मैं हैरान था क्योंकि वो मेजर अंकल नहीं थे..... मैंने उनसे पूछा मेजर अंकल कहां है तब उन्होंने दिवार पर टंगी तस्वीर को दिखाया और कहा " अब ये यही कैद है .."
मैंने उनसे पूछा " आखिर क्या हुआ इनके साथ " तब उन्होंने कहा " क्या तुम सूरज हो धरा के बेटे.."
" हां मैं ही सूरज हूं.."
उन्होंने मुझे एक चिठ्ठी पकड़ाई और कहा " ये मेजर जनरल के जरिए लिखी आखिरी चिट्ठी है ..."
जैसे ही मैंने चिठ्ठी पढ़ी ... मैं कह नहीं सकता उस समय मेरा पूरा शरीर निष्क्रिय हो गया पास खड़े कुछ साथियों ने मुझे संभाला और ले जाकर पानी पिलाया...
वो समय मेरे लिए क्या था मैं खुश होऊं या रोऊं बस हताश सा बैठ गया......
उस चिठ्ठी में लिखा था...अब सुनो
सूरज हो सके तो मुझे माफ़ कर देना
तुम्हारे जाने के बाद कुछ समय तो यहां सबकुछ सही रहा ....हम भी रूस्तम सेठ को ढूंढ़ने में लगे हुए थे... रूस्तम सेठ को हमने सब जगह खोजा पर उसका कहीं कुछ पता नहीं चला लेकिन एक दिन अचानक पता नहीं वो आतंकी कहां से आकर तुम्हारे घर में दाखिल हुए... तुम्हारे परिवार को उन्होंने बंधक बना लिया था
हमे जब इस बात का पता चला तब हम उन्हें बचाने के लिए मौके पर पहुंच गए... हमने उन्हें छोड़ने के लिए कहा लेकिन उन्होंने बदले में एक शर्त रखी कि हम तुम्हें उनके हवाले कर दे.... वो तुम्हें मारना चाहते थे... हमने उनकी शर्त मानने से इंकार कर दिया जिससे गुस्से में उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी... तुम्हें ये जानकर बहुत दुख होगा उसमें रुस्तम सेठ भी शामिल था... रुस्तम सेठ के कहने पर तुम्हारे माता पिता को मार दिया...हम उन्हें नहीं बचा पाए....इस जंग में हम तुम्हारे मां बाप को तो नहीं बचा पाए लेकिन तुम्हारी छोटी बहन पूरी हिफाजत से है और वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है....
हो सके तो अपने मेजर अंकल को माफ कर देना...
.....मेजर जनरल मान सिंह.....
मुझे अपनी बहन से मिलकर खुशी तो हुई लेकिन मां बाबा को खोने का दर्द मैं नहीं भूल पा रहा था... फिर मेरे दिमाग में एक सवाल घुमा आखिर मेजर अंकल को क्या हुआ.....
तब बिग्रेडियर ने मुझे बताया...." तुम्हारी बहन को बचाने के लिए मान सिंह ने आतंकवादियों की गोलियों को अपने ऊपर ले लिया और तभी वो शहीद हुए.."
उनकी बात सुनकर मैं पूरी तरह से टूट चुका था.. मुझे आज अपनी इस खुशी को बांटने वाला कोई न मिला ....
मैंने बिग्रेडियर से पूछा ..." उस रुस्तम सेठ का क्या हुआ वो मारा गया न....."
" नहीं.. वो तो फरार हो गया पता नहीं कहां से सरहद पार निकल गया...."
मेरी आंखों में खुन खौल उठा उसके जिंदा रहने से उसी वक्त मैंने धरती मां की कसम खाई इस देश के गद्दार को और अपने मां बाबा..मेजर अंकल के कातिल को जिंदा नहीं छोडूंगा...
मुझे पता था वो कहां से सरहद पार गया है... इसलिए मैं प्लेनिंग के साथ चल दिया अपने मकसद की ओर .... बिग्रेडियर सर ने बहुत रोका ..." क्यूं अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो..."
मैं अपने निर्णय पर अडिग था और चल दिया अपने मकसद की ओर.....