Apang - 5 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 5

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अपंग - 5

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रात की पार्टी में रिचार्ड की निगाहें उसे हर बार की तरह चुभेंगीं और वह हर बार की तरह कुछ न कर सकेगी | कर सकती यदि राज उसके पक्ष में होता| परंतु अब उसके मस्तिष्क में यहाँ तक आ गया था कि राज कहीं से भी उसका था ही नहीं | यहाँ तक कि शरीर से भी उसका नहीं, मन तो बहुत दूर की बात है | रिचार्ड की कंपनी की ही कोई कर्मचारी मिस रुक राजेश के बहुत करीब आ चुकी थी | यह उड़ती खबर कब से उसके कानों में आ चुकी थी| वह बात और है कि भानुमति उस बात पर ध्यान देना टालती ही जा रही थी | कभी-कभी उसे लगता कि शरीर की बात बहुत अजीब है, दो भागों में विभक्त प्रश्न सी !

शरीर बहुत अहम है यदि सोचा जाय तो अन्यथा शरीर छोटे-छोटे टुकड़ों से बना एक बड़ा माँस का टुकड़ा ही तो है जिसे हमने नाम दे दिया है ‘शरीर‘!उसका उपयोग अथवा दुरुपयोग मनुष्य की अपनी बुद्धि एवं विचारशीलता पर निर्भर है | भानुमति को कभी भी किसी भी वस्तु की परिभाषा समझ में नहीं आई | वैसे किसी भी वस्तु की परिभाषा प्रत्येक वस्तु के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है | प्रत्येक व्यक्ति अपने मस्तिष्क, अपनी विचारशीलता के अनुसार अपनी परिभाषा बना लेता है | पर भानुमति की परिभाषाएं सदा ही खोखली रही हैं –झूठी | एक बात जो उसे एक बार समझ में आती, वही परिभाषा दुबारा देखने पर, किसी दूसरे परिवेश में उसे गलत लगने लगती, झूठी लगने लगती| 

भानु सोचने के लिए बाढी हो जाती कि आख़िर वह सब था क्या? हम सब क्या ? हमारी विचारशीलता क्या ?क्या सब कुछ एक नकाब सा नहीं लगता | सब कुछ धोखा और बदरंग सा –सब उछ बेरंग ---यानि हम सब भी !एक उद्वेलित मन से वह भटकती रहती इधर-उधर –कहीं भी कुछ पाने की, तलाशने की लालसा में ! भीगे, थके हारे मन-तन को सहर देने के अनथक प्रयास में !किन्तु सब व्यर्थ ---

हाँ, तो उस दिन भी वह ऐसे ही भटक रही थी | राज तो जा ही चुका था बहुत पहले, शाम के गहराते ही उसके हृदय की धड़कनें बहुत तीव्र होने लगीं थीं | अचानक टेलीफ़ोन कि घण्टी बज उठी | वह पास ही थी, संभवत : उस ज्ञात था, वही होगा | उसने धड़कते दिल और शिथिल हाथों से रिसीवर उठा लिया | 

“यस, भानुमती दिस साइड ---“

“ओ ! गुड इवनिंग मिसेज़ भानुमती | आय एम रिचर्ड –सो, यू शुड बी रेडी फॉर द पार्टी ---“

भानु का क्रोध से चेहरा लाल हो आया | ये होता कौन था उसे ऑर्डर देने वाला | वह उसकी बाँदी नहीं थी –जो कहना है, राज से कहे न !लेकिन बोल ही न सकी | एक बार उत्तर गले तक आ गया, लगा सब कुछ बोलकर हमेशा के लिए किस्सा ख़त्म कर दे किन्तु कहीं अटकी हुई थी | शायद—नाही-नहीं बिलकुल राज के ही इंतज़ार में ! उसे कुछ कहने की ज़रूरत ही न पड़े, राज ही अपनी पत्नी के सम्मान की बात समझ ले तो !!

थोड़ा और सैक्रिफ़ाइस करे, थोड़ा और झुके—लेकिन झुकने की सीमा का अंत कहाँ था ? कौनसी मर्यादा थी जिसके बाद उसकी भटकन समाप्त हो सकती थी ?

“मिसेज़ भानुमती, आर यू लिसनिंग मी --?”

“यस, आय एम ---“

“सो, प्लीज बी रेडी, मि.राज इज़ रीचिंग टू कैच यू ---

उसके मुख से कुछ न निकला, उसने फोन नीचे रख दिया और एक लंबी साँस लेते ही उसकी आँखों से निराशा और बेबसी के आणू निकलकर उसके गोरे गालों पर फिसलने लगे | थका हुआ जिस्म लेकर वह यूँ ही सोफ़े पर लुढ़क सी गई |