Apang - 11 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 11

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अपंग - 11

11—

भानुमति की बात सुनकर राजेश का जैसे खून ही खौल उठा |

“अदनी सी लड़की ! किसे कह रही हो तुम अदनी सी लड़की ? कितना साथ देती है मेरा हर चीज़ में | लोगों में हँसती बोलती, सबसे प्यार से बात करती लड़की तुम्हें अदनी सी लगी और तुम ?जिसे लोगों से बात करने का सलीका का भी नहीं है, वह क्या है ?” भानु ने महसूस किया था कि राज कुछ अधिक ही उस लड़की का दीवाना है | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उस लड़की में ऐसा था क्या ? अपने आप ही सबमें उछल-कूद रही थी वो | कोई खास तवज्जो तो दे नहीं रहा था उस पर रिचार्ड तो बिल्कुल भी नहीं जिसकी वो एम्पलोई थी और उस पार्टी की मेहमान भी |

“तुमने इतने लोगों के बीच में मेरी इज्ज़त उतार दी, नंगा करके रख दिया मुझे ---“

भानु का मन न जाने कितनी बार होता था कि इस बेशर्म इंसान का मुँह नोच ले !

“तुम नंगे उस दिन होते राज जब तुम्हारी पत्नी किसी और की बाहों में झूमती ! “ वह ज़ोर से चिल्ला पड़ी |

“मेरा बस चले मैं तुम्हें आज छोड़कर चली जाऊँ –" बुरी तरह बिफर पड़ी थी भानु !

“देर किस बात की है ? आखिर रौब किस पर मार रही हो ?” राज कहाँ पीछे रहने वाला था |

“तुम्हें देख रही हूँ न इतने दिनों से ‘सेल्फ़ मेड पर्सन’ को ! “ भानु भुनभुनाई |

‘तुम कटाक्ष कर रही हो मुझ पर ??” राज और भी उखड़ गया |

“तुमसे बात करना चाह रही हूँ, वो तो जब तुम अवॉइड कर रहे हो तो क्या करूँगी फिर ?एक पत्नी, एक सहधर्मिणी, एक दोस्त की हैसियत से समझाना चाह रही हूँ इतने दिनों से | तुम्हारे पास है फुर्सत मेरी बात सुनने की या मुझसे बात करने की ?”भानु बहुत बहुत दुखी व उदास थी |

राज को घूरते देखकर बोली ;

“जिस रास्ते पर तुम जा रहे हो, वहाँ तुम्हारी कोई सुरक्षा नहीं है | आफ्टर सम टाइम यू विल बी नो व्हेयर ---“

“अच्छा ! तुम बड़ी समझदार होती जा रही हो भानुमति ! कैसे गंवार सा नाम है, इसे ही बदल डालो तो कोई तुम्हें पढ़ा-लिखा तो समझेगा ! भानुमति ----और लगता है मुझसे ऊब भी गई हो ?” अलग होना चाहती हो मुझसे ?”

कितना बेशर्म बंदा है, जब मिला था तब तो भानुमति किसी राजकुमारी का नाम लगता था इसको ! अब गंवार लगने लगा है ?? कमाल है ! इंसान की फ़ितरत का !

“अलग होने में बहुत देर कहाँ लगती है ?एक होने में देर लगती है, रिश्ते को संभालकर रखने में देर लगती है | किसी रिश्ते को बनाने में, उसे संभालकर रखने में समय लगता है | तोड़ने में क्या है –ये देखो ---“ भानु ने क्रोध में कटग्लास का बड़ा वॉज़ ज़ोर से हाथ मारकर गिरा दिया जो पलक झपकते ही फ़र्श पर गिरकर चकनाचूर हो गया |

राज गुस्से में पागल हो उठा, इतना साहस बढ़ गया इस लड़की का ! उसने हाथ उठाकर उसकी ओर बढ़ने का प्रयास किया –

“वहीं रुक जाओ राज ---“ भानु ने इतनी गंभीरता व ज़ोर से कहा कि राज जैसा बंदा भी एक बार को सहम गया |

“मैं भी यहाँ के नियम जानती हूँ | जितना तुम समझते हो, उतनी मूर्ख  नहीं हूँ मैं ! और अलग होने की बात जहाँ तक है, उसमें देर नहीं लगती जैसे ये काँच टूटा है न और तुम इसे जोड़ नहीं पाओगे ऐसे ही एक बार रिश्ता टूट गया न तो चकनाचूर ही होना है | दो टुकड़े भी होते हैं तो जुड़ने पर दरार तो रह ही जाती है, ये तो चूर-चूर होने की संभावना है----–ज़रा जोड़कर दिखाओ इस वॉज़ को ---“ आज तो सच में भानु पर चंडी चढ़ गई थी |

“दरार ! ये तो चकनाचूर हो चुका –“ उसका उठा हुआ हाथ नीचे हो गया | उसकी आँखों पर व चेहरे पर कुछ घबराहट सी पसरी देख ली थी भानु ने और कहीं न कहीं उसके मन में एक क्रूर संतुष्टि पसरने लगी | उसे भीतर से कहीं बहुत –बहुत अच्छा लगा, चैन सा पड़ने लगा| काँच तोड़कर उसे महसूस हुआ कि उसने किसी बिगड़े हुए बदमाश को ज़ोरदार तमाचा रसीद कर दिया था |

भानु चाहती थी कि हर बात स्पष्ट हो जाए तो अधिक अच्छा है | वह भी अपना रास्ता चुन सकेगी |

“देखो ! मैं जानती हूँ कि तुम उस लड़की को पसंद करने लगे हो, सोच लेना कि वह तुम्हारे साथ या तुम उसके साथ उम्र भर निभा सकोगे ?”

“तुम्हें क्यों चिंता हो रही है उसकी ? “ राज किसी भी स्थिति में न तो चुप रह सकता था न ही अपने व्यवहार के लिए अफ़सोस कर सकता था | ये सब तो यहाँ पर आने के बाद में समझ में आया था भानु के !

“नहीं, मुझे चिंता उसकी क्यों होगी, मुझे अफ़सोस है उसके लिए कि हम यहाँ की धरती को छूते ही अपनी जड़ों को कैसे भूल सकते हैं ?हाँ, तुम्हारे लिए ज़रूर है चिंता ---ऑफ्टर ऑल तुमसे प्यार किया है मैंने, माता-पिता छोड़े, घर छोड़ा, देश छोड़ा ---तुम्हारे लिए और तुम्हारे ही भविष्य को डांवाडोल होते देखना, अच्छा तो नहीं लगेगा न !” भानु राज से बहुत नाराज़ थी लेकिन अब भी उसे प्यार करती थी, अब भी सोचती थी कि उसमें सुधार हो जाए तो शांति से जीवन बीत जाए |

“क्यों ? अपना फ़्यूचर डार्क नज़र आ रहा है ?” कह कर उसने ठहाका लगाया जैसे किसी पागल की बात पर हँस रहा हो |

“नहीं, अपना नहीं –अपने बच्चे का फ्यूचर ! “

“मतलब, तुम माँ बनने वाली हो ?” राज बौखला गया था |