मूल लेखक राजेश कुमार
राजेश कुमार
यह उपन्यास तमिल उपन्यासकार राजेश कुमार जी का है। आपने अब तक डेढ़ हजार कहानियां और दो हजार उपन्यास लिख चुके हैं और निरंतर लिख रहे हैं। आपके पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। आपके उपन्यास हाथों हाथ बिक जाते हैं। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। आपके उपन्यास में बहुत ही उत्सुकता बनी रहती है। एक बार हाथ में पढ़ने उठा ले तो पाठक बिना पढ़े उसे रख नहीं सकता।
मैंने भी इनके बहुत से उपन्यासों का अनुवाद किया है।
रेडीमेड स्वर्ग आपके हाथ में हैं।
एस. भाग्यम शर्मा
संक्षिप्त जीवन परिचय
एस.भाग्यम शर्मा एम.ए अर्थशास्त्र.बी.एड. 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियां प्रकाशित। तमिल कहानियों का हिन्दी में अनुवाद एवं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, जैसे नवनीत, सरिता, कथा-देश, राष्ट्रधर्म, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, मधुमती, सहित्य अमृत, ककसाड, राज. शिक्षा -विभाग की पत्रिका आदि। बाल-साहित्य लेखन, विभिन्न बाल-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं व कहानियां प्रकाशित, जैसे नंदन, बाल भास्कर, बाल हंस, छोटू-मोटू आदि। वेणु, महाश्वेता देवी, साहित्य-गौरव, हिन्दी भाषा विभूषण, स्वयं सिद्धा आदि विभिन्न सम्मान मिला। 2017 वुमन ऑफ 2017 का जोनल अवार्ड मिला । राज.की मुख्य मंत्री वसुंधरा जी से यह सम्मान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। कई कहानियां प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत भी हुई।
1 नीम का पेड़ कहानी संग्रह 2 प्रतिनिधि दक्षिण की कहानियां 3 बाल कथाएं 4 समकालीन तमिल प्रतिनिधि कहानियां 5 झूला 6 राजाजी की कथाएं 7 एक बेटी का पत्र कहानी संग्रह 8 श्रेष्ठ तमिल कहानियाँ 9 आर. चूडामणी का उपन्यास दीप शिखा का अनूवाद किया और इसका बोधि प्रकाशन से 2019 में प्रकाशित |
एस. भाग्यम शर्मा बी-41 सेठी कालोनी जयपुर 302004 मो 9351646385
रेडीमेड स्वर्ग का सारांश
रेडीमेड स्वर्ग एक इंट्रेस्टिंग जासूसी और जुर्म की कहानी है | जिसमें उत्सुकता ही उत्सुकता है| रेडीमेड स्वर्ग एक अनाथ आश्रम में सहायता करने के लिए एक योजना बनाई गई। ऐसा लगा सब ठीक रहेगा परंतु उसका अंत बहुत ही अलग है। अब इसको आप पढ़िएगा तब आपको पता चलेगा। अभी बताने से रोचकता खत्म हो जाएगी।
एस.भाग्यम शर्मा
रेडीमेड स्वर्ग
अध्याय 1
पहला सम्मान
राजेश्वरी रिकॉर्डिंग थिएटर के बाहर।
कैनन के वीडियो कैमरा लिए हुए सब इंतजार कर रहे थे। जगह-जगह रंग-बिरंगे कपड़ों के बैनर्स लगे हुए थे। "1001-वां गाना गाने आ रही आज सुरों की रानी सुरभि, आइए-आइए, आप भी आइये ...." बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ एक बैनर हवा में लहरा रहा था। रिकॉर्डिंग थिएटर के बाहर दूर तक सड़क पर सिनेमा के नामी-गिरामी लोग तथा कई राजनीतिक नेताओं के चेहरे नज़र आ रहे थे | सभी के लबों पर बस एक ही नाम था, 'सुरभि' ।
"इस फील्ड में आए तीन साल भी नहीं हुए..... और उनका 1001 वां सॉन्ग रिकॉर्ड हो रहा है......"
"आश्चर्य हो रहा है...."
"गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इनका नाम दे सकते हैं......"
"साल के हिसाब से देखें तो..... रोजाना एक गाना रिकॉर्ड होता है।"
"सिर्फ तमिल में ही नहीं.... मलयालम, तेलुगू , कन्नड़ इन सभी भाषा में गाने वाली एक सुरभि ही है....."
"इसकी उम्र क्या होगी...? 25 साल की होगी।"
"मेरे पास तो उसकी कुंडली भी है..... सुरभि की उम्र 23 साल है।"
"साधारणतया प्लेबैक सिंगिंग करने वालों की शक्ल कोई ख़ास नहीं होती....! परंतु इसके विपरीत सुरभि.... इस समय इस फील्ड की नंबर वन हीरोइन से भी ज्यादा सुंदर है...।"
बाहर हलचल दिखाई दी। सभी की निगाह उधर ही उठ गई ।
जैसे अभी-अभी पेंट हुई हो ऐसी चमकती सफेद कलर की मारुति कार सीधे वहीँ आ कर खड़ी हुई जहाँ खिले हुए बोगन वेलिया-फूल गिर कर कारपेट के समान बिछे हुए थे। ब्रेक लगा कर, चाबी निकाल कर, कार का दरवाजे खोलकर एक बड़ी मुस्कान के साथ हाथों को जोड़कर प्रकट हुई सुरभि।
चंदन की काया, 23 साल उम्र की युवा, शहद जैसी आंखें। नारंगी के फांक याद दिलाते उसके होंठ। शरीर के किसी भी भाग को देखो, एकदम परफेक्ट फिगर है। वायलेट कलर के प्योर सिल्क की साड़ी पहने हुए वह बालों में मोगरे के फूलों का गजरा लगाए हुए थी। माथे पर स्टिकर की नहीं बल्कि कुमकुम की बिंदी लगी हुई थी।
किसी सेंट की खुशबू से भभकता बड़ी-सी तोंद लिए एक भारी-भरकम आदमी पास आकर एक बड़े गुलाब के फूलों की माला उसके हाथों में दिया।
"वेलकम मिस सुरभि....." यह गाना तैयार करने वाला आदमी था |
"थैंक यू...."
"विश यू ऑल द बेस्ट..."
"एक हजार एक वां... गाना गाने वाली आप जल्दी ही ..... दस हज़ारवां गाना भी गाएं ।“
सुरभि अपने सुंदर दातों को मोती जैसे बिखेरते हुए हंसी।
"यह सब ईश्वर की देन है... मुझे गाने के अवसर दे रहा है यह भी उसी की देन है।"
सभी वीडियो और स्टील कैमरा अपना काम फटा-फट कर रहे थे ।
कैनन कैमरे चमक रहे थे ।
सुरभि आगे बढ़ी ।
उसको बुके, मालाएं, शाल देने वालों का ताँता लगा था – वह ले लेकर अपनी सेकेट्री को देती जा रही थी ।
"वाद्य यंत्रों के फनकार आ गए क्या..?"
"वे 7:00 बजे ही आ गए। कंपोजिटर के साथ तैयारी कर रहे हैं।"
"पहले मुझे उनसे आशीर्वाद लेना है.... मेरी आवाज को पहचान देने वाले वे ही तो थे ना..?"
पत्रकार अर्ध गोले में उन्हें घेरे हुए थे।
"मिस सुरभि... आप की मनोदशा आज कैसी है ?
"हवा में उड़ते कोमल रूई जैसी ...!"
"आप अपनी आवाज की मिठास को सुरक्षित रखने के लिए क्या करती हैं...?"
'भगवान पर भरोसा करती हूं..."
"आपकी सफलता का क्या कारण है ?"
"भगवान पर विश्वास करती हूं। मेरे अंदर बैठ कर वे ही मुझे गवाते हैं। इसमें मेरी सफलता कुछ भी नहीं है...."
"हिंदी में कब गाने वाली हो ?"
"वे बुलाए तब.."
"तमिल में गाने वाले नए गायकों के बारे में आप क्या सोचती हैं..?"
“नए आने वाले लोगों के पास योग्यता बहुत है, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक दो पिक्चरों में उन्होंने अपनी योग्यता दिखाई भी है.... अब आगे-आगे देखना होगा...."
"इलैयाराजा के बारे में...?"
वे संगीत के समुद्र जैसे हैं.... मैं उनमें एक लहर भर हूं....."
"एक और जरूरी सवाल है....?"
"सॉरी.... रिकॉर्डिंग थिएटर आ गया है..... साक्षात्कार और किसी दिन देख लेंगे।"
किसी ने दरवाजा खोला- सुरभि अपने सिल्क साड़ी के पल्लू को खींचकर लपेटती हुई भीतर चली गई । कमरे में ए.सी. की हवा अच्छी लग रही थी। अन्य लोग अपने-अपने इंस्ट्रूमेंट पर अंगुलियों को चला रहे थे । इलैयाराजा ने अपनी गर्दन ऊंची की,
"आओ....!"
"नमस्कार सर..."
उसने झुक कर उनके चरण स्पर्श किये ।
"खुश रहो बेटी..."
"सॉरी सर.... थोड़ी देर हो गई.... आपको इंतजार करना पड़ा...?"
"यह सब कोई बात नहीं... तुम्हारे एक हजार एक वें गाने को सुपर हिट करना है ताकि बच्चे-बच्चे की जुबान पर यह गीत चढ़ जाए, है ना ? इसलिए ही मैंने और अमर ने यह स्टूडियो लिया है ..."
"सर ! गाने के शब्दों को मैं एक बार देख लूं?"
"जरूर..."
सिन्थ़सिस् ऑर्गन के ऊपर रखा कागज जिस पर गाना लिखा हुआ था उसे निकाल कर इलैयाराजा ने उन्हें सौंपा ।
सुरभि ने लेकर देखा।
मंदिर के प्रांगण के सामने खड़ी हो अपनी बिंदी पर फिर से कुमकुम का तिलक लगाया।
थोड़ी अधीर हो एकदम सीधी खड़ी हुई। "गाने के शुरू की दो लाइनें बहुत बढ़िया है.... किसका लिखा हुआ गाना है सर यह...?"
"कवि शवंवानन....!"
"बहुत बढ़िया लिखा है...."
"आगे की लाइनों को भी पढ़ कर देखो बेटी.... मैंने जो लय डालकर दिया उसमें ठीक फिट होता है क्या ? उसके हिसाब से शब्द डाले हैं क्या देखो...."
सुरभि आगे के गाने के शब्दों को पढ़ती, उसके पहले ही रिकॉर्डिंग थिएटर का मैनेजर अंदर आया।
"मैडम...."
सुरभि ने सर उठा कर उसे देखा।
"आपका फोन है...."
'किसका ....?"
"कोई रिलेटिव है..."
"नाम क्या बोला...?"
"मैंने पूछा था मैडम पर भूल गया..... कोई जरूरी काम है ऐसा लगता है... टेंशन में बोल रहे थे...."
"आदमी की आवाज थी...?"
"हां..."
सुरभि, इलैयाराजा की तरफ मुड़ी।
"सर... मैं फोन अटेंड करके..."
"आराम से ! जाओ, बात करके आओ बेटी.... कोई जल्दी नहीं है।" सुरभि रिकॉर्डिंग थिएटर से बाहर आई और पास ही में मैनेजर के कमरे में प्रवेश कर गई । मेज़ पर रिसीवर ऐसे पड़ा हुआ था जैसे एक दुखी पत्नी मुंह फेर कर एक तरफ लेटी हुई हो । उसे उठाकर वह मैनेजर के पास में ही आकर खडी हुई।
"हेलो..."
"...."
"हां... मैं सुरभि बोल रही हूं।'
"....."
"ओ.... आप हैं क्या ?... क्या... बात है?"
"...."
"ठीक है फिर..."
"...."
"अरे... रे...' सभी का चेहरा बदल गया। हाथ हिलने लगे। "मुझे... मुझे तुरंत आना है क्या....?"
"....."
"नहीं हो सकता.....! एक इंपॉर्टेंट रिकार्डिंग है। उसे खत्म करके आ जाऊंगी....?"
"....."
"क्या... इतनी देर नहीं रह सकते....? ठीक है.... मैं तुरंत रवाना होती हूं...."- बात ख़त्म कर सुरभि रिसीवर रख कर मुड़ी । तेज गति से चलती हुई रिकॉर्डिंग रूम में आई ।
इलैयाराजा पिक्चर तैयार करने वाले कनक और अमर से कुछ बात कर रहे थे । अपनी बात पूरी कर वे मुड़े । "क्या हुआ बेटी....?"
"सर, मुझे ....अभी एक घंटे के लिए बाहर जाकर आना है....."
"क्या बात है....?" प्रड्यूसर बीच में बोल पड़े ।
"मेरे एक बहुत नजदीकी डॉक्टर ने फोन किया है कि एक हार्ट पेशेंट का ऑपरेशन है जिसका ब्लड ग्रुप एबी नेगेटिव है। वे मुझे तुरंत हॉस्पिटल बुला रहे हैं क्योंकि मेरा ब्लड ग्रुप बहुत दुर्लभ है। साल में एक बार वह डॉक्टर मुझे कांटेक्ट करके बुलाते हैं...."
"अभी तुरंत जाना है क्या....?"
"हां सर..... अगले एक घंटे के अंदर पेशेंट को खून देना पड़ेगा।"
"ठीक है ! जाकर आओ बेटी....! एक घंटा.... के अंदर आ जाओगी ना....?"
"हाँ, आ जाऊंगी सर...."
अमर ने घड़ी देखी।
"अभी ठीक 9:00 बज रहे हैं..... 10:05 पर तुम्हें यहां किसी भी हालत में रहना है सुरभि....."
"रहूंगी सर...."
सुरभि बाहर आई।
पत्रकारों ने उसे दोबारा उत्सुकता से घेर लिया- "प्लीज.....! मैं एक जरूरी काम से बाहर जा रही हूं। डोंट डिस्टर्ब मी..." कहती हुई जाकर कार के ड्राइविंग सीट पर बैठी। कार स्टार्ट होते ही तेज गति से रवाना हुई।
समय अपनी गति से चला रहा था और घड़ी की सुई 10:15 को छूने लगा। अमर फिल्म डायरेक्टर कनक के पास आए।
"सुरभि तो वादा करके समय पर नहीं आई.....?"
"किस डॉक्टर के पास जाने के लिए बोला था उसने....?"
"उसके बारे में कोई विवरण नहीं दिया .....?"
"एक-आधा घंटा और इंतजार करके देखते हैं।"
देखा।
समय 10.45 ।
सुरभि अभी तक नहीं आई।
बड़बड़ाते हुए प्रोड्यूसर कनक गुस्से में चहलकदमी करने लगे । "रक्त-दान करने के लिए अच्छा समय देखकर गई यह लड़की ! ..... ठीक हैं..... गई तो समय पर आ नहीं जाना चाहिए....?"
"घर पर फोन करके देखेँ क्या सर....?"
"कुछ तो करके देख....."
सहायक टेलीफोन के पास दौड़ा। सुरभि के घर फोन पर उसकी मां रंजीता ने बात की। सहायक ने उन्हें जैसे ही बात बताई तो वह अधीर हो गई।
"क्या कहा..... सुरभि रिकॉर्डिंग को आगे करके रक्तदान के लिए चली गई....?
"हां..."
"जिसने फोन किया उस डॉक्टर का नाम क्या है.....?"
"सुरभि ने कुछ नहीं बताया । हमने भी जल्दबाजी में उनसे कुछ पूछा ही नहीं । तभी तो आपको फोन करें... सोचा...."
"हमारे फैमिली डॉक्टर ने... फोन किया होगा शायद...? मैं अपनी फैमिली डॉक्टर को कंसल्ट करके आपको वापस फोन करती हूं....."
"जल्दी से बेटी को भेजो अम्मा.... इलैयाराजा सर इंतजार कर रहे हैं। उनका ऑल सीट मिलना कितना मुश्किल है आपको पता नहीं क्या?"
"जल्दी ही और आधे घंटे में सुरभि को लेकर वहीं रिकॉर्डिंग थिएटर में आती हूं.... उस डॉक्टर का फोन करीब कितने बजे आया होगा ?"
"9:00 बजे..."
"प्रड्यूसर और म्यूजिक डायरेक्टर को उसे बाहर नहीं भेजना चाहिए था.... रिकॉर्डिंग खत्म करके ही जाने को बोलना चाहिए था।"
"ऐसे स्ट्रिक्टली बोल सकते हैं क्या....? आज जो प्लेबैक सिंगर है ऑल सिंगर्स में... आपकी बेटी नंबर वन है….. आपकी बेटी की तरफ से भी हमें सोचना चाहिए ना...?”
"ठीक... ठीक... कैसे भी मैं आधे घंटे में उसे लेकर आ रही हूं। प्रड्यूसर को बोलो नाराज होने से कुछ नहीं होगा ...."
"हां... हां…."
रंजीता ने फोन काटा फिर अपने फैमिली डॉक्टर बाल सुब्रमण्यम को फोन लगाया।
दूसरी तरफ से इंगेज टोन आया।
चार-पांच बार संपर्क करने की कोशिश की । जितनी बार कोशिश की इंगेज टोन ही आया। गुस्से में रिसीवर को पटक के ऊपर की तरफ देख चिल्लाई।
"सुनो जी...?"
"आया..."
सफेद धोती, पीले रंग के सिल्क की शर्ट पहने उसके पति सुंदरेसन धीरे-धीरे सीढियाँ उतर रहे थे | उनका गंजा सर चमक रहा था और मुंह में पान ठूँसा हुआ था.
"जल्दी आइए..."
सुंदरेसन एक हाथ से धोती को जरा ऊंचा पकड़ कर तेज-तेज कदमों से आए।
"क्या हुआ रंजीता...?
"देखा ! तुम्हारी लड़की ने क्या काम किया है ?"
"क्या किया ? बोलो....?”
रंजीता ने संक्षेप में सब बताया ।
सुंदरेसन का चेहरा उतर गया।
"अपने डॉक्टर को फोन करके पूछो...."
"फोन किया इंगेज टोन आ रहा है..."
"अरे अब फिर से करके देखो...."
रंजीता के रिसीवर उठाने के पहले ही टेलीफोन की घंटी बज पड़ी । रिसीवर को कान से लगाया-
"हेलो...."
"कौन बोल रहा है ? रंजीता जी...?
"एक आदमी की आवाज है..." रंजीता ने टेलीफोन के माइक पर हाथ रख पति की ओर मुंह करके फुसफुसाई |
"हां... मैं.. ही.."
"ठीक है..... मैं जो बोल रहा हूं उसे ध्यान से सुनो ..! तमिलनाडु में आज एक हज़ार एक गाना रिकॉर्ड कराने वाली तुम्हारी एकमात्र पुत्री सुरभि आज मेरे कब्जे में है । अगर चाहते हो कि वह फिर से मुंह खोल कर गा सके तो मैं जो काम कह रहा हूं वह तुम और तुम्हारा पति को अगले एक घंटे के अंदर करना पड़ेगा....."
"तुम... तुम... कौन...?"
"रेडीमेड स्वर्ग बनाने वाला..."
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