श्राप दंड - 9
" बूढ़ी महिला ने जब अपनी बातों को समाप्त किया तब उनकी आंख में आंसू से भरी हुई थी।
इस वक्त पूर्व की तरफ सूर्य कैलाश पर्वत की चोटी पर एक बिंदु की तरह दिखाई दे रहा है। चारों तरफ सफेद बर्फ का आवरण फैला हुआ है। एक ठंडी हवा मेरे बड़े - बड़े बाल व कई दिनों से ना काटे गए दाढ़ी को छू रहा था। मेरा मन अब पहले से काफी हल्का है। मेरे शरीर की सभी थकान दूर हो गई थी लेकिन इसी के साथ मेरे मन में एक बात घूम रहा था कि बूढ़ी महिला के दुकान से चोरी होने के बाद की जिस घटना को उन्होंने बताया इसे शायद मैंने पहले भी कहीं सुना था। उसी वक्त बूढ़ी महिला बोली।
" जिसने मेरे लड़के को पागल बना दिया था और जिससे कारण यह सब हुआ उससे बदला लेने की आग मेरे अंदर धधक रही थी। तब तक मैं समझ गई थी कि जिस बौद्ध संन्यासी ने मुझे यहां लाया था वो कोई साधारण सन्यासी नहीं थे। वो एक बौद्ध तांत्रिक भी थे। उनसे कई बार विनती करने के बाद उन्होंने मुझे तंत्र की क्रियाएं सिखाई। इसी के साथ मैं तिब्बती भाषा भी सीखती गई। इसके बाद अब तक मैं बहुत सारी तंत्र विद्या सीख चुकी हूं। अभी जो कुछ देर पहले तुमने देखा कि मैं दो तिब्बती उल्लू के साथ क्रिया कर रही थी यह एक भयानक तंत्र क्रिया है। इन दोनों उल्लू के माध्यम से मैं उस आदमी को सजा दूंगी। जिसकी वजह से मैंने अपने पति और अपने फूल जैसे लड़के को खोया उसे मैं नहीं छोडूंगी। "
अचानक ही मेरे मन में सबकुछ साफ हो गया।
मैंने उस बूढ़ी महिला से पूछा ,
" क्या आप जिस आदमी की बात कर रहे हैं उसका नाम दीनानाथ अग्रवाल है? "
बूढ़ी महिला आश्चर्य होकर बोली,
" तुम्हें कैसे पता चला उसका नाम ? हां उसका नाम दीनानाथ अग्रवाल था। "
मैंने बूढ़ी महिला को बताया,
" आप उसे और कोई सजा मत दीजिए। वह अपने करनी की सजा पहले ही पा चुका है। एक गलती के लिए क्या किसी मनुष्य को एक से अधिक बार सजा मिलना सही है। उस आदमी से मैं पहले मिल चुका हूं। अब वह आदमी सुधर गया है। कृपया आप उसे और सजा ना दीजिए। एक आंख निकाल लेने के प्रतिशोध में अगर और एक आंख निकाल लिया जाए तो पूरा विश्व ही अंधकार हो जाएगा। मेरे तांत्रिक गुरु श्री कृष्णानंद अगंबागीश ने कहा था कि रुद्रनाथ जितना भी तंत्र - मंत्र कर लो लेकिन हमेशा याद रखना कि प्रेम से बड़ा तंत्र और जादू दुनिया में कोई भी नहीं है। प्रेम ही है सबसे बड़ा तंत्र सबसे बड़ा जादू। इसीलिए मनुष्य को क्षमा करके उनसे प्यार करना सीखो। "
इसके बाद आज से कुछ साल पहले दीनानाथ अग्रवाल के साथ गुफा में बीते उस रात के बारे में सभी बातें और दीनानाथ की सजा के बारे में तथा चंद्र दर्शन करके परी के बताई गई बात, सब कुछ मैंने उस बूढ़ी महिला को बता दिया। यह सब सुनकर वह बूढ़ी महिला आश्चर्य होने के साथ-साथ गंभीर सोच में डूब गई। उन्हें मेरी किसी भी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। इसके बाद वह बूढ़ी महिला अपने बाएं हाथ के अंगूठे से मेरे माथे को छूकर कुछ देर बैठी रही। जब उन्होंने अपनी आंख खोली तब उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। मेरे दोनों हाथों को पकड़कर वह बूढ़ी महिला बोली ,
" बेटा आज तुमने मेरा आँख खोल दिया। तुम्हारे बात को मैं हमेशा याद रखूंगी। बदले की आग में पागल हो गई थी लेकिन तुम्हारे बातों को सुनकर मैं आज शांत हुआ। तुम ठीक ही कह रहे हो प्रेम से बड़ा तंत्र और जादू कोई और नहीं। "......."
इतना बताकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए। मैं बोला ,
" ठीक है वो हुआ लेकिन उसके बारे में बताइए , बड़े से शरीर वाला आदमी जो रात को जंगल में थैला लेकर घूमता था। उसका क्या हुआ? " तांत्रिक बोले,
" हां इस बारे में मैंने उस बूढ़ी महिला से पूछा था। इसका उत्तर भी उन्होंने मुझे दिया था लेकिन उस उत्तर को सुनकर मेरे सोचने की क्षमता खत्म हो गई थी। मेरे मन में एक ही बात आई थी कि क्या कलयुग में भी ऐसी घटना का होना संभव है। इसके बाद याद आया कि अगर भगवान चाहे तो सब कुछ संभव है। क्या हुआ था अब मैं तुम्हें बताता हूं। सब कुछ अगर सही से नहीं बताऊंगा तो समझ नहीं पाओगे इसीलिए जो बताऊंगा उसे ध्यानपूर्वक सुनो।...
जिस समय की बता रहा हूं वह आज से कई सौ सालों पहले की घटना है। चारों तरफ धूल की वजह से दृश्य सही से नहीं दिख रहे। कुछ ही क्षण में एक तरफ से दूसरी तरफ तीरों की वर्षा हो रही है। कुरुक्षेत्र की घरती कौरवों व पांडवो की सेना से भरा हुआ है। पूरी शक्ति के साथ महाभारत का महायुद्ध अग्रसर है। युद्ध के ग्यारहवें दिन महागुरु द्रोणाचार्य कौरव सेना के मुख्य सेनापति के रूप में नियुक्त हुए। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे शक्तिशाली अश्वत्थामा । अश्वत्थामा ने जब जन्म ग्रहण किया था तब से ही उसके माथे पर एक मणि था। वह मणि अश्वत्थामा को सभी शत्रु से बचाकर रखता था। अश्वत्थामा स्वयं महादेव के आशीर्वाद प्राप्त पुत्र थे तथा द्रोणाचार्य अस्त्र शिक्षक मंडल के गुरु।
महाभारत के युद्ध क्षेत्र में भीष्म पितामह के बाणों की शय्या पर लेटने के बाद द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा के मन में आग जल उठी। उन दोनों ने मिलकर पांडवों की सेना को चीटियों की तरह मसलना शुरू किया। पिता एवं पुत्र दोनों ने पांडवों की सेना में हाहाकार मचा दिया था। पांडव पक्ष की सेना ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश कि लेकिन सभी व्यर्थ हो रहे थे। युद्ध के 15 दिन बीतने के बाद भी जब पिता व पुत्र का तांडव समाप्त नहीं हुआ तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि युद्ध जीतने के लिए गुरु द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा को रोकना बहुत जरूरी है वरना वो सभी पांडवों के ऊपर क्रमशः हावी हो जायेंगे। तब अर्जुन बोले कि मैं अभी गुरु द्रोणाचार्य को मेरे साथ युद्ध करने के लिए आह्वान करूंगा। यह सुनकर श्री कृष्ण, अर्जुन से बोले कि द्रोणाचार्य तुम्हारे अस्त्र गुरु हैं, क्या तुम्हें लगता है कि तुम उन्हें युद्ध में परास्त कर लोगे। तब भीम ने श्री कृष्ण से पूछा कि अब केशव हमारे पास क्या उपाय है? श्री कृष्ण ने बताया कि गुरु द्रोणाचार्य इस युद्ध में केवल अपने बेटे अश्वत्थामा की वजह से ही हैं। इसके बाद उन्होंने भीम से कहा कि अवंति राज्य में अश्वत्थामा नामक एक हाथी है उसकी हत्या कर सेना के माध्यम से यह समाचार चारों तरफ फैला दिया जाए। भीम ने तुरंत ही श्री कृष्ण के द्वारा बताए गए कार्य को पूर्ण किया। चारों तरफ फैली इस समाचार को सुनकर गुरु द्रोणाचार्य को ऐसा लगा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया है। यह सुनते ही गुरु द्रोणाचार्य ने अस्त्र त्याग कर युद्ध भूमि में ही समाधि ले लिया। उसी वक्त धृष्टद्युम्न ने तलवार द्वारा गुरु द्रोणाचार्य के सिर को धड़ से अलग कर दिया। जब अश्वत्थामा को पता चला कि पांडवों ने उसने पिता का छल पूर्वक वध किया है तब वो क्रोध से पागल हो गए एवं पांडवों की सेना पर नारायण अस्त्र का प्रयोग कर दिया। नारायण अस्त्र के प्रकोप से कई पांडव सेना की तुरंत ही मृत्यु हो गई। क्या तबाही देखकर अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि हे केशव! अब क्या किया जाए? क्योंकि नारायण अस्त्र के कारण पूरी पांडव सेना का अंत हो जाएगा। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से बताया कि या कोई साधारण अस्त्र नहीं है , आप स्वयं नारायण अस्त्र है। इस अस्त्र को जितनी भी बाधा देना चाहोगे यह और भी रौद्र रूप में आ जाएगा । श्री कृष्ण के कहे अनुसार सभी ने अपने अस्त्र का त्याग कर नारायण अस्त्र के सामने नतमस्तक हो गए। इसके बाद नारायण अस्त्र शांत हो गया। इधर अपने अस्त्र को शांत होता देख अश्वत्थामा को अपने अस्त्र के प्रति संदेह होने लगा। देखते ही देखते युद्ध 18वें दिन तक पहुंच गया। तब कौरव सेना के मात्र तीन योद्धा कृतवर्मा, कृपाचार्य व अश्वत्थामा ही जीवित थे। अश्वत्थामा अपने दो सह योद्धा कृतवर्मा व कृपाचार्य के साथ अपने दोस्त दुर्योधन से मिलने पहुंचे। उस वक्त युद्ध क्षेत्र के एक कोने में दुर्योधन लहूलुहान पड़े हुए थे। दुर्योधन ने अपने खून से अश्वत्थामा के माथे पर तिलक लगाकर अपना सेनापति नियुक्त किया तथा कहा कि वो पांडवो का मृत्यु समाचार सुनना चाहते हैं।
अश्वत्थामा ने उन्हें सांत्वना दिया कि वो तुरंत ही पांडवों के ऊपर आक्रमण करेंगे। यह सुनकर कृपाचार्य है बोले कि सूर्यास्त के बाद अगर पांडवों पर आक्रमण किया गया तो यह युद्ध नियमों के खिलाफ होगा। क्योंकि युद्ध नियम के अनुसार युद्ध का समय सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही है लेकिन उस वक्त रात हो गई थी। अश्वत्थामा ने कृपाचार्य से कहा कि वह क्या भूल गया है कि किस तरह पांडवों ने उसके पिता का छल पूर्वक हत्या कर दिया था। इसी तरह पांडवों के खून से वो अपने पिता का मृत्यु का बदला लेंगे। इसके बाद दुर्योधन की अनुमति मिलने के बाद कृतवर्मा व कृपाचार्य को साथ में लेकर अश्वत्थामा रात के वक्त पांडव शिविर में जाकर उपस्थित हुए। कृतवर्मा व कृपाचार्य को बाहर ही प्रतीक्षा करने को बोलकर वो अकेले ही पांडव शिविर में प्रवेश कर गए। इसके बाद अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न के शयन कक्ष में जाकर उनकी हत्या कर दिया। इसी के साथ उन्हें पता चला कि आज पांचो पांडव एक शयनकक्ष में शयन कर रहे हैँ। इसके बाद अश्वत्थामा ने उन पांचों का भी सोते हुए ही हत्या करके शिविर छोड़कर बाहर आ गए।
अश्वत्थामा जब यह समाचार अपने मित्र दुर्योधन को देने पहुंचे तब तक दुर्योधन अपने अंतिम सांस ले चुके थे। इसके बाद उन्होंने क्रियापूर्वक अपने प्रिय मित्र का अंतिम संस्कार किया। इसके बाद वो महर्षि वेदव्यास के आश्रम की ओर चले गए। दूसरी तरफ पांडव उस वक्त शोक व्यथा में थे क्योंकि असल में अश्वत्थामा ने जिन पांच पांडव की हत्या की थी वो सभी द्रोपदी के पुत्र थे। द्रोपदी यह देख क्रोध व शोक में खो गई और कहा कि उन्हें अश्वत्थामा की मृत्यु देखनी है। तब श्री कृष्ण ने बताया कि अश्वत्थामा को मारना संभव नहीं है क्योंकि उसे अमरता का वर प्राप्त है। इसके बाद सभी पांडवों ने द्रौपदी से कहा कि हम अश्वत्थामा को तुम्हारे सामने लेकर आ रहे हैं तुम्हें जो भी सजा देनी हो उसे देना। इसके बाद पांचो पांडव अश्वत्थामा को खोजने के लिए वहां से चल पड़े।.....
क्रमशः...