वैजयंती को श्वेत वस्त्रों में उदास देखकर सौरभ धीरे धीरे उसकी ओर खिंचता जा रहा था। वह चाहता था कि वह वैजयंती की सूनी मांग को एक बार फिर सिंदूरी कर दे। वैजयंती उसकी इस चाहत को पहचान गई थी इसलिए वह उसके सामने कम ही आती थी। एक दिन जब सौरभ उनके घर आया तब क्या हुआ पढ़िए आगे: -
सौरभ अंदर आकर सोफे पर बैठ गया। वैजयंती ने पानी लाकर उसे दिया और जाने लगी।
तब सौरभ ने कहा, "वैजयंती जी एक कप चाय भी मिल जाती तो अच्छा रहता। घर पर कौन बनाएगा? कोई बनाने वाली भी तो नहीं है।"
"ठीक है,” कहकर वैजयंती चाय बनाने रसोई घर में गई।
पीछे से सौरभ भी किचन में आ गया और आवाज़ लगाई, "वैजयंती जी …"
वैजयंती चौंक गई और उसने कहा, " यह क्या कर रहे हैं आप? आप यहाँ क्यों आए हैं?"
सौरभ ने कहा, " वैजयंती डरो नहीं …!"
वैजयंती डर के कारण काँप रही थी।
सौरभ ने फिर से कहा, " वैजयंती तुम डरो नहीं, मैं सिर्फ़ तुमसे बात करना चाहता हूँ।"
"सबसे पहले आप रसोई से बाहर जाओ। क्या किसी विधवा के साथ इस तरह का व्यवहार करना आपको ठीक लगता है?"
“ठीक है मैं बाहर जाकर बैठता हूँ । तुम केवल शांति के साथ एक बार मेरी बात तो सुन लो ।”
वैजयंती ने कहा, "जो भी बात करना है पापा जी और माँ के आने के बाद कर लेना। अभी तो आप जाओ।"
"नहीं वैजयंती मैं जो कहने आया हूँ, वह कहे बिना नहीं जाऊँगा। तुम्हें वह तो सुनना ही पड़ेगा ।"
"कोई ज़बरदस्ती है क्या, मुझे कुछ नहीं सुनना।"
"देखो वैजयंती मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। हम लगभग एक ही उम्र के हैं। तुम्हें सहारा मिल जाएगा और मुझे पत्नी। मैं तुम्हें बहुत प्यार से रखूँगा।"
"चले जाओ यहाँ से सौरभ, यह सब कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?"
"तुम्हें इस तरह देखकर ही हिम्मत हुई है वैजयंती। सब अपनी-अपनी दुनिया में रम गए हैं। मैं तो यहाँ अक्सर आता हूँ और देखता हूँ तुम ही तो अकेली रह गई हो। अंकल आंटी साथ में अपना समय व्यतीत कर लेते हैं। देखो ना अभी भी तो घूमने गए हैं। नवीन और वैशाली … "
"आप चुप हो जाइए प्लीज़। नवीन और वैशाली तो जियँगे ना अपनी ज़िंदगी। आप उन पर नज़र मत लगाइए।"
“मैं सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा हूँ वैजयंती कि अभी तो बहुत लंबा जीवन है कैसे निकालोगी ।"
"निकाल लूँगी अभि की यादों के सहारे, आप जाइए बस।"
"वैजयंती यह कभी मत समझना कि मैं तुम्हारी मजबूरी का कोई फायदा उठाना चाहता हूँ। मैंने यहाँ ऐसा कुछ सोच कर आना जाना शुरू नहीं किया है। बस मुझे ऐसा लगा कि मैं यह क्यों नहीं कर सकता। अभि मेरा सबसे प्यारा दोस्त था। मेरे ऐसा करने से उसकी आत्मा ज़रूर खुश होगी कि मैंने अपने दोस्त की ज़िम्मेदारी उठाई है। वैजयंती तुम तो जानती हो मुझसे विवाह करने के लिए अभी भी चार-पाँच लड़कियाँ तैयार हैं। सुंदर हैं, पढ़ी-लिखी हैं किंतु मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ।"
"प्लीज़ सौरभ आप जाइए यहाँ से।"
"ठीक है मैं जाता हूँ लेकिन मेरी बातों पर ग़ौर ज़रूर करना।"
उसके जाते ही वैजयंती ने ठंडी साँस ली और जल्दी से जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। यह जानते हुए भी कि सौरभ बहुत अच्छा इंसान है, आज वैजयंती बहुत डर गई थी। वह सोच रही थी कि क्या करूँ? माँ को बता कर उसका आना-जाना बंद करवा दूँ? हाँ यही ठीक रहेगा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः