Bhola Ram II in Hindi Moral Stories by BALDEV RAJ BHARTIYA books and stories PDF | भोला राम द्वितीय

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भोला राम द्वितीय


भोला राम द्वितीय

बलदेव राज भारतीय

भोलाराम द्वितीय इक्कीसवीं सदी के विलक्षण व्यक्ति हैं। भोलाराम अपने नाम के अनुरूप भोले भाले हैं। इनसे पहले एक और भोलाराम हुए हैं जिनका जीव यमदूतों को चकमा देकर फाइल में ही छुप गया था। परंतु जिस भोलाराम द्वितीय की बात मैं सुनाने जा रहा हूं, वह तो क्या उनका जीव भी बहुत भोला भाला है। लोगों ने उनके भोलेपन को देखकर ही बचपन से ही उनका नाम बुद्धू रख दिया था। भोला राम एक सरकारी कार्यालय में लिपिक के पद पर कार्यरत हैं। भोलाराम की शादी एक सुंदर स्त्री चंचला से इसलिए हो गई क्योंकि इस युग में सरकारी नौकरी प्राप्त करना किसी भी प्राणी के लिए दुष्कर कार्य है और लोगों का मानना है कि सरकारी दामाद की सूरत अथवा सीरत नहीं देखी जाती। चंचला भी अपने नाम के अनुरूप चंचल थी और स्त्री चंचल हो तो उसके नाज़ नखरे भी उतने ही ज्यादा होते हैं। चंचला जैसी सुंदर स्त्री को पाकर भोलाराम फूला नहीं समा रहा था। वह अपने भाग्य पर इतरा रहा था। इतराता भी क्यों नहीं? इतनी सुंदर स्त्री जैसे किसी फिल्म की हीरोइन हो, उसकी पत्नी बनकर उसके घर आ गई थी। चंचला में उसे जब वी मेट की करीना कपूर नजर आती थी। परंतु भोले भाले भोलाराम को क्या मालूम था कि करीना कपूर की कापी को घर में रखना हथिनी को घर बांधने जैसा मुश्किल काम है। उसकी यह खुशी कुछ ही दिन बाद काफूर हो गई जब भोलाराम की पत्नी की खाने पहनने की सिफारिशें उसकी जेब पर भारी पड़ने लगी। वह सप्ताह दर सप्ताह नए नए सूट, साड़ियां खरीदने लगी। किसी ने कहा था कि तेते पांव पसारिए जेती लांबी सौर। परंतु उसकी चादर बहुत छोटी थी तो चंचला की फरमाइशें सुरसा के मुख की तरह बढ़ती ही जा रही थी। अगर वह पत्नी को समझाने का जरा सा भी प्रयास करता तो बेचारा…….. । मजबूरन उसे अपनी पत्नी की सभी फरमाइशें पूर्ण करनी पड़ती। कपड़े की दुकान पर जाकर जब दुकानदार अलग अलग रंग के कपड़ों की खूबियां उन दोनों के समक्ष प्रकट करता तो भोलाराम को लगता कि कैसे दुकानदार का मुंह बंद करे? फिर वह सोचता कि परमात्मा ने इतने रंग बनाए ही क्यों? अगर इस दुनिया में केवल दो रंग होते तो यह दुनिया जैसी भी होती मेरे लिए तो खूबसूरत ही होती। मेरे घर में पैसे की इतनी बर्बादी न होती। वह मन ही मन परमात्मा से प्रार्थना करता कि हे ईश्वर! इस दुनिया को दो रंगी बना दे। लक्ष्मी जी तो स्वयं धन की देवी हैं इसलिए आपको कोई फर्क नहीं पड़ता होगा। मगर प्रभु मुझ गरीब की ओर तो ख्याल करो। मेरे जैसे न जाने कितने और प्राणी इस सुंदर जाल में फंसकर अपनी जेबें ढीली कर रहे हैं। यदि आप इस बहुरंगी दुनिया का दो रंगों का बना देंगे तो इस दुनिया की बहुत सी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी। उसे ईश्वर पर पूरा विश्वास था कि एक दिन उसकी यह इच्छा अवश्य ही पूरी होगी। इसलिए वह और भी अधिक श्रद्धा के साथ सुबह शाम भगवान जी की पूजा किया करता।

चंचला की खूबसूरती को संभालना अब भोलाराम के बूते से बाहर होता जा रहा था। कपड़े वाले की दुकान पर बैठकर वह अच्छे से अच्छे सूट में भी कुछ न कुछ कमी निकाल देती थी। "भैया, इस रंग का मेरे पास पहले ही है। कोई नया रंग दिखाओ। प्राइस रेंज की आप चिंता मत करो।" उसके कहे ये शब्द भोलाराम के कानों में सीसा घोल देते। वह मंदिर में जाकर जोर जोर से रोता। आखिरकार उसका रोना भगवान श्री नारायण जी के कानों में पड़ ही गया। उन्होंने नारद को याद किया और भोलाराम के रोने का कारण पूछा। नारद जी ने भगवान श्री नारायण जी को बताया कि भोला राम अपनी पत्नी की प्रतिदिन की शॉपिंग से दुखी हो गए हैं। इतने तो आपने रंग नहीं बनाए जितने रंगों की वह डिमांड कर देती है। भोलाराम आपकी सहायता चाहते हैं कि आप इस सम्पूर्ण जगत को दो रंगों में बांट दो।

"संसार को दो रंगों तक सीमित रखने से भोलाराम की समस्या तो निश्चित ही हल हो जाएगी परंतु प्रकृति में व्याप्त खुशहाली गायब हो जायेगी। ये रंग बिरंगा संसार बेरंग हो जायेगा। चहुंओर उदासी छा जाएगी। लोगों की जीवन प्रत्याशा घट जाएगी लोग अवसाद में डूब जायेंगे। हो सकता है कल भोलाराम जैसा कोई फिर प्रार्थना करने लग जाए कि दुनिया को बहुरंगी बना दो। फिर मृत्युलोक निरंतर आगे बढ़ रहा है। श्वेत श्याम तो अब कोई फिल्म भी नहीं देखता फिर संसार को कैसे देखेंगे लोग? एक भोलाराम की समस्या सुलझाने के लिए मैं संसार को बेरंग नहीं कर सकता नारद!" श्री नारायण जी ने अपनी विवशता को नारद जी के समक्ष प्रकट किया।

"नारायण! नारायण! आपका सच्चा भक्त निराश होकर आत्महत्या कर ले तो आपको अच्छा लगेगा। प्रभु! आप तो मनुष्यों की भांति बहाने बना रहे हो। आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं। जिस तन्मयता, भावुकता और प्रेम के साथ भोलाराम ने आपसे प्रार्थना की, क्या किसी ने उसी तन्मयता , भावुकता और प्रेम के साथ आपका धन्यवाद भी किया है इस सारी दुनिया को रंगीन बनाने और खूबसूरत बनाने के लिए। लोग तो आपको गालियां निकालते हैं, इतना कुछ उन्हें देने के उपरांत भी। कहीं ऐसा न हो लोग आपको छोड़कर किसी और की आराधना या उपासना करने लगें। मृत्युलोक में बहुत से गुरु बने बैठे हैं। लोग उनकी शरण में चले गए तो लौट के नहीं आयेंगे।"

"नारद, तुम कहते हो तो मैं इस संसार को दोरंगा बना देता हूं। लेकिन फिर से रंगीन बनाने के लिए मत कहना। मैं तुम्हारी सुनूंगा नहीं।"

"प्रभु! उसका उपाय मेरे पास पहले ही है। पहले आप संसार को दोरंगा तो बनाइए।"

"ठीक है!" कहकर प्रभु ने संसार को दोरंगा बना दिया। संसार में सभी कुछ श्वेत श्याम हो गया। संसार की सभी स्त्रियां काले रंग की और सभी पुरुष सफेद रंग के हो गए। पेड़ पौधों से लेकर संसार की हर वस्तु या तो प्रकाश के सभी रंगों को अवशोषित करने वाली बन गई या फिर सभी रंगों को परावर्तित करने वाली बन गई।

सुबह चंचला उठकर जब आईने के सामने गई तो उसकी चीख निकल गई। उसकी चीख सुनकर भोलाराम उस ओर भागा। उसे देखकर भोलाराम उससे भी अधिक जोर से चीख पड़ा। उसे लगा कि उसके सामने कोई काले रंग की चुड़ैल अपने सफेद खतरनाक दांतों से उसकी ही प्रतीक्षा कर रही है। अपने आपको आईने में देखकर वह और भी अधिक आश्चर्यचकित हो गया। अरे वाह! यह तो कमाल हो गया। मैं तो बिलकुल सफेद रंग का हो गया। सच में ही उसका सांवला रंग दूध की तरह सफेद हो गया था। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई। भोर का तारा भी निकलते ही सफेद रोशनी फेंक रहा था। आज अरुण की अरुणाई गायब थी। उसकी नजर वृक्षों पर पड़ी। वृक्षों के हरे पत्ते काले हो गए थे। उसने जमीन की ओर देखा तो हरी हरी दूब काली हो चुकी थी। उधर चंचला का रो रोकर बुरा हाल हो चुका था। चंचला की तरह रोने की आवाजें चारों ओर से आ रही थी जो लोगों के सीने को फाड़ रही थी। क्योंकि सभी सुंदर गोरी स्त्रियां काले रंग की हो गई थी। उनके चीखने चिल्लाने की आवाजों से आसमान फटा जा रहा था। चंचला का रोना सुनकर भोलाराम भी रूआंसा हो गया। वह बोला,"तुम्हें रंग बिरंगे कपड़ों से इतना प्यार न होता तो यह दुनिया रंग बिरंगी ही रहती। पर तुमने तो हद कर दी। अब खरीदो, किस रंग के कपड़े खरीदोगी? ईश्वर तुमसे नाराज हो गया है। तुम्हारे जैसी स्त्रियां अपने पतियों की खून पसीने की कमाई यूंही फिजूल में लुटाती रहती हैं। "तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे यह सब तुमने ही करवाया हो?"

" मेरी ऐसी इच्छा जरूर थी। मगर मेरी इतनी पहुंच कहां? सभी पतियों ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह इस दुनिया को दो रंगी बना दे। ईश्वर ने उनकी करुणा भरी पुकार सुन ली और उन्होंने यह सारी दुनिया दो रंगी बना दी है।"

"सभी पतियों ने या तुमने…..? दुनिया को दो रंगी बनाने की प्रार्थना की……! ईश्वर को बनाना ही था तो सभी स्त्रियों को सफेद रंग का बनाया होता और सभी पुरुषों को काले रंग का बना दिया होता।"

"अरे वाह! भगवान की सोच पर सवाल उठा रही हो। भगवान ने सब सोच समझ कर किया है। अगर स्त्रियों को सफेद और सभी पुरुषों को काला बना दिया होता तो तुम जैसी स्त्रियां किस को घास डालती? तुम्हारे तो नखरे ही ना ओटे जाते। ……. और फिर तुम ही तो मंदिरों में जाकर भगवान श्री कृष्ण के आगे यह प्रार्थना करती हो~मुझे अपने ही रंग में रंग ले मेरे यार सांवरे~अब जब उन्होंने तुम्हें अपने रंग में रंग लिया तो तुम्हें कष्ट किस बात का हो रहा है?"

"तुम नाम के ही भोले हो। हमारा बुरा चाहने वाले अब हमें चिढ़ाने का भी कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हो। जितना सीधा तुम्हें समझती थी, तुम हो नहीं।"

"तुमने शायद एक कहावत नहीं सुनी कि जब खुदा हुस्न देता है तो नजाकत आ ही जाती है। यह कहावत पुरुष समाज ने तुम स्त्रियों के लिए बनाई थी। परंतु अब यह हम पुरुषों पर लागू होगी।"

"तुमने भी एक गीत तो सुना होगा,गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरा रंग दो दिन में ढल जायेगा। होली आ रही है। त्योहार तो रंगों का है, मगर रंग तो दो ही रह गए हैं। तुम्हें उस दिन रंग रंग के काला न कर दिया तो चंचला मेरा नाम नहीं।"

"दो हाथ तो ईश्वर ने हमें भी दिए हैं। तुम हमें रंग लगाओगी और हम कुछ भी न करेंगे। ऐसा कैसे हो सकता है?"

"मेरे काले रंग पर काला रंग तो चढ़ने से रहा मेरे भोले। सफेद लगाओगे तो लगा लेना…. जितना जी चाहे। तुम्हें रोकूंगी भी नहीं।"

"देखो, तुम भी हमें काला रंग नहीं लगाओगी। बड़ी मुश्किल से अपने सांवले रंग से छुटकारा मिला है हमें। अब हम दोबारा काले नहीं होना चाहते।"

"तुम क्या सोचते हो कि होली पर रंग पूछ कर लगाए जाते हैं? अरे, जब रंग ही दो रह गए हैं तो तुम मुझे सफेद रंग लगाओगे और मैं तुम्हें काला।"

"हे भगवान! पुरुष के भाग्य में स्त्री से जीतना क्यों नहीं लिखा? ये किसी भी परिस्थिति में पुरुषों पर भारी क्यों पड़ती हैं? भगवान इनका काला रंग देखकर तो और भी डर लगने लगा है। ये तो और भी ज्यादा खतरनाक हो गई हैं। आप दुनिया को पहले की तरह रंगीन बना दीजिए।"

बैकुंठ लोक में भगवान श्री नारायण जी ने फिर भोलाराम की पुकार सुनी। मगर अबकी बार पुकार को अनसुना कर दिया। नारद जी यह सब देख रहे थे।

"नारायण! नारायण! प्रभु आपको तो दुनिया में पहले ही श्याम, सांवरा कहकर बुलाया जाता है। अब अच्छा थोड़ा ही लगेगा अगर कोई आपको सफेद, चिट्टा, धौला, गोरा इत्यादि कहकर बुलाए। आपका नाम तो सांवरा, श्याम, सलोना ही अच्छा लगता है। कर दीजिए प्रभु फिर से इस दुनिया को रंगीन। रंगों और मस्ती का त्योहार होली भी आ रहा है प्रभु! होली में रंग नहीं होंगे तो कैसी होली प्रभु!"

"नारद! तुम तो बस अब रहने ही दो। मैने तो पहले ही तुम्हें कहा था कि मैं दुनिया को श्वेत श्याम बना तो दूंगा पर फिर मुझे फिर से रंगीन बनाने के लिए मत कहना। तब तो तुम कह रहे थे कि तुम्हारे पास इस बात का भी उपाय है। प्रभु मैं उस उपाय का प्रयोग नहीं करना चाहता था परंतु यदि आप चाहते हैं तो वही सही। नारद जी मां लक्ष्मी को प्रणाम कर बोले, " माता, आप नारायण जी से कहिए कि इस समस्त जगत में प्रकृति के रंग फिर से बिखेर दें।"

श्री नारायण जी नारद की ओर देख कर मुस्करा दिए और बोले, "मृत्युलोक हो या बैकुंठलोक जीत हर जगह नारी की ही होती है।" लक्ष्मी जी का संकेत पाकर नारायण जी ने इस समस्त जगत में प्रकृति के रंग फिर से बिखेर दिए। एक बार फिर से समस्त जगत में खुशहाली छा गई और लोगों ने बड़े उत्साह के साथ रंगों का त्योहार होली मनाया।