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15.थिकसे और चेमरे मठ
ये दोनों मठ लद्दाख की प्रसिद्ध झील पंगोंग, तक जानेवाले मार्ग पर ही स्थित हैं। अगर आप पंगोंग तक नहीं पहुँच पाये तो आप इस मार्ग की आधी सैर भी कर सकते हैं, जहां पर देखने लायक बहुत सी सुंदर चीजें हैं।
थिकसे तक जानेवाली राह से पहले आपको लंबे समय तक राष्ट्रीय महामार्ग की सवारी करनी पड़ती है, जिसके समानांतर सिंधु नदी बहती है। थिकसे मठ पास से देखने में जितना सुंदर है, दूर से देखने में उतना ही आकर्षक लगता है। चेमरे मठ तक जाने के लिए हमे छोटे-छोटे रस्तों से गुजरते हुए जाना पड़ा।
16.खरडूंगला दर्रा
खरडूंगला दर्रा लद्दाख क्षेत्र का एक और प्रसिद्ध दर्रा है। सर्दियों के मौसम में जब आप लद्दाख दौरे पर आते हैं तो यह दर्रा बन्द रहता। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप इसे देख नहीं सकते। शांति स्तूप, जो खरडूंगला दर्रे के रास्ते में, लेह की सरहद पर बसा हुआ है और अधिकतर लद्दाख यात्राओं का भाग भी है।
लद्दाख सीमा पर यह दर्रा लेह के उत्तर तथा श्योक और नुब्रा घाटियों के प्रवेशद्वार पर है। सियाचिन हिमनद अवस्थित भाग उत्तरार्ध्द घाटी तक का रास्ता है। 1976 में निर्मित इसे 1988 में सार्वजनिक मोटर वाहनों के लिए खोला गया था। सीमा सड़क संगठन द्वारा अनुरक्षित यह दर्रा भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग सियाचिन हिमनद में आपूर्ति करने के लिए किया जाता है।
खारदुंग ला की ऊँचाई 5,359 मीटर (17,582 फीट) है। यह दुनिया का सबसे ऊँचा यांत्रिक (मोटरेबल) दर्रा (पास) है।
- 17. पेंगाग लेक
पैगांग झील को विश्व की सबसे ऊंची, गहरी और लम्बी झील कहा जाता है। समुद्र तल से 14,000 फुट की ऊंचाई पर लेह से 980 कि.मी. दूर लद्दाख पर्वत श्रृंखला के आंचल में खारे पानी की पैंगांग झील है। संभवतः यह विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित है।
पैंगोंग झील 150 कि.मी. लम्बी और 700 फुट से लेकर चार कि.मी. चौड़ी है। एक तरह से यह पहाड़ी समुद्र की तरह है। इसकी गहराई 120 से लेकर 200 फुट तक है। इस झील के पानी का कहीं निकास नहीं है, इसलिए इसके किनारे पर नमक की तह भी देखी जा सकती है।
इस खारी झील में पहाड़ों से गिरने वाली बर्फ के कारण अनेकों खनिज पदार्थ जमा हो गये हैं, जिससे इस का तल ऊपर उठता जा रहा है। पानी के अभाव में यह झील सिमटने लगी है। वर्ष के तीन माह यह झील जमी रहती है, जिस पर जीप चलाई जा सकती है। सूर्य की किरणों के बदलने के साथ इस झील का रंगीन पानी भी बदलता रहता है।
इस झील के तीन हिस्से चीन के पास हैं। अब तक इस झील तक प्रवेश सरकार द्वारा बंद था लेकिन अब चीन सरकार से समर्थन व सहयोग के बाद सरकार इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है।
18.नुब्रा वेली
हरियाली से युक्त एक रमणीक स्थल, जो चारों ओर से विशाल पहाड़ों से घिरा हुआ है। जहां भूरे रंग का हर वर्ण दृष्टिगोचर होता है। लद्दाख की गहरी नुब्रा घाटी प्रकृति के किसी जादू से कम नहीं है। सबसे अलग, फिर भी आश्चर्यजनक, शुष्क रेत के टीलों, प्राचीन खंडहरों और शांत बौद्ध मठों के विशाल फैलावों के साथ, नुब्रा एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। लेह शहर से लगभग 150 किमी की दूरी पर स्थित, घाटी रिओ श्योक और सियाचिन नामक नदियों के संगम पर स्थित है।
ठंडे रेगिस्तान को चिन्हित करते हुए, लहराते हुए रेत के टीलों के साथ, यहां दो कूबड़ों वाले अद्वितीय बैक्ट्रियन ऊंटों को देखा जा सकता है। घाटी में प्रसिद्ध पश्मीना बकरी का निवास भी है। सियाचिन ग्लेशियर के पास बसा हुआ पनामिक गांव, जो एक शानदार पड़ाव है। दिस्कित मठ, यारब त्सो झील, मैत्रेय बुद्ध, सम्स्तान्लिंग मठ और खार्दूंग ला दर्रा यहां के कुछ अन्य प्रमुख आकर्षण हैं।
नुब्रा की यात्रा को जारी रखने से पहले आप घाटी से थोड़ा आगे उत्तर पल्लू नामक स्थान पर पहुँचेंगे। दोपहर के भोजन के लिए यह अच्छी जगह है, जहाँ आप घर का बना स्वादिष्ट लद्दाखी भोजन, थुक्पा और मोमो का आनंद ले सकते हैं। घाटी के करीब पहुँचने पर दोनों तरफ से रेत के टीलों के साथ सुनसान सड़क आपका स्वागत करेगी। इसके बाद आप सबसे पहले डिस्टिक शहर पहुँचेंगे जहाँ आप रात के वक्त ठहर सकते हैं।
आंठवा अंतिम दिन
आज का दिन मुझे सिर्फ अपने हॉस्टल और लेह के रास्तों के साथ बिताना था। हॉस्टल में मुझे कई मित्र मिले। इन दो वियतनामी मित्रों में से एक से मेरी दोस्ती अभी तक कायम है। एक दिन हम तीनों साथ में घूमे थे। मून रॉक तक उनके साथ घूमने का अनुभव कुछ अपनी पुरानी मित्रों के साथ घूमने जैसा ही था।
रिश्तों की क्या चाहत होती है? प्रेम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान! यही सब मैंने इन दोनों के साथ महसूस किया। रात के समय जब हमको अपने कमरे में बहुत ठंड लग रही थी तो दुओंग ने मेरी टीशर्ट के अंदर की तरफ एक पेड लगाया। मेरी पीठ की ओर उसे लगाते ही मुझे गर्मी का एहसास हुआ। करीब 6×6 का वह पेड मैंने पहली बार देखा था। ठंड से राहत का यह एक अंदरुनी उपाय मुझे बहुत पसंद आया।
आज का दिन मेरा लद्दाख में आखिरी दिन था। मैं अब अपने कमरे में अकेली थी। मेरे पुराने सभी साथी जा चुके थे। कुछ नए लोग आए थे पर वो दूसरे कमरों में ठहरे थे। पांच लड़कियां गोवा से आईं थीं। अब भारतीय लड़कियां भी अकेले या ग्रुप में काफी आने लगी हैं मुझे श्री ने बताया।
पूरा दिन बाहर धूप में बैठे- बैठे किताब पढ़ते, मार्केट का एक चक्कर लगाते, उसी रेस्टोरेंट से पास्ता खाते बीत गया। आज का दिन मुझे सबसे छोटा लगा। आज मैं दूसरी बार लद्दाख आई। अब तीसरी बार आ सकूंगी या नहीं पता नहीं। बढ़ती उम्र के साथ मेरी सांसे कितना मेरा साथ देंगी यह तो वक्त ही बताएगा पर एक बार और, मुझे इस जगह आना है।
अगली सुबह सात बजे मेरी फ्लाइट है। सुबह पांच बजे की टैक्सी मैंने बुक की थी। पर जब कमरे से निकली तो मेरे साथ दो साथी और थे। उन्हें भी एयरपोर्ट जाना था। हॉस्टल में साथ मिल ही जाता है। यह सोचकर मन मुस्कुरा उठा। पैसों की बचत व सहयोग इसमें दोनों ही मिल जाते हैं।
श्री से मैंने कल दिन में कई बार कहा कि ' मेरे खाने का पेमेंट ले लें।'
'अभी बिल देती हूं।' कहकर वह भूल ही गई।
सुबह मैंने फिर कहा 'श्री पेमेंट!'
'आपको याद है क्या आपने क्या- क्या लिया था?'
'आपने नोट नहीं किया क्या?'
' सबका करती हूं पर आपका नहीं कर पाई। आपको जो भी याद हो वही दे दीजिए।' उसने तो अपनी बात कह दी जब मैंने उसकी आंखों में झांका तो वह मुस्कुरा दी। हॉस्टल में ठहरने का अमाउंट तो ऑनलाइन ही जमा होता है। खाने का कुछ तय नहीं होता कि हम बाहर खायेंगे, अपना सामान लेकर खुद बना लेंगे या हॉस्टल के राशन में से कुछ लेंगे। फिर भी चाय तो दिन में दो बार मैंने वहीं पी थी।
पेमेंट तो मैंने किया। पर श्री का अपनापन मेरा मन भिगो गया। उससे गले मिलते समय लगा मैं अपने किसी पुराने दोस्त से जुदा हो रही हूं। कैसे हैं ये रिश्ते?
मेरी पिछली लद्दाख यात्रा की तरह यह यात्रा भी प्रेम, अपनेपन और मानवता के मीठे अहसास के साथ पूरी हुई। इस हॉस्टल में मुझे कई मित्र मिले। जो एक सुखद अहसास है एक मीठी याद है।
हमारे जीवन में जन्म का निर्णय हमारे पिछले जन्म के कर्म करते हैं। (आस्तिकता इसी पर टिकी है।) जीवन महज एक संयोग है।( यह नास्तिकता की बुनियाद है।) हमारी सोच किस ओर झुकी है इसका ख़ास महत्व नहीं है।
महत्व इस प्रेम का है जो हम उन अनजान लोगों से मिल जाता है जिनके लिए हमनें क्या किया? यदि ये सवाल हम अपनेआप से करें तो जवाब सिर्फ इतना ही होगा कि यह समझाया नहीं जा सकता है। इसका हमारे लेनदेन से कोई मतलब नहीं है। जब दिल की दिल से बात हो जाती है। प्रेम की परिभाषा का दायरा लैला – मंजनू के दायरे से बाहर लाना होगा। प्रेम सिर्फ दो इंसानों के बीच की बात है। इसमें एक बार मिले या कई बार, दोनों स्त्री या पुरूष थे, कितना समय, कितनी बातें उनके बीच हुई किसी का भी मतलब नहीं है।
जो मुझे अपनी उस यात्रा में मिला वो प्रेम का एक ऐसा अहसास है जो कुछ कहता नहीं बस खामोश हमारे साथ रहता और धड़कता है। लद्दाख से मुझे कुछ अजीब- सा लगाव है जो मैंने विश्व के किसी भी पर्वतीय क्षेत्र में महसूस नहीं किया।
लद्दाख के प्रमुख उत्सव
लद्दाख के प्रमुख उत्सव में गोल्डन नमछोट, बुद्ध पूर्णिमा, दोसमोचे और लोसर नामक त्यौहार पूरे लद्दाख में बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते है। और इस दौरान यहाँ पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दोसमोचे नामक त्यौहार दो दिनों तक चलता है जिसमें बौद्ध भिक्षु नृत्य करते हैं, प्रार्थनाएँ करते हैं और क्षेत्र से दुर्भाग्य और बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए अनुष्ठान करते हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है ‘साका दावा’ जिसमें गौतम बुद्ध का जन्मदिन, बुद्धत्व और उनके नश्वर शरीर के ख़त्म होने का जश्न मनाया जाता है। इसे तिब्बती कैलेंडर के चौथे महीने में, सामान्यतः मई या जून में मनाया जाता है जो पूरे एक महीने तक चलता है।