Bhakti Madhurya - 9 - Last Part in Hindi Spiritual Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | भक्ति माधुर्य - 9 - अंतिम भाग

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भक्ति माधुर्य - 9 - अंतिम भाग

9

ऐक अंगेज पुलिस आफिसर को उपदेश,
रमण महर्षि 2
महर्षि अनेक वर्षों से विरूपाक्ष गुफा में ध्यान में लीन थे | एक दिन एक अंग्रेज पुलिस ऑफिसर को महर्षि मुंबई रेलवे स्टेशन पर दिखाई दिए | वह आश्चर्य ही कर रहा था कि उसका ट्रान्सफर थिरुवान्नामलाई के समीप हो गया | वह तंत्र मंत्र का साधक था | उसे संस्कृत पढ़ाने एक विद्वान् पंडित गणपत मुनि आया करते थे | उसे सपने में ऐक साधू किसी गुफा में ध्यानमग्न बैठे दिखाई देते थे | उसने उस साधू व गुफा का चित्र बनाकर अपने गुरु को बताया |

गणपत मुनि ने कहा, “ ये तो महर्षि रमण है |”

दुसरे दिन रमण महर्षि का पता पूछते हुए वह अरुणाचल पर्वत स्थित विरूपाक्ष गुफा की और बढ़ने लगा | तभी उसे महर्षि दूर पहाड़ से नीचे जाते हुए दिखाई दिऐ | जब वह विरूपाक्ष गुफा में पहुंचा तो महर्षि वहां ध्यान में लीन दिखाई दिए | वह बहुत देर तक महर्षि के दो स्थान पर ऐक साथ उपस्थित होने की पहेली पर आश्चर्य कर रहा था तभी महर्षि ने उसे देखा | उनकी नजर पड़ते ही उसे लगा जैसे मानो वह आसमान में उड़ रहा हो | कुछ देर बाद जब वह सामान्य हुआ तो महर्षि ने उससे अंग्रेजी में कहा,

“ तंत्र मंत्र के चक्कर में न पढो, यह ज्ञात करो कि “ मै कौन हूँ ?”

उस अंग्रेज ऑफिसर को ऐक बियाबान जंगल में पर्वत पर स्थित गुफा में ऐक लंगोटी धारी साधू को अंग्रेजी में बात करते देख बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने इस घटना का उल्लेख विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक मेगज़ीन में किया जिसे पढ़कर महर्षि के दर्शनों के लिए आने वाले विदेशी भक्तों का ताँता लग गया |

 

 

पाल ब्रंटन को दिव्य अनुभूति
रमण महर्षि ३
पाल ब्रंटन ऐक अंग्रेज खोजी पत्रकार था | सारे संसार में किसी सिद्धि प्राप्त संत की खोज में भटक रहा था |

वह हिमालय की कंदराओं से लेकर सन्सार के समस्त प्रसिद्द आश्रमों में उनके संतो से मिल चुका था किन्तु उसे कही भी दिव्य अनुभूति की प्राप्ति नहीं हुई | वह सभी दूर से निराश होकर ऐक दिन वह अपने घर इंग्लैंड लौटने की तैयारी करने लगा | तभी आधी रात को उसके कमरे में एक साधू ने प्रवेश किया | उसने कहा, आपको हमारे गुरु ने बुलाया है जिनकी खोज में आप व्यर्थ इधर उधर भटक रहे हो | “

इस पर पाल ने उसे भद्दी भद्दी गालियां देते हुए अपमानित करके कमरे से बाहर निकल दिया |

जैसे ही सुबह हुई पाल का माथा ठनका कि लौटने के पूर्व क्यों न इस आखिरी संत से मिल लिया जाए | उसी समय वही साधू पुनः उसके सामने आया |

उसने पूछा, “ आपने क्या विचार किया साहेब ?”

पाल बिना कुछ पूछे उस साधू के साथ अरुणाचल पर्वत पर स्थित रमणाश्रम में पहुंचा व ध्यानमग्न रमण महर्षि के सामने बैठ गया | वह मन ही मन महर्षि पर तरह तरह की शंकाएँ करने लगा | तभी उसके मन में एकाएक दिव्यता की अनुभूति होना प्राम्भ हुई और वह बहुत देर तक उस शरीर मन से परे दिव्य शांति व आनंद की अवस्था में डूबकर वहां बैठा रहा |

पाल ब्रंटन को उस दिव्य अनुभूति की प्राप्ति हो चुकी थी जिसकी खोज में वह सारी दुनिया में भटक रहा था | उसने अपनी अनुभूति को एक किताब में बड़े ही सुन्दर रूप में लिखा “ अ सर्च इन सेक्रेड इंडिया “ | यह किताब उस समय की बेस्ट सेलर थी | उसे पढ़कर पूरे संसार से रमाणाश्रम में महर्षि के दर्शन करने वाले विदेशी भक्तों का ताँता लग गया जो आज भी महर्षि के देहत्याग के बाद भी उसी तरह चल रहा है |

 

विवेकानंद 1
 

विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्र था। नरेन्द्र ने बड़े मेधावी छात्र थे | उन्होंने महाकवि वर्ड्सवर्थ की कविताऐं पढी थी। कवि प्रक्रति को देखकर समाधिस्थ हो जाया करते थे। नरेन्द्र वर्ड्सवर्थ की ऐसी उच्च अवस्था से अत्यंत प्रभावित हुए | वे भारत में ऐसे साधू की खोज करने लगे जिसे समाधि लगती हो । समाधि अयस्था में जीव ईश्वर से ऐक हो जाता है |

उन्हें जो साधू मिलता उससे वे पूछते,

‘ क्या आपने ईश्वर को देखा है ?’ इस पर हर साधू हक्का बक्का होकर निरूत्तर हो जाता । अनेक साधुओं से प्रश्न करने पर भी नरेन्द्र को किसी से जबाब नहीं मिला । उन दिनों अध्यात्म के क्षेत्र में प्रसिद्ध कवि रविन्द्रनाथ ठाकुर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर का बड़ा नाम था।

ऐक दिन अर्धरात्रि के समय नरेन्द्र नदी पार करके उनके दर्शन के लिएं पहुंचे।

उस समय महर्षि ध्यानमग्न थे। अमावस्या की रात का घना अँधेरा था | जब उनका ध्यान टूटा तो उन्होने नरेन्द्र को उस काली रात में ऐक भूत की तरह अपने सामने बैठा देखा जो पूरा भीगा हुआ था। नरेन्द्र को इस तरह देख वे भौचक रह गऐ।

नरेन्द्र ने उन पर अपना वही प्रश्न दागा, ‘ क्या आपने ईश्वर को देखा है ? यदि हां तो क्या आप मुझे भी ईश्वर के दर्शन करा सकते हैं ?’

इस पर महर्षि से कोई उत्तर न देते बना।

बहुत समय गुजर गया लेकिन नरेन्द्र के प्रश्न का उत्तर देने वाला कोई माई का लाल नहीं मिल रहा था। ऐक दिन नरेन्द्र ने काली मंदिर के ऐक पागल पुजारी परमहंस रामक्रष्ण के विषय में सुना जो प्रायः समाधिस्थ हो जाया करते थे। नरेन्द्र शीघ्रता से काली मंदिर के उस पुजारी से मिलने चल दिऐ।

रामक्रष्ण ने नरेन्द्र को देखते ही आनंदविभोर होते हुऐ कहा, ‘ तू आ गया। मै तेरी ही प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से कर रहा था। मैने ऐक दिन तुझे प्रथ्वी की ओर आते हुऐ तारे में देखा था जो दिव्यलोक से आ रहा था। ’

नरेन्द्र ने रामक्रष्ण से भी वही अपना चिर परिचित प्रश्न पूछा, ‘ क्या आपने ईश्वर को देखा है ? क्या आप मुझे भी ईश्वर के दर्शन करा सकते हैं ?’

इस पर रामक्रष्ण ने तपाक से उत्तर दिया, ‘ हां मैने ईश्वर को उसी तरह देखा है जैसे मै तुम्हे देख रहा हूं और यदि तुम मेरे बताऐ मार्ग पर चलो तो में तुम्हे भी ईश्वर के दर्शन करा सकता हूं। ’

नरेन्द्र के जीवन में पहली बार कोई साधू मिला जिसने उसके प्रश्न का उत्तर बेहिचक होकर पूरे आत्मविश्वास से दिया। अब नरेन्द्र अनेक दिन तक रामकष्ण के यहां जाकर उनकी दिनचर्या व उनकी साधना पद्धति के विषय में जानने का प्रयास करने लगे।

ऐक दिन नरेन्द्र बड़ी खीज दिखाते हुऐ रामक्रष्ण से बोले, ‘मै इतने दिन से आपके यहां आ रहा हूं किन्तु आपने अपने वादे के अनुसार मुझे अभी तक ईश्वर के दर्शन नहीं कराऐ हैं। ’

इस पर रामक्रष्ण ने नरेन्द्र की छाती पर अपना पैर रख दिया। नरेन्द्र बड़े जोर जोर से चिल्लाने लगे, ‘बचाओ, बचाओ ’

रामक्रष्ण ने अपना पैर उनके वक्षस्थल से हटा लिया। तब कहीं जाकर नरेन्द्र सामान्य हो पाऐ।

हुआ यूं कि रामक्रष्ण के स्पर्श से नरेन्द्र की चेतना भगवान की अनंत सत्ता में विलीन होने लगी I अपने अतित्व को मिटता देख वे बुरी तरह से घबराकर चिल्लाने लगे।

नरेन्द्र को ईश्वरीय अनंत सत्ता की झलक मिल चुकी थी ।

 

विवेकानंद २
 

विवेकानंद के पिता प्रसिद्ध वकील थे | घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी |

अचानक एक दिन उनके पिता का देहावसान हो गया | असमय में पिता के देहावसान से नरेन्द्र व उसके परिवार पर वज्रपात हो गया |

नरेन्द्र एकमात्र कमाने वाला रह गया | एक बड़े परिवार का सारा जिम्मा उसके कन्धों पर आ गिरा |

उच्च शिक्षित होने पर भी नरेन्द्र को कोई छोटी मोटी नौकरी नहीं मिल रही थी | परिवार को दो जून की रोटी के भी लाले पड़े हुए थे | नरेन्द्र नित्य रामकृष्ण की संगत में जाता था किन्तु अपने दुःख के विषय में उसने गुरु को नहीं बताया |

तब दूसरे शिष्यों ने रामकृष्ण परमहंस को नरेन्द्र की घोर विपत्ति के विषय में बतलाया |

एक अमावस्या को रामकृष्ण ने नरेन्द्र को कहा, “ नरेन्द्र ! आज रात्रि को मंदिर में माता स्वयं साक्षात् विराजमान है | तू आज माता से जो मांगेगा वही मिलेगा, त्रिलोक का साम्राज्य भी मांगेगा तो वह भी मिलेगा |

इस पर उस रात्रि को नरेन्द्र अर्ध रात्रि के समय काली मन्दिर में गया | माता के समक्ष हाथ जोड़कर कहने लगा, “ हे माता ! मुझे ज्ञान दो वैराग्य दो, भक्ति दो |” नरेन्द्र उस बात को बिलकुल भूल गए जो उन्हें गुरु ने सिखाई थी |

जब रामकृष्ण ने पूछा, “ नरेन्द्र तूने माता से क्या माँगा ?””

इस पर नरेन्द्र ने अपनी प्रार्थना दोहरा दी | रामकृष्ण ने फिर से उन्हें माता से अपने मन की कोई भी मुराद मांगने के लिए भेजा | नरेन्द्र ने फिर से माता के समक्ष अपनी वही ज्ञान,वैराग्य व भक्ति की मांग तन्मय भाव से दोहरा दी | ऐसा तीन बार हुआ और वही सब कुछ नरेन्द्र ने बार बार दोहराया |

तब रामकृष्ण ने कहा, “ नरेन्द्र तू संसार करने लायक नहीं रहा, तू सन्यास ले ले |”

इस प्रकार नरेन्द्र सन्यास लेकर विवेकानंद बन गए |

 

चैतन्य महाप्रभु
 

चैतन्य महा प्रभु एक महानम भक्त हुए हैं जो इतने तन्मय होकर कीर्तन करते थे कि उन्हे अपने तन मन की सुध बुध तक नहीं रहती थी |

वे जब कीर्तन करते हुए चलते तो उनके पीछे पीछे अपार जन समूह नाचते गाते “ हरि बोल, हरि बोल, हरि हरि बोल “ कीर्तन करता हुआ चलता था |

उनके कीर्तन पर मुस्लिम काजी ने रोक लगा दी और अनेक भक्तों को जेल में ठूंस दिया | इस पर महाप्रभु काजी को चेलेंज देते हुए विशाल जनसमुदाय के साथ ढोल मजारे बजाते हुए व नाचते गाते भग्वद्प्रेम में झूमते हुए उसके निवास के आगे से निकले | इस पर वह काजी उनसे अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने महाप्रभु से क्षमा याचना की | अनेक मुस्लिम भक्त भी उनके कीर्तन में हरि प्रेम में डूबकर नृत्य करते हुए कीर्तन करते थे |

महाप्रभु एक बार तीर्थाटन के लिए निकले हुए थे |

ऐक स्थान पर उन्हें भयानक वन से होकर गुजरना था | सभी भक्तों ने उन्हें उस वन से गुजरने के लिए मना किया क्योंकि उस जंगल में एक दुर्दांत खूंखार डाकू रहता था किन्तु वे बिना डरे उस वन से गुजरने लगे व शाम को कीर्तन करते हुए एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए रुक गए | वह दुर्दांत डाकू उन्हें देखते ही अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने प्रभु व उनकी पूरी भक्त मंडली को स्वादिष्ट खाना खिलाया | उसने चोरी डकैती सदा के लिए छोड़ दी | वह प्रभु की मंडली में अपने सभी साथियों के साथ शामिल हो गया | इस प्रकार महाप्रभु के कीर्तन ने उस डाकू का ह्रदय परिवर्तन कर दिया और डाकू से हरि भक्त बना दिया |

 

महा ज्ञानी कवि कबीरदास
 

“रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥“ 1

सरलार्थ, कबीरदासजी कहते है कि अनेकों मनुष्य अपना अनमोल मानव जीवन दिन का समय खाते हुए व रात का समय सोते हुए व्यतीत कर देते है,इस प्रकार भगवान का स्मरण करने के बजाय वे अनमोल मनुष्य जन्म को कौड़ियों के भाव समान सांसारिक सुखों में जाया कर देते हैं |

“दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय”॥ २

जब मनुष्य पर दुःख आता है तो वह भगवान का स्मरण करता है किन्तु जब वह सुखों में रमा रहता है तो उसे प्रभु का स्मरण नहीं आता | यदि मनुष्य सुख में भी भगवान का स्मरण कर लिया करे तो उसे कभी दुखी नही होना पड़ेगा |

“बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर” ॥ ३

किसी मनुष्य के बड़े हो जाने से कुछ नहीं होता | जैसे कि खजूर का वृक्ष बहुत बड़ा होता है किन्तु उसके फल भी बहुत ऊंचाई पर लगते है जिन्हें पाना बड़ा दुष्कर होता है | इस प्रकार उस ऊँचे वृक्ष का कोई विशेष महत्व नहीं होता |

“माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर”म ॥ ४

सारा जगत राम नाम की माला फेरता रहता है किन्तु उनका मन हमेशा सांसारिक भोगों में भटकता रहता है, ऐ भक्त हाथ की माला छोड़ दे और अपने मन से प्रभु का स्मरण कर |

 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥ ५

ऐ मन ! सारा कार्य धैर्य रखने से संपन्न होता है | यदि माली किसी नाजुक पौधे पर सौ घड़े पानी भी ऐक साथ डाल दे तो कोई फायदा नहीं होता वरन जब उस पौधे की ऋतु आएगी तभी उस पर फल लगेंगे |

 

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥ ६

मनुष्य भले ही कितना भी बूढा हो जाए, उसका कितना शरीर कितना ही निर्बल हो जाए किन्तु उसके मन से माया मोह दूर नहीं होता |

“कांकर पत्थर जोड़ी कर मसजिद लई चुनाय, ता चढ़ी मुल्ला बंग दे बहरो हुआ खुदाय” | ७

मुल्ला ने कांकर पत्थर जोड़ कर मसजिद बना ली, फिर उस पर चढ़कर जोर जोर से बांग दे रहा है, अरे भाई क्या खुदा बहरा हो गया है ?

“पाहन पूजे हरि मिले तो मै पूंजू पहार, याते तो चाकी भली पीस खाय संसार” | ८

पत्थर को पूजने से यदि भगवान मिल जाए तो मै पहाड़ को पूज लूँ, अर्थात मूर्ति पूजा से भगवान के दर्शन संभव नहीं है |

कस्तूरी म्रग में बसे, म्रग ढूंढे बन माहि

तेरा साईं तुझमे क्यों विरथा भरमाही

ऐ मनुष्य ! कस्तूरी म्रग कस्तूरी को सारे वन में ढूंढता रहता है जो उसकी नाभि में ही रहती है

उसी प्रकार मनुष्य भगवान को तीर्थों में, मंदिरों में व्यर्थ ढूंढता रहता है जबकि भगवान मनुष्य के मन में ही निवास करता है |

 

उपसंहार
 

भक्तिभाव की महिमा अपरम्पार है । इसमें आप को योग के समान कठिन यम नियम के पालन की आवश्यकता नहीं है, न इसमें कर्मकांड के झंझट हैं । मनुष्य अपने सामर्थ्य के अनुसार सत्य अहिंसा ब्रम्हचर्य आदि का पालन करे उतना अच्छा है, नियमों पर कोई विशेष जोर नहीं है । भगवान की भक्ति बड़ा सुगम मार्ग है। इसमे भक्त गाते हुए, आनद में लीन होकर कहीं भी, कभी भी प्रभु का स्मरण कर सकता है । इतना ही नहीं वह प्रभु को चढ़ाया हुआ प्रसाद रूपी सुस्वादु मिष्ठान्न का सेवन कर सकता है। भगवान के कीर्तन में अत्यत आनंद है।

रामकृष्ण, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई आदि अनगिनत भक्त भगवान का कीर्तन करते हुए महाआनंद मे लीन हो जाते थे। चैतन्य महाप्रभु भगवन्नाम का जप गाते बजाते, नाचते हुए तल्लीन होकर ऐसा अद्भुत कीर्तन करते हुए नगर कीर्तन में निकलते कि मुस्लिम भक्त भी स्वयं को उसमे शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाते | रामायण के अत्यंत मधुर प्रसंगों के साथ ही मैने महाकवि सूरदास, मीराबाई के ह्रदयस्पर्शी रचनाएँ, रसखान भक्ति भाव से पूर्ण सुन्दरतम रचनाओं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है | आशा ही नहीं मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे इस लघु प्रयास को पाठकों का पूर्ववत प्यार मिलेगा |

 

लेखक के प्रकाशित अन्य ग्रन्थ :
1 विद्रोहिणी ( हिंदी व अंग्रेजी )

२ भारत के गावों में स्वतंत्रता आन्दोलन ( एक अनकही दास्तान) हिंदी व अंग्रेजी

४ पागल ( हिंदी व इंग्लिश ) ( मानसिक रोगियों के साथ दुष्टों द्वारा किया गया क्रूर व्यवहार की मर्मस्पर्शी दास्तान )

५ शैतानियाँ ( कॉलेज छात्रों की )

६ नपुंसक ( एक सीधे सुन्दर अध्यापक को लड़कियों द्वारा परेशान किया जाना )

७ संसार की सर्वश्रेष्ठ ध्यान प्रणालियाँ ( हिंदी व इंग्लिश )

शीघ्र प्रकाशन हेतु तैयार ग्रन्थ : ( सभी ग्रंथों के हिंदी व इंग्लिश संस्करण उपलब्ध हैं )

१ जुआरी फिल्मप्रोड्यूसर ( हिंदी व इंग्लिश )

२ सुनहरा धोखा (हिंदी व इंग्लिश )

३ अमृत बूटी ( हिंदी व इंग्लिश )

आदि अनेक |

इनमे से अनेकों ग्रन्थ कहानियां व उपन्यास अनेक प्रसिद्ध साहित्यिक प्रकाशन संस्थाओं यथा

“ मात्रभारती.कॉम “, इन्स्टामोजो, books2read, Draft2Digital पर प्रकाशित हो चुके हैं |