उधर मुम्बई शहर में हालात बहुत गम्भीर हो गए थे रस्मन जिस फैक्टरी में रहकर कार्य करते थे उस फैक्ट्री में लग गई सब तरफ हाय-तौबा मच गया धुआँ इतना तेज और कालिख लिए था कि आंखे फूट जाए । रस्मन औ उनके कुछ साथियों की बदनसीबी थी कि वे आग की लपटों में फंस गए ।
एक कर्मचारी बोला ...." भाई जान आखिरी समय अपने बीवी बच्चों को याद कर लो पता नहीं हम जिंदा बचेंगे या नहीं ! और उस व्यक्ति के आंखों में मौत आंसू बनकर टपक रही थी।
साफ साफ उम्मीद का दामन छूटने लगा था । रस्मन और साथी मजदूर निकलने के रास्ते तलाशने लगे अब तक करीब स्टोर रूम , प्रिंटेड कपड़ो का स्टॉक और माल भेजने वाला चेक आउट सैंपल पीस के बंडल के बंडल राख में बदल गए । इतनी भीषण आग कि लार्ज स्क्वायर फीट में बने फैक्ट्री के साथ सटा हुआ एक अन्य कपड़ा कंपनी जिसमे से लोग निकल कर बाहर भागने लगे । परन्तु जान- माल की हानि कितनी हुई है यह जानना बाकी था ।
कंपनी मालिक तोमर ने पुलिस को पहले ही सूचित कर दिया था अब फायर ब्रिगेड की कई सारी गाड़ियाँ पहुंच गई ।
पानी के प्रेशर में लपटों का शांत होना कुछ बाकी था ,मौसम में हीट और प्रदूषण बहुत था कुछ लोग यह सब देखकर बेहोश हो गए जिन्हें तोमर जी ने एम्बुलेंस की मदद से हॉस्पिटल भिजवाया । उनकी हर गतिविधि पर पैनी नजर थी अब कंपनी का नुकसान कैसे चुकाया जाय इसी उधड़बुन में उन्हें हार्ट अटैक का दौरा पड़ा ।
एक सीनियर कर्मचारी जो तोमर जी के साथ खड़ा था उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गई यह देखकर कि हमारे मुआवजे का क्या होगा ?? अगर सर् नहीं रहे तो.......सोचते हुए इधर उधर देखा और एक मजदूर को कहा......' श्रवण ...!
श्रवण ने बोला ' यस सर्
सीनियर सुपरवाइजर - सर् के बच्चे देख नही रहा तोमर सर् की हालत । चल उठा इनको , मेरी मदद कर ।
श्रवण - ओके सर् ....! और दौड़ते हुए मालिक के पास आया उन्हें कंधे से टेककर एम्बुलेंस पर लिटा दिया गया जिसमें प्राथमिक ऑक्सीजन उपचार पहले से ही था । अब सुपरवाइजर ने साहब के घरवाली को फोन कर दिया ।
ट्रिंग .....ट्रिंग.......ट्रिंग...... टेलीफोन की घण्टी बज रही थी कोई आस पास नहीं था ।
उन्होंने दूसरे नम्बर पर कॉल किया जो उनके बेटे कलन्दर का था ।
कलन्दर- हैलो ...' कौन...?
सुपरवाइजर - नमस्कार सर् ...!
कलन्दर- जी नमस्कार कहिए आप कौन हैं जॉब के लिए कॉल किया है ?
सुपरवाइजर - नो सर् , माफी चाहता हूं पर आपके डैड की हालत बहुत खराब है आप जल्दी से सिटी हॉस्पिटल पहुंचे ।
कलन्दर- चेहरे से हवाई उड़ गई कि उसके डैड अचानक ..सब कैसे ...?
बिना देर किए वह हॉस्पिटल पहुंचा । तोमर जी होश में आ गए थे और टकटकी लगाए दिवारोंकी तरफ देख रहे थे । उनको अपने बेटे के आने से खुशी नहीं हुई , एकदम उदास चेहरा देखकर कलन्दर सोच में पड़ गया ।
डैड- कलन्दर बोला ' आपको क्या हुआ....??
और सुपरवाइजर बोला मैं तुरन्त आपके पास पहुंच जाऊं ...!
डॉक्टर ने इशारा किया कि अभी आप बात मत कीजिये उन्हें कुछ देर रिलेक्स छोड़ दीजिए ।
अब कलन्दर चुपचाप बाहर जाने के लिए उठा पर पीछे मुड़कर डैड को देखा तो वो उसे सिर्फ घूर रहे थे जैसे किसी भारी पत्थर की सिल्ली को उनके दिल पर रख दिया हो और ना जी सकते हैं ना मर सकते हैं कुछ ऐसी ही हालत में कलन्दर के डैड बेसुध से पड़े रहे ।इतने में एक नर्स आई , उन्हें इंजेक्शन लगाया । अब वे गहरी नींद में सो गए जिसमे पहुंचकर किसी भी बात कोई कोई चिंता नहीं कोई एहसास नहीं जैसे कोई शराबी नशे में चूर होकर अपना गम भुला रहा हो । ठीक उसी तरह चेतना के शून्य होने तक तोमर जी फैक्टरी वाली घटना को भूल गए। और निद्रा की गोद मे समा गए ।