Guilhagar (Part 3) in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गुनहगार (पार्ट 3)

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 112

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૨   જીવનો જ્યાં જન્મ થયો-કે-માયા એને સ્પર્શ કર...

  • ખજાનો - 79

    ડર...ભય... ચિંતા...આતુરતા...ને ઉતાવળ... જેવી લાગણીઓથી ઘેરાયે...

  • ભાગવત રહસ્ય - 111

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૧   પશુ-પક્ષીની યોનિમાં અનેક પ્રકારના દુઃખ ભોગ...

  • વિશ્વની ભયંકર જળહોનારતો

    જ્યારે પણ જળહોનારત અંગે વાત નિકળે ત્યારે લોકોનાં મોઢે માત્ર...

  • ખજાનો - 78

    "રાત્રી નો સમય છે, આંદોલન વિશે સુતેલા અંગ્રેજોને જાણ તો થઈ ગ...

Categories
Share

गुनहगार (पार्ट 3)

सुधीर और माया की जोड़ी बेमेल थी।फिर भी माया के मन मे कभी यह ख्याल नही आया था कि उसे पति मन पसन्द नही मिला।या वह पति को नही चाहती।लेकिन राजेन्द्र के सम्पर्क में आने के बाद पहली बार उसके मन मे ख्याल आया था कि देहज के अभाव में उसे वैसा पति नही मिला जैसा वह चाहती थी।उसके मन मे यह विचार आने पर राजेन्द्र उसे अच्छा लगने लगा और वह उसकी बातों में रुचि लेने लगी।
पहले राजेन्द्र प्यार की बाते ही करता था।लेकिन धीरे धीरे वह माया के शरीर का स्पर्श भी करने लगा।माया ने उसकी इस हरकत का विरोध नही किया इसलिय धीरे धीरे उसकी हिम्मत बढ़ती चली गयी।और राजेन्द्र उससे छेड़ छाड़ भी करने लगा।उसे बाहों में भरकर उसे चूमने भी लगा।माया भी उसकी हरकतों का जवाब देने लगी।इस तरह दोनो करीब आने लगे।
एक दिन दोनो बच्चे स्कूल की तरफ से पिकनिक पर गए हुए थे।उस दिन राजेन्द्र की भी छुट्टी थी।वह माया को मैटिनी शो दिखाने के लिए ले गया।पिक्चर देखकर वे हॉल से बाहर आये तब बारिश हो रही थी।वे बरसात में भीगते हुए घर लौटे थे।बरसात की वजह से माया के कपड़ भीग कर उसके बदन से चिपक गए थे।भीगे कपड़ो से उसके बदन के उभार साफ दिखने लगे थे।जिसके कारण राजेन्द्र की कम वासना उद्दीप्त हो उठी।रास्ते मे वह बड़ी मुश्किल से अपने मन को काबू में रख सका।लेकिन घर पहुंचते ही उसके सब्र का बांध टूट गया।उसने माया को बाहों में भरकर उसके होठो को अपने होठों से सटा दिया।
"यह क्या कर रहे हो?"
"प्यार"
"यह पाप है।"
"पाप और पुण्य की बात अभी छोड़ो
राजेन्द्र,माया को बिस्तर में ले गया और उसके अंग प्रत्यंगों को चूमने के साथ उसके शरीर से कपड़े भी अलग कटने लगा।
"छोड़ो मुझे
माया का विरोध दिखावटी था।राजेन्द्र ने माया के शरीर से सारे कपड़े अलग कर दिए।उसके निर्वस्त्र शरीर को निहारते हुए बोला,"अप्रितम सूंदर देवलोक की अप्सरा सी
और वह उसके नग्न जिस्म पर छा गया।माया ने भी पूरी तरह समर्पण कर दिया।दो शरीर एक दूसरे में समा गए।यो तो सुधीर उसके जिस्म को रोज भोगता था।लेकिन वो आनंद उसे आज तक नही मिला जो राजेन्द्र से उसे पहली बार मे ही मिला था।पहली बार उसे तप्ति का एहसास हुआ था।
उस दिन के बाद राजेन्द्र और माया वासना का खेल खेलने लगे।पति दुकान पर चला जाता और बच्चे स्कूल।दोनो अकेले रह जाते।और वे इस अकेलेपन का भर पुर फायदा उठाते।खूब आनंद लेते।
एक दिन हमेशा की तरह सुधीर अपने रेस्टॉरेन्ट चला गया।उस दिन उस इलाके में दो गुटों में झगड़ा हो गया।झगड़ा इतना बढ़ा की इलाके में शांति स्थापित कराने के लिए बाजार बंद करा दिया।जब रेस्टॉरेन्ट बन्द हो गया तो सुधीर क्या करता।वह घर लौट आया।
माया को मालूम था कि सुधीर सुबह जाता है और रात को ही घर लौटता है।बच्चे स्कूल से एक बजे वापस आते थे।इसलिए माया,राजेन्द्र के साथ काम क्रीड़ा में लीन थी।तभी अचानक काल बेल बजी।राजेन्द्र और माया घबरा गए।और जल्दी जल्दी कपड़े पहने और वह दरवाजा खोलने जा पहुंची।सामने पति को देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया।पत्नी के अस्त व्यस्त कपड़े देखकर सुधीर के मन मे सन्देह हुआ