उजाले की ओर ---संस्मरण
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नमस्कार स्नेही मित्रो
कुछ बातें अचानक ऐसे याद आ जाती हैं कि हँसी रोकनी मुश्किल हो जाती है |
वैसे कहा तो यह जाता है कि बेबात हँसने वाले मूर्ख होते हैं |
यदि ऐसा है तो रोते हुए ,गमगीन चेहरों के लिए 'लाफ़िंग-क्लब'क्यों बनाए जाते हैं ?
इसीलिए तो कि भई हँस लें और अपने चेहरों को लटकाकर बिना बात ही खुद को और अपने से जुड़े हुओं की नाक में दम न करते रहें |
मित्रों ! क्या कभी महसूस किया है कि हमारा गुस्सा इतनी जल्दी सिर पर चढ़कर बोलने लगता है जितनी जल्दी शायद पलक भी नहीं झपकती होगी|
हम गुस्से के वश में आ जाते हैं और मिनट भर में सब कुछ स्वाहा !हमारा क्रोध जीवन की पटरी से ऐसे उखाड़कर हमें फेंक देता है कि रास्ते ही बंद हो जाते हैं |
रिश्ते ऐसे भुरभुराकर गिर पड़ते हैं जैसे अचानक बिजली टूट पड़ती है |
फिर वे जुड़ ही नहीं पाते ,जितना मर्ज़ी तुरपाई कर लो,पैच लगा लो लेकिन वो उनका फटा हुआ हिस्सा कमज़ोर ही रह जाता है |
अच्छा ,एक बात बताएँ ,जैसे हम स्मोकिंग ज़ोन बनाते हैं ऐसे ही यदि क्रोध-ज़ोन बना लें तो कितना अच्छा हो जाए |
हम 'नो स्मोकिंग ज़ोन' में धूम्रपान से दूर रहते हैं ऐसे ही 'नो एंगर ज़ोन' में हम अपने गुस्से से दूर रह सकेंगे |
या फिर हम सोचें कि हमें तीन दिनों तक गुस्सा नहीं करना है ,बस मुस्कुराना है तो हम कई बार प्रेक्टिस करने पर एक दिन शायद गुस्सा करना भूल सकें |
मुश्किल तो यही है मित्रों ,हम मुसकुराना तो भूल सकते हैं लेकिन गुस्सा करना नहीं |
हम अपने आपको सताना नहीं भूल पाते ,दूसरों को तो बाद में सताएंगे न ! पहले तो अपना कलेजा जलाएंगे |
गुस्सा तो जैसे छोटी-छोटी बातों पर हमारी नाक पर आ बिराजता है |
अब इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि नाक पतली हो या मोटी ,छोटी हो या बड़ी !!
बस ,गुस्से महाराज को आना चाहिए --बस जी ,कारण ? कुछ भी हो सकता है ।कोई भी मक्खी छींक सकती है |
फिर वो उड़ती भी तो नहीं ,बस --भुनभुनाती रह जाती है |
मित्र सोचते होंगे कि मैं किताबी बातें कर रही हूँ लेकिन किताबों में बातें कहाँ से आती हैं ? समाज से ही न ! और समाज कौन है ?
हम और आप ही तो समाज हैं ,फिर ---इतनी मुश्किल भी नहीं है हँसी !
मुस्कुराएँ और अपने मन को हल्का रखें | क्रोध करेंगे तो सोचकर पहले अपना खून जलाएंगे तब कहीं जाकर दो शब्द उसे बोलेंगे जिसपर गुस्सा होगा |
उसने तो सुना है या नहीं ,यह तो पता नहीं लगेगा | हाँ ,हमारा बी.पी ज़रूर बढ़ जाएगा |
सो ,बेहतर यही है कि मुस्कुराएँ ।अगर कोई कारण न भी मिल रहा हो तो अपनी ही कोई बात याद करके खुद पर हँसें और क्रोध को पछाड़ फेंकें |
मुझे अक्सर अपनी पुरानी बातें याद आ जाती हैं और मैं दिल खोलकर हँस पड़ती हूँ |
कई बार मित्रों ने पूछा भी कि खुद की ही मूर्खता पर हँसते हुए खराब नहीं लगता ?
नहीं ,क्यों लगेगा खराब ? भई ,जब हम दूसरे पर हँस सकते हैं और उसको क्रोध दिला सकते हैं तो खुद पर हँसकर खुद को क्रोध दिलाकर तो देखें |
यकीन मानिए ,नहीं दिला पाएँगे खुद को क्रोध | गलती से आ भी गया तो क्या कर लेंगे भला ? अपना ही नुकसान न !
तो बेहतरी इसी में है कि खुद भी हँसें और दूसरों को भी हँसने के कारण दें |
तो चलिए ,मिलते हैं फिर हँसते-मुस्कुराते हुए अगली बार |
सस्नेह
आप सबकी मित्र
डॉ . प्रणव भर्ती