Sare jahan se acha Hindostan hamara in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा

Featured Books
  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

Categories
Share

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा

 

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

यशवन्त कोठारी

 

   हमारे देश का नाम भारत है । भारत नाम इसलिए है कि हम भारतीय हैं । कुछ सिर फिरे लोग इसे इण्डिया और हिन्दुस्तान भी पुकारते हैं, जो उनको गुलामी के दिनों की याद दिलाते हैं । वैसे इस देश का नाम भारत के बजाय कुछ और होता तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता । हम-आप इसी तरह इस मुल्क के एक कोने में पड़े सड़ते रहते और कुछ कद्रदान लोग इस देश को अपनी सम्पत्ति समझते रहते । वैसे भारत पहले कृषि-प्रधान था, अब कुर्सी प्रधान है; पहले सोने की चिड़िया कहलाता था, अब सोने के अंडे देने वाली मुर्गी कहलाता है, शर्त केवल ये है कि आप अंडे को सेने का तरीका जानते हों । पहले भारत में घी-दूध की नदियां बहती थीं, अब बाढ़ आती है, अकाल आते हैं, भूकम्प और राजनीतिक जलजले आते हैं, लेकिन घी-दूध नहीं आते । कुछ मूर्ख तो यहां तक कहते हैं कि अब इस देश में पानी पर भी कंट्रोल हो जाएगा और कुछ समय बाद एक राशन कार्ड पर एक लोटा पानी मिलेगा । इसी क्रम में पिछले दिनों समाचार आया था कि अब्बू की शादी कोयले की लाइन में खड़ी बब्बी के साथ सम्पन्न हुई । बारात शक्कर की लाइन से कोयले की लाइन तक गई थी । प्रीति भोज गेहूं की लाइन के पास सम्पन्न हुआ । खैर ये विषयान्तर हो गया । मैं व्यंग्य पर लौटता हूं ।

इधर कुर्सी-प्रधान देश में शिक्षा की बाढ़ भी आई है । पहले शिक्षा का अकाल था, इन दिनों डिग्रीधारियों की बाढ़ आई हुई है । वास्तव में हुआ ये है कि आजादी के तुरन्त बाद हमने हर सौ किलोमीटर पर एक विश्वविधालय, हर पचास किलोमीटर पर एक महाविधालय और हर गली-मोहल्लों में एक माध्यमिक विधालय खोल दिया । बेकारी दूर करने के लिए इससे अधिक हम कर भी क्या सकते थें । इसमें हम अपने ही देश में किरायेदार हो गए और पिछले  वरषों से मकान मालिकों ने इस पर सफेदी तक नहीं करवाई । शिक्षा-विभाग मूलतः तबादला विभाग है, यहां चूंकि पति-पत्नी दोनों शिक्षा-विभाग में ही होते हैं अतः दोनों में से एक का स्थानान्तरण करके परिवार नियोजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है, लेकिन यह प्रयोग भी असफल रहता है और इन दिनों हमारी आबादी एक अरब तीस करोड़ है । शिक्षा के क्रम में ही पी-एच. डी. का भी विकास हुआ है । हर लल्लू-पंजू, एरा-गैरा, नत्थ्-खैरा, नीम-हकीम किसी न किसी दुकान से पी-एच. डी. है । जो हो गए वे खुश हैं, और जो नहीं हो सके वे विदेश चले गए । वास्तव में उच्च वर्ग का प्रिय विषय ही विदेश है । कुत्ता विदेश जाकर वापस आ जाता है तो कुत्ता ही रहता है, लेकिन हिन्दुस्तानी विदेश जाकर वापस आता है तो विदेशी हो जाता है । देश में नेता हैं, अफसर हैं, बाबू हैं, फाइलें हैं, काम है, अगर नहीं है तो काम करने की इच्छा नहीं है । वैसे हमारा देश विकासशील देश है, और यह बात हम कुछ इस गर्व से कहते हैं कि विकसित देश तक डर जाते हैं । राष्ट्रभाषा हिन्दी है, लेकिन काम सब अंग्रेजी में किया जाता है । हिन्दी में लिखना, पढ़ना और बोलना निम्न स्तर का समझा जाता है । भाषण सुनने के बाद जो समय जनता के पास बचता है, उसमें बीड़ी पी जाती है, बहसे सुनी जाती हैं, तथा आश्वासनों से पेट भरा जाता हैं । जहां तक देश की साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रश्न है, हमारे देश में ऐसा कोई मंत्रालय नहीं है । इसका सबसे ज्यादा फायदा दूसरे देशों को होता है, उन्हें इस मंत्रालय में समझौते नहीं करने पड़ते। अकादमियां हैं, उनमें  अफसर हैं, लेकिन वास्तविक लेखक, कलाकार, संगीतकार इन अकादमियों से वैसे ही दूर रहते हैं, जैसे लाल कपड़े से सांड । सभी लेखक बुद्धिजीवी मरने के बाद महान होते हैं । इस परम्परा में अब कुछ अन्य व्यक्तियों को भी शामिल कर लिया गया है । जो लेखक और कुछ नहीं लिख पाते वे सम्पादक के नाम पत्र लिखकर लेखक होने का भ्रम पाले रखते हैं.

अखबार और प्रकाशक लेखकों को रायल्टी के रूप में 2 प्रतियां प्रतिवर्ष देते हैं, सेल्फ पब्लिशिंग का धंधा भी जोरो पर है ,घर फूंको तमाशा देखो.    आम हिन्दुस्तानी शारीरिक रूप से या तो स्वस्थ होता है या अपने आपको स्वस्थ मानता है । बीमारियों में अस्पताल जाने का रिवाज नही है क्योंकि वहां से जिन्दा आ पाना बड़ा मुश्किल है । बिरले ही वहां से वापस जिन्दा आ पाते हैं । हर हिन्दुस्तानी अपने आपको आधे से कुछ ज्यादा डाक्टर समझता है । बचा हुआ आधे से कुछ कम हिन्दुस्तानी वैद्य होता है, कई बार डेढ़ अक्ल के वैद्य मिल जाते है । वैसे भी वैद्य को यमराज का बड़ा भाई कहा गया है जो प्राण और धन दानों का ही हरण कर लेता है । वैसे यह हरण सीताहरण या चीरहरण से बहुत भिन्न है, ऐसा शास्त्रकारों का कहना है।

   ०००००

यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर,जयपुर 302002 फोन 9414461207