Gyarah Amavas - 59 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 59

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ग्यारह अमावस - 59





(59)


पंकज जब अजय के घर जा रहा था तो उसने गली में घुसते समय नज़ीर को देखा था। तब उसे कोई शक नहीं हुआ था। उसे लगा था कि वह भी उसकी तरह किसी से मिलने आया होगा। पर जब वह अजय के घर से लौट रहा था तो एकबार फिर उसकी नज़र नज़ीर पर पड़ी। वह उसके पीछे पीछे चल रहा था। अब उसे दाल में कुछ काला मालूम पड़ा। वह चाय की दुकान में घुस गया। वह सोच रहा था कि क्या करे ? वह पक्के तौर पर यह नहीं कह पा रहा था कि नज़ीर उसके पीछे है। उसे लग रहा था कि कहीं वह कुछ अधिक तो नहीं सोच रहा है। हो सकता है यह आदमी किसी काम से अजय की गली में गया हो। वहाँ से लौटते हुए बाजार तो बीच में पड़ता ही है। तभी उसने नज़ीर को कांस्टेबल मनोज से बात करते देखा। एकबार फिर उसे शक हुआ। वह चांस नहीं लेना चाहता था। उसने इधर उधर देखा तो चाय की दुकान में एक और दरवाज़ा था। जहाँ से दूसरी तरफ निकला जा सकता था। वह फौरन वहाँ से निकल कर वापस अजय के घर गया। उसने अजय को अपना शक बताते हुए कहा,
"वैसे कुछ स्पष्ट तो नहीं है पर हमें सावधान रहना चाहिए। हम किसी और को इसके बारे में नहीं बताएंगे। अगर वह आदमी मेरा पीछा कर रहा था तो उसने तुम्हारा घर देख लिया है। इसलिए तुम मेरे साथ चलो।"
अजय उसकी बात मान गया। पर रास्ते में ही दोनों पकड़े गए।
अजय और पंकज को रानीगंज पुलिस स्टेशन ले जाकर उनसे पूछताछ की गई। दोनों ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें पुलिस बिना कारण परेशान कर रही है। उन्हें बिना किसी जुर्म के हिरासत में लिया गया है। पुलिस के पास भी यही एक मौका था। वह उन दोनों को अधिक देर हिरासत में नहीं रख सकती थी‌। उनका कहना सही था‌। पुलिस ने उन्हें कोई अपराध करते हुए नहीं पकड़ा था। ना उनके पास कोई प्रत्यक्ष सबूत था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को अपनी बाकी टीम के साथ रानीगंज पहुँचने में शाम हो चुकी थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे जानता था कि आसानी से इन लोगों से सच नहीं निकलवा जा सकता है। सख्ती करनी होगी। पर अभी उसके लिए वक्त नहीं था। उसने कहा,
"ये दोनों कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। लेकिन इनका संबंध बलि देने वाले ग्रुप से है। इनके हिरासत में होने की बात बाहर ना निकले। इन्हें तब तक अंदर रखो जब तक सच सामने ना आ जाए। हम अपने हिसाब से काम करेंगे।"
पुलिस के पास सिर्फ वाट्सअप का वह मैसेज था जो उन्हें भेजा गया था। जिसके आधार पर आगे बढ़ सकते थे। पर उसमें भी कुछ स्पष्ट नहीं था। उस मैसेज में लिखा था,
'आज रात मिलते हैं। रिंग रोड पर आगे चलकर पुराने मंदिर पर तुम्हारा साथी तुम्हें मिल जाएगा।'
मैसेज पढ़कर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी टीम से कहा,
"इसी मैसेज के सहारे आगे बढ़ते हैं। रिंग रोड पर कोई पुराना मंदिर है। वहाँ कोई मिलने वाला है। वह इन लोगों को कहीं ले जाएगा। वह जगह उस मंदिर के आसपास ही होगी।"
वह रुका। उसने नज़ीर और कांस्टेबल मनोज से कहा,
"तुम लोग उस मंदिर के आसपास किसी ऐसी इमारत को खोजो जो एकांत में हो। वही जगह है जहाँ इन्हें बुलाया गया है। ऐसी जगह मिलते ही खबर दो। पर सावधान रहना। थोड़ी सी भी चूक मुश्किल खड़ी करेगी।"
कांस्टेबल मनोज और नज़ीर फौरन अपने काम के लिए निकल गए।

कोठरी में कैद एसपी गुरुनूर कौर के ज़ेहन में शैतानी मुखौटे के पीछे से झांकती उस शैतान की आँखें घूम रही थीं। कोठरी से निकलने से पहले उसने कहा था कि तुम्हारी वर्दी मेरे काम आई। तबसे वह यही सोच रही थी कि उसके यह कहने का मतलब क्या था। जब भी उसका मन घबराता था तो मूल मंतर का पाठ कर वह खुद को हिम्मत देती थी। अभी कुछ समय पहले ही उसने पाठ किया था। उसके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ था। वह सोच रही थी कि उसे मरना तो है ही। पर वह इस तरह निष्क्रिय होकर नहीं बैठेगी। अपनी जान देगी तो लड़ते हुए।
वह सोच रही थी कि उस दिन उसे ना जाने क्या हो गया था। वह शैतान उसके सामने था। उसके हाथ पैर भी खुले हुए थे। पर डर ने उसे कायर बना दिया था। वह चाहती तो उस समय उसका मुखौटा खींच कर उसे बेनकाब कर सकती थी। लेकिन वह एक पुतले की तरह खड़ी रही। आज उसने तय कर लिया था कि अपनी ‌कोशिश ज़रूर करेगी।

कांस्टेबल मनोज मोटरसाइकिल चला रहा था। नज़ीर उसके पीछे बैठा था। रिंग रोड पर चलते हुए दोनों दाएं बाएं पुराना मंदिर देख रहे थे। दोनों काफी आगे निकल आए थे। तभी नज़ीर ने देखा कि दूर दाईं तरफ एक पेड़ के नीचे छोटी सी मठिया है। उसने कांस्टेबल मनोज का ध्यान उस तरफ दिलाया। कांस्टेबल मनोज मोटरसाइकिल उस मठिया के पास ले गया। मोटरसाइकिल खड़ी करके दोनों उतर गए। कांस्टेबल मनोज ने कहा,
"लगता तो यही है। मंदिर पुराना है। इसकी हालत देखकर लगता ‌है कि कोई यहाँ पूजा नहीं करता है।"
नज़ीर ने भी अपनी सहमति जताई। उसने इधर उधर देखकर कहा,
"जिस जगह की हमें तलाश है वह दाएं या बाएं किसी भी तरफ हो सकती है। हम दोनों को अलग अलग देखना होगा।"
कांस्टेबल मनोज ने कहा,
"तुम मंदिर के आगे बढ़ कर देखो। मैं दूसरी तरफ जाकर देखता हूँ।"
कांस्टेबल मनोज ने मोटरसाइकिल को झाड़ियों के पीछे खड़ा कर दिया। दोनों अपनी अपनी दिशा में चल दिए।

एसपी गुरुनूर कौर दृढ़ इरादे के साथ बैठी थी। जानती थी कि उसे अकेले ना जाने कितने लोगों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन वह अपने अंदर डर को नहीं आने दे रही थी। उसे किसी के आने की आहट सुनाई पड़ रही थी। उसने अपने आप को तैयार कर लिया था। कोठरी का दरवाज़ा खुला। मुखौटा पहने हुए उस शैतान ने अंदर प्रवेश किया। उसे देखकर शैतानी हंसी हंसकर बोला,
"अब तक सारा दम निकल चुका होगा। अगर अभी भी इस इंतज़ार में हो कि तुम्हारे लोग तुम्हें बचाने आएंगे तो भूल जाओ। उनके लिए तुम मर चुकी हो। तुम्हारी वर्दी में एक लाश उन्हें मिली थी। अब वो लोग तुम्हें नहीं ढूढ़ेंगे।"
एसपी गुरुनूर कौर ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। वह शैतान ज़ोर ज़ोर से हंस रहा था। उसने गुरु गोविंद सिंह को याद करते हुए मन ही मन दोहराया,
'चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ गिदरां नुं मैं शेर बनावाँ सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ'
उसके अंदर एक शक्ति का संचार हुआ। पूरी ताकत बटोर कर उसने उस शैतान को लात मारी। वह लड़खड़ा कर गिर गया। एसपी गुरुनूर कौर शेरनी की तरह उसकी छाती पर चढ़कर बैठ गई। उसने उसका मुखौटा खींचकर उतार दिया। उसका चेहरा देखकर एसपी गुरुनूर कौर के मुंह से निकला,
"सिवन....."
सिवन अपनी असलियत सामने आने से बौखलाया हुआ था। उसका साथी कोठरी के अंदर आ गया था। जांबूर का चेहरा और नाम जानकर वह भौचक खड़ा था। एसपी गुरुनूर कौर ने फुर्ती से उठकर उस पर वार किया और कोठरी से बाहर भाग गई। सिवन ज़ोर से चिल्लाया,
"खड़े क्या ‌हो पकड़ो इसे।"
उसका साथी भी तेज़ी से एसपी गुरुनूर कौर की तरफ लपका। कोठरी से निकल कर एसपी गुरुनूर कौर बाहर की तरफ भाग रही थी तभी अचानक रंजन सिंह उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर एसपी गुरुनूर कौर को आश्चर्य हुआ। उसने कहा,
"सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह....."
रंजन सिंह ने हंसते हुए कहा,
"जी मैडम..... मैं सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह हूँ। पर आप इस तरह उछल कूद बेकार मचा रही हैं। कोई फायदा नहीं है। आप बचकर नहीं निकल पाएंगी।"
यह कहकर उसने एसपी गुरुनूर कौर को पकड़ने की कोशिश की। एसपी गुरुनूर कौर ने उस पर भी वार किया। लेकिन उसने खुद को बचा लिया। एसपी गुरुनूर कौर को बालों से पकड़ कर बोला,
"बेवजह दम दिखाने का कोई मतलब नहीं है। आप जीते जी यहाँ से नहीं जा सकती।"
उसी समय सिवन भी वहाँ आ गया। उसने एसपी गुरुनूर कौर को मीटिंग वाले कमरे में ले जाने को कहा।

अंधेरा हो गया था। नज़ीर एक मकान के सामने खड़ा था। यह मकान एकांत में था। इसके आसपास और कोई मकान नहीं था। मकान के चारों ओर ऊंची ऊंची चारदीवारी थी। मकान किसी किले की तरह लग रहा था। नज़ीर को यकीन हो गया कि यह वह जगह हो सकती है जिसकी तलाश में वह आया था। वह मकान के चारों तरफ घूमकर अंदर क्या हो सकता है अंदाज़ लगाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा था। उसने सोचा कि वह कांस्टेबल मनोज को फोन करके बुला ले। वह फोन कर रहा था कि तभी किसी ने उसके सर पर वार किया। वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
कांस्टेबल मनोज के फोन पर नज़ीर की कॉल आई लेकिन जब उसने फोन उठाया तो कॉल कट गई। उसने पलट कर फोन मिलाया तो फोन नहीं लगा। वह परेशान हो गया। उसे समझते देर नहीं लगी कि कुछ गड़बड़ है। उसने सबसे पहले सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को इसकी सूचना दी। उन्हें उस पुराने मंदिर के पास आने को कहा। वह खुद उसी जगह पर रुककर इंतज़ार करने लगा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ‌प्रतीक्षा कर रहा ‌था कि उसे कोई अच्छी खबर सुनने के मिले। कांस्टेबल मनोज ने जब उसे सारी बात बताई तो बिना कोई देरी किए वह अपनी टीम के साथ चल दिया।