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टुकड़ों में बाँटे हुए दिनों को उसने बड़े ही सहेजकर अपने हृदय में समोकर रख लिया था | विदेश में लगभग दस वर्ष रही थी वह ! अचानक ही एक कार-दुर्घटना में माँ-बाबा दोनों की मृत्यु का हृदय विदारक समाचार पाते ही वह स्तब्ध सी हालत में पुनीत को साथ लेकर सदा के लिए भारत वापिस आ गई थी | राजेश तो पश्चिम की रंगत में इतना डूब चुका था कि उसका उस वातावरण से निकल पाना आश्चर्य ही होता | दस वर्ष के प्रवासी जीवन में हर वर्ष ही माँ-बाबा के पास आती रही थी वह ! राजेश भी दो-एक बार आया तो था| पर वह शुरू शुरू की बात है जब तक वह भारत से जुड़ा रहा तब तक ही ! कितने उल्लास से उसने प्रेम-विवाह किया था | लगा था कि प्रेम ही तो जीवन है, प्रेम ही से जीवन के सफ़ल होने की संभावना, कल्पना नख-शिख तक उसे एक प्यारी सी अनुभूति में समो देती| पर –प्रेम की कितनी कोरी कल्पना थी वह ! अब सोच सकती है वह –तब नहीं सोच पाती थी | तब केवल एक ही वस्तु थी उसके पास ‘प्रेम’ और एक ही नाम था ‘राज’—राजेश
उन दिनों वह लिखा करती –
आँगन में सपनों के पेड़ लगे मेरे
रसवंती डालों ने झुमके हैं पहने –
और राज ! वह गीत की इन पंक्तियों में झूमकर कह उठता—
सपना सच है, सच सपना है
जीवन की तरुणाई सच है ---
अच्छा !क्या इतना भावुक इंसान भी कभी इतना बदल सकता है ? राजेश की भीनी, सौंधी, सुगन्धित खुशबू उसके चारों ओर बिखर चुकी थी कि उसके अलावा उसे कोई और खुशबू भाती ही नहीं थी|
राजेश विदेश जाने के लिए मचल रहा था और वह रहना चाहती थी यहीं, अपने भारत में!
राजेश कहता --
“भानुमती-–तुम मेरी बात, मेरी अनुभूतियों, संवेदनाओं को समझने का प्रयास क्यों नहीं करतीं ?”
“अनुभूतियों से जुड़कर ही तुम तक पहुँची हूँ राज ---!”
वह समझाता –
“देखो ! अभी मुझे चांस मिल रहा है | तुम जानती हो, ऐसे मौके बार-बार नहीं आते –”
वह शांत स्वर में पूछती—
“ज़रूरत है ?”
“ज़रूरत --? सवाल ज़रूरत का ही तो नहीं है, सवाल इच्छा का भी तो होता है –“
“राज ! तुम्हारी कौनसी इच्छा यहाँ पर पूरी नहीं हो सकती ?तुम जानते हो, मैं अकेली लड़की हूँ| माँ-बाबा का सब कुछ ही तो तुम्हारा है | ”
“तुम मुझे कितना गिरा हुआ समझती हो ! उनकी लड़की लेना ही मेरे लिए काफ़ी नहीं है ?जो उनकी धन-दौलत पर भी दृष्टि जमाकर बैठ जाऊँ --?”
“मेरा मतलब यह नहीं है राज, तुम जानते हो | तुम्हें घूमना है, शौक से घूमो | पर दूसरे देश में जाकर बसने की कल्पना मैं नहीं कर सकती –और फिर तुम जानते हो –यहाँ माँ-बाबा भी तो अकेले हैं, उन्हें इस उम्र में कभी भी मेरी ज़रूरत हो सकती है | ”
“मेरी बात समझने का प्रयत्न करो भानुमती, तुम मुझे प्यार करती हो | परंतु मैं तुम्हें प्यार करने के साथ ही अपने कैरियर को भी प्यार करता हूँ और मेरा कैरियर मेरा भविष्य है जो तुमसे जुड़ा हुआ है –तुम जानती हो?माँ-बाबा, मैं सब अपने ही हैं परंतु मेरा भी कुछ तो फर्ज़ बनता है न कि मैं तुम्हारे योग्य बन सकूँ –प्लीज़, मुझे समझने का प्रयास करो भानुमती, कहीं ऐसा न हो कि मैं अपनी नज़रों में ख़ुद ही गिर जाऊँ-”
“राज—-- कोई गलत काम किए बिना अपनी नज़रों में नहीं गिरेगा और तुम्हारी भावनाएँ मैं समझती हूँ परंतु, तुम मेरी –--”
“देखो, जब आदमी की मुट्ठी गरम होती है तो सभी भावनाएँ कंट्रोल में आ जाती हैं और जब आदमी ठन-ठन गोपाल होता है तो सभी भावनाएँ गरम रेत के नीचे दब जाती हैं जिनसे स्नेह का, प्रेम का स्त्रोत निकलना कठिन ही नहीं, असंभव भी होता है| ”
“मैं तुमसे और बहस करना नहीं चाहती, मैं जानती हूँ कि इस प्रकार की बहस से हम दोनों की दूरियाँ मिटने की जगह और बढ़ेंगी और जो निकटता अब तक हमारे दिलों में है वह दूर होती चली जाएगी –जबकि मैं अपने जीवन-साथी के रूप में तुम्हें स्वीकार कर चुकी हूँ| ”
“तो–इस प्रकार की गाँठ पड़ना कोई शुभ लक्षण तो नहीं ही है| ”भानु ने कहा |
“ओह !दैट्स लाइक ए गुड बेबी !”राज उछला |
“पर, तुम कहाँ समझ पा रहे हो, मेरी परेशानियाँ, मेरा अंतर्द्वंद, मेरा अकेलापन, माँ—बाबा –”
“दैट्स योर पार्ट डार्लिंग, माँ-बाबा तुम्हें बहुत प्यार करते हैं | उन्हें तो चुटकी बजाते ही समझा --.के तो शाम को मिलते हैं | ”
राज उसके सिर पर हल्की सी चपत मारकर चला गया और वह ऐसी ही शिथिल बैठी रह गई।कार के अंदर !
उसके हाथ-पैर, जिस्म का हरेक हिस्सा शिथिल हो चुका था और उसे विवाह के पहले ही महसूस होने लगा था कि कहीं वह भूल तो नहीं कर रही थी ?परंतु उसके हिसाब से तो अब काफ़ी देर हो चुकी थी| राज के किए हुए वायदे उसे खंडित होते हुए महसूस हो रहे थे| एक अजनबी पीड़ा का जन्म उसके अंतस में हो चुका था |
माँ, बाबा को समझाने का कठिन काम समस्या के रूप में उसके समक्ष था | क्या करेगी वह?जब उसने माँ, बाबा को राजेश के बारे में बताया, स्वाभाविक रूप से बाबा ने उससे राजेश के परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में जानने का प्रयत्न किया था | परंतु उसने यही कहा था –
“बाबा ! आप जानते हैं मेरे विचारों वाला लड़का मिलना कितना कठिन है | अब यह मिला है जिसका परिवार तो साधारण ही है परंतु अपने पैरों पर खड़े होने की साध ने ही मुझे और राजेश को परस्पर निकट ला खड़ा किया है फिर भी आप लोग यदि नहीं चाहेंगे तो ---“
“पागल हो गई है क्या ? बीच में ही माँ बोल पड़ी थीं |
“हमारी और तेरी इच्छा अलग कहाँ है बेटी, परिवार की स्थिति जानने का माता-पिता का कर्तव्य बनता है| यदि कभी कहीं ---“
“इसकी आप चिंता न करें माँ | मैंने पिछले दो वर्षों में राज को भली प्रकार जान लिया है | वह बुद्धिमान ही नहीं, स्वयं सिद्ध भी है और अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है | मैं नहीं चाहती कि कोई भी युवक मुझसे इसलिए विवाह करे कि मैं इस घर की इकलौती बेटी हूँ | उसे भानुमती से विवाह करना है, आपकी बेटी से, जिसकी अपनी कोई इच्छाएँ हो सकती हैं, अपना व्यक्तित्व हो सकता है | ”
“एक बात और ...मैंने सुना है –“ माँ जो कहना चाहती थीं, भानु को पहले से ही मालूम था |
“हाँ, माँ बात तो ठीक है पर ---“ उसने बात बीच में ही काट दी थी |
“फिर भी ---“माँ खुलासा चाहती थीं |
“मैं राजेश को मना लूँगी, मुझे पूरा विश्वास है | वह विदेश जाने का मोह त्याग देगा | आखिर व्यापार ही तो करना चाहता है, यहाँ रहकर भी हो सकता है | मैं तो सोचती हूँ, हम दोनों मिलकर अपना ही काम देखें तो ---“
“ठीक है जैसा तुम्हें उचित लगे | हम दोनों तुम्हारी खुशी मेन खुश हैं बेटे ---“
पर कहाँ माना पाई थी वह राजेश को ?अब वह सोच रही थी कि कहीं माँ-बाबा की आशंका ठीक ही तो नहीं थी ?विवाह से पूरव ही मन में गाँठ पद जाना क्या इसी आशंका को पुष्ट नहीं करता था ?
और शाम को जब वे दोनों मिले थे तब राजेश ने एक कविता उसे प्रेज़ेंट की थी –
May I tell you
I am the luckiest person of the word
I do the thinks
Which I like
Really !
It is exciting
I do what –ever I like
And you share me
My feelings
My heart and my emotions .
गलत कहा था राजेश ने ! इस थ्योरी को बिल्कुल झुठलाकर कि प्रेम बलिदान माँगता है | प्रेम केवल स्वार्थ ही चाहता है ऐसा उसने महसूस कर लिया था और खोजनी शुरू की थी एक परिभाषा प्रेम की !
रात को उसने अपनी डायरी में लिखा था –
My frustration has spread
On the rosy way
Where the sun is withdrawing
It’s salary
Of the day
And my whisper
Had gone to the other direction
Where you stand with
All the perfection
But,
You would not believe
Upon these words
Which you said
While you were passing
On the rosy way
With all the promises
You made with the sun
With the wind
And
With the direction .
विवाह से पूर्व ही सिलसिला शुरू हो चुका था | प्रेम की परिभाषा, स्वार्थ की परिभाषा, जीवन की परिभाषा !और परिभाषा को बनाते-बिगाडते ही उसने अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा मोड़ पूरा कर लिया था | ‘The Golden Period’.