Baat us raat ki in Hindi Moral Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | बात उस रात की

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बात उस रात की

नीरजा पांडे

हॉस्टल से बाहर निकल बाउंड्री की दीवाल को पेड़ के सहारे फांद कर अक्षत ने एक लंबी सांस ली। बड़ी ही जद्दो जहद के बाद आखिर कार अक्षत आज फिर एक बार अपने वार्डन को चकमा देने में कामयाब हो गया था। उसने अपनी रेसर बाइक सुबह अपने एक दोस्त को दे रक्खी थी, की जब मैं मैसेज करूं ले कर बाहर मिल जाना।

अक्षत प्रताप सिंह एक बड़े बिजनेस मैन अभय प्रताप सिंह और फेमस डॉक्टर स्नेहा सिंह की इकलौती संतान थी। इकलौती संतान तिस पर भी मां बाप के पास वक्त ना हो तो वो उसकी कमी महंगे, महंगे गिफ्ट दे कर पूरे करते। अक्षत के मम्मी पापा दोनो ही अपने प्रोफेशन के प्रति बहुत ईमानदार थे। पिता को अपना बिजनेस टॉप पर पहुंचना था तो मां को अपने हॉस्पिटल में आए हर एक पेशेंट को स्वस्थ करना ही जीवन का लक्ष्य था। घर में दादा दादी और कई सारे नौकर चाकर थे। वो सब ही अक्षत पर प्यार लुटाते। इस प्यार के बीच पला बढ़ा अक्षत कब अनुशासन का पाठ पढ़ने से वंचित रह गया ये किसी को भी पता नही चला। पता तो तब चला जब स्कूल से कंप्लेन आने शुरू हुए। पहले तो बचपन की शरारत समझ कर सभी ने अनदेखा किया। पर जब शिकायत हद से ज्यादा बढ़ गई तो प्रिंसिपल ने अक्षत के पिता को फोन कर हिदायत दी की अब जब तक आप दोनो मुझसे मिलने ऑफिस नही आयेंगे अक्षत को स्कूल भेजने की जरूरत नहीं। हार कर अभय प्रताप सिंह ने किसी तरह समय निकाला और अपनी पत्नी डॉक्टर स्नेहा को साथ ले स्कूल गए।

प्रिसिपल एक बेहद समझदार लेडी थी। उन्होंने अक्षत के मम्मी पापा से बड़ी ही शालीनता से मिली। उसकी पिछली शरारतों के बारे में तो बताया ही पर इस बार जो कुछ अक्षत ने किया था उसे ऐसे हो नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था। प्रिसिपाल बोली, "मुझे पता है की आप दोनो ही बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हो अपने अपने प्रोफेशन में। इस कारण आप अक्षत पर ध्यान नहीं दे पाते हो। पर इसका खामियाजा मेरा स्कूल या इसमें पढ़ने वाले अन्य बच्चे क्यों भुगतें..? अब तक की छोटी मोटी शरारतों को मैने कुछ पेनिशमेंट दे कर छोड़ दिया। पर आज इसने ऐसी हरकत की कि जिसे स्कूल प्रशासन बिकुल बर्दाश्त नहीं कर सकता। दो दिन पहले एक लड़के से अक्षत ने उसकी हैंकी मांगी। जब उनने नही दिया तो उसने उसके बैग पर क्विक फिक्स लगा दिया। जिसकी वजह से बच्चे का हाथ बैग से बुरी तरह चिपक गया। अभी तक उस बच्चे का इलाज चल रहा है।"

प्रिंसिपल को बीच में ही रोक कर डॉक्टर स्नेहा बोली, "मैम मैं जिम्मेदारी लेती हूं और वादा करती हूं की अब से ऐसा कभी नहीं होगा।"

प्रिंसिपल ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "डॉक्टर स्नेहा अब बात उस स्टेज से आगे निकल चुकी है। अब कुछ भी नहीं हो सकता। प्लीज आप और कही अपने बच्चे का एडमिशन करवा दीजिए।" इसके बाद प्लीज कहते हुए हाथों से बाहर की ओर जाने का इशारा किया। अपमानित होकर अक्षत के मम्मी पापा स्कूल से घर आ गए। उन्हे अपनी इकलौती औलाद से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी। अपनी तरफ से वो अक्षत की परवरिश में कोई भी कमी नही रहने देते थे। पर आज ये सब देखना सुनना पड़ रहा था।

घर पहुंचने तक रास्ते में ही अक्षत के पिता अभय प्रताप ने फैसला ले लिया। वो अब इस शहर के किसी और स्कूल में बेटे को नहीं पढ़ाएंगे। एक ऐसे बोर्डिंग स्कूल में डालेंगे जहां खूब डिसिप्लिन हो। घर में जब अभय के इस फैसले का सब को पता चला तो खूब रोना धोना, खूब तमाशा हुआ। अक्षत की मां, दादी, दादा कोई भी उसे अपने से दूर नहीं करना चाहता था। यहां तक की घर के नौकर, नौकरानी भी अक्षत के जाने के फैसले से दुखी थे। पर सब की कोशिश बेकार गई। नैनीताल के एक अच्छे स्कूल का पता कर पंद्रह दिनों के अंदर उसे छोड़ आएं। उसके उज्वल भविष्य के लिए यही बेहतर फैसला लगा। अभय के समझाने पर बारी बारी, आहिस्ता आहिस्ता  सभी सहमत हो गए थे उनके इस निर्णय से।

इस तरह सात साल का नन्हा सा बच्चा बिना उसकी मर्जी पूछे घर, परिवार से दूर भेज दिया गया। बिना दादी के एक मिनट भी नहीं रहने वाला अक्षत इतने बड़े स्कूल के बड़े से हॉस्टल में आ गया। उस अबोध बच्चे को कुछ समझ नहीं आया की आखिर वो सबसे दूर क्यों कर दिया गया। उसने बस अपने क्लास मेट को सताया था। बात की गंभीरता उसकी समझ से परे थी। बस उसकी समझ में एक बात आई की उसे अपने घर से दूर पढ़ाई के लिए किया गया है। घर में सभी गंदे है सभी ने मिल कर उसे दूर भेजा है पढ़ने के लिए। अब वो चाहे जो भी कर लें वो बिल्कुल भी नही पढ़ेगा। वार्डन के डर से वो समय से सब कुछ करता था। पर पढ़ाई जरा सी भी नही करता था। मां स्नेहा कुछ नही कर पाई अपने कलेजे के टुकड़े के लिए। तो अपनी गिल्ट कम करने के लिए वो पति से छिपा कर काफी रुपए अक्षत को दे देती और कहती, “बेटा तुझे मेस का खाना अच्छा न लगे तो कुछ भी बाहर से मंगा कर खा लेना। और भी जो तेरा मन करे वो ले लेना।" अक्षत को कॉमिक्स पढ़ना बहुत पसंद था। वो एक स्वीपर को सेट कर लिया इस काम के लिए। बदले में स्वीपर को रुपए दे देता। जब जो कुछ भी अक्षत कहता स्वीपर सब की निगाह बचा कर उसे ला कर दे देता।

समय के साथ अक्षत क्लास दर क्लास आगे बढ़ता गया। पर बस किसी तरह ले दे कर पास ही होता था। अभय और स्नेहा हर साल उसका रिपोर्ट कार्ड देखते और दुखी होते की लाखो की फीस देकर बस बच्चा पास ही हो रहा। उनके लिए पैसा कोई मुद्दा नहीं था। मुद्दा था तो ये कि त्याग कर कलेजे के टुकड़े को इतनी दूर भेजा पढ़ाई के लिए। पर वो तो बिलकुल भी नहीं पढ़ रहा। हर बार ये उम्मीद की जाती की हो सकता है अगली बार अच्छे मार्क्स आए। पर हर बार रिपोर्ट कार्ड देख कर आशा छिन्न भिन्न हो जाती।

इसी तरह अक्षत हाई स्कूल भी मात्र फिफ्टी परसेंट मार्क्स ले कर पास हुआ। अब ग्यारहवीं में था वो। पढ़ाई के अलावा जितना सब कुछ वो हॉस्टल में रह कर सकता था करता था। कॉमिक्स का शौक अब नॉवेल में परिवर्तित हो चुका था। अब उसके पास स्मार्ट फोन भी था। जो चाहे वो देखता।

अक्षत ने अपनी मम्मी से जिद्द कर दसवीं के बाद बाइक ले ली थी। अब रात में तो हॉस्टल से बाहर जाने की परमिशन मिलती नही थी। जो दोस्त हॉस्टल में नही रहते थे उन्हे दिन में ही अपनी बाइक दे देता। खुद वार्डन की नजरों से बच कर पेड़ के सहारे बाहर आ जाता। फिर आधी रात तक अपने दोस्तो के साथ खाता पीता, घूमता। फिर सुबह तीन बजे तक वापस हॉस्टल आ जाता।

आज भी यही सब करने वो बाहर निकला था दोस्तों के साथ। फुल स्पीड से बाइक सभी चला रहे थे। दोस्त आगे थे अक्षत पीछे था। अचानक से अक्षत की बाइक के सामने एक पिल्ला आ गया। पिल्ले को बचाने के चक्कर में उसकी बाइक सामने के लैंप पोस्ट से जा टकराई। उसी के नीचे अक्षत की उम्र का ही एक लड़का बैठ कर पढ़ाई कर रहा था। अक्षत को बस जरा सी खरोंच आई। पर उस लड़के को काफी चोट लग गई।

वो लड़का जोर जोर से रोने लगा। अक्षत उसे चुप कराने लगा। वो बार बार रोते हुए यही कह रहा था की उसकी ग्यारहवीं की परीक्षा होने वाली है। अब वो कैसे देगा..?

अक्षय और उसके दोस्त उस लड़के को लेकर पास की क्लिनिक में ले गए। डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाई और दवा दी।

कुछ आराम होने पर उस लड़के सुनील ने अपने बारे में बताया। उसके पिता नहीं है और मां घरों में झाड़ू पोंछा लगा कर किसी तरह उसे सरकारी स्कूल में पढ़ा रही थी। उसके हाई स्कूल में 98 प्रतिशत नंबर आए थे। अब वो पूरी लगन से बारहवीं की परीक्षा के साथ साथ मेडिकल इंट्रेंस की भी तैयारी कर रहा था। उसे किसी भी कीमत में सफल होना ही था। और कोई विकल्प उसके सामने नहीं था। अक्षत खामोशी से सुनील की बातें सुन रहा था। सुनील की बातों से अक्षत के दिल में उथल पुथल मचा था। ये रात उसके जीवन में एक टर्निंग प्वाइंट बनने वाली थी। सुनील को उसके घर पहुंचाने गया अक्षत तो उसके छोटी सी अंधेरी झोपड़ी देख कर दिल तार तार हो गया। सुनील से कल फिर मिलने आने का वादा कर वो हॉस्टल लौट आया।

उस रात अक्षत की पलकें एक मिनट के लिए भी बंद नहीं हुई। वो सोचता रहा सारे सुख सुविधा मिलने के बाद भी मैं अपना भविष्य खराब कर रहा हूं। पढ़ाई को छोड़ सारे काम करता हूं। एक सुनील है जिसे पढ़ने के लिए लाइट भी नही नसीब है। वो सड़क किनारे लैंप पोस्ट की रोशनी में पढ़ रहा है। अक्षत को किसी भी तरह चैन नहीं मिल रहा था।

सुबह वार्डन से तबियत खराब की बात कह कर वो सुनील के पास चला गया। रास्ते में उसने एक बैटरी से चलने वाला लैंप भी खरीद लिया।  सुनील से उसने हृदय से माफी मांगी। और वो लैंप उसे दिया। सुनील ने पहले लेने से इंकार किया फिर अक्षत के पछतावे पूर्ण अनुरोध को मना नहीं कर सका।

अक्षत को सुनील के रूप में एक अच्छा दोस्त मिल गया। वापस लौटते समय एक संकल्प, एक निश्चय कर चुका था। उसे भी अब बस पढ़ाई करनी थी। इतनी विपरीत परिस्थिति के बावजूद सुनील ने एक लक्ष्य तय कर अथक परिश्रम से साधना में जुटा है। और एक वो है की सारी सुविधा, संसाधन को दरकिनार कर, मौज मस्ती में ही अपना कीमती समय बर्बाद कर दे रहा है।

उस रात की घटना से अक्षत की जिंदगी बदल गई। वो पूरे जी जान से पढ़ाई में जुट गया। अब वो भी अपनी मम्मी की तरह डॉक्टर बनने का फैसला कर मेहनत करने लगा। फर्क पहले टेस्ट से ही दिखने लगा। उसके अच्छे मार्क्स देख कर मम्मी पापा दोनो ही उससे मिलने आए। अक्षत उन्हे ले कर सुनील के घर गया और उसकी मां से मिलवाया। अक्षत के पापा ने सुनील की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदार ले ली।

अब अक्षत और सुनील दोनो ही मेडिकल इंट्रेंस की तैयारी में जुट गए। जैसा की सभी जानते है, जी जान से की गई कोशिश कभी भी असफल नहीं होती। अक्षत और सुनील दोनो का ही चयन मेडिकल कॉलेज में हो गया। अक्षत के मम्मी पापा अब सुनील और उसकी मां को भी अपना ही परिवार मानने लगे। सुनील के कॉलेज जाने के बाद उसकी मां को वो अपने साथ अपने घर ले आए।

इस तरह एक रात ने दो दो जिंदगियां बदल दी।

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