अध्याय 3
नारी भोग्या क्यों ?
नारी तुम पुरूषों के समान ही थी तुम्हारे पास सारे अधिकार थे तुम समाज मे आदरणीया रही । क्यों तम्हारे शरीर को आकर्षण का हेतु बनाया गया । क्यों पुरातन काल में कवियों की कलम तुम पर चली क्यों तुम्हारी प्रतिभा को सौन्दर्य के प्रतिमानों से ढ़क दिया गया। कवियों ने तुम्हारे शरीर सौष्ठव को सौन्दर्य सौष्ठव मे क्यो परिणित कर दिया
तुम्हारा इस तरह से वर्णन होता रहा फिर भी तुम मौन रही,और मौन समर्थन देती रही तुम्हारे इस मौन ने तुम्हे आकर्षण की वस्तु बना दिया ।
हे नारी तुम्हारे लिए कवियों की कलम से उपमाओं के सुशब्द निकलते रहे पुरूष मन को गुद गुदाते रहे । पुरूषों के मानस पटल पर सहचरी से स्त्री रत्न बन गयी तुम्हें स्त्री से धन मे शामिल कर लिया तुम्हे पता ही नही चला । तुम्हे प्राप्त करना पुरूषों की संपदा बनता गया । कवियो ने तुम पर खूब साहित्य लिख दिये क्या तुम इसी योग्य थी ?
तुम्हारे अंग प्रत्यंग मे सौन्दर्य सूंघने वाले कवियों ने नये नये उपमान तुम्हारे लिए घड़ दिए ओर यह परंपरा चल पड़ी क्या तुम इसी योग्य थी ?
कवियों की उपमाओं का कहर
तुम जानती हो कवियों की उपमाओं का प्रहार तुम्हारे हृदय पर कैसा पड़ा ? सम्पूर्ण महिला जगत ही सौन्दर्य प्रसाधनों मे डूबता चला गया । तुम खुद ही सौन्दर्य के रूप मे खुद को प्रस्तुत करने लगी । फिर 16 सिंगारों का जन्म हुआ तुम सजने संवरने लगी । तुम्हारा ध्येय पुरूषो को सौन्दर्य से वशीभूत करना बनता गया । पुरूष भी गठीले बदन के साथ सजने संवरने लगे और तुम मे सौन्दर्य ढूंढने लगे सौन्दर्य सुख के चाहत मे उड़ान भरने लगे । पुरूषों की मानसिकता मानो कुंद सी हो गयी वे नारी का मतलब भोग व रति सुख तक सीमित मानने लगे। पुरूष भूल गये कि वह नर है तुम मादा हो तुम भी एक मनुष्य ही हो । पुरूषो के खेल भी तुम्हे लेकर होने लगे रूपवती नारी के लिए स्वयंवर का आयोजन होने लगे पराक्रम विवाह का जन्म हुआ ।
युद्धों में जीत जाने पर तुम्हे जीत की वस्तु समझा गया। जीत के उपरांत तुम्हारी अस्मिता को लूटा गया । इतना ही नही नारी को पराक्रम से ग्रहण करना एक परंपरा बनती चली गयी । नारी को बल पूर्वक अपहृत कर अपने अधिकार मे कर लेने को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाने लगा । क्या कवियों का दोष नहीं वे यदि चाहते तो समरसता बैठाने की बात कह सकते थे किन्तु ऐसा नही किया । कवियों को आश्रय देने वाले राजपरिवार भी उन्हें प्रोत्साहन देते रहे ।
नारी की खरीद फरोख्त होने लगी मंडियां लगने लगी । नारी बिकने लगी और तुम पुरूषो की निजी संपत्ति बनती गयी । तुम्हे पर्दे मे जकड़ दिया गया घर की चार दिवारी मे बंद कर दिया गया । पुरूष इतना गिरते गये कि तुम्हारे ऊपर धर्म के नाम पर ईश्वर के नाम पर कानून बनाते गये । वे कानून भी पुरूषों के हित करने वाले ही बने ।
जब चाहा तलाक दिया जब चाहा अपना लिया गया । अपनाने के लिए तुम्हे हलाला से गुजारा गया ।
भारतीय संस्कृति मे यह सब तो नही था किन्तु पति की मृत्यु हो जाने पर पूरी उम्र को वैधव्य से गुजारना या घर के किसी सदस्य से विवाह कर देना चाहे वह तुम्हे पसंद ही न हो ।
क्रमश --