अध्याय 10
विवेक ड्रेसिंग रूम में था.... विष्णु बैठक में सोफे में बैठा हुआ था..... ओलंपिक सोनी के मेडल के लिए चीन की वीरांगना है और जापान की वीरांगनाए टकरा रही थी उसे वह टीवी में देख रहा था।
रूपल पास में आकर खडी हुई। हाथ में एक पुस्तक था
"विष्णु !"
टीवी देखना छोड़ कर मुड़ा।
"बोलिए मैडम !"
"तुम्हारे बॉस कमरे में से बाहर आने के पहले तुमसे छोटे-छोटे 4 प्रश्न पूछती हूं। तुम जो चार प्रश्नों के उत्तर दोगे उसको रखकर..... तुम्हारे कैरेक्टर किस तरह का है कह सकते हैं। इस पुस्तक में ऐसा लिखा है।"
"अरे! मैं किस तरह का हूं इसे जानने के लिए इतना सरल तरीका है क्या? पूछिए मैडम..…उन चारों प्रश्नों को....."
"एक कंडीशन है !"
"वह क्या ?"
"मेरी प्रश्न पूछते हैं तुम एक सेकंड भी सोचोगे नहीं। तुरंत एकदम जवाब देना पड़ेगा।"
"ओके....!"
"पहला प्रश्न ! एक सुंदर लड़की को देखने पर तुम्हें क्या लगेगा?"
"ऐसी एक सुंदर बहन मेरे लिए नहीं है ऐसे सोचूंगा।"
"अरे....!"
"यह सच है मैडम....! उत्तर देने के लिए मैंने एक क्षण भी नहीं सोचा। मेरे मन के अंदर जिस तरह के विचार हैं.... वही पहले बाहर निकलता है। आपका दूसरा प्रश्न क्या है?"
"एक ही कपड़ा हो.... उसे साफ धोकर पहनो। वह सूखें तब तक क्या पहनोगे ?"
"एक दूसरा फटा कपड़ा भी रखना पड़ेगा !"
रूपल उसे घूरी। तीसरा प्रश्न पूछी।
"इस संसार में तुरंत ना मिलने वाला क्या है ?"
"कर्ज़ !"
"थिरुक्कुरल में तुम्हें कौन सी आवाज पसंद है ?"
"कौन से दूध ?"
रूपल.... उसके हाथ में रखे हुए किताब को गोल करके.... उसे हथियार बना विष्णु के सिर पर मारी।
"विवेक हंसते हुए कमरे से बाहर आया।" रूबी! तुम 400 प्रश्न पूछो ठीक..... विष्णु के पास से ठीक- सही जवाब नहीं आएगा। तुम्हें इस जहरीले परीक्षा की क्या जरूरत है?"
"क्या बस आप भी ? यू.... नौ.. बॉस? मेरे और हनुमान जी के सिर्फ एक ही फर्क है। वे अपने मन में क्या है दिखाने के लिए अपने छाती को दो भागों में बांट देते हैं..... परंतु... मुझसे यह नहीं हो सकता.... बॉस....!"
"ठीक है... ठीक है... तुम फील मत करो रूबी..... मेरे लिए और विष्णु के लिए गरम गरम भजिए बनाकर लाओ.... हमें खाकर बाहर जाना है...."
"अभी आपने बोला ना... ऐसे आश्वासन वाले शब्दों की ही मुझे जरूरत है !"
रूपल किचन की तरफ जाने..... और विवेक विष्णु के सामने आकर बैठा।
"ठीक! मैंने जो काम दिया उसका क्या हुआ?"
"एक थैली भरकर..... सॉरी बॉस-हाथ भर कर सूचनाएं लेकर आया हूं। आपके काम का है तो देख लीजिएगा..... बॉस!"
"बोलो...."
"वामन अपार्टमेंट बिल्डिंग प्रोपराइटर नंबरदार अभी एक वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं। उन्हें पैरालाइसिस अटैक हुआ है और वे मरणासन्न बिस्तर पर पड़े हैं। ठीक समय पर यदि उन्हें ट्रीटमेंट नहीं मिलने के कारण बात नहीं कर पा रहे.... हाथ भी काम नहीं करता। वामन अपार्टमेंट के बारे में कुछ सुनने से रोने लगते हैं...."
"उनका परिवार ?"
"पत्नी नागम्मा ! एक ही लड़का राजेंद्र। दोनों अभी जिंदा नहीं हैं।"
"क्यों... क्या ?"
नंबरदार की तबीयत खराब होते ही पैरालिसिस अटैक आते ही.... दोनों पत्नी और बेटे को गहरा आघात लगा देश सदमे में आ गए। पत्नी हार्ट अटैक पेशेंट होने से अटैक पड़ने से वे मर गई। बेटे का एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। नंबरदार को संभालने वाला कोई ना होने के कारण रिश्तेदारों ने उन्हें वृद्धा आश्रम भर्ती करा दिया....."
"यह सब तुम्हें किसने बताया ?"
"वह वृद्ध आश्रम चलाने वाले डेविड माइकल नामक एक व्यक्ति ने इंचंबाकम एरिया के लोगों ने।"
"ठीक.....! वामन अपार्टमेंट इमारत को बिना बनाए अधूरे में छोड़ने का क्या कारण था?"
"इमारत की बुनियादी बनावट ठीक ना होने के कारण उसका बेसमेंट दो फीट नीचे उतर गया.... बॉस ! उसके बाद उस इमारत को नहीं बनाना चाहिए नगरपालिका की तरफ से पत्र मिल गया। अपार्टमेंट को लेने के लिए एडवांस देने वाले.... उस रुपए को वापस लेने के लिए उन्होंने कोर्ट में केस किया हुआ है.... ऐसे बहुत कुछ माइनस पॉइंट हैं!"
"और कुछ समाचार ?"
"इतना ही है बॉस ! जो कुछ बर्तन में था सब कुछ बाहर निकाल कर मैंने डाल दिया। अब कुछ स्टॉक नहीं है!"
विवेक के मुस्कुराते हुए...... विष्णु ने पूछा "क्या है बॉस आपके अधरों में मोनालिका स्माइल?"
"तुमने जो समाचार दिए हैं उसमें से एक मुख्य समाचार मिसिंग है....."
"कौनसा ! मिसिंग? नहीं हो सकता बॉस.....! 8 घंटे धूप में घूम कर कई लोगों से मिलकर उनके मुंह से निकलवा कर लाने के बाद का समाचार......"
"ऐसा है तो...... तुमने इंक्वायरी करें उन लोगों को उस विषय के बारे में पता नहीं होगा।"
"कौन सा विषय बॉस ?"
"वहां-उस अपार्टमेंट में सातवीं मंजिल पर से 2 साल पहले......"
"2 साल पहले....?"
"2 साल पहले हुए मैटर....."
विष्णु ही आंखों में एक आश्चर्य।
"क्या मर्डर ?"
"हां.... मर्डर! कालड ब्लंट मर्डर!"
"हमेशा की तरह मुझे क्लीन बोल्ड करके एक एक सिक्सर लगा दिया आप मैन ऑफ द मैच बन गए...... बॉस..... आपकी लेवल तक आने में 100 साल लग जाएंगे...."
"अर्थात अगला जन्म !"- रूपल भजिए बनाकर खुशबू के साथ प्लेटो में रखकर किचन से बाहर आई।
"मुझे डांटो मैडम..... खूब डांटो मैडम!"
"पहले भजिए खाओ.....!"
"नहीं चाहिए मैडम..... पहले कर्तव्य। फिर पकोड़े!..... आप बताइए...... अधूरे बने उस अपार्टमेंट में सातवीं मंजिल से एक आत्महत्या किसने किया? आदमी? औरत?"
"जाकर उस फाइल को लेकर आ...."
"कौन सा फाइल बॉस ?"
"टी.वी. के ऊपर एक पुरानी फाइल दिखाई दे रहा है ना वही!"
"देखिए बॉस इतना बड़ा अन्याय ! पिछले आधे घंटे से इसी सोफे में मैं बैठा हुआ टीवी देख रहा था। वह फाइल मेरे देखने में नहीं आई?"
रूपल हड़बड़ाई। "कैसे देखोगे ? चीनी वीरांगना है और जापान की वीरांगना है का दृश्य था...... उस फाइल से ज्यादा तुम्हारे लिए जरूरी था?"
"अच्छा पूछा मैडम आपने एक प्रश्न ! इस गलती के लिए मैं अपने आपको पनिश करता हूं यह मेरे लिए आश्वासन दे रहा है....."
"तुम अपने आप को क्या पनिशमेंट दोगे वह मुझे पता है !"
"बताओ तो देखें !"
"हमेशा 10 भजिए खाते हो ! आज उसमें एक कम करके 9 खा लोगे वही पनिशमेंट ?"
"ठीक बोल दिया मैडम.....! ऐसा हम जो गलती करें हैं उसके लिए अपने आप ही दंड ले लें ऐसा एक स्वयं की जागृति सब में आना चाहिए मैडम!"
रूपल विष्णु को घूर रही थी.... उसी समय लैंड लाइन टेलीफोन जो हाल में रखा था बजा।
रूपल दौड़कर जाकर रिसीवर को उठा लिया। "हेलो......!"
दूसरी तरफ से आवाज को सुनते ही... रूपल का चेहरा बदल गया। उसे घबराहट होने लगी।