Guilty (Part 5) in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गुनहगार (पार्ट 5)

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गुनहगार (पार्ट 5)

मायाअपने बच्चों को आवाज देकर अपने पास बुलाने का प्रयास करती।लेकिन बच्चे उसकी आवाज सुनकर भी अनसुना कर देते।और बच्चों के लगातार ऐसा करने पर एक दिन वह घर से बाहर निकल कर बच्चों के पास जा पहुंची।
"मै तुम्हारी माँ हूँ।"
माया की बात सुनकर बच्चे चुप रहे।तब वह बच्चों से बोली,"तुम्हारा मन नही करता अपनी मां से बात करने का?"
" हमारी मां तो मर गयी।"
"किसने कहा तुम से?"बच्चों की बात सुनकर माया बोली थी।
"हमारे पापा ने"
"बेटा यह झूंठ है।तुम्हारी माँ मरी नही है।मै ही तुम्हारी माँ हूँ।"
"ऐसी माँ से तो हम बिना माँ के ही अच्छे है।"
अपने बच्चों का जवाब सुनकर माया हतप्रद रह गयी।बच्चे उस से मुंह मोड़ कर चले गए।वह बच्चों को जाते हुए देखती रह गयी।
राजेन्द्र माया की सुंदरता पर पहली नज़र में ही फिदा हो गया था।उसकी खूबसूरत देह की तारीफ करते हुए वह थकता ही नही था।राजेन्द्र उसकी देह का भूखा था।माया इसे ही सच्चा प्यार समझती थी।माया के मन मे कभी भी यह विचार नही आया कि कुंवारे आदमी का विवाहित औरत से प्यार मात्र वासना है।माया के सम्पर्क में आने पर राजेन्द्र शुरू में माया के प्रति पूर्ण वफादार रहा।लेकिन प्रतिभा के सम्पर्क में आने के बाद
राजेन्द्र अस्सिटेंट मैनेजर के पद पर इस कंपनी में आया था।उसके आने के छः महीने बाद प्रतिभा उसकी कम्पनी में आयी थी। प्रतिभा छरहरे बदन,गोरे रंग और तीखे नैन नक्श की बेहद सुंदर मराठी लड़की थी।उसके सौंदर्य में गजब का जादू था।उसके छरहरे शरीर,उन्नत उरोज और तीखे नैन नक्श में बेहिसाब आकर्षण और सम्मोहन था।पहली बार मिलते ही राजेन्द्र उससे बोला,"मेरी दोस्त बनोगी?"
" क्यो नही सर।'
और पहली मुलाकात में ही राजेन्द्र ने प्रतिभा से दोस्तु कर ली।राजेन्द्र की प्रतिभा से दोस्ती क्या हुई कि वह उसकी तरफ खींचता ही चला गया।
अभी तक वह माया के रंग रूप का दीवाना था।पर प्रतिभा के सम्पर्क में आने पर वह प्रतिभा और माया की तुलना करने लगा।प्रतिभा एक खिलती कली के समान थी।जबकि माया बासी फूल।कली की सुगंध दिलो दिमाग को तरो ताजा कर देती है।जबकि बासी फूल मन मे Vवितृष्णा भर देती है।अभी तक सिर्फ माया ही उसकी जिंदगी में थी।इसलिए तुलना करने का कोई सवाल ही नही था।पर प्रतिभा के उसकी जिंदगी में आ जाने पर तुलना करना लाजमी था।
माया,राजेन्द्र के साथ उसकी पत्नी की तरह रह रही थी।लेकिन वास्तव में वह उसकी पत्नी नही थी।उसकी माया से शादी नही हुई थी।हो भी नही सकती थी।माया की शादी सुधीर से हुई थी।वह उसकी ब्याहता थी।सुधीर ने राजेन्द्र को घर से निकाला तब माया ने भी अपने पति सुधीर का घर छोड़ दिया था।लेकिन उसने सुधीर को तलाक नही दिया था।वह राजेन्द्र के साथ बिना शादी के पत्नी की तरह रह जरूर रही थी लेकिन पत्नी थी नही।न कभी राजेन्द्र ने कहा न ही कभी माया ने सोचा कि सुधीर को तलाक देकर राजेन्द्र से शादी कर ले।उसके साथ बन्धन में बंध जाए।राजेन्द्र के लिये भी माया ही सब कुछ थी।
लेकिन प्रतिभा के सम्पर्क में आने पर वह माया से अपने रिश्ते पर विचार करने लगा।और तुलना करने पर उसे लगा कि माया का साथ सही नही है और वह उससे अलग होने के बारे में सोचने लगा