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भूटान की राजनीति का केंद्र शोगडू
भूटान का राजप्रमुख राजा अर्थात द्रुक ग्यालपो होता है, हालांकि यह पद वंशानुगत है लेकिन भूटान के संसद शोगडू के दो तिहाई बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। शोगडू में 154 सीटें होती हैं, जिसमे स्थानीय रूप से चुने गए प्रतिनिधि (105), धार्मिक प्रतिनिधि (12) और राजा द्वारा नामांकित प्रतिनिधि (37) और इन सभी का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
राजा की कार्यकारी शक्तियाँ शोगडू के माध्यम से चुने गए मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं। मंत्रिपरिषद के सदस्यों का चुनाव राजा करता है और इनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। सरकार की नीतियों का निर्धारण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि इससे पारंपरिक संस्कृति और मूल्यों का संरक्षण हो सके।
भूटान चारों तरफ से स्थल से घिरा हुआ पर्वतीय क्षेत्र है। उत्तर में पर्वतों की चोटियाँ कहीं-कहीं 7000 मीटर से भी ऊँची हैं, सबसे ऊँची चोटी कुला कांगरी 7553 मीटर है। गांगखर पुएनसुम की ऊँचाई 6896 मीटर है, जिस पर अभी तक मानवों के कदम नहीं पहुँचे हैं। इन चोटियों को पवित्र चोटी माना जाता है।
देश का दक्षिणी हिस्सा अपेक्षाकृत कम ऊँचा है, और यहाँ कई उपजाऊ और सघन घाटियाँ हैं, जो ब्रह्मपुत्र की घाटी से मिलती है। देश का लगभग 70% हिस्सा वनों से आच्छादित है। देश की ज्यादातर आबादी देश के मध्यवर्ती हिस्सों में रहती है। देश का सबसे बड़ा शहर, राजधानी थिम्फू है। जो देश के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। यहाँ की जलवायु मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय है।
विश्व के सबसे छोटी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भूटान का आर्थिक ढाँचा मुख्य रूप से कृषि और वन क्षेत्रों और अपने यहाँ निर्मित पनबिजली के भारत को विक्रय पर निर्भर है। ऐसा माना जाता है कि इन तीन चीजों से भूटान की सरकारी आय का 75% आता है। कृषि जो यहाँ के लोगों का आधार है, इस पर 90% से ज्यादा लोग निर्भर हैं।
भूटान का मुख्य आर्थिक सहयोगी भारत हैं क्योंकि तिब्बत से लगने वाली भूटान की सीमा बंद है। भूटान की मुद्रा ङुल्ट्रम है, जिसका भारतीय रुपया से आसानी से विनिमय किया जा सकता है। यहां औद्योगिक उत्पादन लगभग नगण्य है और जो कुछ भी है, वे कुटीर उद्योग की श्रेणी में आते हैं। ज्यादातर विकास परियोजनाएँ जैसे सड़कों का विकास इत्यादि भारतीय सहयोग से ही होता है।
भूटान की लगभग आधी आबादी भूटान के मूलनिवासी हैं, जिन्हें गांलोप कहा जाता है और इनका निकट का संबंध तिब्बत की कुछ प्रजातियों से है। इसके अलावा अन्य प्रजातियों में नेपाली है और इनका सम्बन्ध नेपाल राज्य से है। उसके बाद शरछोगपा और ल्होछमपा हैं। यहाँ की आधिकारिक भाषा जोङखा है, इसके साथ ही यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर हैं।
भूटान में आधिकारिक धर्म बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा है, जिसका अनुपालन देश की लगभग 75% जनता करती है। भूटान की अतिरिक्त 25% जनसंख्या हिंदू धर्म की अनुयायी है। भूटान के हिंदू धर्मी नेपाली मूल के लोग है, जिन्हे ल्होछमपा भी कहा जाता है।
भूटान दुनिया के उन कुछ देशों में है, जो खुद को शेष संसार से अलग-थलग रखता चला आ रहा है और आज भी काफी हद तक यहाँ विदेशियों का प्रवेश नियंत्रित है। देश की ज्यादातर आबादी छोटे गाँव में रहती है। और कृषि पर निर्भर है। भूटान में भी शहरीकरण धीरे-धीरे अपने पाँव जमा रहा है। बौद्ध विचार यहाँ की ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं। तीरंदाजी यहाँ का राष्ट्रीय खेल है।
यहां एक ही साथ राजशाही और लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यहां पहला चुनाव 2008 में करवाया गया था। भूटान दुनिया का अकेला ऐसा देश हैं जिसने 2004 से तंबाकू पर पूर तरह बैन लगा दिया है। यहां समलैंगिकता गैरकानूनी है। मगर बहुविवाह प्रतिबंधित नहीं है।
बागडोगरा हवाई अड्डा (सिलीगुड़ी)
हम दोनों देशों के आपसी रिश्तों की मजबूत डोर के कारण हमें भूटान जाने के लिए वीसा की जरूरत नहीं होती है। दिल्ली से बागडोगरा की लगभग दो घण्टे की हवाई यात्रा के बाद मैं करीब चार बजे बागडोगरा पहुँची।
तिस्ता नदी भारत के सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्य तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। यह सिक्किम और पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी विभाग की मुख्य नदी है। पश्चिम बंगाल में यह दार्जिलिग जिले में बहती है। तिस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
इस नदी की पूरी लम्बाई 315 किमी है। भारत और बंग्ला देश के बीच संयुक्त रूप से प्रवाहित होने वाली यह नदी भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होते हुए बंगला देश में प्रवेश करती है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली यह नदी भारत के साथ ही बंगला देश की समृद्धि की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण नदी है। 'तिस्ता' का अर्थ 'त्रि-स्रोता' या 'तीन-प्रवाह' है। चमकिली हरे (emerald) रंग की यह नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में मिलने से पूर्व सिक्किम और पश्चिम बंगाल की सीमा॑ओं के रूप में बहती है।
सिलीगुड़ी से मुझे फुनशिलांग जाना था। जो भूटान का एक सीमावर्ती शहर है। मैंने बागडोगरा से फुनशिलांग जाने के लिए एक टैक्सी ली। आज यहां से प्री-पेड टैक्सी में कोई भी ले जाने को तैयार नहीं हुआ। मुझे उन ही टैक्सी वालों से जो प्री-पेड काउंटर के बाहर खड़े थे, उनके कहे रेट पर जाना पड़ा। पर इस समय मैंने इस बात को नजरअंदाज किया और एक टैक्सी ले ली। जिसके रेट ठीक लगे साथ ही चालक भी। किसी के चेहरे पर कुछ नहीं लिखा होता है फिर भी बातचीत से हम जितना समझ सकें उतनी सावधानी ली जा सकती है।
बागडोगरा से बाहर निकलते ही हरियाली ने हमारा स्वागत किया। हवा में बारिश की नमी है। शाम बस होने को ही है। मैं भी थोड़ी थकान व भूख महसूस कर रही थी। मैंने रास्ते में थोड़ा सा खाने का सामान लिया। हम अपने गंतव्य की ओर निकल चले।
सिलिगुड़ी से आगे बढ़ते हुए सड़क के दोनों ओर चाय के बागानों ने हमारा स्वागत किया। तीस्ता नदी के कारण यहाँ एक नहर बनाई गई है। जो शाम के समय बहुत सुंदर लग रही थी।
नहर के आसपास पेड़, रोशनी का सुंदर इंतजाम किया हुआ था। एक लंबा रास्ता बनाया गया है। जहाँ लोग इस दृश्य का आनंद ले सकते हैं। ये स्थल शाम के समय सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
करीब नौ बजे फुनशिलांग पहुँचे। रात का समय कुछ दुकानें बन्द हो चुकी थी, कुछ खुली थी। हमनें अपने रहने के स्थान को स्थानीय लोगों से समझा। हम फिर भी अपने स्थान को नहीं ढूंढ पाये इतने में भूटानी पुलिस का एक चेक पोस्ट दिखा।
मेरा कार चालक बोला –“मैडम, यहाँ की पुलिस बहुत अच्छी है। पूरी सहायता करेगी। साथ ही नियम की भी बहुत पक्की है। हम यहाँ हॉर्न नहीं बजा सकते हैं।”
मैंने कार से उतर कर पुलिसकर्मियों से अपना रास्ता समझा और हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले।
रास्ते में मेरा चालक बोला- “मैडम यहाँ यातायात के नियमों का बड़ी सख्ती से पालन करना पड़ता है। जुर्माना पहली बार कम होता है। ₹750, उसके बाद तो वो ₹1750 होगा। जिसे कोई भी माफ नहीं करवा सकता है।”
ये सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। एक अनुशासित देश में यात्रा करना बहुत सुकून देता है। जिसकी हर देश के, हर नागरिक को जरूरत है।
मैंने अपने ठहरने के लिए एक घर को बुक किया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सेवा है जो प्रमाणित घरों में ठहरने की जानकारी देती है। घरों में रुकने के कई फायदे हैं।
जिनमें से एक तो यह की हमें घर जैसा माहौल मिलता है। हम अपना खाना खुद बना सकते हैं। मैं पिछली दोनों यात्राओं में भी घर पर ही ठहरी थी, जो मेरे लिए एक सुखद अनुभव था।
खैर, अभी मेरा फोन काम नहीं कर रहा था। मेरे चालक के फोन को भी सिग्नल नहीं मिल रहे थे। सिलीगुड़ी के लोगों का फोन कईं बार यहाँ तक काम कर जाता है।
मेरा ठहरने का स्थान, हम एक जगह जाकर रुक तो गये पर समझ नहीं आ रहा था। अब जाना कहाँ है? इस जगह बहुत सारी बहुमंजिला इमारतें एक साथ बनी थी।
अब इनमें से मेरा ठहरने का स्थान कौनसा है ये समझना मुश्किल लग रहा था। पास से गुजरते स्थानीय लोगों से जगह को समझना चाहा तो उन्होंने कहा-“आप अपने होस्ट को फोन लगा लीजिए वो आपको जगह समझा देंगे।”
उन अनजान लोगों ने हमारे लिए फोन लगाया। मेरे होस्ट ने कहा कि –“हम सही जगह पर है वो मुझे लेने नीचे आ रही हैं।”
दो मिनिट बाद एक नवयुवती आई। नमस्कार के आदान-प्रदान के बाद हम आगे बढ़ते, उसके पहले मैंने उन अनजान लोगों को शुक्रिया कहा! साथ ही, अपने कार चालक को उसका भुगतान करके उसे उसके सहयोग का धन्यवाद दिया!
एक बहुत साफ-सुथरा फ्लैट जिसमें दो बैडरूम, एक किचन, एक ड्राइंगरूम था। मेरी होस्ट ने मुझसे कहा- “वे मेरे पास वाले फ्लैट में रहती है। कोई भी खाने का सामान लेना हो तो अभी दुकान खुली हैं। मैं जाकर ले सकती हूँ।”
मैंने उनसे इंटरनेट का पासवर्ड पूछा और जवाब में कहा –“ठीक है, थोड़ी देर में मैं बाहर जाकर देखती हूँ। कुछ ले आती हूँ।”
अपने कमरे में आकर मैंने सोचा अब मैं बहुत थक गई हूँ। किचिन में कुछ तो होगा ही वही आज रात के लिए काफी होगा। पहले अपना मोबाईल देखा घर के कईं सन्देश उसमें थे।
पड़ाव तक पहुँच जाने पर सब बातचीत करने का इंतजार कर रहे होते हैं। सकुशल पहुँचने पर फोन तो स्वाभाविक है। मैंने अपने परिवार में सबसे बात की। कुछ देर लेटने के बाद देखा, घड़ी में करीब साढ़े दस बज गए थे।
सोचा चलो, देखें किचिन में क्या है? किचिन में कुछ भी नहीं था। न कुछ खाने के लिए न पीने के लिए पानी। अरे, ये तो गड़बड़ हो गई अब क्या करूँ? इतनी रात अपनी होस्ट को परेशान करना ठीक नहीं लगा।
अचानक मेरी नजर ड्राइंगरूम की सजावट पर व वहाँ लगी तस्वीरों पर गई। भूटान के राजा-रानी की और उनके राजकुमार की तीन तस्वीरें लगी थीं। अपने राजा के प्रति जनता का प्रेम होने पर ही ऐसा हो सकता है। राजा का भय सड़कों पर हो सकता है। घर में और दिलों में तो प्यार ही टिक पाता है।
होमस्टे में होस्ट साथ में हो, ये तो जरूरी नहीं होता है। पर खाने का सामान तो होता ही है। किसी जगह कोई खाना बना कर दे देता है। तो कहीं हम अपना खाना खुद बना लेते हैं। पानी, दूध, कुछ सब्जी व मसाले, तेल के बिना यह पहला घर मुझे मिला था।
अब अफ़सोस करने से कुछ भी नहीं मिल सकता है। मैं अपने कमरे में आई। मेरे बोतल में पर्याप्त पानी था, कुछ बिस्किट वगैरह भी थे। थकान व नींद इतनी थी कि बिना खाये सोने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली थी। मैंने जल्द ही अपने आपको नींद के आगोश में सौंप दिया।