PHANS GAYA GULSHAN - 3 in Hindi Fiction Stories by BRIJESH PREM GOPINATH books and stories PDF | फंस गया गुलशान - 3

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फंस गया गुलशान - 3

श्री गणेश आय नम:

Recap: पिछले अंक में आपने पढ़ा गुलशन को दिल्ली से नौकरी का कॉल आता है, वो बहुत खुश है लेकिन उसकी प्रेमिका के घरवाले उसकी शादी कहीं और तय कर रहे हैं. गुलशन किसी तरह कुछ समय बिताने के लिए कहता है, नौकरी करते ही शादी करने की बात कहता है, दोनों पार्क में मिलकर सारी बातें करते हैं...अब आगे 

रात करीब एक बजे का वक्त था...पूरा गांव नींद में डूबा था, कभी कभी किसी कुत्ते के भोंकने से शांति भंग हो जाती, ठंड भी आज बढ़ गई थी...रजाई ओढ़ कर गुलशन मोबाइल पर सोनी से बात कर रहा था... “मेरी जान...तू आज बोत सोणी लग रही थी...मन कर रहा था बस तुझे बांहों से अलग न होने दूं” ... “अच्छा...फिर मेरे बगैर कैसे रह पाएगा तू दिल्ली में”...सोनी के सवाल पर गुलशन इमोशनल हो गया, “सोच के घबराहट होती है सोनी...तुझे एक दिन न देखूं तो चैन नहीं आता...कैसे रहूंगा पता नहीं”... “अच्छा अच्छा मुझे बुद्धु न बना...मालूम है मुझे...दिल्ली की लड़कियां बड़ी तेज़ होती हैं, टाइट जीन्स और लो-कट टॉप पहन कर लड़कों को पटा लेती हैं”... “कैसी बात कर रही है सोनी यार, क्या मैं वहां लड़की पटाने जा रहा हूं, मेरे ऊपर तुझे भरोसा नहीं है”...क्या पता, निक्की तो मेरे से ऐसा ही कह रही थी”... “ओए क्या बकवास कर रही है, तेरी दोस्त है नहीं तो सच में निक्की की तो मैं”... “अच्छा कसम खा...तू वहां किसी लड़की को नहीं पटाएगा” सोनी ने गुलशन की बात काटते हुए... “कसम खाता हूं...अब खुश”... “मुझे कब बुलाओगे”... “बोहोत जल्द जानू...“अच्छा एक पप्पी तो दे ”, गुलशन की डिमांड पर सोनी कुछ जवाब देती तभी बाहर दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से खटखटाने की आवाज़ आई...गुलशन ने सोनी से कहा... “मैं तेरे से बाद में बात करता हूं”...गुलशन ने फोन काटा, रजाई से निकला,  पैरों में चप्पल और ऊपर जैकेट डालते हुए तेज़ी से दरवाज़े की ओर भागा... “गुलशन, गुलशन”... कोई दरवाज़े की कुंडी खटखटाने के साथ ही आवाज़ भी लगा रहा था... “ठहर जा भाई आ रहा हूं, कौन है, गुलशन ने अंदर से पूछा... “मैं रंधीर”...गुलशन ने दरवाज़ा खोला... “क्या हुआ रंधीर”... “पिताजी की तबियत बहुत बिगड़ गई है” रंधीर ने घबराते हुए एक सांस में बात पूरी की...रंधीर गुलशन के पड़ोस में ही रहता था, तब तक जोगिंदर सिंह भी बाहर आ गए, “क्या बात है”... “कुछ नहीं आप दरवाज़ा बंद कर लो रंजीत अंकल की तबियत खराब हो गई है, उन्हें हॉस्पिटल लेकर जा रहे हैं”...इससे पहले की जोगिंदर सिंह कुछ समझते या और सवाल करते गुलशन रंधीर के साथ बाहर निकल गया.

गुलशन ने बाइक तेज़ी से सिटी हॉस्पिटल के इमरजेंसी के सामने खड़ी की...बीच में रंजीत सिंह निढाल पड़े थे और पीछे उनका बेटा रंधीर उन्हें पकड़ कर बैठा था...गुलशन ने बाइक खड़ी करते करते ज़ोर से आवाज़ लगाई, “अरे डॉक्टर साहब जल्दी आओ इमरजेंसी है”, गुलशन की आवाज़ सुनते ही अंदर से एक वार्ड बॉय भागता हुआ बाहर आया, “जा जल्दी स्ट्रेचर लेकर आ खोते खाली हाथ आ गया”...गुलशन ने डांट पिलाई तो वार्ड बॉय तेज़ी से अंदर भागा और फिर स्ट्रेचर लेकर लौटा...तब तक डॉक्टर भी आ चुका था, स्ट्रेचर पर रंजीत सिंह को लेकर गुलशन रंधीर और वार्ड बॉय तेज़ी से अंदर भागे...कुछ ही देर में एक और डॉक्टर आया और तेज़ी से ऑपरेशन थियेटर में चला गया...रंधीर के आंसू रुक नहीं रहे थे, गुलशन उसे लगातार ढांढस बंधा रहा था.

करीब 2 घंटे बाद डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर आया...“तुम लोगों ने ज़रा सी देर की होती तो बचाना मुश्किल होता” हार्ट अटैक था, दो नलियां ब्लॉक थीं...वो अब ठीक हैं, लेकिन अभी मिल नहीं सकते”...तुम लोग बाइक पर ही ले आए, ये अच्छा किया”, thank you very much डॉक्टर साहब, गुलशन ने डॉक्टर का शुक्रिया किया तभी भागता हुआ वीरा भी पहुंच गया, ओए गुल्लू सब ठीक तो है, हां यार ठीक है, रंजीत अंकल निम्मो को लेकर कुछ ज़्यादा ही टेंशन में हैं, हार्ट अटैक आ गया”, तभी रंधीर ने गुलशन के कंधे पर हाथ रखकर भर्राई आवाज़ में कहा... “गुल्लू..तू नहीं होता तो”... “ओए...चुप्प कर...रंधीर...नहीं तो दूंगा उल्टे हाथ का”, रंधीर गुलशन सब एक ही उम्र के थे, निम्मो रंधीर की छोटी बहन थी जिसकी शादी के लिए रंजीत सिंह काफी परेशान थे, एक बार रिश्ता टूट चुका था...तभी गुलशन के मोबाइल की घंटी बजी...सोनी कॉलिंग...फोन उठाकर किनारे जाकर गुलशन धीमे से बोला, “अरे तू सोई नहीं”... “क्या हुआ तूने कुछ बताया भी नहीं और फोन काट दिया”... “यार वो पड़ोस में रंजीत अंकल को अटैक आया था...उन्हें लेकर हॉस्पिटल आ गया था, बड़े टाइम से पहुंच गए यार वाहे गुरू की बड़ी मेहर है अंकल ठीक हैं...सोनी, रंजीत अंकल को देखकर मुझे बड़ा डर लग गया है यार...मैं चला जाउंगा तो मेरे पीछे पिताजी, मां को कौन देखेगा” गुलशन काफी इमोशनल हो गया था...दूसरी ओर से सोनी ने गुलशन को ढाढस दिया, अरे तू फिक़र न कर...उन्हें कुछ नहीं होगा...मैं हूं न...इतने सारे लोग हैं यहां, तू दिल्ली जा...हम सब हैं यहां उन्हें देखने के लिए...अच्छा रखती हूं, लगता है मां जाग गई है...लव यू”... “लव यू टू”...गुलशन की आवाज़ में चिंता अब भी झलक रही थी...

“कैसे हैं रंजीत भाईसाहब”...मां ने पूछा, “ठीक हैं मां”... “ तेरे पिताजी बता रहे थे, तू रात में चला गया था...कब लौटा”... “सुबह 5 बजे”... “फिर इतनी जल्दी क्यों उठ गया बेटा”...और ये गाय का चारा क्यों लगाने लगा, ठंड भी है, तुझे आदत नहीं है”, मां ने चिंता जतायी तो गुलशन बोला, “अरे कुछ नहीं मां, बस नींद नहीं आ रही थी तो मैंने सोचा लाओ आज बुड्ढे को थोड़ा आराम दे दूं” बुड्ढे ने सुन लिया तो तेरे साथ मैं भी पिटुंगी”, मां ने हंसते हुए कहा, लेकिन “बेटा आजकल बड़ी चिंता करते हैं, जब से तेरा दिल्ली जाने का सुना है तब से ज़्यादा परेशान हैं”,... “मेरे पीछे तुम दोनों अपना ख़याल रखना, मै रोज़ फोन करुंगा”...गुलशन मां से लिपट गया...उसकी आंखों में आंसू आ गए...मां ने पुचकारा... “अरे बेटा...हम लोग ठीक से रहेंगे तू बिल्कुल चिंता मत कर...जा मन लगाकर काम कर...जल्दी से वापस आ फिर सोनी से तेरी शादी करनी है”...उसने चौंक कर मां को देखा...तुम्हें किसने बताया... “तेरी मां हूं” तभी जोगिंदर सिंह की आवाज़ आई, “गुलशन की मां कहां हो”, आवाज़ सुनते ही मां बेटे दोनों अटेंशन की मुद्रा में आ गए, “अरे ये गायों का तसला कहां गया, कोई सामान अपनी जगह नहीं रखते”, बड़बड़ाते हुए जोगिंदर सिंह आंगन के किनारे गाय के बाड़े की ओर पहुंचे तो गायों को चारा खाते देख चौंक गए, अरे इन्हें चारा किसने दिया, वो सोचने लगे, क्या मैं नींद में उठा था, वो सोचते हुए आंगन की ओर आते हैं, किचन के बाहर से आवाज़ लगाते हैं, “अरे गुलशन की मां ये गायों को चारा किसने दिया”, “गुलशन ने”,मां को छोटा सा जवाब सुन जोगिंदर सिंह हैरान हो जाते हैं, “अच्छा आज सूरज किधर से निकला”, न घर न बाहर किसी काम में इसका दीदा लगता नहीं, आज गायों को चारा दे रहा है, दिल्ली में क्या करेगा मालूम नहीं”, तुम तो हर समय मेरे बेटे की कमियां गिनाते रहा करो, जोगिंदर सिंह चाहे जितना मर्ज़ी गुलशन को बुरा भला कहते हों लेकिन सच्चाई ये थी कि वो उसके बिना रह नहीं सकते थे, उसके दिल्ली जाने की बात से अंदर ही अंदर बेहद दुखी थे, उनका बिल्कुल मन नहीं था कि गुलशन दिल्ली जाए लेकिन घर की हालत ऐसी हो गई थी कि वो मना नहीं कर सकते थे और अपना दुख चेहरे पर दिखाना भी नहीं चाहते थे.

दिन तेज़ी से निकल रहे थे, गुलशन के दिल्ली जाने का वक्त पास आ रहा था, धीरे धीरे वो अपना सामान पैक कर रहा था, ज़रूरी कागज़, कपड़े याद कर कर के रख रहा था तभी जोगिंदर सिंह की आवाज़ कानों में पड़ती है, गुलशन सिर हिलाता है...

जोगिंदर सिंह सब्ज़ी वाले को डांट रहे थे... “तूने हर चीज़ के रेट डबल कर रखे हैं...मैं तो मंडी जा नहीं सकता...मेरा बेटा नालायक है...वो जाएगा नहीं, तू खूब फायदा उठा”... “अरे बाबूजी...कुछ बचता ही नहीं”... “हां हां बचता नहीं, तू तो समाज सेवा कर रहा है”...तभी दौड़ते हुए 10-12 साल का प्रिंस आता है... “गुलशन भइया...गुलशन भइया”...गुलशन अंदर से दौड़ कर आता है... “क्या बात है प्रिंस”... “भइया...कुछ लोग मंजीत को पीट रहे हैं...क्या...बिना सोचे समझे गुलशन दौड़ते हुए बाहर निकल जाता है...जोगिंदर सिंह उसे आवाज़ देते रह जाते हैं... “दूसरों के फटे में टांग अड़ाने के चक्कर में ये किसी दिन बड़ी मुसीबत में फंसेगा देख लेना...मैं तुमसे कितनी बार कहता हूं समझाओ इसे...दिल्ली में कोई नहीं होगा रोकने वाला...क्या करेगा वहां”... “बाबाजी मेरे बेटे की रक्षा करना”...बेटे के लिए चिंता ज़ाहिर करते देख मां की आंखों में भी आंसू आ गए...

गुलशन गली के नुक्कड़ पर पहुंचा उसने देखा चार लड़के मंजीत को पीट रहे हैं...जाते ही गुलशन उनसे भिड़ गया...एक एक कर उसने चारों की धुनाई कर दी...एक को उसने पकड़ लिया...रंधीर ने कहा गुलशन यही है जो मोहिनी को छेड़ता है...गुलशन ने दो तीन करारे दिये उसके चेहरे पर फिर मुर्गा बना कर कहा...अब अगर तूने उसकी तरफ देखा या छेड़ने की कोशिश की तो पैरों पर नहीं जाएगा...माफी मांग...तभी मोहिनी भी आ जाती है...गुलशन प्राजी ये ज़बर्दस्ती मेरा रास्ता रोकता है और गंदी गंदी बातें करता है...अब नहीं करेगा...माफी मांग...बोल बहनजी अब नहीं करूंगा...लड़का मोहिनी के पैर पर गिर जाता है...मुझे माफ कर दो बहनजी...

गुलशन और सोनी नदी किनारे बैठे हैं...गुल कितनी जल्दी ये एक हफ्ता गुज़र गया...मुझे लग रहा है जैसे कोई मेरा दिल निकाल कर लिए जा रहा है...तू कुछ बोलता क्यों नहीं...आज तेरी अंग्रेज़ी को क्या हुआ...गुलशन ने कुछ नहीं कहा बस एकटक नदी की ओर देखे जा रहा था...क्या हुआ तू कुछ कहता क्यों नहीं...सोनी ने गुलशन के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा...सोच रहा हूं...अगर मुझे दिल्ली में कोई लड़की पसंद आ गई तो...सोनी ने अपने को दूर करते हुए कहा...क्या...मैं तेरा खून कर दूंगी...गुलशन भागा और उसके पीछे सोनी...कुछ दूर भागने के बाद दोनों रुक गए...सोनी गुलशन के सीने पर दोनों हाथों से मार रही थी और रोने का बहाना करते हुए कह रही थी...अगर तूने ऐसा किया तो... मैं भी तेल वाले से शादी कर लूंगी...मुझे सस्ता तेल दोगी क्या...सोनी ने गुस्से से उसे देखा तो गुलशन हंसा पड़ा...हा हा हा...अरे मेरी जान...इस जहां में तेरे सिवाय अगर अप्सरा भी स्वर्ग से उतर आए तो मैं उसे न देखूं तू दिल्ली की लड़कियों की क्या बात करती है...तुझे पता नहीं मैं तुझसे कितना प्यार करता हूं...सोनी खुश हो गई...मुझे मालूम है...तेरी तैयारी हो गई...शेविंग किट रख ली...नई पैंट सिलने को दी थी वो ले ली...और हां तेरे कुर्ते के बटन टूटे हुए थे लेकर आए हो...हां यार अच्छा याद दिलाया...बैग में पड़े हैं...मैं सुई धागा लाई हूं...सोनी गुलशन के कुर्ते में बटन टांकती है...दिल्ली में टूट गया तो कौन टांकेगा...करीना...इतना कहते ही सोनी को गुस्सा आया और सुई उसकी उंगली में चुभ गई...खून की बूंद निकल आई...गुलशन ने फौरन सोनी की उंगली मुंह में दबा ली...ध्यान से काम नहीं करते बनता तुमसे...ऐसी बात करते हो फिर मुझे ही डांटते हो...सीरियस होते हुए सोनी बोली...अच्छा बाबा...अब नहीं करूंगा...कल कितने बजे निकलोगे...सुबह आठ बजे...मैं बस स्टैंड आ जाऊंगी...कैसे आएगी...आ जाऊंगी...सोनी का चेहरा दोनों हाथों में लेते हुए गुलशन बोला...जान...कुछ भी हो जाए...तू किसी भी तरह अपने घरवालों को दो तीन महीने रोक लियो...बस मैं उस तेलवाले से ज़्यादा कमा कर दिखाउंगा...गुल तुझे लगता है मैं शादी कर लूंगी...जान दे दूंगी पर शादी किसी और से नहीं करूंगी...गुलशन ने सोनी को सीने से लगा लिया...

वीरा आवाज़ लगा रहा है घर के बाहर से...ओए गुल्ले बस निकल जाएगी...जल्दी कर ले यार...गुलशन ने पिताजी और मां के पैर छुए...दोनों की आंखों में आंसू थे...बेटा ध्यान रखना अपना, मां बोली...पिताजी ने कुछ नहीं कहा...दूसरी ओर मुंह घुमा लिया...तुम तो बोहोत खुश होगे...डांटने के लिए कोई होगा नहीं...तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ काम करने वाला कोई होगा नहीं...लेकिन तुम मुझे बोहोत प्यार करते हुए मालूम है मुझे...रात में देखने आते हो मैंने चादर ओढ़ी है या नहीं...क्यों...फिकर नॉट डैड...दिल्ली से तुम्हारे लिए बरमूडा लेकर आउंगा...एकदम मॉडर्न डैड बना दूंगा तुम्हें...सुबह जब सैर पर जाओगे न तो लोग कहेंगे जोगिंदरे तू तो बड़ स्मार्ट हो गया है...और हां दिल्ली की लड़कियों को बताउंगा कि जोगिंदर कितना स्मार्ट प्यों है...पिताजी ने कोई जवाब नहीं दिया...दूसरी ओर मुंह किए रहे...उनकी आंखों से आंसू निकले जा रहे थे...अपना ख़याल रखना...गुलशन ने पिता को कहा और उनके पैर छूकर अपने आंसू रोकते हुए बाहर निकल गया...

बस स्टैंड पर दिल्ली जाने वाली लोकल बस में गुलशन चढ़ गया...उसका सामान वीरा ने ऊपर लदवा दिया...यार सोनी नहीं आई...आ रही होगी...वीरा एक काम कर मैं पोहंचता हूं न उसके बाद तू भी आ जा दिल्ली...सुन मामाजी का एड्रेस रख लिया है न...दिलशाद गार्डन में रहते हैं...यार कितनी बार बताएगा...मुझे याद हो गया है...पॉकेट ए हाउस 32 डी...हां ठीक है...सुन मैंने मामाजी को सब समझा दिया है...तू आराम से वहां एक महीना रह सकता है...यार मैं कोशिश करुंगा मुझे रूम मिल जाए...अबे तू पागल है...मामा मामी अकेले हैं...बच्चे सब बाहर हैं...एक रूम खाली रहता है...तुझे करना क्या है...रात भर तू ऑफिस में रहेगा...सुबह आकर सो जाएगा...वो तो ठीक है यार लेकिन...तू संकोच मत कर...मामाजी बड़े मस्त हैं यार...तभी सोनी आती दिखाई दी...कितनी देर लगा दी तुमने...अरे यार किसी तरह बहाना बनाकर आई हूं...तभी बस ने हॉर्न दिया...गुलशन ने पहले गुस्से में फिर प्यार से सोनी की तरफ देखा...वीरा ने चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया...गुलशन ने सोनी को बाहों में ले लिया...सोनी ने कहा मैं इंतज़ार करूंगी मरते दम तक...चलो भई बस छूट रही है...कंडक्टर की आवाज़ सुनते ही सोनी ने कहा अरे छोड़ो न जाओ बस जा रही है...अरे कहीं नहीं जाएगी...तू ऐसे ही रह...क्या कर रहे हो...सब देख रहे हैं...देखने दे...मुझे ये खुशबू दिल्ली में कहां मिलेगी...I LOVE YOU…तभी कंडक्टर ने फिर आवाज़ दी...ओए तेरे लिए बस रुकी नहीं रहेगी...यही सब करना है तो करते रहो...टैक्सी से आ जाना...वीरा की आवाज़ आई ओए गुल्ले बस जा रही है...गुलशन ने कंडक्टर से विनती की, यार कंडक्टर साहब लड़की देर से आई, थोड़ा वक्त दे दो, ओए लड़की देर से आई तो बस को लेट कर दूं, ये सुन गुलशन को सोनी ने झटका दिया तो वो बस की तरफ भागा...कंडक्टर ने कहा ये सब कुछ पहले ही कर लेते...क्या कर लेते...गुलशन ने कंडक्टर को घूरा तो उसने कहा बैठो अपनी सीट पर...कंडक्टर सोनी का रिश्तेदार है क्या ये भी हमारा दुश्मन हो गया...बड़बड़ाते हुए गुलशन अपनी सीट पर बैठ गया...खिड़की से आधा बाहर लटक कर गुलशन सोनी और वीरा को तब तक हाथ हिलाता रहा जब तक वो नज़र आते रहे...

दिल्ली पहुंचने पर गुलशन की ज़िन्दगी में क्या मोड़ आता है, अगले एपिसोड में.

                                                                                                                                                                                                  TO BE CONT: