मॉटरनी का बुद्धु--(भाग-21)
संध्या अपने दोनो परिवार वालों से मिल कर बहुत खुश हो गयी थी। उसका आत्म विश्वास धीरे धीरे लौट रहा था। भूपेंद्र या सभ्यता के आसपास न होने से वो पहले जैसी बेचैन नहीं हो रही थी। कई बार बीच में संभव आया तो सब के साथ कार में भी गयी। ट्रैफिक की आवाजें और शोर से लगने वाला डर कम हो रहा था। फिर भी वो तीनो को पैदल सड़क पार नही करने देती। संभव को बाइक कभी न चलाने के लिए उसने मना लिया। संभव को मॉम वापिस मिल गयी थी, वो उनके लिए खुशी खुशी मान गया। सब उसके डर से अंजान नहीं थे।
एक दिन बाजार में उसी दुकान से राशन खरीदने गए तो बाजू वाली दुकान पर विनायक से भूपेंद्र जी ने संध्या से मिलवाते हुए बताया," संधु ये विनायक भाई हैं, यही तुम्हें हॉस्पिटल ले कर गए थे, आज तुम इनकी वजह से ही हमारे साथ हो। संध्या को ठीक देख कर वो भी काफी हैरान और खुश थे और बोले, "मैंने सिर्फ अपना काम किया पर आपके विश्वास और मेहनत ने इन्हें ठीक कर दिया है सर"! " संध्या ने विनायक भाई के हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया और कहा," भैया आपका बहुत बहुत आभार"!
भूपेंद्र जी संध्या का जन्मदिन धूमधाम से मनाने का सोच रहे थे। संभव ने सभ्यता को मॉम से उनकी इच्छा के बारे में जानने की काम दे दिया। सभ्यता ने संध्या से पूछा," मॉम आपका 50Th Birhtday आने वाला है तो आपका क्या मन है? क्या करना चाहते हो उस दिन"? संध्या बोली," बेटा मैं सोच रही हूँ कि मैं अपने जन्मदिन पर तेरे पापा के सभी दोस्तो को जो पार्क में मिलते हैं उनको, सुनीता नर्स को, अपने डॉक्टर्स को, लीला काकी , स्कूल का स्टॉफ, विनायक भाई और जिन लोगो ने भी बुरे वक्त में हमारी मदद की उन सबको बुला कर किसी होटल में पार्टी दूँ और उन्हें थैंक्स बोलूँ"।
"मॉम आप दिल्ली से भी सबको बुलाओगी न फिर मजा आएगा"! सभ्यता की बात सुन कर वो बोली, "नहीं, बिल्कुल नहीं तेरे नाना नानी के लिए इतनी दूर आना जाना ठीक नहीं, हम लोगो जा कर मिल आएँगे पर तेरी बुआ और दोनो चाचा को बुलाएँगे"!
"मॉम ये क्या बात होती है, पापा की तरफ की पूरी फैमिली और आपकी तरफ से कोई नहीं"? संध्या मुस्कुराते हुए बोली," बेटा तुम्हारे दादा दादी कहा करते थे कि तुझे हमेशा सबको अपने साथ जोड़े रखना है", उनकी बात तो माननी पड़ेगी। सभ्यता ने जब संभव को मॉम की पसंद और इच्छा बतायी तो संभव बोला," छोटी हम बहुत लकी हैं कि हमें ऐसे पैरेंटस मिले, जैसा मॉम चाहती हैं वैसे ही तैयारी करेंगे"!
संध्या का जन्मदिन नजदीक था। संध्या के साथ जा कर भूपेंद्र जी ने एक बैंक्वेट बुक करा लिया। भूपेंद्र जी और संध्या ने सबसे पहले डॉक्टर साहब को इंवाइट किया, फिर विनायक भाई को जूनियर डॉ., फिजियो, नर्स सुनीता, पार्क में मिलने वाले सभी दोस्तों को सपरिवार बुलाया। बच्चों की बुआ और चाचा लोग तो फोन करने पर ही आ गए, यही तो परिवार होता है। भूपेंद्र जी उस औरत को भी ढूँढ रहे थे जो काफी महीने संध्या की मालिश करती रही थी, वो मिली नहीं, स्कूल के पूरे स्टॉफ को यहाँ तक की दोनो पिऊन को भी भूपेंद्र जी बुलाना नहीं भूले और लीला काकी ने तो पूरा घर संभाला हुऐ था, उन्हें कैसे भूल सकते थे।
संध्या के जन्मदिन को भूपेंद्र जी ने यादगार बना दिया गाना गा कर......सब हैरान थे उनकी मीठी आवाज सुन कर और संध्या खुश थी अपना मनपसंद गाना सुन कर....
" तुम को जो पसंद हो वही बात करेंगे,
तुम दिन को कहो रात तो रात कहेंगे"!
पूरा हॉल तालियों से गड़गड़ा गया। जब संभव ने कहा कि अब हमारी मॉम सबसे कुछ कहना चाहती हैं----- संध्या स्टेज पर आयी और उसने बोलना शुरू किया--" एक बाइक सवार ने कुछ मिनटो की जल्दी के लिए मेरी पूरी जिंदगी बदल दी, पर विनायक भाई और डॉक्टर साहब ने मुझे बचा लिया। मेरी जिंदगी के अनमोल पाँच साल जब मेरे बच्चों को मेरी जरूरत थी, वो मेरा सहारा बन गए और मेरे परिवार के सभी लोगो ने जिस तरह से घर को संभाला है उस के लिए धन्यवाद भी नही कहना चाहती क्योंकि बहुत छोटा शब्द है ये। मेरे भाई जैसे दोनो देवर और बहनो से बढकर मेरी दोनो ननदो ने बच्चों और अपने बडे भाई को बिखरने नहीं दिया। मेरे बुद्धु मतलब मेरे मॉटर जी का ध्यान रखने के लिए उनके सभी दोस्तो और कलीग्स को हमारे पूरे परिवार की तरफ से शुक्रिया जिन्होंने इनके मनोबल को बढाए रखा इनसे जुड़ कर। लीला काक, नर्स सुनीता जैसे लोग जो अपना काम सिर्फ ड्यूटी समझ कर नहीं पूरे अपनेपन से करते हैं उनका मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करती हूँ"!
संध्या की बातें सब बहुत ध्यान से सुन रहे थे, उसकी बात खत्म होने के बाद एक बार फिर तालियाँ बजने लगी और संध्या की आँखो में खुशी के आँसू चमक रहे थे। भूपेंद्र जी ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया।
सब बहुत खुश थे कि सब कुछ अच्छे से हो गया। जाते जाते डॉ. साहब संध्या को बोल कर गए," मिसेज सिंह मैंने अपना काम किया पर ये भूपेंद्र जी का प्यार और विश्वास था जो आप को ठीक कर गया", संध्या सुन कर मुस्कुरा दी और बोली" आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं"!
स्कूल के कलीग्स जो प्रिसिंपल की इतनी इज्जत करते थे उन्हेॆ उनकी वाइफ का सबके सामने बुद्धु कहना अजीब लग रहा था। यही हाल भूपेंद्र जी के दोस्तों का भी था, राजीव जी से रहा नहीं गया और बोले," यार भाभी ने तुझे सबके सामने बुद्धु कहा तुझे अजीब नहीं लगा"?
भूपेंद्र जी मुस्कुरा कर बोले," यार अगर वो न कहती तो अजीब लगता, ये शब्द मैं दिन में 10-15 बार सुन न लूँ तो कुछ अधूरा सा लगता है। 5 साल तरस गया ये सुनने को, तुझे हमारा सीक्रेट नहीं पता न इसलिए तुझे मेरे लिए बुरा लग रहा है, तो सुन बुद्धु का मतलब I LOVE YOU है और मुझे वो कहीं भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं हूँ ही मॉटरनी का बुद्धु"!
आसपास खड़े लोगो ने जब सुना तो सब हऎस दिए और संध्या बच्चों और उनकी बुआ, चाचा और चाची लोगो के साथ घिरी बैठी थी। संभव ने तो एल्बम और विडियों वाले को बुलाया ही हुआ था। पर काफी लोगो ने संध्या की स्पीच और भूपेंद्र जी के गाने का विडियो बनाया था।
सारे दिन की भागदौड़ ने सबको थका दिया था। अगले दिन सब देर से उठे। भूपेंद्र जी ने फोन ऑन किया तो कुछ वीडियो उसके पास आए हुए थे जो अलग अलग लोगो ने भेज रखा था वॉट्सप्प पर।
भूपेंद्र जी ने सबसे पहले राजीव जी का मैसेज देखा तो रात की पार्टी का वीडियो था। देख कर भूपेंद्र जी मुस्कुरा दिए। जिन लोगो को इंवाइट किया गया था शायद उनमें से ही किसी ने दोपहर होने तक फेसबुक पर डाल दिया वो भी कैप्शन के साथ," प्यार और विश्वास ने 5 साल बाद कोमा से बाहर आयीं बरेली स्कूल के एक प्रिसींपल की वाइफ " तो किसी ने लिखा" पति बना सावित्री " वगैरह वगैरह, जो पता नहीं कहाँ कहाऎ से घूम कर सभ्यता और संभव के पास आ गया। भूपेंद्र जी तो फेसबुक पर थे ही नहीं।
शाम तक हँस हँस कर सब पागल हो गए....एक खूबसूरत कैप्शन ने संध्या का दिल जीत लिया! भूपेंद्र जी के दोस्तों के ग्रुप से आया मैसेज जब संध्या ने देखा जिसमें लिखा था," मॉटरनी के बुद्धु का जलवा"....ये शरारत राजीव जी की थी।
हद तो तब हो गयी, जब एक लोकल पेपर से एक लड़की ने भूपेंद्र जी से उनका और संध्या का इंदरव्यू लेने की बात कही, पर संध्या ने मना कर दिया। वो लड़की चाहती थी कि संध्या जैसे मरीजों के परिवार को मोटिवेशन मिलेगा और हिम्मत उम्मीद न छोड़ने की तो संध्या से मना नहीं किया गया।
इंटरव्यू हुआ और ज्यादा बातें भूपेंद्र जी से ही पूछी गयीं और दोनो की तस्वीर अगले दिन उस पेपर की हैडलाइन थी," प्यार का अनूठा उदाहरण"!
कुछ दिन भूपेंद्र जी और संध्या शहर में चर्चा का विषय बन गए। जब ये तारीफो का तूफान रूका तो भूपेंद्र जी के पास संध्या के डॉ. का फोन आया, उन्होंने पूछा, "क्या वो अपने खाली टाइम में हॉस्पिटल में एक लेक्चर दे सकते हैं जिससे मरीजो और उनके परिवार वालों को मेंटल सपोर्ट मिलेगा, अगर हो पाए तो मिसेज सिंह को भी अपने साथ रखें....भूपेंद्र जी ने हाँ कह दी। वो किसी की मदद करने का कोआ अवसर नहीं छोड़ना चाहते थे और न ही संध्या"!
भूपेंद्र जी और संध्या महीने में 2-3 बार हॉस्पिटल जाना शुरू कर दिया। सभ्यता आगे पढने दिल्ली चली गयी थी तो काम कुछ रहता नहीं था। कई प्राइवेट हॉस्पिटल वाले भी उनसे कांटेक्ट करने लगे थे। रिटायरमेंट के बाद यहीं सोशल वर्क उनका फुल टाइम बनने वाला था। रिटायर होने तक भूपेंद्र जी फेमस हो गए थे बरेली में,"मॉटरनी के बुद्धु " की संस्था के संस्थापक के रूप में।
समाप्त