UJALE KI OR ---SANSMRAN in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ---संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर --संस्मरण 

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नमस्कार मेरे स्नेही मित्रो 

      एक पल हवा के झौंके सी ज़िंदगी ,हर पल अहं का बोध करती ज़िंदगी | कभी हरे-भरे पत्तों से कुनमुनी धूप सी छनकर आती ज़िंदगी ! 

कभी सौंधी सुगंध सी मुस्काती ,बल खाती ज़िंदगी ----अरे भई ! हज़ारों रूप हैं इस एक ज़िंदगी नामक मज़ाक के ! 

हाँ जी कभी मज़ाक भी तो लगती है ज़िंदगी ,कभी हास लगती है और कभी परिहास भी ! समय दिखाई नहीं देता लेकिन दिखा बहुत कुछ देता है ,ज़िंदगी ही तो है जो सपने सी दिखती है ,बनती - बिगड़ती है फिर ग्राफ़ न जाने कहाँ ले जाती है ! 

दोस्तों ! क्या कभी आश्चर्य नहीं होता कि ज़िंदगी ऐसी क्यों है ? 

    हम सभी को लगता है कि हमें लोग सदा याद करें ,सदा याद रखें ,इसके लिए हम अपने आपको सुंदर बनाना चाहते हैं ,

अमीर बनना चाहते हैं और हाँ , महत्वपूर्ण भी बनाना चाहते हैं | 

लेकिन बात यह है कि क्या खुद को महत्वपूर्ण समझने से क्या हम महत्वपूर्ण बन जाएँगे ? 

भई ,कौन नहीं चाहता कि हमें सब प्यार करें ,हमारी बड़ाई करें ,हमे सबसे अलग समझें |

हम न जाने कौन कौनसे सुख की तलाश में  भटकते रहते हैं और जब हमें वह उतना नहीं मिल पाता जितना हमारी अपेक्षा होती है 

तब हम खुद से ही नाराज़ हो जाते हैं | 

हम सुंदर दिखना चाहते हैं ,यह तो शाश्वत सत्य है | हमें ईश्वरीय सुंदरता प्राप्त हुई है तो हम क्यों न सुंदर दिखें ?

लेकिन मित्रों ,इसके लिए हमारे चेहरे पर मीठी मुस्कान होनी ज़रूरी है | 

हम अधिक धन कमाकर अमीर बनना चाहते हैं ,सब हमारी प्रशंसा  करें ,सब हमें देखकर कहें ---

"वाह ! देखो क्या शानदार गाड़ी में जा रहा है बंदा !और खूबसूरत भी कितना है !!" 

"भई ,तकदीर है अपनी-अपनी भगवान भी जिसे देता है छप्पर फाड़कर देता है ! एक हम हैं ,ज़िंदगी भर घिसटते हुए ये उम्र आ गई ,वहीं के वहीं हैं |" 

जो मिला है ।उसके लिए तो धन्यवाद अदा कर लें ! या केवल कुढ़ने से ही सब हो जाएगा ? 

         उस दिन तो मुझे वाक़ई बहुत खराब लगा जब सबको ही भला -बुरा कहने वाली शांता अपने भाग्य का रोना सरे-आम रोने लगी | 

सुंदर उसे प्र्कृति  ने बनाया था ,अच्छा -ख़ासा घर -परिवार दिया था | अच्छा अफ़सर पति ,सुंदर बच्चे लेकिन उनका रोना -झींकना ही खतम न होता | 

 अब जब एक बार रोने की आदत पड़ जाए किसीको  तो कोई कैसे रोक सकता है ?समझाया  भी  नहीं जा सकता किसी को | 

अच्छा -ख़ासा फ़्लैट ,दो गाडियाँ ---बंदी सब्ज़ी भी लेने जाती तो गाड़ी में सवार होकर जाती लेकिन जब भी किसी महफ़िल में जाती विवेक न रखा पाती | 

अपने से बेहतर सजे-धजे इंसान को देखकर उसका मन न जाने क्यों स्याह होने लगता ! 

धीरे-धीरे लोग उससे कन्नी काटने लगे जो स्वाभाविक ही था | आख़िर कोई कब तक सुनेगा भई ? 

जब कोई बात करे ,हम मुँह फुला लें जैसे सामने वाले ने हमारा कुछ बिगड़ दिया हो ! 

शुरू-शुरू में तो कई बार प्रयास किया कि वह सकारात्मक बन जाए किन्तु तललीफ़ इस बात की थी कि वह अपने सुंदर मुखड़े पर इतना गुरूर चिपका लेती कि 

दोस्तों ने उससे बात ही करनी कम कर दी | अब उसे लोगों से शिकायत होने लगी | 

परिणाम यह कि लोग उससे और भी  कन्नी काटने लगे ,स्वाभाविक था भई ! 

     अपने जीवन के अंतिम प्रहर में वह एकाकी खड़ी रह गई कि बच्चों के भी पंख उग आए और वे भी उड़ चले ,पति पहले ही परलोक सिधार चुके थे | 

प्रश्न बड़ा विकट था ,इस उम्र में न तो ऐसे नए मित्र बन पाते हैं जो भावनाओं को समझ सकें ,न ही हम उनसे कम्फ़र्टेबल हो पाते हैं | 

एक स्व्विका मिली वो भी उनके स्वभाव को देखकर हर दिन छोडकर जाने की धमकी देती रही | 

बड़ी मुश्किल से उनके कुछ 'वैल-विशर्स' ने उसे रोक रखा था | 

बहुत सी बातें सीखते हैं हम ऐसी घटनाओं से ,ऐसे लोगों से ----

बेहतर है जो हमारे पास है ,उसके लिए प्रकृति का धन्यवाद अर्पण करते रहें | अपने अहं की जगह मुस्कान से चेहरे पर प्र्फ़ुल्लता बनाए रखें | 

फिर देखें ,हम कितने सुंदर हैं ,कितने अमीर हैं ,हमारे कितने प्रशंसक हैं | 

तो चलिए ,शांता की तरह नाक पर बैठी मक्खी को बैठाए नहीं रखते ,उसे उड़ा देते हैं | 

प्रसन्नता से जीवन को जीते हैं | हमारे पास जो भी है बहुत सुंदर है ,बहुमूल्य है | 

 

जीवन चार दिनों का मितरा ,हंस लें चाहे रो लें ,

कहीं अकेला न पड़ जाए,मुसकानों के हो लें | 

 

आप सबकी मित्र 

डॉ. प्रणव भारती