भाग -7
इस वक्त मैं बेहद डर चुका था ,सूखे पत्ते मेरे बदन में चढ़ते जा रहे थे ,मैं उन्हें अपने शरीर से हटाने की कोशिश में, अपने शरीर को हिलाने लगा था, पर इसका कोई फायदा मुझे नहीं मिल रहा था,,,,
ऊपर पेड़ पर काली आकृति जिसका कोई अस्तित्व नहीं था ,,वह कभी गोलाकार बन रही थी तो कभी आयताकार रूप ले रही थी,,,,
और फिर एकदम से वह मेरी तरफ बड़ी थी, मैंने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली थी, मेरा चेहरा एकदम से पसीने से भर उठा था, ऐसा लग रहा था जैसे गरम भट्टी के सामने मैं खड़ा हो चुका हूं,,,,
फिर मुझे एकदम से सन्नाटे का एहसास हुआ, मुझे ऐसा लगने लगा मैं अपने कमरे में ही पहुंच गया हूं, मैंने धीरे से आंखें खोली और वाकई में इस वक्त मैं कुर्सी में बैठा हुआ था,, सब कुछ सामान्य था,,,,
कुर्सी से जल्दी से मैं उठकर एक तरफ खड़ा हो गया था, ,,""यह हो क्या रहा है इस तरह मुझे दिन में सपने कैसे दिखाई दे रहे हैं ,,क्या मैं ठीक हूं या कहीं मैं पागल तो नहीं हो रहा ,,,ऐसी हरकतें तो पागल करते हैं,,,,""
और यह खयाल आते ही मैं अपने कमरे से बाहर निकल गया था,,, दूर मुझे वह पहाड़ी धूप से नहाई नजर आ रही थी, और मेरा दिल फिर से वहां जाने के लिए मचलने लगा था,,,
""क्यों ना मैं फिर से वहां चला जाऊं, तभी मेरे मन और दिमाग पर छाया हुआ यह डर दूर होगा, वरना मैं उसे लेकर ऐसे ही भयभीत होता रहूंगा ,",,,मैं दोबारा कमरे के अंदर गया था और अपनी घड़ी कलाई पर बांधी थी मुझे घड़ी बेहद गर्म महसूस हुई थी पर मैंने इस तरफ ध्यान नहीं दिया फिर एक छोटे से बैग में, एक पानी की बोतल को रखा था और तेजी से घर से निकल पड़ा था,,,
,मेरी नजर इस वक्त सिर्फ पहाड़ी पर ही केंद्रित थी, आगे बढ़ते वक्त मेरे पैर कांप रहे थे,, मेरी जुबान फिर से तालु के साथ चिपकने लगी थी ,गला सूखने लगा था,
दिल कह रहा था कि बेवजह उस पहाड़ी पर चढ़ने का प्लान मत बना ,फिर मैंने बेग से बोतल निकालकर पानी का एक घूंट पी लिया था,,,,
""जाना ति मुझे है,, दिल चाहे कितना इंतजार करें ,पर इस तरह बेवजह के डर को मैं अपने दिमाग में बसा कर नहीं बैठ सकता,, कल अगर उस पहाड़ी पर मेरे साथ कुछ अजीब सा घटा था, तो फिर आज वह चीज पूरी तरह से या तो घट जाएगी ,,,या खत्म हो जाएगी ,,,,"""
""दोनों में से एक चीज का होना तय है,,,,,
अब मेरे कदम पहाड़ी की ऊंचाई की तरफ बढ़ चले थे, मैं सड़क से ऊपर की तरफ बढ़ने लगा था, मैंने अपने अंदर हौसले की आग को जला लिया था ,और बिल्कुल निर्भय होकर ऊपर की तरफ बढ़ने लगा था,,,,
इस रास्ते पर जाने पर मुझे हमेशा बेहद खुशी का अनुभव होता है,, बेहद दूर तक नजर आने वाली गहरी खाई, पहाड़ के ऊपर नजर आने वाले चीड़ के पेड़ों का धना जंगल,, मोनाल पक्षी की बेहद खूबसूरत आवाज, यहां बड़ी आसानी से सुनने को मिल जाती थी ,,,,,
प्रकृति का खूबसूरत नजारा, जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाओ नजर आने लगता था ,,और मैं जानता था इस पहाड़ी की टॉप पर पहुंचने के बाद दूर हिमालय की बर्फीली वादियों बिल्कुल स्पष्ट नजर आने लगती थी ,जो एक अलग ही एहसास दिलों दिमाग पर करती थी,,,,,
और जब आकाश बिल्कुल साफ नीला नजर आ रहा हो, ऐसे में पहाड़ की ऊंचाई से उन हिमालय के ग्लेशियर को देखना अलग ही सुकून देता था ,,और यही लालच मुझे हमेशा इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए विवश कर देता था,,,,,
चांदी की तरह चमकती हिमालय की बर्फ की चोटियों को, इस महीने मार्च में देखने का एक अलग ही मजा था,,,
मेरे दिल से डर नाम का ख्याल निकल चुका था ,,और मैं अब तेज कदमों के साथ ऊपर चढ़ने लगा था, आज घाटियों में कोई धुंध तैरती हुई मुझे नजर नहीं आ रही थी,,,,,
मैं आधा पहाड़ चढ़ चुका था ,,और मुझे बेहद खुशी हो रही थी,,, पर जैसे ही मैं ने अपनी खुशी को दोनों हाथ फैला कर महसूस करने की कोशिश की थी ,,वैसे ही मुझे तेज हवा का झोंका चेहरे पर आ टकराने का एहसास हुआ था,,,, और एकदम से मेरे ऊपर फिर से डर हावी हो गया था,,,,,,,
अभी तक जो मंद- मंद शीतल हवा चल रही थी, चीड़ के पेड़ों के अंदर से आने वाली सरसराहट की धमनी सुनाई दे रही थी,, वह एकदम से अलग ही ध्वनि पैदा करने लगी थी,, ऐसा लग रहा था ,,जैसे छोटे छोटे पत्थर आपस में टकराने लगे हो,,,,,
मैं पल भर वहां रुक गया था,, और वहीं से मैंने अपने चारों तरफ गहरी नजरों से देखा था,"" क्या कोई मुझे देख रहा है मुझे ऐसा क्यों लग रहा है,, पर यहां तो कोई भी नहीं,, सिर्फ इन छोटे पंछियों के अलावा,, इतनी ऊंचाई पर आकर तो लंगूर भी मुझे नजर आ जाते थे,, पर आज तो वह भी नजर नहीं आ रहे हैं,,,,,,
"तो फिर मुझे कौन देख रहा है"",, क्यों मुझे ऐसा लगने लगा था और फिर मैंने अपने अंदर फिर से, एक हौसले को पैदा किया था ,और ऊंची आवाज में गाना गाते हुए अपने कदम आगे बढ़ा दिये थे,,,,,,
फिर से मंद- मंद हवा मेरे चेहरे से टकराने लगी थी, और अभी मैं 25-30 कदम ही आगे बढ़ा था ,फिर से हवा का एक पेज थप्पड़ मेरे मुंह से आ टकराया था,, और मुझे एहसास हुआ था ,,जैसे मेरा गाल लाल हो गया हो,,,,
मैंने अपना हाथ अपने गाल पर रख लिया था, और मुझे मेरा गाल अब थोड़ा गर्म महसूस हुआ था,, मैंने तेजी से अपने चारों तरफ नजर डाली थी,, और फिर से किसी चीज को महसूस करने की कोशिश करने लगा था ,मेरे पैर फिर से उखड़ने लगे थे ,,जिन्हें में बड़ी मुश्किल से रास्ते पर टिकाए खड़ा था,,,,,
मेरी नजर दूर गहरी खाई पर पड़ने लगी थी,, मैंने अपनी आंखों को तेजी से मला था,,"" यह क्या हो रहा है, उस गहरी खाई में,, वह अजीब सी क्या चीज घूम रही है,,,,
मैं वही एक पत्थर को पकड़ कर खड़ा हो चुका था, और उस गहरी गहराई में होने वाली हलचल को देखने लगा था,, पर तभी मुझे एहसास हुआ कि कोई मेरे पीठ के पीछे आकर खड़ा हो गया हो,,, मैं अपनी जगह पर एकदम जड़ हो चुका था,,, मेरे अंदर हिम्मत नहीं हो रही थी कि, एकदम से पीछे मुड़ कर देख लूं कि कौन है,,,,,,
,मेरे दोनों हाथों की अंगुलियां हथेली पर लग चुकी थी,,, मैंने आंखों को तिरछा करके पीछे किसी को देखने की कोशिश की थी,,,,,
और फिर ,,मुझे अपनी पीठ पर एक दबाव का अनुभव हुआ,, ऐसा लगा ,,,जैसे कोई मुझे अब उस गहरी खाई में धक्का दे देगा,,, मेरा दिमाग एकदम से सन्नाटे में आ गया था,,,, और उसी पल में,,, तेजी से नीचे बैठ गया था,,,,
क्रमशः