अध्याय 17
पूरे घर के अंदर खाकी वर्दी। अपार जनसमूह। सुबह 7:00 बजे।
एस.पी., से पूछ रहे थे। "पोस्टमार्टम रिपोर्ट कब मिलेगा?"
"एक घंटे में मिल जाएगा सर।"
"सुंदरेसन, रंजीता पिस्तौल से मारे गए हैं इसमें कोई संदेह नहीं है ना....?
"नहीं सर...."
"दोनों लोगों की कितने समय के अंतराल में हत्या हुई है ?"
"सुंदरेसन 11:00 बजे रंजीता 12:00 बजे के ऊपर ही मारा गया है...."
"रंजीता के छोटे भाई को बुलाइए...."
डी.एस.पी. सड़क से जाकर पॉलीटिको के खंबे को पकड़कर कहीं देखते हुए खड़े दामू के कंधे को हिला कर लेकर आए। उस एक रात के अंदर दामू, गले हुए कपड़े जैसे हो गया।
एस.पी. ने अपने सामने आकर खड़े हुए दामू को देखा ।
"आपने जो स्टेटमेंट दिया... उस स्टेटमेंट को पढ़कर देखा। सुरभि के किडनैपिंग में, अनाथाश्रम में लाख-लाख रुपए देने पुलिस के नॉलेज में नहीं आने देना ब्लेंडर मिस्टेक है..... पुलिस ! हम किसलिए हैं...? यूनिफॉर्म पहनकर जीप में आने-जाने के लिए है क्या?"
दामू फटे आवाज में बीच में बोला।
"सर....! मैंने अपनी सिस्टर को और जीजा जी को बहुत बोला । वे नहीं माने। सुरभि हमें जिंदा चाहिए यह बात पुलिस में नहीं जानी चाहिए उन्होंने बोल दिया।"
वे बुरी तरह चिल्लाने लगे । "परिवार में सभी लोग पढ़े लिखे हो.... फिर क्यों बेवकूफ भरे काम करते हो... किडनैप हुआ वह कौन है? फिल्म में एक बड़ी फेमस सिंगर है। यह कोई लापरवाही करने की बात है? किडनैप करने वाला दस लाख मांगे.... तो तुरंत सूटकेस में भरकर लेकर चले जाओगे...? किडनैप करने वाले सभी लोग साधारणतया यही कहते हैं 'पुलिस को खबर मत करना करोगे तो आदमी को खत्म कर देंगे' यह तो कहते ही हैं। ऐसे कुछ भी बोले तो उसे वेद वाक्य समझना चाहिए क्या? किडनैपिंग के आदमी को पता ना लगे ऐसा रहस्यत्मक ढंग से पुलिस को बताने के कई रास्ते हैं.... उसको छोड़ कर उस किडनैपर की बात को सुनकर... अभी दो जनों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा...?"
उनके बात करते समय ही एक कार आकर रुकी। कार से उतरने वाले आदमी को देखकर एस.पी. ने दामू से पूछा ।
"आ रहे हैं वह कौन हैं ?"
"सिनेमा प्रोड्यूसर कनकू सर.... इनकी पिक्चर के रिकॉर्डिंग के लिए ही सुरभि गई थी.... सर अभी नहीं आई इस कारण घर पर आकर इन्होंने तमाशा खड़ा किया।"
कनकू फिक्र भरे चेहरे से एस.पी. की ओर गए। उनके पीछे एक और आदमी भी था।
"सर.... मेरा नाम कनकू है। सिनेमा इंडस्ट्री में मैं एक प्रड्यूसर हूं.... सुंदरेसन की हत्या हुई इस संबंध में आपसे कुछ बातें बताने आया हूं...."
एस .पी. उसकी ओर मुडे।
"क्या कहना हैं...?"
"कल सुबह रिकॉर्डिंग थिएटर में आकर ब्लड डोनेट करना है ऐसा कहकर सुरभि वापस गई फिर वापस नहीं आई। घर पर फोन करके पूछा सुरभि की तबीयत ठीक नहीं है बोला.... रिकॉर्डिंग थिएटर में अच्छी भली स्वस्थ्य आई थी उसको अचानक क्या हो जाएगा। मुझे संदेह हुआ। एक घंटे के अंदर रिकॉर्डिंग थिएटर में भेज देंगे बोल कर पर भेजा नहीं। मुझे संदेह हुआ। मैंने फिल्म चेंबर में एक शिकायत लिख कर भेजी। चेंबर प्रेसिडेंट ने जब इनसे पूछा तो इन्होंने कहा सुरभि की तबीयत ठीक नहीं है । मैं इससे संतुष्ट नहीं हुआ। सुरभि को कुछ हो गया है। उसे मालूम करना है सोच कर मैंने एक योजना बनाई। मेरे एक आदमी को सुरभि के घर पर निगरानी के लिए छोड़ा। मैंने कहा “सुरभि के माता-पिता में से कोई भी बाहर जाए तो तुम कार से उनका पीछा करना । वे कहां जा रहे हैं क्या कर रहे हैं ध्यान देकर मुझे बताओ।” कल रात को 10:30 बजे के करीब सुंदरेसन एक सूटकेस को कार में रखकर रवाना हुए। मेरे आदमी ने बाइक पर उनको फॉलो किया। धर्मानी फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया वेयर हाउस जाते ही सुंदरेसन वहां एक बड़े सीमेंट के पाइप में सूटकेस को रखा। वापस आते समय कोई उनका पीछा करते हुए उन्हें मार दिया.... इस सबको थोड़ी दूर पर खड़े देखते रहने वाले मेरे आदमी को आघात लगा।"
एस .पी. बीच में बोले।
"सुंदरेसन को फॉलो करने वाले, तुम्हारे आदमी का नाम क्या है ?"
"यह आदमी है सर ।"
अपने पास खड़े आदमी की ओर कनकू ने इशारा करके दिखाया । एस. पी. उस आदमी की तरफ मुड़े।
"आपका नाम ?"
"लोकनाथन... सर"
"सुंदरेसन को गोली मारने वाले को आपने देखा ?"
"देखा सर। परंतु, आदमी कौन है पता नहीं चला। सुंदरेसन के नीचे गिरते ही सूटकेस को लेकर एक आदमी तेजी से भाग रहा था वही देखा और उस पार खड़ी एक ट्रक पर वह चढ़कर जाते हुए भी मैंने देखा।"
एस. पी. गुस्से से बोले।
"यह सब बातें कल रात को ही क्यों नहीं बताया ?"
"सर! सुरभि के फादर-मदर पर निगरानी रखने के लिए बोलने वाले मेरे मालिक कनकू सर थे। जो हुआ वह एक हत्या थी। कनकू सर के आदेश के बगैर मैं कैसे पुलिस में जा सकता हूं? फिर भी जो हुआ उसे बताने के लिए मैं कनकू सर के घर गया...."
कनकू बीच में बोले "लोकनाथन मेरे घर जब आया मैं अपने होश में नहीं था। शराब ज्यादा पीकर मैं सो रहा था। बात को बताने आए लोकनाथन मेरी हालत को देख कर वहाँ से चला गया। सुबह 6:30 बजे मेरे पास आकर जैसे ही बोला... मैं दौड़कर यहाँ आया।
"हत्यारे को ट्रक में चढ़कर जाते हुए आपने देखा ?"
"हां..."
"वह किस तरह का ट्रक था....?"
"अंधेरे में वह एक ट्रक दिखाई दिया... बस इतना ही सर।"
"ट्रक का पीछा करते...?
"डर लगा साहब।"
एस.पी., डी. एस.पी. की तरफ मुड़े। "वह कौन सा ट्रक था उसे जल्दी से ट्रेस करना पड़ेगा।"
"यस... सर..."