Tulsi in Hindi Short Stories by kirti chaturvedi books and stories PDF | तुलसी

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तुलसी


इस सत्य प्रसंग की चर्चा यहां करने का उदृेश्य यह कतई नहीं है कि मेरे द्वारा किसी की मदद की गई बल्कि यह बताना है कि यदि आपके आसपास किसी दुखी व्यक्ति के साथ आप मदद और सहानुभूति का रवैया रखे तो हो सकता है आपके विश्वास दिलाने मात्र से उसे उसकी मंजिल तलाश करने में आसानी हो जाए।
आज सुबह मोबाइल की बेल बजी देखा तो तुलसी का फोन था। बोली कि दीदी कैसी हो आप मैंने कहा ठीक हूं। वह चहक कर बोली कि दीदी मुझे काम मिल गया है। एक ग्रॉसरी मार्ट के स्टोर में अब मुझे 6000 रूपए महीने मिलेंगे। मुझे किसी के आगे हाथ नहीं पसारना पड़ेगा। आपने कहा था न कि काम तलाश करोगी तो मिल जाएगा।
अब मुझे याद आया कि फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह की ही तो घटना है। अस्पताल में काम करने के दौरान देखा तो एक महिला कमरे के सामने खड़ी थी। बोली मैडम प्लीज मुझे मेरे प​ति का डैथ सर्टिफिकेट दिलवा दीजिए। मेरे पास शमशान घाट की रसीद भी नहीं है। अस्पताल के रिकॉर्ड में चैक किया तो पता चला कि अंतिम संस्कार की ओरिजनल रसीद न होने कारण काम नहीं हो पा रहा था। खैर उस महिला की खातिर उठा पटक की तो कागज भी मिल गए और मैंने उससे कहा कि मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए एप्लाय कर दो। 21 दिन के अंदर मिल जाएगा।
उस महिला ने जो आपबीती सुनाई वह सुनकर रोंगटे खड़े हो गए। जानकारी मिली कि उसकी सास ने उसके पति की मृत्यु हो जाने के बाद उसे, उसके तीन बच्चों समेत घर से मारपीट कर निकाल दिया और उसके 10 साल के सबसे बड़े लड़के को अपने साथ रख कर उसे भगा दिया गया। अब वह मायके में चली गई तो वहां भी उन लोगों की आर्थिक स्थिति ​ऐसी नहीं कि वह लोग चार लोगों को सहारा भी दें और उनके भरण पोषण की व्यवस्था भी करें। ऐसे में उसके बच्चों को स्कूल में दाखिल कराने की नौबत आई तो उसे पता चला कि अगर पति की मृत्यु प्रमाणपत्र उसे मिल जाएगा तो उसके बच्चों की फीस माफ हो जाएगी और वह उन्हें पढ़ा लिखा सकती है। वही लेने वह गुना से भोपाल आई हुई थी। उसके पास पैसे भी नहीं थे। मैंने उसकी व्यथा सुनकर पर्स से पांच सौ का नोट निकाल कर उसे देने का प्रयास किया तो वह आत्मस्वाभिमानी लड़की तुलसी रोने लगी। अब मेरा उस पर ध्यान गया तो देखा कि दुबली पतली इतनी कम उम्र की लड़की कहीं से चार बच्चों की मां नज़र नहीं आ रही थी। बहुत मुश्किल से उसे समझा बुझाकर अनुरोध के साथ रूपए दिए कि उसने मुझसे पैसे कब मांगे यह तो में अपनी खुशी से उसकी मदद कर रही हूं। इसके बाद वह चली गई।
लगभग 21 दिन बाद वह सर्टिफिकेट लेने दोबारा आई। अब उसे प्रमाणपत्र मिल गया तो भी वह प्रसन्नता से रोने लगी। मैंने उसे डपटा कि क्या तुलसी बात बात पर हिम्मत छोड़ देती हो और रोने लग जाती हो। ऐसे किस तरह से काम चलेगा। अगर चार बच्चों को पालना है तो डटकर खड़ी हो जाओ। दुनिया का मुकाबला करो। वह रोते हुए बोली कि हां दीदी आगे जाकर मेरे बच्चे मेरा सहारा बनेंगे। इस बार मैंने कहा कि कोई क्यों सहारा बनेगा तुम खुद क्यों नहीं अपना सहारा बनती। काम करो और मेहनत करो वह बोली में तो पढ़ीलिखी हूं नहीं तो मुझे काम कहां मिलेगा। कब तक मां और भाई पर बोझ बनकर रहूंगी। इस पर मैंने उसे समझाया कि काम तो तुम्हें मिल जाएगा बस हिम्मत कर आगे बढ़ो अपना सहारा आप बनो। नहीं तो किसी घर में खाना भी बना सकती हो। साफ सफाई का काम भी मिल सकता है। वह एकदम आंसू पोछकर खड़ी हो गई और बोली हां दीदी में अब काम तलाश करती हूं। आपने मुझ गरीब पर भरोसा किया यही बहुत ​है। वह अपने एक छोटे बच्चे साथ आई हुई थी, उसे लेकर जाने लगी, इस बार मैंने फिर पांच सौ का नोट दिया तो बोली नहीं दीदी आप कहां तक मदद करोगी। मैंने उसे जर्बदस्ती पैसे थमाते हुए कहा कि रख लो ये तुम्हारे किराये में काम आएंगे। वह कृतार्थ होते हुए चली गई। आज सुबह मोबाइल पर उसने जब आत्मविश्वास से भरी आवाज में कहा कि दीदी आपकी हिम्मत से मेंने आगे बढ़ने का फैसला किया कि में अकेली नहीं हूं मेरे साथ दीदी खड़ी हैं। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि तुलसी ने अपने को संभालते हुए स्वयं काम तलाशा और मेहनत के पथ पर अग्रसर हुई।
कीर्ति चतुर्वेदी