भाग - 6
"नीतू दीदी, आज खाने में क्या बना रहीं हैं?" कुकर की सीटी की आवाज सुनकर वैभव ने हॉल में आकर नीतू को गायब देख आवाज़ लगाकर पूछा। पूरा किचन भाप से भरा हुआ था वैभव ने रसोई घर में जाकर चिमनी की स्पीड बढ़ा दी। तब तक कुकर में एक और सीटी आ गई थी। कुकर की सीटी के शोर में वैभव की आवाज दब सी गई, नीतू ने उसकी आवाज तो सुनी पर बात ठीक से समझ नहीं आई। अवंतिका का कमरा साफ करती हुई नीतू दौड़कर आ खड़ी हुई।
"जी भैया? कुछ कह रहे हैं क्या!" नीतू ने बाहर आकर दुबारा पूछा।
"लंच में क्या बना रही हो?"
"आंटी ने छोले बनाने को कहा था। आपको पसंद हैं ना! रात को ही भिगो दिए थे। अभी उबालने रखें हैं।" नीतू ने बताया।
"आप तैयारी करके रखना, छोले आज मैं बनाता हूं।" वैभव ने कहा तो नीतू ने सिर हिला कर हामी तो भर दी पर उसकी निगाह से साफ जाहिर था कि उसे यकीन नहीं आ रहा है कि वैभव छोले बना लेगा।
अवंतिका ने लंच पर घर जाने का वादा किया था, वैभव से, जिसे वह हर हालत में निभाना चाहती थी। पर ऑफिस का काम था कि सिरे लगने में ही नहीं आ रहा था। हमेशा शांत रहने वाली अवंतिका को आज बार बार गुस्सा आ रहा था। अपने जिन कलीग्स को प्यार से सिखाने बताने के लिए उसकी आस पास की ब्रांच में भी चर्चा होती थी, आज तो जैसे उन सब की शामत आ गई थी।
"आप तो कितने सीनियर हैं उप्रेती जी!आप से ऐसी सिली मिस्टेक की उम्मीद नहीं थी मुझे। आपसे नहीं हो रहा है तो लाइए मुझे दीजिए बैलेंस शीट मैं खुद ही चेक कर लेती हूं।"
अवंतिका ने झुंझलाहट भरे स्वर में बड़े बाबू लताड़ा।
"सॉरी मैडम, मैं अभी ठीक कर लाता हूं।" उप्रेती जी अपनी गलती से बेहद शर्मिंदा थे। फटाफट अपनी सीट पर बैठ कर करेक्शन करने में जुट गए।
अवंतिका खुद भी सारी कैलकुलेशन चैक करती जा रही थी तभी इतनी मोटी कमी पकड़ सकी।
उप्रेती जी की डांट पड़ने से बाकी सब भी लाइन पर आ गए थे। बिना इधर-उधर की बात किये सिर झुकाए अपने अपने कामों लगे रहे। जिसका लाभ यह हुआ शाम छह बजे तक चलने वाला काम लंच तक तो नहीं पर लंच टाइम के घंटे भर बाद निपट चुका था। अवंतिका ने घड़ी पर नज़र डाली साढ़े तीन बज चुके थे। अपना बैग उठाकर बड़े बाबू को सामान्य निर्देश देखकर अवंतिका घर की ओर निकल पड़ी।
"देखा भैया, ऐसे ही करती हैं आंटी मेरे साथ!" घर पर अवंतिका का इंतजार करते वैभव से नीतू ने फिर मौका देख अवंतिका की शिकायत जड़ दी।
"हां हां, भैया के साथ ही भेज दूंगी अबकी बार तुझे, मेरी पीठ पीछे मेरे बेटे को भड़काती रहती है आज कल तू!" घर में प्रवेश करते हुए अवंतिका ने नीतू की बात के अंश सुन लिए थे। नीतू की शिकायत और अवंतिका की डांट दोनों पर ही वैभव मुस्कुराकर रह गया।
"सॉरी बेटा, थोड़ी लेट हो गई।" अवंतिका को बहुत बुरा लग रहा था अपने बच्चे से यूं इंतज़ार करवाना। वह भी तब जब उसने खुद उसे ज़िद करके रोका है।
"दीदी फटाफट भटूरे बनाइए, बहुत जोर की भूख लगी है, मम्मा आप भी झटपट चेंज कर लो आपके रूम में ही लंच करेंगे।" वैभव ने अवंतिका को नॉर्मल करने के लिए बेवजह ही शोर मचा दिया।
"आंटी पहले चाय चाय पियेंगी?"
नीतू ने पूछा तो अवंतिका से था पर शायद वह वाशरूम में होने की वजह से सुन नहीं पाई। वैभव अपनी मां को अच्छी तरह जानता था,अगर उन्होंने अभी चाय पी तो उनकी भूख मर जाएगी और वे खाना नहीं खा सकेंगी।
"नहीं दीदी! क्या यार, चाय का याद मत दिलाओ मम्मा को नहीं तो एक घंटे के लिए खाना और टल जाएगा!" वैभव ने हल्की झल्लाहट के साथ बोला तो नीतू सहम सी गई।
उसका चेहरा देख, वैभव ने बच्चों की तरह रोनी सूरत बनाकर कहा, "अब तो खाना दे दो!”
उसकी शरारत से खुश होकर नीतू खाना लगाने के लिए तेज़ी से किचन की ओर दौड़ गई। वैभव के बनाए छोले हिट रहे, हिट क्या सुपर हिट थे, और नीतू के करारे भटूरों ने उसमें चार चांद लगा दिए थे।
"मम्मा, अब तो फ्री हो ना?" वैभव ने अवंतिका के बैड पर पूरी तरह से अड्डा जमाते हुए पूछा।
"हां,एकदम फ्री हूं अब तो। कल कहीं घूमने चलें, यहां आस पास बहुत खूबसूरत मंदिर हैं और ग़ज़ब के सीन्स भी दिखते हैं।" अवंतिका ने वैभव की खुशी में इज़ाफा करने के लिए कहा।
"यहां तो हर मोड़ पर एक मंदिर है मां, और नेचुरल ब्यूटी तो! यहां छत से हिमालय दिखता है और आपके बैंक से तो नेपाल के गांवों में लोगों के घर दिखाई देते हैं। अब क्या उनकी रसोई में भी झांकना है?"अपने पूरे दांत दिखाकर वैभव ने शरारती अंदाज़ से मां को छेड़ा।
अवंतिका ने बुरा सा मुंह बनाकर वैभव की तरफ देखा," हां हां, सही है, तू तो लखनऊ वाला हो गया भई, अब तुझे मेरा पहाड़ कहां जमेगा। तुम तो मॉल शॉल वाले लोग हो।" अवंतिका ने वैभव को घूरते हुए कहा और ‘हुंह’ की आवाज के साथ वैभव की कोहनी के नीचे दबा तकिया खींच लिया।
वैभव को मां को चिढ़ाकर बड़ा मजा आया। "बड़ा सोचा करो, डार्लिंग बड़ा! मैने मूवी सेलेक्ट की हैं जो आपके साथ देखनी हैं।" वैभव ने कहा तो अवंतिका ने गर्दन घुमाकर कर उसकी ओर देखा पर पलटी नहीं उसकी ओर पीठ किए हुए ही बैठे बैठे बोली "इंग्लिश होगी!"
"एक इंग्लिश है, दो हिंदी है और इंग्लिश वाली भी हिंदी में डब की हुई है।" वैभव भी आराम से लेटे हुए बोलता रहा। उसे पता था मां अच्छी तरह जानती है उसने जो फिल्में चुनी होंगी वे उसके टेस्ट की ही होंगी।
"कौन सी देखें पहले?" अपना तकिया लेकर अवंतिका वैभव के बगल में आकर लेट गई और किसी बच्चे की तरह उत्साहित होकर पूछा। उसकी इस हरकत पर वैभव को बहुत मज़ा आया। दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
उधर किचन में काम करती नीतू घर में गूंजती खिलखिलाहटों को सुनकर मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं। अवंतिका के अकेलेपन को नीतू ने बहुत करीब से देखा था। पिछली बार जब वैभव से मिलकर लौटी थीं तो वापस आने के बाद जब वैभव से फ़ोन पर बात पर करती उसके बाद बहुत देर तक रोती रहती थी। खाना तक ठीक से नहीं खाती थी। कई हफ़्ते लग गए थे उन्हें नॉर्मल होने में। जहां उनकी खुशी देखकर वह खुश होती वहीं वैभव के जाने की बात सोचकर नीतू को बहुत घबराहट हो रही थी।
"नीतू, नीतू!" अवंतिका ने बिस्तर में बैठे हुए पुकारा तो नीतू का ध्यान टूटा।
"जी आंटी?" भीगे हाथ पोंछती हुई नीतू आ खड़ी हुई।
"क्या कर रही है? आजा पिक्चर देख ले हमारे साथ, पता नहीं क्या करती रहती है हर समय।" अवंतिका ने लाड़भरी डांट लगाई तो नीतू मुस्कुराती हुई अपने लिए छोटी सी चौकी लेकर आ गई और दरवाज़े के पास बैठ गई।
अरसे बाद ऐसा वीक एंड बिताया था अवंतिका ने। वैभव वापस चला गया था। साथ ही समेट कर ले गया था सारी रौनक भी। अब नीतू से खाने को लेकर तकरार नहीं होती थी। खाना क्या किसी भी बात पर नहीं होती थी।नीतू जो भी कहती, बिना किसी नानुकुर अवन्तिका चुपचाप मान लेती। जब नीतू ने जो भी बना दिया चुपचाप अवंतिका ने खा लिया। नीतू अवंतिका की उदासी समझ रही थी, पर पिछली बार की तरह टूटी नहीं थी अवंतिका, नीतू के खुश होने के लिए यही क्या कम था। ऑफिस से घर, घर से ऑफिस,अवंतिका का ख़ाली समय या तो वैभव से कॉल पर या अपने लैपटॉप में गुजरने लगा था। अब वह नीतू से भी ज्यादा बात नहीं करती थी। अवन्तिका पहले की तरह वापस अपने खोल में समां गई थी। नीतू अपना खाली समय घर के कामों में लगाती उसके बाद भी अगर फुर्सत मिलती तो अवंतिका की अनुपस्थिति में टीवी देखती। ज़िंदगी फिर से उसी ढर्रे पर आ गई थी अवंतिका और नीतू की।