१८.पुराने राज़ हाथ लगे
रुद्र वंदिता जी से मिला। इसलिए अपर्णा को उस पर शंका हुई थी। जिससे रुद्र एक एक कदम संभलकर आगे बढ़ रहा था। अपर्णा हर वक़्त रुद्र पर नज़र रखें हुए थी। लेकिन आखिर वह रुद्र के घर में उस पर नज़र नहीं रख सकती थी। इसलिए रुद्र ने अपर्णा के पापा को ढूंढने का सारा काम घर से ही करना शुरू कर दिया।
रूद्र के जासूस ने अखिल जी की इन्फॉर्मेशन निकालने के लिए रुद्र से दो दिन मांगे थे। जिसमें एक दिन बीत गया था। रात को ऑफिस से आने के बाद रुद्र हॉल में ही लेपटॉप लेकर बैठा था। उस वक्त रणजीत जी कुछ लेने नीचे आएं। तभी उन्होंने इतनी रात गए रुद्र को हॉल में देखा तो उसके पास चले आएं। उन्होंने रुद्र के पास बैठकर पूछा, "तो लाड़ साहब को अपने होनेवाले ससूर के बारे में कोई इन्फॉर्मेशन मिली या नहीं?"
रणजीत जी के मुंह से ऐसा सुनकर रुद्र ने हैरानी से उनकी ओर देखा। रूद्र को ऐसे देखता देखकर रणजीत जी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "बेटा! मैं तेरा बाप हूं और बाप से ना कुछ नहीं छिपता। फिर मुझे भी अपर्णा अच्छी लगती है और जैसे तेरे दादाजी ने तुझे सब बताया। वैसे मेरे पापा ने मुझे सब बता दिया।"
"मतलब आपको सब पता है? मुझे अपर्णा पसंद है ये भी?" रुद्र ने हैरानी से पूछा।
"हां, मुझे सब पता है। तू भले ही बचपन से कमीना रहा हो। लेकिन तुने लड़की अच्छी ढूंढी। इसलिए मुझे तुम पर नाज़ है। उस लड़की में कोई तो बात है। अगर उसे सही दिशा और सही लोग मिले तो वह बहुत आगे जा सकती है। फिर वह तुझे भी सुधार देगी। इसलिए अपर्णा इस घर की बहू बने इसमें मेरे तो फ़ायदे ही फायदे है।" रणजीत जी ने खुश होकर कहा।
"चलों, आपको मेरा कोई फैसला तो सही लगा।" रुद्र ने लंबी सांस भरते हुए कहा।
"ये तो है, लेकिन अब अखिल को ढूंढकर सब सही कर दे। ताकि हम अपर्णा से भी इस बारे में बात कर सकें।" रणजीत जी ने कहा।
"लेकिन आपको कैसे पता चला कि मैं उन्हें ढूंढ रहा हूं? ये भी आपको दादाजी ने बताया?" रूद्र ने पूछा।
"नहीं, तुमने जिस जासूस को ये काम सौंपा उसका मुझे फोन आया था। तुम बार-बार भूल जाते हो कि तुमसे भी पहले लोग रणजीत अग्निहोत्री को जानते है। फिर उस जासूस ने पहले भी हमारे लिए बहुतों की इन्फॉर्मेशन निकाली है। इसलिए उसने मुझे बताया फिर मैंने पापा से पूछा तो उन्होंने बाकी का सब मुझे बता दिया।" रणजीत जी ने कहा।
"वाह पापा! आप भी बहुत स्मार्ट हो।" रूद्र ने मुस्कुराकर कहा।
"अब अपना काम कर लें। ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है।" रणजीत जी ने रुद्र के सिर पर चपत लगाकर कहा और चले गए। उनके जाते ही रुद्र मन ही मन सोचने लगा, "पापा! आप जो भी कहें। लेकिन आप प्यार तो मुझसे बहुत करते है। पर पता नहीं क्यूं आप मुझे मेरे हिसाब से क्यूं नहीं रहने देते?" रुद्र यहीं सब सोचते हुए फिर से लेपटॉप में घूस गया। रात को उसे हॉल में ही नींद आ गई।
सुबह में जब दादाजी ने धीरे-से अपनी छड़ी उसके पैर पर मारी। तब जाकर रुद्र की आंख खुली। उसने उठते ही कहा, "क्या दादाजी? आपका मुझे इसी तरह जगाना जरूरी है?"
"थोड़े दिन और बेटा! फिर तो मैं चला जाऊंगा।" दादाजी ने रूद्र के पास बैठते हुए कहा।
"आप ऐसी बातें क्यूं करते है? आप अब कहीं नहीं जाएंगे।" रूद्र ने दादाजी के गले लगकर कहा।
"तो कुछ ऐसा कर की मैं इस बार हमेशा के लिए यहीं रुक जाऊं।" दादाजी ने कहा तो रूद्र मुस्कुरा उठा। दादाजी क्या कहना चाहते थे? ये रूद्र समझ गया था। वो सीधा ही अपनें कमरें में आकर तैयार होने लगा। तभी उसे एक मैसेज आया। जिसे पढ़ते ही वह बिना चाय नाश्ते के ही ऑफिस के लिए निकल गया।
रुद्र जब ऑफिस पहुंचा। तब उसने जो जासूस हायर किया था। वह उसे ऑफिस के बाहर ही मिल गया। तभी रुद्र को अपर्णा आती हुई दिखी तो रुद्र ने उस जासूस को अपनी गाड़ी में बैठने का इशारा किया और रूद्र ऑफिस से दूर एक सड़क पड़ती थी। वहां आ गया।
"अब बताओ क्या इन्फॉर्मेशन मिली है तुम्हें?" रुद्र ने गाड़ी रोकते ही पूछा।
"अखिल भारद्वाज इस वक्त बनारस में ही है। उन्होंने बहुत सालों पहले महिमा एंटरप्राइज नाम की कंपनी में बहुत बड़ा घोटाला किया था। जिससे उस कंपनी को बहुत नुक़सान हुआ था। लेकिन उस कंपनी की मालकीन ने अखिल को माफ़ कर दिया था। तब से ही अखिल बनारस छोड़कर चला गया था। लेकिन कल रात को ही वो बनारस पहुंचा है। वह कोई पूजा करवाने वहां गया है। आप आज़ ही निकले तो आज़ ही उनसे मिल पाएंगे।" जासूस ने कल जो भी पता किया। वो सब रुद्र को बता दिया।
"थैंक्यू, तुमने मेरी बहुत बड़ी हेल्प की है।" रुद्र ने जासूस से हाथ मिलाया और तुरंत ऑफिस आ गया। रुद्र आया तब तक सारा स्टाफ आ चुका था। वह सीधा अपनी केबिन में आ गया और साक्षी को अपने केबिन में बुला लिया।
"जी सर! आपने बुलाया?" साक्षी ने दरवाज़े पर खड़े होकर ही पूछा। रुद्र ने उसे अंदर आने का इशारा किया तो वह अंदर आ गई।
"तुम अभी के अभी बनारस जाने की प्लेन की दो टिकट बुक करवाओ।" रूद्र ने जल्दबाजी में कहा।
"आप कुछ परेशान लग रहें है। कोई प्रोब्लेम है?" साक्षी ने आदतवश पूछ लिया।
"अभी तो कोई प्रोब्लेम नहीं है। आगे भी सब ठीक रहा तो एक गुड न्यूज़ दूंगा आप सब को, लेकिन पहले प्लीज़ बनारस की दो टिकट बुक करवा दो और पहली फ्लाइट की ही करवाना।" रुद्र ने कहा। साक्षी तुरंत बाहर आ गई।
कुछ देर बाद रुद्र के फ़ोन पर एक मैसेज आया। उसने वो मैसेज पढ़कर किसी को मैसेज भेजा और तुरंत अपने केबिन से बाहर आकर पार्किंग में आ गया और गाड़ी में बैठ गया। कुछ ही मिनटों में अपर्णा भी बाहर आई। रुद्र को गाड़ी में बैठा देखकर वह उस ओर बढ़ गई। अपर्णा को देखकर रुद्र ने गाड़ी का शीशा नीचे किया।
"आपने मुझे इतनी जल्दी में यहां क्यूं बुलाया?" अपर्णा ने शीशे में से झांकते हुए पूछा।
"पहले तुम गाड़ी में बैठो। सब पता चल जाएगा।" रुद्र ने कहा। अपर्णा की कुछ समझ में नहीं आया। फिर भी वह गाड़ी में बैठ गई। रुद्र ने गाड़ी चलाते हुए ही किसी को मैसेज भेजा और गाड़ी अपर्णा के फ्लैट की ओर आगे बढ़ा दी।
"हम मेरे फ्लैट पर क्यूं जा रहे है?" अपर्णा ने हैरानी से पूछा।
"कुछ देर चुप रहोगी? इंतज़ार का फल मीठा होता है।" रुद्र ने कहा तो अपर्णा चिढ़ गई। फिर आगे उसने कोई सवाल नही किया।
अपर्णा का फ्लैट आते ही उसने गाड़ी रोकी और अपर्णा की ओर देखकर कहा, "तुम जाकर अपना जरूरी सामान और कुछ कपड़े ले आओ। हम बनारस जा रहे है।"
"लेकिन ऐसे अचानक क्यूं? वहां सब ठीक तो है न? रुको मैं चाची को फोन करती हूं।" अपर्णा ने परेशान होकर कहा।
"किसी को फोन करने की जरूरत नहीं है। वहां सब ठीक है। अगर अभी चुपचाप तुमने मेरा कहा माना, तो आगे इससे भी अच्छा होगा।" रुद्र ने कहा।
"लेकिन..." अपर्णा ने कहना चाहा लेकिन रुद्र ने उसका फोन उसके हाथ से छिन लिया और उसे अपनी जेब में रखकर कहा, "अब ये फोन मेरे पास ही रहेगा। तुम्हारे पास दश मिनट है। जल्दी से अपना सामान लेकर नीचे आओ।"
रुद्र की बात सुनकर अपर्णा पैर पटकते हुए चलीं गईं। जाते हुए वह बड़बड़ाए जा रही थी, "पता नहीं इसे क्या हो जाता है? जब से मैं इससे मिली हूं। कुछ ना कुछ नया हो रहा है। अब पता नहीं आगे क्या होगा?"
अपर्णा चली गई उसके बाद रितेश वहां आया। उसने रुद्र के हाथों में एक बैग थमाई और कहा, "भाई! सब सोच-समझकर तो कर रहा है न? अगर कोई गरबड़ हुई तो उस लड़की का दिल टूट जाएगा।"
"रिलेक्स यार! वो तुमसे पहले मेरी भी कुछ लगती है। उसे तकलीफ़ हो, ऐसा मैं कुछ नहीं करुंगा। आज़ तो बनारस जाकर पुराना किस्सा वहीं खत्म करके एक नई शुरुआत के साथ ही लौटूंगा।" रुद्र ने रितेश के हाथों से बैग लेकर, उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।
"बेस्ट ऑफ़ लक शिवा! हमें तुम दोनों का इंतज़ार रहेगा।" रितेश ने खुश होकर, रुद्र को गले लगाकर कहा और चला गया।
अपर्णा अपना सामान लेकर नीचे आई। फिर दोनों साथ में एयरपोर्ट के लिए निकल गए। एयरपोर्ट पहुंचकर रुद्र ने सारी फॉर्मालिटिज पूरी की और दोनों जैसे ही प्लेन में बैठे प्लेन ने बनारस की ओर उड़ान भरी।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल