अध्याय 12
धनराज, ट्रक को शहर के शुरुआत में बायपास रोड के घुमाव पर खड़ी करके नीचे उतरा।
एक पराठा स्टाल, सलून, टायर-वल्केनाइजिंग सेंटर, ठंडे पेय पदार्थ की दुकान इन सब को छोड़कर एक टेलीफोन बूथ की तरफ वह चला।
उसके हाथ की हथेली में बॉल पेन से सुरभि के घर का फोन नंबर लिखा हुआ था, उसे एक बार याद किया। बूथ के कांच के दरवाजे को खोल कर अंदर गया। रिसीवर को लेकर डायल किया। दूसरी तरफ से रिसीवर को उठाकर 'हेलो' की आवाज आई, तो उसने सिक्के को डाल दिया।
पूछा।
"यह सुरभि का घर है....?
"हां...."
"कौन बोल रहा है....?"
"सुरभि का अप्पा....."
"अनाथाश्रम में रुपयों को ले जाकर दे दिया....?"
दूसरी तरफ से सुंदरेसन जल्दी-जल्दी बोले।
"यह देखो भाई..... तुमने जैसे बोला हमने दस लाख रुपए ले जाकर हर एक को एक-एक लाख रुपया अनाथाश्रम को दे दिया। उसका विवरण दूं क्या....?"
"उसकी कोई जरूरत नहीं...."
"ठीक है..... सुरभि को घर भेज दो.... मैं और मेरी पत्नी उसका इंतजार कर रहे हैं।"
धनराज हंसा।
"अनाथाश्रम को रुपए दिए..... ठीक....! मुझे?"
"तुम ... तुम....क्या बोल रहे हो.....?"
"समझ में नहीं आया...? रुपए मुझे भी चाहिए....."
"देता हूं..... कितना....?"
"मैं भी एक अनाथ जैसे ही हूं। मेरे मां-बाप नहीं हैं। दस लाख दे दीजिए....."
"द....दस लाख.....?"
"बहुत कम मांग लिया क्या...?"
धनराज हंसने लगा, सुंदरेसन डरी आवाज में पूछा:
"ठीक.... रुपए को कहां ले जा कर देना है....?"
"टर्मनी के पास फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का अपना एक वेयरहाउस है, कोई उसका उपयोग नहीं करता खराब हालत में है आपने उसे देखा है ?"
"नहीं देखा..."
"आज आकर देख लेना..... उस वेयरहाउस के सामने सीमेंट का एक बड़ा पाइप रखा है..... हॉर्स पाइप के अंदर पैसे को रख दो बस ठीक..."
"कितने बजे आना है....?"
"रात के 11:00 बजे से लेकर 12:00 बजे के अंदर...... कभी भी आ जाओ...."
"सुरभि कब मिलेगी....?"
"दस लाख मिलते ही सुरभि आपके घर की घंटी को बजाएगी।...फिर... फिर..."
"क्या... क्या.... बोलो....?"
"इस योजना के बारे में आपको और कुछ बताने की जरूरत नहीं। तुमने तमिल पिक्चरों में देखा होगा.... किसी भी कारण से यह बात पुलिस तक नहीं पहुंचनी चाहिए। इसके बारे में किसी से भी कुछ मत कहना...."
"ठीक..."
"ठीक बोल कर पुलिस में जाओगे.... पूरी जिंदगी तुम्हारी बेटी के बारे में सोचते हुए रोते रहोगे।'
"पुलिस में नहीं जाएंगे।"
"ठीक है.... रिसीवर को रखकर रात को 11:00 बजे तक सो जाओ....."
धनराज रिसीवर को टांग कर – बूथ के दरवाजे को खोलकर बाहर आया। एक बीड़ी को निकाल सुलगा थोड़ी दूर पर जो पराठा स्टाल था वहां जाकर जो चाहिए वह पार्सल करवा कर उसे लेकर ट्रक पर वापस आया।
अचानक घबराया।
ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर सुंदरम बाइक के पास खड़े थे। उसे देख कर मुस्कुराए। "क्यों धनराज सकुशल हो....?
"कुशल ही हूं सर...."
"तुम्हें देखे बहुत दिन हो गये.... माल लेकर आंध्रा की तरफ चले गए थे क्या...?
"नहीं सर.... लोकल ही था..."
"अभी भी पुराने ट्रांसपोर्ट में ही काम कर रहे हो क्या ?"
"नहीं सर... उस ट्रांसपोर्ट से अलग हुए छ: महीने हो गए.... यह मेरा स्वयं का ट्रक है.... आंजनेय ट्रांसपोर्ट के मालिक से खरीदा।"
"अरे वाह...! इसका मतलब अब तुम 'ट्रक के ओनर हो'... बोलो..."
"क्या सर.... बड़ा ओनर.... सिर्फ एक 'लॉन्गटॉ' ट्रक को रखकर लोकल चला रहा हूं।"
"अबे... तेरे बारे में मैं नहीं जानता क्या? तू बिना डीजल के भी गाड़ी चलाने वाला... है? ठीक है... ठीक है.. गरीबी का रोना ना रो के हफ्ता देकर बात कर..."
धनराज एक 50 के नोट को निकालकर आगे बढ़ाया तो इंस्पेक्टर ने तुरंत अपने शर्ट में रुपए को रखकर गाड़ी को दौड़ाया।