चैप्टर- 4
प्रकृति गर्मियों की विदाई की तैयारी कर रही थी और सर्दियों के आगमन की प्रतीक्षारत थी। कैलेंडर की भाषा में अक्टूबर का महीना शुरू हो चुका था। बाज़ार धीरे-धीरे खुद को सजाने को आतुर हो रहे थे, शायद उन्हें त्यौहारों के आने की खबर मिल गई थी।, ना दिन में बदन से बहते पसीने वाली गर्मी पड़ती थी और ना ही सुबह-शाम आग के आगे बैठने वाली सर्दी, ना ऊपर का नीला आसमां अपना रंग बदलता था और ना ही हवा अपनी दिशाएं, पर इस महीने निशा की ज़िंदगी बदल गई थी। उसके सपने बदल गए थे।, उसकी आकांक्षाएं बदल गई थी। और सबसे ज्यादा बदला था। उसका प्रेम---
विजयदशमी वाले दिन जब शाम को निशा कॉलेज से रंगोली प्रतियोगिता जीत कर घर आई तो आते ही उसके सबसे बड़े भाई ने, उस पर चाटें बरसाने शुरू कर दिए और घर की औरतें उसे लगातार गालियाँ दिये जा रही थी। थोड़ी देर बाद जब बड़ा भाई चाटें बरसाकर थक गया। तो उसके पिता द्वारा बड़े प्यार से करीब आकर पुछा गया। ‘प्रीति कहाँ है।'
पिता द्वारा कही गयी बात, निशा को सुनाई नहीं दी क्योंकि उसके कानों में अभी भी चाटों की गूँज दौड़ रही थी। पर जब पहले वाले बात ही दोबारा उसके बाल खींचकर पूछी गयी तो निशा के होठों से रोते हुए केवल ना निकला, लेकिन उसके घर वाले ना सुनने की मनोदशा में नहीं थे। इसलिए इस ना के बदले में उसका सिर दीवार में जा टकराया जिस कारण वह बेहोशी की हालत में ज़मीन पर गिर पड़ी।
निशा के मुख से ना सुनने पर, उसके ताऊ जो अब तक इस उम्मीद में खुद को संभाले बैठे थे। कि उनकी बेटी प्रीति का पता निशा को होगा कि वह कहाँ चली गयी अब बिफर पड़े और जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए अब तक किया था। उस पर गुस्सा निकालने लगे, मुझसे ही गलती ही गयी उसे कॉलेज भेजकर; ये दिन दिखाने के लिए उसे पाला पोसा था। करमजली ने खुद तो मुँह काला किया ही और हमारा भी करकर चली गई अब क्या होगा? इस पुरखों की बनाई गई इज्जत का, कहाँ मुँह दिखाएंगे हमारे ये बाकी बच्चें, हर कोई इन्हें देखकर कहेगा। कि अरे! ये तो वो ही हैं। जिनके घर की लड़की भाग गई थी।
बड़े भाई की खराब होती दशा को देखकर सोमवीर सिंह ठाकुर उनके पास गए और उन्हें सांत्वना देने लगे। ‘ऐसे कैसे इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी, 'हम है। ना भाई साहब, हम लाएंगे प्रीति को ढूंढकर’ और इतना कहकर सोमवीर सिंह अपने दोनों लड़कों को लेकर अपने छोटे भाई के पास कानपुर पुलिस स्टेशन की तरफ चल दिए।
उनके जाने के बाद निशा खुद को संभालते हुए उठी और बाथरूम की तरफ़ चल दी, पर घर में निरंतर एक शौरगुल मातम छाया रहा। _____
चार घंटे बाद प्रीति अपने दोंनो चाचा के साथ पुलिस की गाड़ी में घर पर जबरदस्ती बांधकर लायी गईं। घर आते ही उसकी माँ उसे मारने के लिए दौड़ पड़ी, पर प्रीति लगातार चिल्लाती रही मुझे छोड़ दो और उसके पास जाने दो, थोड़े समय तक स्थिति ऐसे ही बिखरी रही कभी प्रीति को पीटा जाता, तो कभी समझाया जाता। लेकिन प्रीति ने किसी की भी बात नहीं सुनी, जिसके बदले में प्रीति को एक कमरे में निशा के साथ बंद कर दिया गया।
कमरे के अंदर पहले तो निशा प्रीति को रोता हुआ देखती रही, लेकिन बाद में जब वह चुप हो गयी, तो उसके पास जाकर बोली, ‘तुमने क्यों किया ऐसा, तुम्हारी वजह से मुझे भी मार खानी पड़ी और अब तुम्हारी ही वजह से, मैं भी इस कमरे में बंद हूँ----
क्या तुम्हें बिल्कुल भी डर नहीं लगा? एक बार भी ऐसा करते वक़्त, अरे कम से कम एक बार घर पर बात तो करकर देखती तुम, क्या पता ये लोग मान जाते और तुम्हें ये सब करने की जरूरत ही ना पड़ती।‘
निशा की बात सुनकर प्रीति गुस्से से भरकर चिल्ला कर बोली, ‘क्या बात करती? मैं इन पागल लोगों से, जिन्होंने कभी घर में ढंग से हँसकर बात तक नहीं की, और तुझे लगता है। ये इस बात को सुनते कि मैं किसी से प्यार करती हूँ। और उसके साथ रहना चाहती हूँ।‘
प्रीति की बात सुनकर पहले तो निशा ने दस मिनट तक सोचा फिर उसके बाद सहमी सी आवाज़ में बोली, ‘बात नहीं सुनते इसका मतलब ये तो नहीं घर से भाग जाओ’
निशा की इस बात को सुनकर प्रीति झल्ला उठी और उस पर फिर एक बार चिल्ला कर बोली, ‘तु समझती क्या है? अपने आपको जो इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैं। और वैसे भी तु सालों से शेखर प्यार कर रही हैं। क्या तूने उसे बताया? नहीं ना; पता है। क्यों नहीं बताया? क्योंकि तु डरती है। इन सबसे, कि कहीं इन सबको अगर पता चल गया तो तेरा क्या होगा, खैर ये सब तो चल बड़ी बात हो गयी। तूने तो आज़तक इन्हें, ये भी नहीं बताया कि तु लव स्टोरी वाले उपन्यास पढ़ती है। एक छोटे से उपन्यास तक को तो छुपा के पढ़ना पड़ता हैं। इस घर में, और तु कह रही है। अपने प्यार के बारे में बात करनी चाहिए थी।‘
इतना कहकर प्रीति एक दो मिनट रुकी और फिर बड़े आराम से निशा से बोली, ‘देख मैंने कई बार कोशिश की थी। इन्हें सब कुछ बताने की, पर दरअसल ये इज़्ज़त की साख नाम की इस बीमारी से इतना ज्यादा जकड़े हुए हैं। कि इन्हें उसके आगे कुछ दिखाई नहीं देता। और इन्हें लगता हैं। इनकी वो इज़्ज़त हमारे अंदर कहीं छुपी हुई हैं। इसलिए ये योग हमेशा हम पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहते हैं। तु सोच कर देख एक लड़की उम्र भर ना किसी से प्यार करें, ना कुछ गलत काम करें, लेकिन एक दिन उसके साथ कोई सिरफिरा लड़का रेप कर देता है। तो भी इन जैसे लोगों की इज़्ज़त चली जाती हैं। या कोई लड़का किसी लड़की को रास्ते में छेड़ देता हैं। तो ये इज़्ज़तदार लोग उस लड़के के परिवार को समझाने रात के अंधेरे में जाते हैं। अरे! भई अगर तुम इतने ही इज़्ज़तदार हो, तो दिन के उजाले में सीना चौड़ा करके जाओ ना, लेकिन नहीं जाएंगे, डरपोक हैं। ना, और ये औरतें जो रिश्ते में हमारी माँ, चाची लगती हैं। खुद अपने वक़्त पर सब कुछ बर्दाश्त कर चुकी होती हैं। पर फिर भी जाने क्यों ये उस कल्पनाशील इज़्ज़त की हमेशा ढाल बनती रहती हैं। खैर सीधी सी बात है इनकी इज़्ज़त हमारी उभरी हुई छाती और पैरों के बीच बनी लकीर में छुपी हुई है। और जिसको संभालने की जिम्मेदारी भी हमारी ही हैं। क्योंकि अगर हम इस इज़्ज़त को नहीं संभाल पाए तो समाज से बहिष्कृत हम ही होंगे ये नहीं’
इतना कहकर प्रीति फिर से रोने लगी। और निशा एक अनंत शून्य में खो गयी।