Bhakti Madhurya - 6 in Hindi Spiritual Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | भक्ति माधुर्य - 6

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भक्ति माधुर्य - 6

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सूरदास की सुंदरतम कविता
महाभक्त कवि सूरदास ने जन्मांध होने के बावजूद भगवान कृष्ण के नखशिख रुपमाधुर्य का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। उनकी एक सुंदर रचना का आनंद उठाइये -

" हरि को बदन रूप निधान।

छसन दाडिम-बीज राजत कमल कोष समान।

नैन पंकज रूचिर द्वै दल चलन भौहिनि बान।1।

मध्य श्याम सुभाग मानौ अली बैठ्यो आन।

मुकुट कुंडल किरन करननि किए किरन को हान।2।

नासिका मृग तिलक ताकत चिबुक चित्त भुलान।

सूर के प्रभु निगम बानी कौन भांति बखान “।3।

सरलार्थ

श्याम का मुख रूप का खजाना है। उनकी दंतावली ऐसी सुशोभित हो रही है जैसे अनार के दाने रखे हों। उनके नेत्र, कमल की दो पंखुड़ियों के समान हैं। नेत्र का मध्य भाग भौरे के समान है।

प्रभु के मुकुट व कानों के कुंडलों कि चमक ने अपनी किरणों से सूर्य की किरणों को तुच्छ बना दिया है। उनकी नासिका पर लगा कस्तूरी का तिलक तथा ठुड्डी को देखते ही चित्त स्वयं को भूल जाता है। ऐसे रूप के स्वामी प्रभु के सुंदर रूप का वेद भी वर्णन नहीं कर सकते तो सामान्य आदमी की क्या बिसात है!

श्रीकृष्ण के श्रीमुख का कितना सुन्दर वर्णन महाकवि सूरदास ने किया है !

 

विरह रस
महाकवि सूरदास ने गोपियों के विरह का अद्भुत वर्णन किया है | उनकी एक सुन्दरतम रचना के भावार्थ का लुफ्त उठाइए :

“ गोरस को निज नाम भुलायो,

लहू लहू कोऊ गोपाले गलिन गलिन यह सोर लगायो |

केऊ कहे श्याम, कृष्ण कहे कोऊ, आज दरस नहीं हम पायो |

जेक सुधि तन की कछु आवति,लहू दही कछु तिन्हे सुनायो |

इक कहि उठति दान मांगत हरि, कहूँ भई के तुम्ही चलायो |

सुने सूर तरुनी जोबन मद, तापे श्याम महारस पायो |

सरलार्थ : गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह मे पागल हो गई है |

एक गोपी अपने सर पर माखन का घड़ा रखकर वृन्दावन की गलियों में जोरों से आवाजे लगा रही है - “कृष्ण ले लो”. “कृष्ण रस ले लो” | आज हमें श्र्क्रष्ण के दर्शन नहीं हुए ही | लोग उसे समझाने का प्रयास करते है किन्तु वह कुछ नहीं सुनती और पुनः वही आवाजे लगाने शुरू कर देती है | वह स्वयं का और अपने निवास का ज्ञान भुला चुकी है | उसे अपने स्थान का भान नहीं रहा |

उसे उसके परिजन बड़ी मुश्किल से ढूंढकर वापस घर लाते हैं | उसे बार बार समझाने का प्रयास करते हैं | वह प्रभु की याद में अपने तन मन व जगत की सारी स्मृति भूल बैठी है |

उसे कृष्ण के सिवा कुछ याद नहीं है | वह कौन है, कहाँ जा रही है, उसे कुछ होंश नहीं है |

वह कृष्ण प्रेम में उन्मत्त हो चुकी है | उसने कुल मर्यादा के सारे बंधन तोड़ दिऐ हैं |

उसका पति व ससुराल वाले उसे घर के बाहर नही निकलने दे रहे हैं |

किन्तु वह “ हा कृष्ण ! हा कृष्ण ! “ चिल्लाती हुई घर से भागकर अपने प्रीतम को ढूंढती हुई

फिर रही है | वह कृष्ण दर्शन का दान मांग रही है |

सूरदास ने भक्ति रस का अन्यतम वर्णन किया है |