अध्याय 3
सातवीं मंजिल के छत के किनारे खड़े होकर नीचे देख रहा था गोकुलम।
नीचे बहुत से पत्थर दिखाई दे रहे थे। सर के बल गिरे तो बस..... तुरंत मृत्यु।
सूर्य की लालिमा अब 50% दिखने लगा.... समुद्र के लहरों में लालिमा चिपक गई।
'नीचे कूद जाना ही चाहिए'-इरादा कर जैसे पैर उठाया उसी क्षण-
उसी क्षण उसके शर्ट में से मोबाइल का रिंगटोन बजा। पॉकेट में से धीरे से निकाला।
डिस्प्ले में एक नया नंबर।
'यह कौन?'
गोकुलम सोच कर सेल फोन को कान में लगाया।
"हेलो!"
दूसरी तरफ से एक आदमी की आवाज घबराहट के साथ सुनाई दी।
"यह देखो ! थोड़ी देर पहले पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर आत्महत्या कर रहा हूं बोलने वाला तुम ही थे ना?"
"हां.... मैं हूं !"
"मैं पुलिस सुप्रिडेंट बात कर रहा हूं। तुम्हारी कोई भी समस्या हो तो ठीक.... बात करके हल निकाल लेंगे। आत्महत्या करने के कोशिश मत करना। अब तुम कहां हो.....?"
"मरने के किनारे पर खड़ा हूं। सिर्फ एक कदम उठाने की देर है। फिर मेरा खून और मांस इकट्ठा करना पड़ेगा....."
"नहीं! प्रेम में हार, जीवन में कोई बड़ा विषय नहीं है। तुमने किसी भी लड़की से प्यार किया हो तो ठीक.... उसी से तुम्हारी शादी कर देंगे।"
"क्या! मैंने जिस से प्रेम किया उसी लड़की से मेरी शादी करवाएंगे ? अब वह काम नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"आज उसकी शादी है। मुहूर्त 9:00 बजे से 9:30 के बीच में हैं।"
"वह लड़की कौन है ? बोलो....! एकदम से जाकर शादी रुकवा देते हैं।'
"नहीं। उस शादी को होने दो। उसकी शादी जब पक्की हुई है उसी में होने दो। मेरा प्रेम मर गया। और थोड़ी देर में मैं भी मरने वाला हूं....!"
"कहना मानो ! बेकार जिद मत करो.... वह लड़की कौन है बताओ! कहां पर शादी हो रही है बताओ.... अब 1 घंटे के अंदर उस लड़की को तुमसे बात करवाते हैं।"
"वह मुझसे बात नहीं करेगी....!"
"पुलिस सब कुछ कर सकती है......"
"सॉरी साहब ! आप मेरी जान बचाने के लिए जो प्रयत्न किया उसके लिए धन्यवाद। मुझसे सेलफोन में बात करते हुए मैं जहां हूं उस एरिया को मालूम कर मुझे बचाने का सोचे तो वह हो नहीं सकता। क्योंकि.... मैं अब कूद गया!"
कूद गया।
सिर्फ 5 क्षण!
भूमि पर पड़ा।
सर फटा.... हाथ पैर टूटे.....
खून धूल में तड़पा फिर शांत हो गया।