कुछ देर बाद जब सारे परिंदे तितर- बितर हो गए तो मायूस मोर भी मुंह लटका कर अपने घर चला आया। मांद महल का घेराव करके अपनी बात मनवाने का उसका मनसूबा बिल्कुल फेल हो गया था - फ्लॉप!
मोर ने आज खाना भी नहीं खाया। क्योंकि वह पक्षी समुदाय का राजा था इसलिए वह हर हालत में ये जानना चाहता था कि उसकी पराजय का कारण क्या रहा। उसे अपना भविष्य खतरे में नज़र आने लगा।
उसके लिए ताज़ा मकड़ी का सूप लेकर जब मोरनी आई तो उसे हताश देख कर उसके पास ही बैठ गई। मोरनी बोली - चिंता मत करो जी, मैंने सब पता लगा लिया है, ये सब करामात उस चालाक मिट्ठू पोपट की है जो राजा शेर का एडवाइजर बना बैठा है। याद है, तुम्हारे चुनाव के समय भी तो वह मुर्गे का समर्थन कर रहा था। वह तो उसी को राजा बनाना चाहता था पर तुम्हारे सामने मुर्गे की एक न चली। हो न हो, अब मिट्ठू पोपट ने उसी हार का तुमसे बदला लिया है!
ये सब सुनते ही मोर का माथा ठनका। अरे, ये बात मेरे दिमाग़ में क्यों नहीं आई? तुम ठीक कहती हो, ये उसी की करतूत है। खैर,अब तुम देखना मैं कैसे उसे मज़ा चखाता हूं। मोर ने कहा।
- क्या करोगे जी? मोरनी चिंतित हो गई। कहीं मोर मिट्ठू पोपट से कोई टकराव न पाल ले। अभी तो उसके पौ बारह हैं, राजा का दाहिना हाथ बना बैठा है। उससे दुश्मनी ली तो कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए!
लेकिन मोर जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहता था। वह मौक़े का इंतजार करने के पक्ष में था।
चुपचाप सूप पीने लगा।
जंगल में लोगों को जगह जगह पर अचानक जो सोना चांदी मिल रहा था उस घटना पर राजा साहब के एडवाइजर मिट्ठू पोपट ने जो खुफिया जांच बैठाई थी उसकी रिपोर्ट आ गई।
गीदड़, चमगादड़ और कॉकरोच को ये ज़िम्मा सौंपा गया था। तीनों ही मेंबर्स ऐसे चुने गए थे जिन पर किसी को भी शक न हो और वो जंगल के चप्पे- चप्पे की खोज खबर ला सकें।
लेकिन प्रोटोकॉल ये कहता था कि जांच की रिपोर्ट सबसे पहले राजा साहब को सौंपी जाए और फिर वो जिसे चाहें उसे कार्यवाही के लिए मनोनीत करें। जांच अधिकारियों ने पूरी पड़ताल कर के ये पता लगाने की कोशिश की थी कि जंगल में अकस्मात बरसने वाला ये धन किसका है, कहां से आया है और किस किस को ये मिला है। साथ ही तहकीकात करके ये भी पता लगाया गया था कि जिसे भी ये धन मिला उसने इसे सरकारी ख़ज़ाने में इसे जमा करवाया है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस धन को किसी ने चुपचाप छिपा कर अपने पास ही रख लिया हो तथा शासकीय ख़ज़ाने में जमा ही न करवाया हो। ऐसा होने पर संदिग्ध पर क्या कठोर कार्यवाही हो इस बात की सिफारिश भी की गई थी।
राजा साहब ने अभी रिपोर्ट को पढ़ा नहीं था।
लेकिन जांच हुई थी तो आगे पीछे रिपोर्ट को पढ़ा भी जाना ही था और अपराधी को सजा भी मिलनी थी। इसलिए मिट्ठू पोपट और लोमड़ी ने परामर्श करके एक विशेष कारागृह बनवाने का फ़ैसला अपने स्तर पर ही ले लिया।
ये तय किया गया कि मांद महल से कुछ ही दूरी पर एक बेहद मजबूत खुफिया कारावास निर्मित करा लिया जाए क्योंकि धन की हेराफेरी करने वाले अपराधियों को साधारण अपराधियों के साथ कैद खाने में नहीं रखा जा सकता था।
खरगोश का भी कहना था कि धन के गबन, लूट या हेराफेरी करने वाले दोषियों के लिए आम कैदियों से अलग रखे जाने की व्यवस्था होनी ही चाहिए। क्योंकि धन संबंधी गड़बड़ी करने वाले लोग कितने भी शातिर हों, कभी वो सत्ता के लिए सहायक भी सिद्ध हो सकते थे।
उनका आचरण चाहें जैसा भी हो आख़िर उन पर लक्ष्मी की कृपा तो होती ही है।