सेठ हजारीलाल ने फिर अपने परिवार से सत्यकाम का परिचय करवाया,सेठ हजारीलाल के घर में उनकी दूसरी पत्नी मधुमाल्ती तथा उनका बेटा परमसुख था जो कि अभी केवल दस साल का ही था और सेठ जी की दूसरी पत्नी सेठ जी से उम्र में बहुत छोटी थी,सेठ हजारीलाल की पहली पत्नी का देहान्त हो चुका था जिसे उनको एक बेटी थी,जिसका वें ब्याह कर चुकें और वो अपने ससुराल में सुखपूर्वक थी।।
सेठ हजारीलाल ने अपने घर की एक कोठरी में सत्या को शरण देदी,वहाँ और भी कोठरियाँ थी जिनमें नौकर रहते थे,लेकिन जो कोठरी सबसे बेहतर थी,जिसमें बड़ा सा पलंग ,लकड़ी की बड़ी सी अलमारी और पढ़ने के लिए कुर्सी-टेबल थी वो कोठरी सेठ जी ने सत्या को थी दी,सत्या का इतना मान सम्मान देखकर पुराने नौकरों को कुछ बुरा सा लगा और उनमें से एक नौकर था जिसका नाम तुलाराम था,वो मन ही मन सत्या से जलन लगा।।
कुछ ही दिनों में सत्या का मन वहाँ लग गया,परमसुख को भी सत्या का पढ़ाना भा गया और वो उससे मन लगाकर पढ़ने लगा,पढ़ाने के लिए सेठ जी ने महीने में पढाने की फीस भी मुकर्रर कर दी,जिससे सत्या का खर्चा निकल आता,सत्या दिनभर कमरें में रहकर ऊब जाता इसलिए उसने सेठ जी से कुछ काम देने के लिए कहा....
तब सेठ जी ने कहा कि जब कभी तुम्हारा यहांँ घर पर मन ना लगा करे या जब भी तुम्हारे पास खाली वक्त हो तो तुम दोपहर में दुकान आ जाया करो,हिसाब-किताब ठीक से जोड़ दिया करो, इससे तुम्हारा मन भी नहीं ऊबेगा और वक्त का उपयोग भी हो जाएगा,सत्या को सेठ जी का सुझाव अच्छा लगा और उसने हाँ कर दी और फिर सत्या कभी कभी दोपहर में सेठ जी दुकान चला जाया करता।।
सत्या अब पूरी तरह से सेठ जी के घर में रम गया था,उसे बस कभी कभी अपनी माँ और अपने भाइयों की याद आती,उन्हें वो चिट्ठी भी लिखता लेकिन लिखकर अपने पास रख लेता उन्हें भेजता नहीं था,सत्या की ईमानदारी से सेठ जी इतने खुश थे कि रात का खाना वें सत्या के बिना नहीं खाते थे,
सुबह का नाश्ता तो सत्या अपनी कोठरी में किसी नौकर के हाथों मँगा लिया करता था और दोपहर को वो खाता ही नहीं था,उसका मानना था कि एक वक्त ना खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है,ऐसे कौन से पत्थर तोड़ता हूँ कि जोरो की भूख लग जाए,दोपहर को वो फल वगैरह ले लेता था।।
एक रोज दोपहर का समय था,सत्या अपने कमरें में लेटा कोई किताब पढ़ रहा था,तब सेठ जी की पत्नी मधुमाल्ती सत्यकाम के कमरें में आई तो सत्या को कुछ अटपटा सा लगा और वो झटपट उठकर बैठ गया,उसने मधुमाल्ती से कहा....
जी! आप और यहाँ! कुछ काम था तो मुझे बुला लिया होता।।
जी! मोतीचूर के लड्डू बनाएं थे,सोचा कि आप को चखा दूँ,भला चखकर बताइएं कि कैसे बने हैं? मधुमाल्ती बोली।।
जी! किसी नौकर के हाथ भेज दिए होते,सत्या बोला।।
मुझे लगा कि नौकर के हाथों भेजने से कहीं आप बुरा ना मान जाएं इसलिए खुद ही देने चली आई,मुझे क्या मालूम कि मेरा यहाँ आना आपको इतना बुरा लगेगा? मधुमाल्ती बोली।।
जी! मुझे बुरा नहीं लगा ,बस आपका यूँ मेरे कमरें में आना कुछ सहज सा नहीं लगा,सत्या बोला।।
आपने तो मुझे एक पल में पराया ही कर दिया,मधुमाल्ती बोली।।
जी!मेरा वो मतलब नहीं था,मैं तो बस ये कहना चाहता था कि नौकर और मालिक के बीच रिश्ते की गरिमा बनी रहनी चाहिए,सत्यकाम बोला।।
मैं तो आपको इस घर का नौकर समझती ही नहीं,आप तो मुझे मेरे भाई जैसे लगते हैं,मधुमाल्ती बोली।।
लेकिन मैं खुद को तो समझता हूँ इस घर का नौकर,घर का मालिक जो रोटी दें वो नौकर के पिता समान होता है और घर की मालकिन नौकर की माँ समान होती है और मेरे मन में आप दोनों के लिए यही भाव हैं,सो मैं कैसें अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर सकता हूँ?सत्यकाम बोला।।
ओह...शायद आपकी कोठरी में आकर मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई,मधुमाल्ती बोली।।
जी! नहीं! आपका घर है,आप कभी भी कहीं भी जा सकतीं हैं,सत्यकाम बोला।।
तो अब आप मुझसे खफ़ा तो नहीं हैं,मधुमाल्ती ने पूछा।।
जी! नहीं! मैं तो पहले भी आपसे खफ़ा नहीं था,सत्यकाम बोला।।
एक बात पूछूँ,मधुमाल्ती बोली।।
जी! पूछिए,सत्यकाम बोला।।
आपको अंग्रेजी तो आती होगी,मधुमाल्ती ने पूछा।।
जी! आती तो है,सत्यकाम बोला।।
ये तो बहुत बढ़िया हुआ,बहुत खुशी हुई ये जानकर कि आपको अंग्रेजी आती है,मधुमाल्ती बोली।।
मेरे अंग्रेजी आने से आप इतना खुश क्यों होतीं हैं?मेरे अंग्रेजी आने से आपकी खुशी का क्या ताल्लुक है भला?सत्या ने पूछा।।
वो इसलिए कि मुझे बचपन से ही अंग्रेजी सीखने का बहुत शौक था,लेकिन कभी सीखने का मौका ही नही मिला,मधुमाल्ती बोली।।
ओह...तो ये परेशानी है,सत्यकाम बोला।।
तो क्या आप मुझे अंग्रेजी सिखाऐगें?मधुमाल्ती बोली।।
तो आप अंग्रेजी सीखना चाहतीं हैं, सत्या ने पूछा।।
जी! बचपन से देखते आ रही हूँ ,जब लोंग अंग्रेजी में आपस में गिटर-पिटर करते हैं तो उनलोगों को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है,मधुमाल्ती बोली।।
मधुमाल्ती की बात सुनकर ,सत्यकाम हँस पड़ा तब मधुमाल्ती ने पूछा....
आप मेरी बातों पर हँसते क्यों हैं? क्या मैं आपको इतनी मूर्ख दिखती हूँ,
जी! नहीं! आप तो मेरी बड़ी बहन प्रयागी जैसी दिखतीं हैं,वो भी ऐसे ही बातें किया करतीं थीं,इसलिए आपको देखकर उनकी याद आ गई,सत्यकाम बोला।।
आपका परिवार भी है,मधुमाल्ती ने पूछा।।
जी! जैसे सबका होता है वैसे ही मेरा भी है,सत्या बोला।।
तो क्या हुआ था जो आपको अपना परिवार छोड़ना पड़ा? मधुमाल्ती ने पूछा।।
जी! कुछ लोगों को मेरा भलाई करना अच्छा नहीं लगा,इसलिए छोड़ना पड़ा,सत्यकाम बोला।।
इसका मतलब है कि आप बहुत दयालु भी हैं,मधुमाल्ती बोली।।
पता नहीं,मैं कैसा हूँ लेकिन लोगों की नजरों में मेरी छवि अच्छी नहीं है,सत्यकाम बोला।।
मालूम होता है कि लोगों कि नजरें ही खराब हैं,मुझे तो आप बहुत भले दिखाई देते हैं,मधुमाल्ती बोली।।
तब सत्या को ध्यान आया कि मधुमाल्ती इतनी देर से खड़े होकर ही उससे बातें कर रही है तब वो बोला....
ओह ....मैं भी कैसा लापरवाह हूँ,आपको बैठने के लिए ही नहीं कहा।।
जी! मैं अब चलूँगी,रसोई में और भी बहुत से काम है,बस इतना बता दीजिए कि आप मुझे अंग्रेजी पढ़ा देगें,मधुमाल्ती ने पूछा।।
जी! मैं परमसुख के साथ साथ आपको भी पढ़ा दिया करूँगा,सत्यकाम बोला।।
तो कल से मैं भी परम के साथ आपकी कोठरी में आ जाया करूँगी,मधुमाल्ती बोली।।
जी! नहीं! आपका मेरी कोठरी में आना ठीक ना लगेगा,मैं ही आ जाया करूँगा और आँगन में ही आप दोनों को पढ़ा दिया करूँगा,सत्यकाम बोला।।
जी! बहुत बहुत धन्यवाद,मधुमाल्ती बोली।।
धन्यवाद कैसा? आप मेरी बड़ी बहन जैसीं हैं,भला बहन को कैसे मना कर सकता था? सत्यकाम बोला।।
और फिर मधुमाल्ती चली गई,अब जब भी सत्यकाम को समय मिलता तो वो मधुमाल्ती को अंग्रेजी पढ़ा देता,साथ में परमसुख भी वहाँ रहता,माँ बेटे दोनों ही ध्यान से पढ़ते,लेकिन अब सत्यकाम का नौकरो वाली कोठरी से सेठ के आँगन में आना तुलाराम को खलने लगा,उसने सोचा ये भी तो हम लोगों की तरह एक नौकर ही है और इसके ठाठ देखों,इसकी ऐसी इज्जत तो देखो ,बस थोड़ा पढ़ा लिखा होने के कारण इसे सेठ और सेठानी ने अपने सिर पर चढ़ा लिया है,मैनें भी इस सत्या को इस घर से ना निकलवा दिया तो मेरा नाम तुलाराम नहीं।।
और फिर तुलाराम ने सत्यकाम के खिलाफ एक साजिश रची,एक दिन सेठ जी को अकेला देखकर उसने सेठ जी कहा....
मालिक! कुछ बात करनी थी।।
हाँ! कहो! रूपयों की जरूरत है,बिना संकोच के कहो,तुम हमारे इतने पुराने नौकर जो ठहरे,तुम्हारा ख्याल रखना मेरा फर्ज है,सेठ जी बोले।।
जी! नहीं! मालिक! रूपयों की जरूरत नहीं है,कुछ और ही बात है,तुलाराम बोला।
क्या बात है ?खुलकर कहो,सेठ जी ने पूछा।।
कहते हुए संकोच सा होता है लेकिन आँखों देखी मक्खी नहीं निगल सकता ना!,तुलाराम बोला।।
क्या हुआ बताओ तो? सेठ जी ने पूछा।
वो बहुरानी यानि कि मालकिन,आजकल ज्यादा उठना-बैठना हो गया है उनका सत्यकाम के साथ ,.वो ठहरा एक नौकर पढ़ा लिखा है तो क्या हुआ? कहीं पानी सिर से ऊपर ना हो जाएं,वैसे भी आप ज्यादातर बाहर रहते हैं और सत्यकाम अभी जवान है,मालकिन भी तो आपसे उम्र में बहुत छोटी हैं,कहीं दोनों के हाथों कोई ऊँच-नीच ना हो बैठे और आप यूँ ही हाथ मलते रह जाएं,फिर समाज में आपकी बदनामी फैल जाएं,मेरा काम था आपको सावधान करना तो कर दिया बाकी आपकी मरजी।।
आजकल तो मालकिन रोज नए नए पकवान बनाकर सत्या की कोठरी में ले जातीं हैं और घण्टो कोठरी के किवाड़ बंद रहते हैं,मैं ठहरा पुराना नौकर ये सब अनर्थ मुझसे ना देखा गया इसलिए आपसे कह दिया,बाकी आपकी मर्जी ,आप जानों,उस सत्या को यहाँ से निकालना है या इस घर में रहने देना है।।
और फिर तुलाराम सेठ जी के मन में शक़ का बीज बोकर चला गया और इधर सेठ जी चिन्तित हो उठे,अब जब भी सत्या दोपहर में उनकी दुकान ना पहुँचता तो सेठ जी घर आ जाते और वें जब आँगन में सत्या और मधुमाल्ती को साथ साथ देख लेते तो उनके तन में आग लग जाती और फिर वें सत्या को अपने घर से निकालने का उपाय ढूढ़ने लगे।।
क्रमशः....
सरोज वर्मा....