Bhakti Madhurya - 1 in Hindi Spiritual Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | भक्ति माधुर्य - 1

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भक्ति माधुर्य - 1

ब्रजमोहन शर्मा

 

समर्पण : भगवान शिव के श्री चरणों में यह पुष्प समर्पित

ॐ नमः शिवाय

 

भूमिका,

मित्रों, मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ भक्ति माधुर्य का अनुपम रसास्वादन करने हेतु लघु का प्रयास किया है | इसमें रामचरित मानस के सुन्दरतम भक्ति भाव से पूर्ण अन्यतम प्रसंग दिऐ गए हैं |

मै बचपन से रामायण का पाठ सस्वर कीर्तन करते हुए किया करता था | यद्यपि मुझे इस महान ग्रन्थ की गहरी समझ नही थी फिर भी मेरा मन चौपाइयाँ गाते हुए भक्तिभाव में ऐसा लीन हो जाता था कि पाठ के दौरान मेरे अश्रु रोके नहीं रुकते थे | मुझे सुतीक्ष्ण मुनि प्रसंग बहुत ही पसंद है जिसमे जब मुनि श्रीराम के उनके आश्रम की ओर आगमन का समाचार सुनते हैं तो वे श्रीराम के दर्शन भर की कल्पना से आनंद में लीन होकर अपनी सुध बुध खो बैठते है|

जब श्रीराम ने उनके भावावेश की अवस्था देखी तो वे मुनि के ह्रदय में प्रकट हो गए | सुतीक्ष्ण मुनि भगवन के गहन ध्यान में इस कदर लीन हो जाते हैं कि स्वयं प्रभु के जगाने पर भी नहीं जागते | रामचरित मानस के अतिरिक्त मैंने महाकवि सूरदास, मीरा, रसखान, कबीर आदि महाकवियों के काव्याम्रत को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है |

मित्रों ! मैंने भारत की महा विभूति आदि गुरु शंकराचार्य की सुन्दरतम व वेदांत के गूढार्थ को स्पष्ट करती अत्यंत मनोहर रचना “ निर्वाण षटकम “ को पाठकों के ज्ञानार्जन हेतु उध्रत किया है |

मित्रों, मेरी आयु अधिक (८० वर्ष) है, अभी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित होने के बाद भी कुछ ग्रन्थ प्रकाशन हेतु क़तार में है | आशा है छोटी मोटी टाइपिंग त्रुटियों के लिए मेरे प्रिय पाठक मुझे क्षमा करेंगे | गूगल का हिंदी टाइप ट्रांसलेटर करने वाला सॉफ्टवेर अत्यंत त्रुटिपूर्ण है, मशीन की त्रुटि पर मेरा कोई वश नहीं है |

मेरे प्रिय पाठक मेरे अन्य ग्रंथो के समान अपना हार्दिक स्नेह मेरी रचनाओं को पूर्ववत देते रहेंगे |

लेखक: ब्रजमोहन शर्मा एम्.एस.सी. बी.एड. आयुर्वेद रत्न, ज्योतिष विशेषग्य, योग, आसन, ध्यान एक्युप्रेशर,आयुर्वेद रत्न, ४० वर्षों के दीर्घ अनुभव

पता : ७९१ सुदामानगर इंदौर (.म.प्र.) ४५२९००९ मो 919424051923, pho. 07312485512 present on Facebook, twitter, what’s app and all social media, bmsharma421@gmail.com,

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1
मा के गीत
मेरी माता साक्षर थी किन्तु उसे गीता के अनेक श्लोक याद थे। वह नित्य प्रातः समधुर आवाज में गीता के श्लोक गाते हुए सुनाती व इतना ही नहीं उन श्लोंको का गूढार्थ भी स्पष्ट करती ।

उसके नाना महान विद्वान, महापंडित व पुजारी थे |

वह प्रायः गीता के अनेक श्लोक दोहराया करती थी जिसमे ऐक श्लोक की पंक्ति है :

“कमलपत्र मिवाम्भिसा” ।

अर्थात “मनुष्य को संसार की बुराइयों के बीच वैसे ही रहना चाहिए जैसे कमल जल के भीतर निर्लिप्त रहता है।“

'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषुकदाचन’ ।

अर्थात हे मनुष्य त् कर्म करते चला जा फल की आशा मत कर ।

इसी प्रकार और भी अनेक श्लोक वह गाते रहती थी।

वह मारवाड़ी भाषा में नित्य एक गीत गाया करती जिसमें वेदांत का गूढार्थ निहित होता था ।

“थे बाहर देखो काई, थांके सब सुख है मन माही;

थे बाहर सुनो रे कांई, थॉके अनहत नाद बजाई;

थॉके कुन है देखन वालो, थे वांकी करो न ओलखाई,

थांकी इडा पिंगला नाडी, व सुखमन है सुखकारी;

थे वI में ध्यान लगाओ, थाका आवागमन मिटजासी;

इसका सरल अर्थ है,

ऐ मनुष्य तू बाहर क्या ढूंढता है, तेरे अंतर्मन में ही सारे सुख निहित हैं |

तू बाहर किस संगीत को सुनने जा रहा है ? तेरे ह्रदय में सुनाई देने वाले अनहत नाद को सुन

तेरे रीढ़ में गुजर रही इडा पिंगला नाडियाँ स्थित हैं | उनके बीच से गुजर रही सुषुम्ना नाडी पर अपना ध्यान केन्द्रित कर, तुझे अलौकिक आनंद प्राप्त होगा, तुझे मोक्ष मिलेगा |