Pukar in Hindi Short Stories by falguni doshi books and stories PDF | पुकार

Featured Books
Categories
Share

पुकार

पुकार - फाल्गुनी दोशी - 9 /04 /2022

धरती आज बहुत बेचैन थी | उसे तरह तरह की धीमी धीमी आवाज़े कानो में पड़ रही थी | उसने पुरे घर में घूम कर सब जगह देख लिया , कुछ समज नहीं आ रहा था | आवाज के बारे में आकाश, पापा और मां को भी अनेकोबार पूछ चुकी थी | यहाँ तक की रीना बाई और पड़ोसियों ने भी कोई पुष्टि नहीं की थी | सबने उसे अपन मन का वह वहम बताया | उसे इतना ही समज में आया की आवाजें रसोई और स्टोर रूम से ज्यादा आ रही थी | छोटे भाई आकाश ने तो हंसी उड़ाते हुए बोल भी दिया -- "दीदी, आजकल आप कुछ ज्यादा ही वेब सीरीज़ देख रहे हो ! यह सब उसीका नतीजा है ! "


धरती एक सुलझी हुई, मात्र पढाई में ही तेज नहीं, बल्कि पेंटिंग, ड्राइंग, आर्ट क्राफ्ट हर चीज मे अव्वल , चुलबुली और हसमुख लड़की है | हाल में ही बारवीं के इम्तिहान के बाद परिणाम का इंतज़ार कर रही है | साथ ही में क्या सब्जेक्ट ले कर अब आगे जाना है यही आज कल परिवार का आफ्टर डिनर बातचीत का मुद्दा है |

सौंफ चबाते हुए पापा बोले - "धरती, वैसे तुझे जो भी विषय का चुनाव करना हो - मरे जैसे इंजीनियर बनना है या फिर माँ की तरह डाक्टर, हम दोनों ही ख़ुशी से अनुमति देंगे , कोई दबाव नहीं है | पर हाँ एक बात जरूर कहना चाहूंगा - इंजीनियर दिमाग के पास हर बात का - हर प्रॉब्लम का सोल्यूशन होता है - तुमने देखा था न की थ्री इडियट्स में इंजीनयरस ने मिल कर एक बच्चे की डिलीवरी तक करवा दी थी |"

मां ने आइसक्रीम परोसते हुए कहा - " हाँ हाँ - इंजीनियर तो होते ही आलराउंडर है ! पर बेटा यह न भूलना कि डाक्टरी ही एक ऐसा पेशा है जिसमे कमाई, इज्जत और रुतबा तो है ही, साथ साथ कम्युनिटी कि सेवा करने का सुकून भी है | जब आप किसी कि जान बचाने में निमित्त बनते है वह तो एक अलग ही अनुभव होता है | हाँ - फिर भी में यही कहूँगी कि अंतिम निर्णय तुम्हारा ही हो | हम आज के ज़माने के पेरेंट्स हैं | "

धरती मन में सोच रही थी - "माँ और पापा तो अपनी ही बात रख रहे हैं, और सोच रहे है कि मुझे आजादी दे रहे हैं - अपना करियर तय करने की | पर दायरा तो उन्होंने ही तय कर रखा है - ये तो हुई न --- वाली बात |"
" मुझे थोड़ा सोचने के लिए समय दीजिए " - धरती ने ड्राइंग रूम में लगाई पेंटिंग को ठीक करते हुए कहा |
छोटा भाई आकाश भी अपनी समझदारी दिखाने चहक उठा - "पापा, दीदी आर्टिस्ट भी तो बन सकती है - देखो न अपना पूरा घर इन्होने अपनी पेंटिंग व आर्ट से सजाया है | "
पापा ने तुरंत ही उसे करेक्ट करते हुए बोले - "बेटा, करियर अलग चीज है ! आर्ट को तो अपने शौक तक ही सिमित रहने देना ! तुम अभी छोटे हो - बड़े होंगे तो अपने आप समझ जाओगे | "

आइसक्रीम और ईथर उधर कि बातें धरती का मन बहला नहीं सकी | वह यही सोचती रही कि अपने मन कि बात पेरेंट्स तक कैसे पहुंचाए कि वह डिजाइनिंग में ही आगे बढ़ना चाहती है - यही बातें सोचते सोचते कब उसकी आँख लग गई उसे पता नहीं चला |

सवेरे जब उठी तो काफी देर हो चुकी थी, मां और पापा अपने काम पर जा चुके थे | उसे कल वाली धीमी आवाज जरा ज्यादा क्लियर सुनाई दे रही थी | वह रसोई में बॉर्न्विटा पी रही थी ,
"अरे ! यह तो मैंने ढूंढा है, मैं इसे ले जाउंगी |"
" नहीं नहीं, पहले मेरी नजर पड़ी थी - मैं इसे ले जाउंगी |"
धरती ने अच्छे से देखा तो प्लेटफार्म पर गिरी शक्कर के दाने कि लिए दो चींटी लड़ रही थी , और बड़ी वाली शक्कर के दाने को खिंच कर ले जा रही थी |
" हे भगवन ! मुज पर दया करो, मेरी बिटिया दो दिन से मीठा खाने कि लिए तरस रही है ....|"
धरती ने डिब्बे से शक्कर के एक और दाना दूसरी चींटी कि पास रखा, दाना देखते ही दूसरी वाली चींटी खुश हो गई, उसने भगवान् को शुक्रिया अदा किया और दाना ले कर चली गई |

धरती अभी अभी हुए अपने अनुभव में उलझी हुई थी कि उसे फिर से शोर सुनाई दिया | खूब जोरो से नारे सुनाई दे रहे थे | उसने देखा तो दो गुट बने हुए थे | बहुत सारी चीटिया एक साथ बहार निकल आई थी, रानी चींटी भी बहार थी - जरूर कोई खास बात होगी - नहीं तो रानी चींटी दिखती ही कहाँ है ? | शायद गुट कि रानी के लिए चुनाव हो रहे होंगे -धरती ने सोचा | "रानी कुछ करो ! हमारे बच्चे भूखो मर रहे हैं, बहुत काम करने पर भी पूरा पेट नहीं भर रहा है, हमें जल्द ही कुछ उपाय ढूँढना होगा |" अरे नहीं- ये तो रानी के सामने गुहार लगा रहे हैं, मामला कुछ ज्यादा ही संगीन लग रहा था |
धरती को याद आया - मां ने रीना बाई को सफाई कि कड़ी हिदायत दी थी इसके चलते चींटीओ को खाना कैसे मिल सकता था भला ! | "बेचारी चींटियां ! "
रानी चींटी भी सब के दुःख से बड़ी दुखी थी | उसने कहा - "मे भली भाँति आप कि तकलीफ से वाकिफ हूँ, और रात दिन आप के लिए ही सोचती हूँ, आओ मिल कर प्रार्थना करे, भगवान जरूर हमारी सुनेगा - बस हमको पूरी शिदद्त से - अच्छे भाव से पुकारना है - "है भगवान ! मेरी दुखी प्रजा को मदद करो ! मदद करो ! मदद करो |"
धरती ने कुछ सोचा, फिर थोड़ी सी शक्कर, तिल, व अनाज के दाने वंहा गिरा दिए |
थोड़ी देर बाद रानी चींटी - सैनिक एवं दूसरी सारी चींटीओ कि शुक्रिया कि आवाजें आ रही थी | रानी चींटी ने अपनी नेता वाली स्पीच दे ही डाली ! - "मेरे कबीले वासियों, कुदरत के प्रति अपनी आस्था बनाए रखना ! अगर आप कोई चीज शिद्दत से मांगते है, तो पूरी कायनात उसे पूरा करने में लग जाती है...|"

"ये ये ये ...... धरती ख़ुशी के मरे उछल पड़ी | उसको सपने पुरे करने कि राह जो मिल गई थी |" धरती मिशन एडमिशन इन डिज़ाइन स्कूल कि तैयारी पर लग चुकी थी |

अगले ही दिन पापा को किसीसे बात करते हुए सुना | फ़ोन रखने कि तुरंत बाद पापा ने आवाज लगाई, "धरती ! जरा ईथर आना - यह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजाइनिंग के फॉर्म भरने कि आखरी तारीख है, चल जल्दी से सारे डॉक्यूमेंट ले आ ! इसमें करियर आगे बढ़ाने कि गुंजाईश बहुत अच्छी है, नया विषय है और फिर तेरा झुकाव भी तो है |"
धरती यह सोचते हुए कि भगवान् ने कौन से बन्दे से फोन करवाया था - उसका ख्वाब पूरा कर ने के लिए |
उसने ऊपर देखा दो हाथ जोड़े और डॉक्यूमेंट लेने चली गई |

- फाल्गुनी दोशी