There is a narrow alley here in Hindi Short Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | यहां पतली गली भी है

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यहां पतली गली भी है

नीलम कुलश्रेष्ठ

“डिमॉनीटाइज़ेशन से देश का कितना फ़ायदा हुआ है,कितना ब्लैक मनी बर्बाद हो गया। “

भारत में सब जगह,अख़बारों में तो हल्ला है कि सरकार की डिमॉनीटाइज़ेशन स्कीम बिलकुल फ़्लॉप चली गई है। वह कमर सीधी करके उचक कर सोफ़े पर बैठ गई। ऐसी बात कह रही है,वह भी स्ट्रेट काले बालों में ब्राउन लटें डाय करवाने वाली,अपनी बादामी ऑंखें फड़फड़ाती देल्ही में रहने वाली सुन्दर तेईस चौबीस साल की लड़की किमी.

“तुम ये कैसे कह रही हो कि डिमॉनीटाइज़ेशन से देश का फ़ायदा हुआ है ?”

“बिलकुल हुआ है ज्वैलरी इंडस्ट्री की तो चार पांच साल तक कमर टूट गई है। लोगों के पास ब्लैक मनी नहीं है तो कौन उसे सफ़ेद करने के लिए गहने बनवाये ? ब्लैक मनी नहीं है तो हथियार या ड्रग्स या बारूद ख़रीदने में भी कमी आई होगी,होगी कि नहीं ?”

वह क्या उत्तर दे ? वह इस देश की आम नागरिक -मीडिया कहे कि ये स्कीम फ़्लॉप हो गई है तो उसकी बात मान ले।अगर मीडिया कहे कि ये सफ़ल हो गई है -तो भी ये बात मान ले. अरे -याद आया तभी अख़बार ऐसी ख़बरों से भरे रहते हैं -’ज्वैलरी व्यवसाय के तीस हज़ार कारीगर बेकार---- बिचारे ! कोई सब्ज़ी बेच रहा है,कोई सेलून में बाल काट रहा है,कोई लारी लेकर शहर में धूप में मारा मारा घूम रहा है। किसी की बीवी ही नौकरी न होने से तलाक दे गई ---उफ़। गहनों व हीरों की पॉलिश करने वाले हज़ारों लोग समझ नहीं पा रहे परिवार कैसे पेट भरें ?

अब ये लड़की कह रही है तो कुछ छान बीन तो करनी पड़ेगी। सीधे ज़ीरो से छानबीन करनी होगी,”सुना है कि तुम बहुत बड़े ज्वैलर्स के यहाँ काम करती हो तो ये बताओ कि उनका क्या हाल है ?”

“आंटी !वो तो कंट्री के तीन चार डायमंड ज्वैलर्स में से एक हैं। उनका डेढ़ दो सौ साल पुराना ख़ानदानी बिज़नेस है। इतने ही करोड़ का टर्न ओवर है इसलिए ये झेल गए। इट ‘स अ वेल ऑर्गनाइज़्ड एस्टेब्लिशमेंट। बहिन भाई के आपस में जुड़े बिज़नेस हैं। बहिन एक दस लाख कॉस्ट तक के गहने का बिज़नेस सम्भालती है। भाई एक गहना दस लाख से अधिक हो,ऐसा बिज़नेस सम्भालता है। “

उसकी साँस अटक गई,”क्या लोग एक गहना दस लाख रूपये से अधिक का भी ख़रीदतें हैं?हमारे यहां तो पूरी की पूरी शादी दस लाख में हो जाती है। “

वह खिलखिलाकर हंस पड़ी,”आप किस दुनियां में रहती हो आंटी जी ? अपने देश में रईसों की कमी है ?”

“पहले ये बताओ तुमने क्यों ज्वैलरी मेकिंग डिग्री ली ?”

“पैशन आंटी-- ओनली पैशन।मुझे ड्रॉईंग बनाने व कॉस्ट्यूम ज्वैलरी पहनने का बहुत शौक था। जब मैं हॉस्टल में पढ़ती थी तो मैंने ऐसे ही इसका सिलेक्शन कॉन्टेस्ट का फॉर्म भर दिया। मेरा सिलेक्शन हो गया। मेरिट में मेरा दूसरा नंबर था इसलिए मम्मी पापा ने भी दिल्ली जाने दिया वर्ना वे चिल्लाते थे कि ये भी कोई कैरियर है ? बस देल्ही में मुझे एक प्रॉब्लम थी कि इंस्टीट्यूट में मेरे नाम के कारण सब मुझे किलो मीटर कहकर चिढ़ाते थे। “

“क्यों ---ओ ---- समझी किमी मतलब किलो मीटर----हा---हा ---हा.”

“मेरे ख़्याल से जयपुर व देल्ही के ज्वैलरी मेकिंग इंस्टीट्यूट सबसे पुराने हैं ?”

“जी हाँ,अब तो जगह जगह ये खुल गए हैं। “

“राइज़ करने के बहुत चांसेज़ होंगे ?’

“ ना जी,जॉब करने के बाद पता लगा कि यहाँ कोई प्रमोशन के चांसेस नहीं होते. मैं सीनियर डिज़ाइनर की पोस्ट से ही रिटायर हो जाउंगी। इन फ़ैक्ट,आप देख रहीं हैं कि लेडीज़ कितने बड़े डिज़ाइनर झुमके पहनने लगीं हैं चाहे कान खिंचते रहें,उन्हें कितनी ज्वैलरीज़ लादने का शौक हो गया है। “

वह शुक्र मनाती है कि उसकी बेटी या बेटा किसी’पैशन’की चपेट में नहीं आया । वे एम बी ए करके कहाँ से कहाँ पहुंच गए।नहीं तो,फ़िल्म’ थ्री ईडियट्स ‘देखकर युवा तो युवा,उनके माँ बाप को भी पैशन का भूत चढ़ गया था। फ़िल्म में जाना है ---जा बेटा मुम्बई की गलियों की ख़ाक छान,नाटक करने हैं ---जा बेटा,पेंटर या फोटोग्राफ़र या गायक या ---बनना है ----जा बेटा। वह कुछ परिचितों को जानती है इस पैशन के चक्कर में पोते पोतियों के मुंह देखने को तरस गये हैं। शादी हो तो पोता पोती हों,शादी जब हो जब जीवन में ठीक से कमाने लगो।

उसका मन होता है कहे कि माधुरी दीक्षित को देश की स्त्रियों को भारी भरकम गहनों व लहंगों का चस्का लगाने के लिए एक बड़ा अवॉर्ड मिलना चाहिए वर्ना जया भादुड़ी,शबाना आज़मी व स्मिता पाटिल ने सादगी से रहकर उस ज़माने में भी ज्वैलरी इंडस्ट्री की कमर ही तोड़ डाली थी।

इस स्टाइलिश नाज़ुक लड़की ने एक गोल्ड ज्वेलर्स के यहां पहला काम आरम्भ किया एक छोटे कमरे में। वहां सरसों के तेल से चिपचिपाते बालों वाले कारीगर जो धीमी आवाज़ में हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ म्युज़िक सिस्टम से सुनते रहते या एनविल पर पिघला सोना डालकर छोटी हथौड़ी से उसे आकार देते रहते। गहनों की ड्राइंग बनाती किमी का ध्यान इस हल्की ठक ठक से बँटता रहता,वह खीज भी जाती।कुछ कारीगर थक कर पान की पीक थूकने वॉशरूम में चल देते या कुछ गुटका खाये बिना नहीं मानते थे।

“मुझे पता लग गया कि ये जगह मेरे काम करने की नहीं है। “किमी अपने आप ही बताने लगी,”मैंने वहां नौकरी छोड़ी एक कॉस्टयूम डिज़ाइनर के यहाँ काम किया। वहां भी नौकरी छोड़ इस बड़े ज्वेलर्स के यहाँ सीनियर ज्वेलरी डिज़ाइनर बन गईं हूँ। “

“कारीगरों को अच्छा पैसा मिल जाता है ?”

“उन्हें अच्छा पैसा कौन देगा ? एज़ यू नो,अपने देश में स्किल्ड कारीगरों की कद्र ही कहाँ है ?पंद्रह बीस वर्ष काम करके इतने बढ़िया प्रोफेशनल बन जातें हैं लेकिन ये पोर्टफ़ोलियो कैसे बनाएं ? “दोनों हाथ उठाकर उन्हें हिलाते हुये,शब्दों पर जोर डालते कहती है,”कैसे बताएं कि हम इतने अनुभवी हैं,इतने स्किल्ड हैं क्योंकि इनके पास डिग्री नहीं होती। यदि डिग्री होती तो ये अमेरिका लन्दन जाकर पॉन्ड्स व डॉलर्स में खेलते। “

“ये बात तो है विदेश में स्किल्ड लेबर्स हाथों ही हाथों रक्खे जाते हैं। “

किमी एक और राज़ खोलती है “ये ज्वैलरी इंडस्ट्री अधिकतर बँगला देशी मुस्लिम्स की आर्ट पर टिकी हुई है. बँगलादेशी मुस्लिम्स में सुन्दर गहने बनाने हुनूर है,गज़ब का हुनूर. या कहिये ये आँख खोलते ही अपने घर में ये कारीगरी देखते हैं। कितने ही बँगला देशी मुस्लिम्स बड़े,बच्चे रिफ्यूजी होते हैं. मालिक भी बच्चों को सिर्फ़ खाना,कपड़ा देकर बिना मज़दूरी दिये काम करवाते हैं,छिपाकर रखते हैं। ठेंगा दिखाते हैं बाल मज़दूरी कानून व सरकार को।”

“बिचारे ये बच्चे बिना मज़दूरी लिए काम करते रहतें हैं ?”

“ क्या करें इनकी कितनी मजबूरी होती है ?दस बारह साल या उससे थोड़े बड़े बच्चे चूँ भी नहीं कर पाते क्योंकि इनके पास या तो पासपोर्ट नहीं होता या माँ बाप के पास खिलाने को रोटी नहीं होती। उन्होंने इन्हें न रूपये कमाने के लिए इन्हें ज्वैलर्स को सौंपा होता है. कम से कम इनका पेट तो भरेगा. किससे शिकायत करें ? यदि पुलिस के पास गए तो सबसे पहले वही इन्हें अरेस्ट कर लेगी अवैध रूप से इंडिया में घुसने के लिए। “

“उफ़ !उन बच्चों के लिए सोचकर बहुत बुरा लग रहा है। “

“आंटी !अपने को होशियार समझने वाले ज्वेलर्स को कभी कोई बड़ा बंगाली गच्चा भी दे जाता है.”

“ऐसा ?”

“और क्या,अब ज्वैलर्स पासपोर्ट न होने के कारण इनका पुलिस वेरिफ़िकेशन तो करवाते नहीं हैं। आपने राजस्थान के जालोर का केस पेपर में नहीं पढ़ा ? किसी बंगाली कारीगर ने अपनी जान पहचान के दो बंगाली कारीगर ज्वेलर्स के यहाँ लगवा दिये। ज्वैलर ने उन्हें नब्बे ग्राम कच्चा सोना ज्वेलरी बनाने के लिए दिया। उन दोनों की नीयत ख़राब हो गई। वे मौका लगते ही गायब हो गये. कभी कभी बँगला देशी गहने चुराकर सीमा पार कर अपने देश भाग जातें हैं। एक बार ज्वेलर्स ने ढाई लाख रूपये के गहने पॉलिश करवाने के लिए कारीगर को सौंपे। वह भी उन्हें लेकर भाग गया।दूसरा आठ सौ ग्राम सोना लेकर भाग गया। मज़े की बात ये होती है ये लोग चोरी की रिपोर्ट भी नहीं करवा पाते। “

“ओ --इसे कहते हैं सेर को सवा सेर मिलना। “

“ही ---ही --ही --ऐसे ही इन ज्वैलर्स के सिर पर भी सरकार ने डिमॉनीटाइज़ेशन का बॉम्ब फोड़ दिया था । “

कैसा धमाका हो गया था नोटबंदी के एलान पर --तरह तरह ख़बरें मीडिया में छाई रहतीं थीं ---कहीं ट्रक में,कहीं कार में नोटों के बंडल ज़ब्त किये गये या नदी में,नहर में तैरते नोट मिले। किसी बेटी के बाप की सदमे से मृत्यु हो गई क्योंकि शादी के लिए घर में रूपये नहीं थे। कहीं कोई सीनियर सिटिज़न चिलचिलाती धूप में लम्बी लाइन में खड़े खड़े मर गया तो बैंक्स के आगे सीनियर सिटिज़न्स की अलग लाइन लगानी आरम्भ कर दी। उसकी बिल्डिंग वाले तो बहुत ख़ुश थे उसके फ़्लैट के ऊपर एक नॉटोरिअस डॉन ने फ़्लैट ले रक्खा था। नोटबंदी के कुछ महीनों बाद ही मजबूरन फ़्लैट बेचकर भाग खड़ा हुआ।वह डॉन अपने पन्द्रहवें फ़्लैट की बाकी रकम भरने कहाँ से ब्लैक मनी लाता ?

इस नोटबंदी के दौरान यू पी में बैंक के सामने लगी बहुत लम्बी लाइन में कोई शैतान किसी को धक्का दे देता बहुत से लोग गिर जाते। जब तक वे उठकर सँभलते तब तक तो कुछ लोग उनसे बहुत आगे स्थान झपट लेते। इस धक्का मुक्की में स्त्रियों के चोटें भी खूब लगीं,किसी किसी व्यक्ति के फ़्रेक्स्चर भी हो गया था. कहीं बहुत सी गृहणियों के दो लाख से ऊपर ‘कोरचे‘[पति से छिपाकर रक्खे रूपये ] के रूपये बर्बाद हो गये. ख़बर थी कि बहुत सी गृहणियाँ अपनी ‘मेहनत‘ की कमाई बर्बाद होते देख बीमार पड़ गईं थीं।

ऐसे में उनके सितारे कैसे मेहरबान थे ? पहले तो भगवान जी के मंदिर में रक्खे दान के रुपयों में से रूपये उधार लेने पड़े।उस डिब्बे में से रूपये निकालते समय उसके होंठ मुस्करा पड़े -मुसीबत में भगवान ही काम आतें हैं। उनकी टाउनशिप के ग्रॉसरी स्टोर वाला अपने ग्राहकों से एक हज़ार रूपये जमा करवा लेता व सामान देता रहता। हर शाम उसका आदमी बैंक में हज़ार रूपये के नोट जमा कर देता। सारी टाउनशिप इस व्यवस्था से मज़े में थी। घर के रूपये ख़त्म हो गए तो वो व उसके पति स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया गए।वहां के नियमानुसार पांच हज़ार रूपये से अधिक रूपये निकल नहीं सकते थे।

बैंक में जाते ही जैसे लॉटरी निकल आई थी जहां से उस दिन कोई भी चौबीस हज़ार रूपये निकाल सकता था.दोनों पति पत्नी ने अपने अपने अकाउंट से चौबीस चौबीस हज़ार रुपया निकाला। इस तरह बैंक से निकाला रुपया लेकर कैब में बैठे थे कि कैब ड्राइवर बोला,” आप मुझे पांच सौ का नोट भी दे सकतें हैं क्योंकि मैं पैट्रोल भरवाने जा रहा हूँ। “

पेट्रोल पम्प पर तो पांच सौ का प्रतिबंधित नोट चल सकता था।

“आंटी !जैसे ही डिमॉनीटाइज़ेशन हुआ लोग अपना ब्लैक मनी लेकर ज्वैलर्स के यहाँ दौड़ पड़े। सरकार कम थोड़े ही है उसने गहने बनवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। “

“सच में ये अक्लमंदी की। “

“ही --ही --ही --कुछ लोग सरकार से भी अक्लमंद होतें हैं। एन सरकार की नाक के नीचे उन्होंने जो करना था किया,ब्लैक मनी बचाना था,बचा लिया। “

जो जो उसने सुना,उसे समझ में नहीं आ रहा कि हँसे या रोये।बस कल्पना करने में लग गई --नोटबंदी के दिनों में किमी का डायमंड ज्वेलर्स के यहां किमी का पहला सप्ताह था । अचनाक बॉस की पी ए का फ़ोन आता है,”मिस्टर रघुवंश हमारे बहुत पुराने कस्टमर आपके पास आ रहे हैं। हैंडिल विद केयर --ख़ास ध्यान रखिये नाराज़ न हो जायें। “

किमी थोड़ा सहम सी गई थी। अभी उसे आये जुम्मा जुम्मा सात दिन हुए हैं और ऐसी डीलिंग ?

एक सेल्स गर्ल लाल बॉर्डर वाली आसमानी साड़ी के ड्रेस कोड व ऊँचे जुड़े में उन्हें एस्कॉर्ट करती उसके केबिन में ले आई. रघुवंश जी के सामने आते ही वह समझ गई गले में सोने की चेन व चारों उँगलियों में हीरे, पन्ने की मोटी अंगूठी पहने,व्यक्तित्व से ख़ानदानी रईसी टपकाते रघुवंश जी ही होंगे।वह उनके सम्मान में खड़ी हो गई,उसने दोनों हाथ जोड़ दिए,” वैलकम सर !”

उन्होंने हल्के से सिर हिलाकर अभिवादन स्वीकारा व फिर पूछा,”नई हो ? पहले नहीं देखा। “

उसका गला चटका जा रहा था,”ज-ज-जी.प्लीज़ !हैव अ सीट। “

“हूँ। “

“जी कहिये आपको अपनी पसंद के डिज़ाइन का अपनी पत्नी के लिए डायमंड नेकलेस या ईयर रिंग्स या ब्रेसलेट्स बनवानी है ?”

“हूँ --इनमें से कुछ भी नहीं। क्या तुम्हें पता नहीं है कि आजकल ज्वैलरी बनवाने पर बैन है ?”

“सॉरी --सॉरी --तो फिर ?अपनी अँगूठी ?”उनके लम्बे चौड़े व्यक्तित्व से वह हड़बड़ाए जाये रही थी.

उन्होंने उसे घूरकर देखा,वह समझ गई बोलने में फिर ग़लती हो गई है।

“मुझे ये सब नहीं बनवाना। मुझे अपने घर की मूर्तियों के लिए प्लेटिनम के जड़ाऊ मुकुट बनवाने हैं। “

“ वॉट ----?” भावनाओं को कन्ट्रोल करते करते उसकी ऑंखें दोनों फ़ैल ही गईँ.

उन्होंने उसकी मेज़ पर रक्खी उसकी नेमप्लेट पर नज़र डालते हुए पूछा,” बंगाली हो। तुम्हें दुर्गा माता के मुकुट की शेप का अनुमान होगा ही ? “

“ जी,बिल्कुल। “

“क्या तुम्हें पता है कि हमारे अलग अलग देवी देवता के अलग शेप व डिज़ाइन के मुकुट होते हैं ?”

ओ --- त्तेरे की,भगवानों के सामने माथा टेका है लेकिन आज तक कभी इनके मुकुट पर ध्यान ही नहीं गया। मुकुट मतलब मुकुट --इतना कौन ध्यान दे ?किमी तेरी इज़्ज़त का सवाल है --वह भी महत्वपूर्ण कस्टमर के सामने--- उसने सोचा. उसने गंभीर मुँह बनाकर कहा,”जी,बिलकुल पता है,भगवान अपने आईडेन्टिटी के लिए अलग मुकुट पहनते हैं। “

“हा ---हा ---हा—वह पहनते हैं या इंसानों ने अपने मन से ये डिज़ाइन बनाकर उन्हें आइडेंटिटी दी है ?”

“जी आप सही कह रहे हैं। “ मुकुट की डिज़ाइन के मामले में ब्लैंक --सुन्न दिमाग़ से बस सिर हिलाकर ‘जी’,’जी’किये जा रही थी. मन ही मन प्रार्थना करती जा रही थी-----हे गूगल बाबा ! आपका ही सहारा है।

“हूँ --तो हमें अपने घर के देवताओं की मूर्तियों के लिए मुकुट बनवाने हैं। “

“प्लीज़ !आप देवताओं के नाम व मुकुट के साइज़ बताएं। “

“हूँ ---लिखो लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती,महाकाली,राम,कृष्ण,हनुमान,विष्णु व ब्रह्मा। “

वह इनके नाम नोट करती जा रही थी।

“मुकुट की शेप तो वही रहेगी। मैंने तुम्हारी ताऱीफ सुनी है इसलिए मुझे मुकुटों के बीच की जालीदार डिज़ाइन तुमसे बनवानी है। इनके बीच में जितने डायमंड्स,रूबीज़,सेफ़ायर व एमरेल्ड लग सकें उतना अच्छा। “

किमी में इतनी अक्ल तो थी कि नौ मुकुट का ऑर्डर देनेवाले से बजट न पूछे “सर !क्या मुझे साइज़ देने की कृपा करेंगे ?”

उन्होंने अपने रेशमी कुर्ते की जेब में हाथ डाला एक लिफ़ाफ़ा उसकी तरफ़ बढ़ा दिया,”इसमें देवताओं के नाम व साइज़ हैं इनकी डिज़ाइन एडजेस्टेबल रखना जिससे कुछ नाप आगे पीछे हो तो ये मुकुट देवताओं को पहनाये जा सकें। इस लिफ़ाफ़े में मेरा विज़िटिंग कार्ड है। ज़रुरत पड़े तो डिज़ाइन के बारे में फ़ोन कर सकती हो। डिज़ाइन बन जायें तो मुझे मेल करके दिखा ज़रूर देना। “

“ श्योर सर !आपके लिए क्या मँगवाऊं ?कॉफ़ी,चाय या कोल्ड ड्रिंक ?”

“नथिंग,मैं वर्मा के चेंबर में इनके दाम की बात करने जा रहा हूँ,वहीं कुछ ले लूंगा। “

“थैंक यू सर !”वह खड़े हुए तो वह भी शिष्टाचारवश खड़ी हो गई। वह हल्का सा सिर हिलाते उसके बॉस के चेंबर तरफ़ बढ़ गए।

किमी को लगा उसके आस पास,उनकी रईसी का बोझ फैला हुआ था,जिसमें वह बेपनाह दबी जा रही थी,वह झटके से हट गया। उसने एक राहत की गहरी सांस ली। बोतल से पानी गिलास में डालकर गटागट पी गई। बोतल व गिलास को मेज़ के नीचे की शेल्फ़ में रखते हुए उसकी नज़र फ़र्श पर पड़े एक कागज़ पर पड़ी।ज़रूर ये रघुवंश सर की जेब से गिरा होगा। उसने उसे वर्मा जी के चैम्बर में बैठे रघुवंश सर को देने के लिए फ़र्श से उठा लिया। हाथ में लेकर पता लगा कि ये शहर के फ़ेमस ज्वैलर्स का लम्बा चौड़ा कोई बिल है--- लेकिन ये क्या ?--इस पर देवताओं की लिस्ट लिखी हुई है -लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती,महाकाली,राम,कृष्ण,हनुमान,विष्णु व ब्रह्मा। उसे हल्का गश आ गया ---वह भी ठोस सोने की बनी। उसकी नज़र जब बिल पर लिखे एक अंक के आगे लगी ज़ीरो की संख्या पर गई तो उन्हें गिनते गिनते उसे लगा कि वह कहीं यहीं बेहोश होकर न गिर पड़े।

 

------------- एक बरस बाद उसे किमी के बारे में ये समाचार मिला है कि ज़मीनी सच्चाइयों से टकराकर उसके सिर से ज्वैलरी डिज़ाइनिंग के ऑब्सेशन का भूत उतर चुका है,वह ऑस्ट्रेलिया एम बी ए करने उड़ गई है।

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

सी ६--१५१,ऑर्किड हारमनी,

एपलवुड्स टाउनशिप

एस.पी. रिंग रोड,शैला

शान्तिपुरा सर्कल के निकट,

अहमदाबाद -३८००५८ [ गुजरात ]

Mo. N. -09925534694

ई -मेल --Kneeli@rediffmail.com