सत्यकाम इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि सेठ जी को मधुमाल्ती और उसके रिश्ते से परेशानी है,अपनी बड़ी बहन की तरह ही मधुमाल्ती से उसका रिश्ता था,लेकिन सेठ जी की आँखों पर तो शक़ की पट्टी लग चुकी थी ,इसलिए वो इस रिश्ते में पवित्रता ना देखकर गंदगी देख रहे थें।।
तब एक रोज़ सेठ जी ने सत्यकाम को घर से बाहर निकालने की तरकीब निकाली,दोपहर के समय जब सत्या उनकी दुकान पर गया तो सेठ जी उसी वक्त अपने घर आ गए चूँकि सत्यकाम अपनी कोठरी का ताला लगाकर नहीं जाता था,वो कहता था उसके पास है ही क्या? जो वो कोठरी में ताला लगाकर रखें।
तब सेठ जी ने इसी बात का फायदा उठाकर बहुत सारा रूपया उसकी लकड़ी वाली अलमारी के पीछे डाल दिया और फिर चुपके से बाहर चले गए,वहाँ उन्होंने तुलाराम को भी पूरी योजना समझा दी कि रात को जब मैं दुकान से लौटूँ तो तुम्हें ऐसा ऐसा करना होगा,तभी हम सत्या को इस घर से निकाल पाऐगें,तुलाराम तो बैठा ही इसी ताक में था,उसे तो अच्छा मौका मिला था सत्या को सबकी नजरों में नीचा दिखाने का।।
तुलाराम से मिलकर सेठ जी वापस दुकान आ गए,तब सत्या ने उनसे पूछा कि आप कहाँ गए थे?
किसी के पास कुछ उधार पड़ा था उसने देने के लिए बुलाया था इसलिए उसके पास गया था,सेठ जी ने जवाब दिया।।
सत्या ने सेठ जी की बात पर विश्वास कर लिया और फिर दोपहर के बाद वो दुकान से वापस आ गया,रात हुई और सेठ जी घर आएँ,फिर झूठा नाटक करते हुए घर में कुछ खोजने लगें,उनकी ऐसा कार्यकलाप देखकर मधुमाल्ती ने पूछा....
सुनिए जी! मैं तब से देख रही हूँ,आप जब से आएं हैं तो कुछ खोज रहे हैं,क्या खो गया है आपका ? ज़रा मैं भी तो जानू।।
कुछ नहीं! तुम खाना खा लो,मैं खोज लूँगा और सेठ जी ऐसा कहते हुए फिर से नाटक करते हुए कहने लगेँ यहीं कहीं तो रख दिया था,पता नहीं कहाँ गया,मिल ही नहीं रहा?
मैं फिर से पूछती हूँ,क्या खोजते हैं आप? जवाब क्यों नहीं देते? मधुमाल्ती ने पूछा।।
अब क्या बताऊँ? कल रात कुछ रूपया लाया था साथ में ,यहीं रख दिया था लेकिन अब ढ़ूढ़ता हूँ तो नहीं मिलता,सेठ जी बोले।।
इतने नौकर आते हैं इस कमरें में,रूपया रखा था तो मुझसे तो बता दिया होता, ना जाने किस नौकर के हाथ लगा होगा तो बचा थोड़े ही होगा अब तक,मधुमाल्ती बोली।।
तुम सही कहती हो शायद,लेकिन अब क्या करूँ?सेठ जी ने पूछा।।
नौकरों से पूछो,मधुमाल्ती बोली।।
ऐसे कैसे पूछूँ? उन पर शक़ करना क्या ठीक रहेगा? सेठ जी बोले।।
रूपया गया है तो पूछताछ तो करनी ही पड़ेगी नहीं तो पुलिस को बुला लो,मधुमाल्ती बोली।।
पुलिस के आने से बदनामी होगी,मैं ही पूछ लेता हूँ,सेठ जी बोले।।
इसके बाद सेठ जी ने एक एक करके सभी नौकरों से पूछताछ की लेकिन सभी बोले कि उन्होंने कोई रूपया नहीं देखा और ना लिया,तब तुलाराम सेठ जी से बोला.....
मालिक! आपका शक़ तब ही दूर होगा जब आप हम लोगों के कोठरियों की तलाशी ले लेगें,चलिए मैं कोठरियों की तलाशी लेने में आपकी मदद करता हूँ।।
लेकिन ये सब नौकर हमारे यहाँ सालों से काम कर रहे हैं,इन सबकी कोठरियों की तलाशी लेना मेरे मन को गँवारा नहीं,सेठ जी बोले।।
आपका रूपया गया है और जब तक आपके मन का शक़ दूर नहीं हो जाता तो तब तक आप हम सब पर शक़ करते रहेगें,एक बेईमान इन्सान के पीछे सब काहेँ बेईमान बने,आप तलाशी ले ही लो,तुलाराम बोला।।
तुलाराम की बात मानकर सेठ जी सबकी कोठरियों की तलाशी लेने पहुँचे लेकिन तलाशी लेने पर किसी की कोठरी में भी रूपया नहीं मिला,तब सेठ जी तुलाराम से बोले....
मैने कहा था ना कि किसी के पास भी रूपया ना मिलेगा,खाँमखा में वक्त बर्बाद किया।।
लेकिन सेठ जी अभी एक इन्सान की कोठरी की तलाशी बाकी है,वो है सत्यकाम,तुलाराम बोला।।
लेकिन वो तो बहुत ही ईमानदार है,वो कैसे चोर हो सकता है,सेठ जी ने झूठ-मूट कहा।।
आजकल ऐसे ही लोंग सबसे बड़ा धोखा देते हैं,वहाँ मौजूद नौकरों में से एक बोला।।
मालिक !आपको उसकी ईमानदारी पर ऐतबार होगा लेकिन हम सबके मन का भ्रम दूर करने लिए तो अब तो आपको उसकी कोठरी की तलाशी लेनी ही पड़ेगी,तुलाराम बोला।।
तो फिर ले लो उसकी कोठरी की भी तलाशी तुम लोगों के मन का भ्रम तो दूर हो जाए,सेठ जी बोले।।
फिर तुलाराम ने सत्यकाम की कोठरी के किवाड़ खुलवाकर तलाशी लेना शुरु कर दिया,तुलाराम को तो पहले से ही पता कि रूपया किस जगह पर है लेकिन फिर भी थोड़ी देर तक वो रूपया खोजने का नाटक करता रहा और फिर उसने अलमारी के पीछे देखा तो रूपया वहीं पड़ा मिला....
अपनी कोठरी में रूपया देखकर सत्यकाम सन्न रह गया,उसने फौरन कहा...
सेठ जी मुझे नहीं मालूम कि ये रूपया मेरी कोठरी में कैसें आया?
क्यों नाटक करते हो सत्या बाबू! क्या तुम परम मुन्ना को पढ़ाने उसके पास नहीं जाते?तभी नज़र पड़ गई होगी तुम्हारी उन रूपयों पर और तुमने सोचा होगा कि हींग लगे ना फिटकरी और रंग चोखा,मतलब बिना मेहनत के इतना पइसा,बहुत चतुर निकले तुम तो मालिक के संग ही गद्दारी,लाज ना आई ऐसा करते हुए,तुलाराम बोला।।
मैं सच कहता हूँ मुझे इन रूपयों के बारें में कुछ नहीं पता,सत्यकाम बोला।।
तभी शोरगुल सुनकर मधुमाल्ती भी बाहर आ गई और उसने सेठ जी पूछा....
क्या हुआ?, इतना शोर कैसा? रूपए मिलें।।
हाँ! मालकिन ! रूपए तो मिल गए,सत्या बाबू ने चुराएं थे,तुलाराम बोला।।
मैनें कोई रूपए नहीं चुराए और अब एक लफ्ज़ भी बोला तो मैं तेरा मुँह तोड़ दूँगा ,सत्यकाम गुस्से से बोला।।
चोरी की चोरी,ऊपर से सीनाजोरी,मालिक! अभी पुलिस को बुलाइए,तब इसकी अकल ठिकाने आ जाएगी,तुलाराम बोला।।
नहीं! पुलिस नहीं आएगी इस घर में,मेरी बदनामी होगी,सेठ जी बोले।।
तो फिर इस नमकहराम को इसी वक्त इस घर से निकालकर बाहर किजिए,तुलाराम बोला।
तुम सब मुझे क्या निकालोगे इस घर से?मैं ही चला जाता हूँ यहाँ से,जहाँ मुझ पर झूठा आरोप लगाया जाया तो ऐसे घर में मैं भी नहीं रहना चाहता और फिर इतना कहकर सत्या उसी वक्त घर छोड़कर जाने लगा।।
तभी मधुमाल्ती बोली.....
सत्या! मेरे भाई मुझे माँफ करना,मैं जानती हूँ कि तुम ऐसा नहीं कर सकते लेकिन मैं मजबूर हूँ, तुम मेरे भाई हो और हमेशा रहोगें और इतना कहकर मधुमाल्ती ने अपनी साड़ी के पल्लू की किनारी फाड़कर सत्या को राखी बाँध दी और सत्या ने मधुमाल्ती के चरणों को स्पर्श कर अपने माथे पर लगा लिया।।
और फिर सत्या आँखों में आँसू लिए हमेशा हमेशा के लिए सेठ जी के घर से चला गया....
जब सेठ जी ने ये देखा कि दोनों का रिश्ता तो एक गंगाजल की तरह पवित्र था और मैनें तुलाराम की बातों में आकर दोनों पर शक़ किया,फिर सेठ जी को बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने एक दिन इस सत्य को मधुमाल्ती के ऊपर जाह़िर कर ही दिया और मधुमाल्ती से माँफी माँगते हुए बोले....
मैनें एक चरित्रवान और ईमानदार इन्सान पर संदेह किया,भगवान मुझे कभी भी माँफ नहीं करेगा....
मुझे सत्या पर पूरा यकीन था कि वो ऐसा काम कभी नहीं कर सकता,वो तो मुझे अपनी बड़ी बहन मानता था,मैं केवल उससे अंग्रेजी पढ़ा करती थी,ना जाने आपको कौन सा शक़ का कीड़ा खा गया जो आपने उस पर ऐसा घटिया इल्जाम लगाकर घर से निकाल दिया।।
बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे,लेकिन अगर कभी भी भविष्य में वो मुझे मिला तो उससे जरूर माँफी माँगूगा,देवता जैसे व्यक्ति पर मैने संदेह किया...
सेठ जी को तो अपने किए गए पाप पर पछतावा हो गया लेकिन उस रात जब उन्होंने सत्या को अपने से निकाला था तो वो रेलवें स्टेशन जा पहुँचा,उस वक्त उसके कुर्ते की जेब में कुछ रूप रूपए थे,तब उसने उन रूपयों से कलकत्ते का टिकट खरीदा और रेलगाड़ी में बैठ गया,उस सफ़र के दौरान उसकी मुलाकात एक शख्स से हुई ,बातों बातों में उसे पता लगा कि वो किसी तवायफ़ को मुज़रे के लिए कलकत्ता ले जा रहा,उसके कोठे की मालकिन ने उसे उस तवायफ़ के साथ कलकत्ता जाने को कहा है और वो तवायफ़ जनाना डिब्बे में बैठी है,
सत्या को फिर नींद आने लगी और वो सो गया,सुबह हुई तो उस शख्स ने सत्या को जगाकर कहा....
अरे,हुजूर! सुबह हो चुकी है,इस स्टेशन पर रेलगाड़ी काफ़ी देर रूकती है,स्टेशन के बाहर जाकर नित्यकर्म और स्नान की भी सुविधा है.....
उसकी बात सुनकर सत्या जागकर बोला,
स्नान तो ना कर पाऊँगा क्योंकि मेरे पास कपड़े नहीं है।।
ठीक है तो आप दातून वगैरह करके आइए,देखिए मैं तो नाश्ता भी खरीद लाया,गरम-गरम पूरी-कचौरी और आलू की सूखी बाहर बिक रही थी,वो शख्स बोला।।
जी! रात आपने अपना नाम नहीं बताया,पहले आपका नाम तो बताइए,सत्या बोला....
जी! मैं मुरारी हूँ और आप? मुरारी ने पूछा।।
जी! मैं सत्यकाम चतुर्वेदी,सत्या बोला।।
ओहो... आप तो ब्राह्मण देवता निकले,मुरारी बोला।।
फिर सत्या बोला....
तो फिर मैं नित्यकर्म से फुरसत होकर आता हूँ,
तो क्या ब्राह्मण होकर बिना स्नान के खा लेगें? मुरारी ने पूछा।।
अब मजबूरी है,कपड़े जो नहीं हैं मेरे पास,सत्या बोला....
ठीक है !सही कहते है आप और आप को कोई एतराज ना हो तो ये नाश्ता आप जनाना डिब्बे में पहुँचा देगें,वहाँ मौजूद महिला से कहिएगा कि मुरारी ने भेजा है,मैं तो उन्हें नाश्ता दे आता लेकिन मुझे बहुत भूख लग रही है,ज्यादातर बीमार सा रहता हूँ इसलिए ज्यादा देर तक भूखा नहीं रह सकता,मुझे चक्कर आने लगते हैं,मुरारी बोला।।
ठीक है लाइए,मै पहुँचा दूँगा ,आप यहाँ आराम से नाश्ता कीजिए और इतना कहकर सत्या नाश्ता लेकर जनाना डिब्बे में पहुँचा,मुरारी के कहे अनुसार उसने वहाँ मौजूद महिलाओं से कहा कि मुरारी ने नाश्ता भेजा है...
नाश्ता लेने जब वो तवायफ़ आई तो उसे देखकर सत्या का मन विचलित हो गया....
और वो तवायफ़ भी सत्या से नज़रे चुराते हुए नाश्ता लेकर चली गई.....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....