श्राप दंड - 7
" वह दिन भी बीत गया। ताँबे के बर्तन में बर्फ डालकर पानी होने के बाद उससे मैं अपनी प्यास बुझाता। आसपास केवल पत्थर और बर्फी है। रात बढ़ने के साथ-साथ ठंडी भी बढ़ती गई। यहां अक्सर ही कभी-कभी बर्फ का तूफान आता है। अगर उस बर्फ के तूफान में कोई आ गया तो उसकी मृत्यु तय है। एक पत्थर पर टेंक लगाकर मैं बैठा हुआ था। आज चंद्रमा की रोशनी नहीं है।
ठंडी हवा कभी तेज तो कभी धीमे प्रवाहित होती। जहां पर बैठा हूं वहां से पश्चिम की तरफ देखते ही मेरी आंख को थोड़ा आश्चर्य हुआ। मुझे ऐसा लगा कि कहीं यह मेरे नजरों की भूल तो नहीं या जो कुछ भी मैं देख रहा हूं वह वास्तविक है। मैंने देखा कि पश्चिम की तरफ कुछ दूरी पर कई सारे प्रकाश बिंदु टिमटिमा रहे हैं। मैं उस वक्त भी यहीं सोच रहा था कि जो कुछ मैं देख रहा हूं वह सच है या नहीं। क्योंकि हिमालय के इस ऊचाई पर सांस लेना बहुत ही कठिन है। सही से सांस ना लेने की वजह से दिमाग़ काम करना बंद कर देता है। ऐसी हालत में कोई गलत बकता है तो कोई बिना किसी कारण हँसने लगता है। कोई बेहोश हो जाता है और किसी को कुछ भी काल्पनिक दिख जाता है। दूर के टिमटिमाते प्रकाश बिंदु कहीं आँखों की भूल तो नहीं। ना जाने क्या सोच मैं उस ओर आगे बढ़ा। आगे बढ़ते हुए कुछ बातें मन में घूम रही है। मैं यह सोच रहा था कि ऐसे निर्जन इलाके में क्या कोई रह सकता है? फिर मैंने सोचा कि भगवान की कृपा से क्या पता यहाँ लोग रहते हों और उनकी बस्ती मिल जाए। अगर लोगों की बस्ती हुई तो वहाँ खाना और आग अवश्य मिलेगा। इन दो वस्तुओं का ही मुझे इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत है। जितना मैं आगे बढ़ता गया उतना ही उन प्रकाश बिंदु का रहस्य खुलता गया। इसी मैं उसके एकदम पास पहुंच गया। अब मेरे सामने एक मंदिर की तरह दिखने वाला घर खड़ा है। उसके दीवारों में बने जगह पर दिया जल रहे हैं। इसी प्रकाश को मैं दूर से देख रहा था। यह जगह देखने में मंदिर जैसा है पर हिन्दू मंदिर जैसा नहीं है। यह मंदिर थोड़ा थोड़ा अद्भुत है। ऐसा कुछ मैंने पहली बार देखा। मंदिर के ऊपर का भाग हल्के चाँद की रोशनी में भी झिलमिल कर रहा है। देखकर ऐसा लगता है कि ऊपरी भाग पूरी तरफ सोने से बनाया गया है।
मंदिर के अंदर जाऊँ या ना जाऊँ यहीं सोच रहा हूं। मंदिर के अंदर से हल्की ध्वनि सुनाई दे रहा है। मैंने मंदिर के अंदर प्रवेश किया , यह सोचा जो होगा देखा जायेगा। अंदर प्रवेश करते ही मेरे शरीर को गर्माहट महसूस हुई। अंदर का भाग एक हल्की सुगंध से भरा हुआ है। मैं धीरे - धीरे और भी अंदर गया। इसी बीच चारों तरफ छोटे - बड़े बौद्ध देव - देवी की धातु से बनी मूर्ति नजर में पड़ी। जिसे देखकर समझा जा सकता है कि यह सोना के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। अब अंदर का पथ दाहिने तरफ मुड़ गया है। उस गलियारे के दीवार पर कई सौ पुस्तक रखे हुए थे। उनमें कई सारे पोथी भी थे। लाल कपड़े से मोड़कर उन पोथीयों को रखा गया था। इन्हें पहचानने में मुझे जरा सी भी देर नहीं लगी क्योंकि अपने बड़े चाचा के पास मैंने ऐसी कई पोथी को देखा था। वह गलियारा अब एक कमरे में चली गई है। अब तक मैं समझ गया कि यह जगह एक तिब्बती या बौद्ध मठ है। मठ के अंदर कहीं कोई भी नहीं दिख रहा।
दरवाज़े को खोलकर मैंने अंदर कमरे में प्रवेश किया और अंदर जाते ही मैं आश्चर्य हो गया। मुझे एक बार ऐसा लगा कि कहीं यह कोई पक्षी चिड़ियाघर तो नहीं है? लेकिन अगर पक्षी चिड़ियाघर घर है तो यहाँ कई प्रकार के और पक्षी होने चाहिए। लेकिन यहाँ पर तो केवल !!.... "
मैं बोल पड़ा,
" क्यों आपने ऐसा क्या देखा और पक्षी देखकर आश्चर्य होने की क्या बात है? "
" पक्षी देखकर मैं आश्चर्य नहीं हुआ। जो देखा वह ये था कि कमरे में कई सारे लकड़ी से बने पिंजरे बने हुए थे। उन पिंजरों में बड़े - बड़े खतरनाक दिखने वाले उल्लू बंद हैं। उल्लू की वह प्रजाति हमारे यहाँ की नहीं थी। सभी उल्लू आकर में इतने बड़े हैं कि एक पिंजरे में एक से ज्यादा उल्लू नहीं रखा जा सकता। लेकिन उनमें से लगभग सभी उल्लू चुपचाप शांत हैं , एक - दो कभी कभी आवाज करते। सभी उल्लू ना जाने क्यों ऐसे दिख रहे हैं मानो किसी ने उन्हें नशे की जड़ी बूटी पिला दिया है। उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि वो सभी बहुत क्रूर व भयानक हैं। उल्लूओं के पैरों के बड़े - बड़े नाखून और भी खतरनाक लग रहे थे। अब एक तरफ मेरी नजर पड़ी। मैंने देखा कि सभी पिंजरों के चारों तरफ एक काला लकीर बनाया गया है। इस कमरे में आते ही मुझे एक ऊर्जा का आभास हो रहा था। यह कमरा काफी बड़ा है। कमरे के पूर्व की तरफ एक दरवाजा है, मैं धीरे-धीरे उस दरवाजे की तरफ गया।
दरवाजा खोलते ही और एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। फर्श पर मोटी चादर बिछाई गई है। वहां दो कतार में लाल पोशाक पहने हुए कई लामा बैठे हुए थे। उन सभी के सामने पेड़ों से बनी भोजपत्र की पोथी खुली हुई थी। सभी लामा शांतिपूर्वक अपने अपने पोथी में मग्न थे। मैंने उस कमरे में प्रवेश किया इससे उन्हें कोई भी फर्क नहीं पड़ा। किसी ने मेरी तरफ देखा भी नहीं। उन सभी के पीछे एक जगह एक महिला बैठी हुई थी। उस महिला को अचानक ही देखने से शरीर कांप जाता। महिला के शरीर का चमड़ा चिपटकर झूल रहा है। दोनों कानों में दो बड़े-बड़े बाली व पहनावे में काले वस्त्र। इसके अलावा उनके गले में एक बड़ा लाल पत्थर का माला था। उनके ठीक पीछे काले पत्थर से बना एक कंकाल जैसा बुद्ध की मूर्ति बनी हुई थी। इस मूर्ति को मैं पहचानता हूं। भगवान बुद्ध जब बहुत दिनों तक तप साधना में लीन थे तब कुछ भी भोजन ग्रहण ना करने के कारण उनका रूप ऐसा हो गया था। लेकिन मैंने ऐसे काले रंग की मूर्ति को मैंने पहले कभी नहीं देखा।
बड़े से दिये ने इस मठ में रोशनी को चारों तरफ फैलाया है। उसी रोशनी में वह काला बुद्ध मूर्ति साक्षात् किसी प्रेत मूर्ति के जैसा लग रहा था।
ना जाने क्यों उसी वक्त मुझे अपने भाई अनिल की बात याद आ गई। कहीं यह जगह ही हिमालय का ज्ञानगंज मठ तो नहीं है?
मैं यही सोच ही रहा था कि उस बूढ़ी महिला की तरफ नजर पड़ते ही मैंने देखा , वह एकटक मेरी तरफ ही देख रही है। उन्होंने मुझे इशारों से अपने अपने पास आने को कहा। मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ गया। उन्होंने बिना कुछ बोले ही इशारों से मुझे नीचे बैठने के लिए कहा। मैं बैठ गया फिर उन्होंने अपने बाएं हाथ के अंगूठे को मेरे माथे के बीच में रखा। इसके बाद वह बूढ़ी महिला मेरे माथे से हाथ हटाकर खड़ी हो गई एवं मुझे भी खड़ा किया। मेरे हाथ को पकड़कर वह बूढ़ी महिला मुझे एक दुसरे कमरे में ले गई। मैं मंत्रमुग्ध होकर उनके साथ साथ चलता रहा। तबतक मेरे अंदर की उदासीनता भाव गायब हो गई थी। अब उसके जगह एक आतंक व डर ने अपना स्थान बना लिया था। पास ही वह बूढ़ी महिला मुझे जिस कमरे में ले गई वहां अंदर जाकर दाहिने तरफ देखते ही मैं आश्चर्य से परिपूर्ण हो गया। मैंने देखा कि मेरे पास खड़ी बूढ़ी महिला अब मेरे साथ ही साथ सामने दाहिने तरफ भी खड़ी है। इसके आवला उनके पास कौन खड़ा है ? अब मुझे धीरे-धीरे सब कुछ समझ आने लगा। बूढ़ी महिला के पास खड़ा हुआ आदमी स्वयं मैं ही हूं। असल में वह एक आईना थी। केवल मेरे सामने ही नहीं इस पूरे कमरे में चारों तरफ कांच लगा हुआ था। जिधर भी देखो उधर ही केवल खुद को देख सकते हो। अपने खुद के चेहरे को देखकर मैं खुद ही आश्चर्य हो गया था। ये मेरा कैसा चेहरा हो गया है। दोनों आँख इतने अंदर घुस गए हैं कि मानो कोई गहरा कुआँ। बूढ़ी महिला से कुछ कहने से पहले ही मैंने देखा कि उन्होंने मेरे हाथ में एक पत्थर का प्याला देकर इशारे से खाने को कहा। मैं कुछ देर बूढ़ी महिला की ओर देखता रहा और फिर उस प्याले को मुंह से लगाया। गले से एक स्वादिष्ट पेय उतर गया। उस बूढ़ी महिला के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि वो सब कुछ जानते हैं। उनकी रहस्यमय मुस्कान मानो किसी ओर इशारा कर रहे हैं। मठ के अंदर की गर्मी व स्वादिष्ट चाय के जैसा पेय पेट में जाते ही नींद लगने लगी। उस कमरे के एक तरफ बिस्तर की ओर इशारा करते हुए बूढ़ी महिला ने मुझे सो जाने को कहा। मुझे सब कुछ बहुत ही अद्भुत सा लग रहा था। मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न जन्म ले रहे थे लेकिन उस बूढ़ी महिला की किसी भी बात को मानने से मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। उन्होंने मानो किसी मंत्र द्वारा मुझे अपने वश में कर लिया था। उस वक्त भी मैं नहीं जनता था कि वह बूढ़ी महिला मुझे एक ऐसे रहस्य का खोज देंगी जो मेरे मन के बहुत अंदर तक चला जायेगा। उसके बाद मखमली बिस्तर पर लेटकर उस रात के लिए मैं नींद में खो गया। ".........
क्रमशः...