Saheb Saayraana - 39 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | साहेब सायराना - 39

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साहेब सायराना - 39

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नए ज़माने के दमदार एक्टरों में से एक आशुतोष राणा ने भी अनजाने में ही दिलीप कुमार को लेकर एक बहुत बड़ी बात कह डाली।
अभिनेता रजा मुराद भी दिलीप साहब के बहुत करीब रहे। उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम भी किया। "कानून अपना अपना" में उन्हें ये अवसर मिला। रजा मुराद ने केवल दिलीप कुमार की तारीफ़ ही नहीं की बल्कि उनके कई राज भी खोले।
उम्र की अधिकता के साथ - साथ यूसुफ साहब की खाने की थाली पर डॉक्टरों की निगाह भी कुछ पैनी होती चली गई। ऐसे में डॉक्टरों के कानून को सायरा जी एक कड़े प्रशासक की तरह लागू भी करतीं क्योंकि उन पर दिलीप साहब को सेहतमंद बनाए रखने की जिम्मेदारी जो थी।
लेकिन दिलीप साहब के साथ उनका ये अनुशासन का खेल बिल्कुल उसी तरह चलता कि तू डाल डाल मैं पात पात। दिलीप साहब अपने मनपसंद खाने का जुगाड़ किसी न किसी तरह कर ही लेते। उन्हें खाने में अंडा बहुत पसंद रहा। तो डॉक्टर के मना करने के बाद भी दिलीप कुमार ऐसा न जाने क्या करते कि कोई न कोई अंडा दे ही देता।
एक बार तो शूटिंग के लिए उत्तर प्रदेश आए दिलीप साहब ने अपने एक होटल मालिक मित्र की मदद से अपने लिए लज़ीज़ रोगनजोश पकवा लिया और उसे सायरा जी की निगाह से बचने के लिए शूटिंग यूनिट में न मंगवा कर होटल में रजा मुराद के कमरे में बैठ कर खाया गया।
रजा मुराद ऐसे कई किस्से यादों में लिए हुए बताते हैं।
आशुतोष राणा कहते हैं कि उन्हें एक बार एक कार्यक्रम में दिलीप कुमार के सामने पड़ जाने का मौका भी मिल गया। राणा ने उनके पांव छुए और देखते रह गए उस हस्ती को जिसकी फिल्में देखते हुए बड़े हुए थे।
अपना परिचय कैसे दें, इस उधेड़बुन में आशुतोष राणा को याद आया कि हाल ही में उनकी फ़िल्म "दुश्मन" काफ़ी सराही गई है। राणा को इस फ़िल्म में "बेस्ट एक्टर इन नेगेटिव रोल" के फ़िल्म फेयर अवार्ड के साथ- साथ अन्य कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। बस, दिलीप साहब से मुखातिब राणा ने यही कहा कि मैं आशुतोष राणा, अभी मैंने दुश्मन में काम किया था जिसे पुरस्कार देकर सराहा गया... लेकिन आशुतोष उस समय दंग रह गए जब दिलीप कुमार ने कहा कि हां, मैंने तुम्हारा काम देखा है... बस इसी चाल से चलते जाओ और एक दिन ज़माने से कहना "मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे तो फ़िर मेरी चाल देख ले"! कह कर दिलीप साहब ठहाका मारकर हंस पड़े।
ये संयोग ही था कि ये गुदगुदाता हुआ नमकीन गीत दिलीप कुमार की फ़िल्म "संघर्ष" का था और इसी नाम की दोबारा बनी फ़िल्म संघर्ष में आशुतोष राणा ने ही काम किया है।
नए कलाकारों को अपनी बेशकीमती सलाह देने के सवाल पर दिलीप साहब की ये मिसाल आसानी से भुलाई नहीं जा सकती जो उन्होंने एक तरह से काफ़ी खुलकर ही नहीं बल्कि समझा कर कही। दिलीप कुमार कहते हैं "तुम्हारी अभिनय क्षमता ठीक इसी तरह से है मानो तुम्हारे पास बाज़ार में बेचने के लिए कुछ खिलौने हों"! अब यह तुम्हारी स्किल है कि तुम अपने खिलौने पांच साल में ही बेचकर बाज़ार से गायब हो जाओ या फिर धैर्य के साथ लंबी पारी खेलते हुए पचास साल तक नए नए खिलौने गढ़ते रहो और अपना कारोबार करते रहो।
दिलीप कुमार का यह कटाक्ष चंद ऐसे व्यावसायिक बुद्धि के नायकों पर भी बौछार डालता है जिनकी हर शुक्रवार को नई फ़िल्म रिलीज़ होती है। लेकिन उनके पूरे करियर में उल्लेख कर पाने योग्य असरदार फ़िल्में अंगुलियों पर गिनने लायक नाममात्र की ही निकलती हैं।
दिलीप कुमार की इस खासियत का खुलासा खुद सायरा बानो ने भी कई बार किया कि यूसुफ साहब को परफेक्शन के साथ चुनिंदा कम फ़िल्में ही करना हमेशा पसंद रहा। सायरा जी इस मामले में आमिर ख़ान, शाहरुख खान और सलमान खान का नाम लेना भी नहीं भूलतीं जो इस मामले में दिलीप साहब का अनुसरण कर रहे हैं और बेहतर लेकिन कम काम करने के हिमायती हैं।
आशुतोष राणा तब थ्रिल्ड हो जाते हैं जब लिविंग लीजेंड युग नायक दिलीप कुमार इतनी महत्वपूर्ण बात उनसे कहते हैं। राणा कहते हैं कि उनसे मिल कर मेरे पांव जैसे कांपने लगे, मेरे बाल खड़े हो गए... मेरी नाभि के आसपास जैसे कोई लहर सी चलने लगी... ये ही वो वेगवती लहर है जिसे यूसुफ साहब ने अपने चाहने वालों के दिल में हमेशा पैदा किया, क्या लड़कियां और क्या लड़के!