83 movie review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | 83 फिल्म समीक्षा

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83 फिल्म समीक्षा

83 , भारत का क्रिकेट वर्ल्ड कप में विजयी होकर लौटना, आने वाली पीढ़ियों को क्रिकेट के प्रति केवल आकर्षित ही नहीं पर दशकों तक गर्वित कर गया था। कपिल देव इस इतिहास के हीरो बने और साथी क्रिकेटर बने उस गर्व दिलाने वाली घड़ियों के योद्धा।

जब किसीने भारतीय क्रिकेट टीम से एक जीत की उम्मीद भी नहीं रखी थी तब एक विश्वकप जीतने का काम किसी नामुमकिन घटना जैसा ही था। जैसे सहारा के रेगिस्तान में किसीने पानी ढूंढ लिया हो या फिर बिना ऑक्सिजन के किसीने जीना सीख लिया हो।

83 फिल्म के तकनीकी हिस्सो को मैं यहां रखना नहीं चाहता क्योंकि ऐसा करने से फिल्म में दिखाया देश प्रेम और कुछ कर दिखाने का जज्बा फीका पड़ सकता है। इस फिल्म समीक्षा में मैं केवल उन बातो को बताऊंगा जिन को देख और सुन कर मेरी आंखों से बार बार पानी छलका।

एक दृश्य में कपिल कह रहे हैं उनकी मां उन्हें केवल एक ही बात कहती थीं, "बेटा जीत के आना" । कोई बेस्ट ऑफ लक नहीं, कोई ट्राई यौर बेस्ट नहीं। मतलब केवल जीत और कुछ नहीं। हमारी मां को खेल के एक ही नतीजे का पता होता था और वो था जीत या हार। हर मां चाहती है उसका बच्चा जीते तो बस वही कपिल देव की मां ने किया। कपिल की मां का योगदान विश्वकप विजय में क्षत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई से कम नहीं गिना जा सकता।

एक और दृश्य है जिसमें कपिल को पूछा जाता है की अपनी शुरुआती मैच की जीत को जिसे पत्रकार केवल 'लक बाय चांस' मान रहे थे, उन्हें कपिल जवाब दें। तब कपिल कहते हैं की जब वेस्ट इंडीज की टीम को 1975 के विश्वकप प्रारंभ होने से पहले गुलाम , काले, पिछड़े वगैरह उपेक्षित शब्दों से संबोधित किया गया तो कप्तान क्लाइव लॉयड कुछ नहीं बोले, वो पहला क्रिकेट विश्व कप जीत कर चले गए और दुनिया को अपना जवाब मिल गया। अच्छे कप्तान अपनी जीत से ही लोगों का मुंह बंद कर सकते हैं।

फिल्म में कपिल विश्वकप के दौरान अपनी पत्नी को एयरपोर्ट से लेकर जब वापस लौटकर होटल आ रहे थे तो उन्होंने अपने ट्रेनिंग के दिनों के बारे में बताया। उनका ट्रेनिंग संचालकों से झगड़ा हुआ था, उन्हें केवल 2 रोटियां खाने में दी गईं थीं। जब उन्होंने पूछा की फास्ट बॉलर को दो रोटियां कैसे चलेंगी तो संचालक ने कहा भारत में फास्ट बॉलर बनते कहां हैं। कपिल ने उनसे 4 रोटी देने को कहा और उन्हें वो मिलीं। और कुछ साल बाद जब उनका टीम में बतौर फास्ट बॉलर सिलेक्शन हुआ तो वे ट्रेनिंग कैंप में संचालक का धन्यवाद करने गए और उन्हें दिखाया की भारत में फास्ट बॉलर बन सकते हैं। कपिल को टीका से कभी डर नहीं लगा पर उपेक्षा का उन्होंने डटकर जवाब दिया।

जिम्बाब्वे जैसी कमजोर टीम के सामने भारतीय बल्ले बाजों ने घुटने टेक दिए तब कपिल ने एक कप्तान की भूमिका निभाते हुए खुद ही 175 नाबाद रन बनाकर टीम को सम्मान जनक स्थिति में ला खड़ा किया और एक बड़ी जीत कैसे ली जाती है उसका उदाहरण टीम के सामने रखा। उस उदाहरण के चलते प्रत्येक मैच में भारत को एक नया हीरो मिला जिसने मैच की जीत में अपनी साझेदारी दर्ज करवाई।

फिल्म में भारतीय क्रिकेट टीम को मिल रहीं निम्न स्तर की सुविधाओं और वेतन की भी झलक दिखी। क्रिकेटरों के पास लॉन्ड्री के पैसे भी न होना, बलविंदर संधू की मांगनी कम वेतन की वजह से टूटना, होटल में खिलाड़ियों की बीवियां आईं तो बैचलर और अकेले खिलाड़ियों को एक ही रूम में सोना, खिलाड़ियों के सामान ले जाने के लिए भी व्यवस्था का अभाव, और जाने कितनी मुश्किलें रहीं होंगी, उनके बावजूद भारतीय क्रिकेट टीम का जीतना एक बहुत बड़े सपने का साकार होना था।

भारतीय प्रधान मंत्री का अचानक ही भारत की क्रिकेट मैचों को इसलिए समर्थन व लाइव टेलीकास्ट करवाना क्योंकि मैच देखने से दंगों में कमी आ रही थी , यह भी एक ऐतिहासिक बदलाव रहा जब एक खेल भारत की कौमी एकता का प्रतीक बना।

कपिल देव का अपने खिलाड़ियों पर सही समय पर भरोसा करना एक अच्छे कप्तान की निशानी दिखाता है। रोजर बिन्नी एक युवा गेंदबाज थे, उनका श्रेष्ठ प्रदर्शन लाने में कपिल ने बहुत मेहनत की, ताने मारे और तब जाकर भारत सेमी फाइनल तक पहुंचा। बलविंदर सिंधु को निजी जीवन की असफलता भूल कर देश के प्रति अपना फर्ज याद दिलाना मैच का रुख बदल देता है। मोहिंद्र अमरनाथ के श्रेष्ठ प्रदर्शन का कुछ श्रेय भी कपिल को जाता है।

फिल्म के अंत में जब भारत की पारी 183 रन बनाकर सिमट जाती है तो सभी टीम मैंबर हताश हो जाते हैं, तब कपिल ने कहा की ' भाई हम 183 रन बना चुके हैं, उनको अभी बनाने हैं , और हम उन्हें ये बनाने नहीं देंगे। ' यह जोश टीम के लिए काफी था। टीम ने जी जान लगाकर गेंदबाजी और फिल्डिंग की और अंत में भारत की ऐतिहासिक जीत हुई। बस जीत याद रखो, बाकी सब भूल जाओ।

फिल्म में कई सारे इमोशनल सीन है जिन्हें देखकर आंखें नम हुईं। शुरुआत थोड़ी सी धीमी है पर मध्य और अंत सटीक है। OTT पर अवश्य देखें। शायद कुछ हफ्तों बाद आप एक बार फिर देखने का मन बना लें। अपने बच्चों के साथ देखें क्योंकि फिल्म के माध्यम से यहां सीखने के लिए बहुत कुछ है, देशभक्ति, खुद पर भरोसा, कप्तानी कैसी हो और कैसे व्यक्तियों को अपना श्रेष्ठ देने के लिए तैयार किया जाए।

जय हिंद।
महेंद्र शर्मा २७.३.२०२२