Mother in Hindi Women Focused by Jayashree books and stories PDF | ममत्व

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ममत्व

आज जय बहुत परेशान था क्योंकि उसकी मौसी की तबीयत बहुत खराब थी वह अपनी मौसी को बहुत प्यार करता था और उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था क्योंकि मौसी की बहू और बेटा दूसरे शहर में रहते थे ऐसी परिस्थिति में उसने सोचा कि मेरी पत्नी जानवी मेरी मौसी की सेवा कर सकती है क्योंकि वह कभी भी किसी काम के लिए मना नहीं करती परंतु एक समस्या और थी जानवी की मां बहुत बीमार थी और जानवी मां से मिलने के लिए कल ही ट्रेन से जाने वाली थी। वह कैसे अपनी पत्नी को इस काम के लिए राजी करेगा इसी  उधेड़बुन में वह घर पहुंचा और उसने जानवी से कहा कि मौसी की तबीयत बहुत खराब है तुम कुछ दिन उसके पास रह जाओ जब वह थोड़ी ठीक हो जाएगी, तब तुम मां से मिलने के लिए चली जाना ।यह सुनकर जानवी को बहुत बुरा लगा ।उसने सोचा दुनिया कितनी मतलबी है अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करती है। वह तो सोच रही थी कि कब कल होऔर कब वह अपनी मां से मिलने के लिए गांव चली जाए परंतु यहां तो कुछ उल्टा ही हो रहा था। उसने सोचा इस बार वह पति की बात को आंख बंद करके नहीं मानेगी और उसने साफ साफ शब्दों में कह दिया " मैं मौसी के पास नहीं रुक सकती। मेरी मां बीमार है मुझे उसको देखने के लिए जाना है। "जानवी के मुंह से दो टूक जवाब सुनकर जय भी अवाक रह गया था परंतु पत्नी की दृढ़ अभिलाषा के सामने वह कुछ नहीं कर सकता था।अगले दिन जब जानवी गाड़ी का सफर करके मायके पहुंची तो उसने देखा -बूढ़ी मां मानो उसका इंतजार ही कर रही थी ।मां से लिपटकर जानवी ने अनेक पुण्यों को प्राप्त कर लिया था। मां की आंखों से बहती हुई आंसुओं की धारा ने कब जानवी के बालों को भिगो दिया पता ही नहीं चला पास में खड़े हुए भाई और भाभी भी इस दृश्य को देखकर रोने लगे मां ने कितनी ही बार अपनी प्यारी बच्ची को निहारा। छू कर देखा। मुस्कुराई और पंचतत्व में सदा सदा के लिए विलीन हो गई। मां के जाने से जानवी उदास तो बहुत हुई परंतु उसके अंतिम दर्शनों का जो सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ, वह कल्पनातीत था। आंखों से बहती अश्रु धारा में एक संतोष और एक दिव्य अनुभव था। इधर जब जय ने भी जानवी के मां के देहांत का समाचार सुना तो उसने भी ईश्वर को धन्यवाद दिया कि पत्नी के इस निष्ठुर व्यवहार के पीछे कितना बड़ा मर्म छिपा हुआ था।

हां, हमेशा त्याग की प्रतिमूर्ति बनने की आवश्यकता नहीं, कभी-कभी स्वार्थ दिखाई देने वाला कार्य भी अंतिम संतुष्टि का काम करता है इसलिए अंदर से यदि कोई शक्ति आपको कुछ करने के लिए प्रेरित कर रही है तो वह ईश्वर का विधान ही है। कैकेयी ने भी दो वरदान मांग कर राम के हाथों रावण का वध करवाया। अनेक राक्षसों के भार से इस पृथ्वी को मुक्त किया। किसी आंतरिक शक्ति के मर्म को समझना ही दिव्य गुणों को प्राप्त करना है।