Mamta ki Pariksha - 9 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 9

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ममता की परीक्षा - 9



रजनी की आँखों से बहते आँसू देखकर सुधीर और बिरजू को भी अहसास हो गया था कि कोई बहुत खास बात है जिससे यह लड़की परेशान हो गई है,.. लेकिन क्या ? राधे और मन्नू भी हैरत से रजनी की तरफ देखे जा रहे थे। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, लेकिन कयास लगाने के अलावा वे सब और कुछ कर भी तो नहीं सकते थे। अभी तो उनमें से किसी को भी लड़की का नाम भी नहीं पता था।
आँखों में उमड़ आई गंगा जमुना को बाहर आने से रोकने का भरसक प्रयास करते हुए रजनी ने मोबाइल में आगे पढ़ना शुरू किया ...........' मैं अपने आपको खुशकिस्मत समझता रहा कि मुझे तुम जैसी समझदार, खूबसूरत व सुलझी हुई लड़की प्रेयसी के रूप में मिली है। धीरे धीरे हमारा प्यार अपनी मंजिल की तरफ यानी शादी की तरफ अग्रसर हो रहा था, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ? विधि ने शायद हमारे भविष्य में कुछ और ही लिखा है। कल शाम तुम्हारे पिताजी सेठ जमनादास जी मिले थे। अब तुम यह मत समझ लेना कि उन्होंने मुझसे कुछ बुरा भला कहा या धमकी दी जैसा कि ऐसे किस्सों में आम तौर पर होता है। उन्होंने तो मुझसे यह तक नहीं पूछा कि तुम कहाँ रहते हो ? कितना कमाते हो ? घर में और कौन है ? सामाजिक हैसियत क्या है ? तुम्हारा खानदान कैसा है ? जाति कौन सी है ? कहाँ के हो ? यकीन मानो ! उन्होंने इनमें से कुछ नहीं पूछा। जानती हो क्यों ?
क्योंकि मैंने उनकी नजरों में तुम्हारी चिंता ,और इसी के साथ तुम्हारे लिए गहरा प्यार पहले ही देख लिया था। सब कुछ होते हुए भी एक बेटी का बाप कितना मजबूर हो सकता है, यह मैंने कल महसूस किया था। काँपते स्वर में उन्होंने मुझसे इतना ही कहा था, " बेटा ! रजनी हमारी इकलौती लड़की है। बड़ी नाजों से हमने उसे पाला है। दुःख या तकलीफ या किसी चीज की कोई कमी क्या होती है, यह उसे पता ही नहीं है। बस ये समझ लो वह हमारे जिगर का टुकड़ा है और तुम समझ सकते हो कोई भी बाप किसी को भी यूँ ही अपने जिगर का टुकड़ा नहीं सौंप देता। रजनी ने अपने लिए तुम्हारा चुनाव किया है। मुझे उसके चुनाव पर कोई शक नहीं लेकिन फिर भी उसके भविष्य की चिंता तो मुझे रहेगी ही। मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए बेटा, और न मुझे तुम्हारी कोई परीक्षा ही लेनी है। मेरी बेटी '' दास एंड कंपनी ' के अरबों के साम्राज्य की इकलौती वारिस है। पैसा कोई मायने नहीं है मेरे लिए। मैं बस इतना चाहता हूँ कि तुम काबिल बन जाओ मेरा यह अरबों का व्यापार संभालने के लिए। तब तक रजनी की भी पढ़ाई पूरी हो जाएगी।" कहकर वह खामोश हो गए थे। उनके शब्दों में उनकी बेबसी साफ झलक रही थी। उन्हें तुम्हारे विद्रोही स्वभाव की जानकारी तो है ही। उनकी बातों से मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह न चाहते हुए भी तुम्हारा फैसला मानने को मजबूर थे। उनकी बेबसी देखकर मेरा जमीर मुझे धिक्कारने लगा और उसी वक्त मैंने एक फैसला कर लिया। मेरा दिल मेरी आत्मा बिल्कुल इस फैसले के खिलाफ है लेकिन मेरा दिमाग कह रहा है कि 'नहीं ! यह फैसला सही है और फैसला ये है कि मैं तुमसे और तुम्हारी दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए दूर चला जाऊँ ! ' .......

रजनी आगे और पढ़ नहीं सकी। बड़ी देर से काबू किये अपने जज्बात पर वह और काबू नहीं रख सकी और फूट फूट कर रो पड़ी और मोबाइल हाथ में थामे हुए बिलखते हुए अपने कार की तरफ दौड़ पड़ी। कार की पिछली सीट पर औंधे मुँह गिरकर वह चीत्कार कर उठी। उसके करुण क्रंदन से पीछे भागकर आये बिरजू की आँखें भी नम हो गई थीं। सुधीर, राधे और मन्नू भी भावुक होकर दूर से बस उसे निहारे जा रहे थे।

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अमर ऑफिस में बैठा बड़ी शान्ति से कल से घटित हो रहे घटनाक्रम का विश्लेषण कर रहा था और एक एक बात पर विचार कर रहा था। ऊपर से तो वह सामान्य ही नजर आ रहा था लेकिन उसके दिलोदिमाग में मची हलचल उसके दिल की धड़कनों को असामान्य बना रही थीं। जब से उसने व्हाट्सएप पर रजनी के नाम संदेश भेजा था उसके दिल और दिमाग में भयंकर द्वंद्व छिड़ा हुआ था। अपने इस कृत्य पर जहाँ उसका दिमाग उसके फैसले के साथ था वहीं उसका दिल उसे इस फैसले के लिए बार बार धिक्कार रहा था। वह कुछ देर शांत रहकर मानसिक शांति हासिल करने का प्रयास कर रहा था कि तभी उसके दिल के किसी कोने से आवाज आई, 'वाह ! क्या अंदाज हैं तुम्हारे ! किसी को जिंदगी भर का गम देकर अपने लिए शांति की कामना कर रहे हो ? तुम्हें तनिक भी उस मासूम पर रहम नहीं आई कि तुम्हारे ऐसा कहने से उसके दिल पर क्या बीतेगी ? क्या वह जिंदा रह भी पाएगी तुम्हारे बिना ? और तुमने तो यह भी नहीं सोचा कि जब वो तुम्हारा यह संदेश पढ़ेगी उसी समय अगर उसने भावुकता में आकर कोई खतरनाक कदम उठा लिया तो ....? उसका जिम्मेदार कौन होगा ? '

तभी उसके दिमाग ने सफाई दी ' नहीं ! रजनी पढ़ीलिखी समझदार लड़की है। भावुकता में आकर वह कोई भी गलत कदम उठाने से पहले दस बार सोचेगी। मुझे पूरा विश्वास है उसपर, और देखो ! दुनिया सिर्फ दिल की आवाज पर ही नहीं चलती। दिल तो जंगल में भी जन्नत का नजारा देख लेता है लेकिन क्या वाकई होता है ऐसा ? नहीं न ? किसी भी चीज के बारे में दिमाग की कसौटी पर परखकर लिया गया फैसला सही माना जाता है। कल्पना करो अमर और रजनी की शादी हो गई है। शादी के बाद रजनी अमर के साथ रहने के लिए उसके दो कमरे वाले किराये के मकान में आ गई है। कुछ दिन तो अभावों में रहकर भी रजनी बहुत खुश रहेगी, लेकिन आखिर कब तक ? प्यार के सहारे कितने दिन वह अभावों को झेल पाएगी ? जितनी अमर महीने भर में कमाता है उससे कहीं अधिक रजनी का जेबखर्च होता है। चलो मान भी लिया कि रजनी समझदार है। अमर के प्यार के अलावा उसे और कुछ नहीं चाहिए लेकिन जब उसकी सहेलियाँ अपनी नई चमचमाती कार में अपने रईस पतियों के साथ उससे मिलने आएंगी तो क्या उसका दिल खून के आँसू नहीं रोयेगा ? क्या वह अपने फैसले पर नहीं पछताएगी ? क्या अपने सामाजिक हैसियत को देखते हुए उसका दिल हीनता से ग्रस्त नहीं हो जाएगा ?
..और फिर सेठ जमनादास जी का क्या उपाय सोचा है ? क्या उनसे टकराकर जीत पाओगे ? कहानियों में पढ़ना बहुत अच्छा लगता है कि प्रेमी अपने प्रेम के लिये पूरी दुनिया से भी टकरा सकता है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है ? आज धनबल और बाहुबल का ही बोलबाला है। कौन सुनेगा तुम्हारी आवाज ? कानून के सहारे की तो सोचना भी नहीं। जानते हो न कानून तो इन पैसेवालों के लिए ही बना है। ये कानून का सहारा लेकर अपने मनमाफिक कोई भी काम कर सकते हैं लेकिन कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कानून के रखवाले इनकी ड्योढीयों पर हाजरी जो लगाते हैं। करोड़ों का चंदा डकार जानेवाली राजनीतिक पार्टियां कब चाहेंगीं कि किसी रईस के किसी काम में अड़ंगा लगे ? आखिर नमक हलाली भी तो दिखानी होती है। तो इनसे टकराने के सपने देखना भी अपने आप में किसी बेवकूफी से कम नहीं। ये तो वही चुटकुला हो जाएगा जैसे कोई लड़का अपने बाप की बहादुरी के किस्से सुना रहा था। कह रहा था मेरे पिताजी इतने बहादुर थे इतने बहादुर थे कि निहत्थे और अकेले शेर से भिड़ गए थे। '
उसके साथी ने पूछा फिर आगे ..? जानते हो उसका क्या जवाब था ? उसने बताया 'शेर ने मेरे पिताजी को मार डाला।'
सोचो अगर उसने दिमाग से काम लेकर शेर से भिड़ने का काम टाल दिया होता तो उसे अपनी जान नहीं गँवानी पड़ती ! तुम जैसे निहत्थे और बेबस इंसान के सामने सेठ जमनादास उस जंगल के शेर के समान ही है, और फिर उसने धमकी दी भी तो है। उसकी धमकी को हल्के में लेने की भूल कत्तई नहीं करना .............!"

क्रमशः