाहर निकल गई। अब वोह एक बहुत सुंदर से गार्डन में आ चुकी थी जहां बहुत ही सुंदर चारों ओर फूल ही फूल थे। चारों ओर अलग अलग फूलों की महक फैली हुई थी। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। वोह एक एक करके सभी फूलों को छू रही थी और फिर अचानक से पलट गई यह देखने के लिए की वोह कौन है जिसने उसे उस भूल भुलैया से बचाया था। वोह हैरान रह गई थी उसका चेहरा देख कर क्योंकि उसका चेहरा उसके पति से काफी मिलता था। अचानक से वोह सारे फूल एक बुके 💐 में बदल गए जो की उसके पति कबीर ने ही उसे दिए थे, जो वोह उसे हर रोज़ देता था। अब वोह अपने कमरे में थी कबीर के साथ। और जो खुशबू वोह फूलों में से महसूस कर रही थी, असल में वो फूलों की नही थी। वोह कबीर की खुशबू थी। कबीर ने एक कदम आगे बढ़ाया और अमायरा की कमर पर अपना हाथ रख दिया। अमायरा उसकी पकड़ से छूटने चाहती थी लेकिन नही छूट पा रही थी क्योंकि कबीर ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी।*
*"छोड़िए मुझे," अमायरा ने बोलने की कोशिश की लेकिन उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकली।*
*"नहीं। कभी नहीं।" कबीर ने कहा जैसे वोह जनता था की अमायरा क्या कहना चाहती है।*
*"आप झूठ बोल रहें हैं।"*
*मेरा यकीन करो अमायरा।" कबीर ने प्यार से कहा और अमायरा उसकी आंखों में खो गई।*
"मिस्टर मैहरा।" अमायरा नींद में बड़बड़ाई।
"मैं यहीं हूं जान 💕। तुम्हारे पास। सो जाओ।" कबीर ने प्यार से उसे सहलाया और किसी छोटे बच्चे की तरह अमायरा कबीर की बाहों में सिमट गई।
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कहानी अभी जारी है..
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