Heights of... in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सोच की ऊँचाइयाँ...

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सोच की ऊँचाइयाँ...

अम्बर ने अपने घर पर फोन किया....
उधर से उसकी पत्नी सुप्रिया ने फोन उठाकर हैलों बोला और पूछा...
जी कहिए....
हाँ,सुप्रिया ! मैने इसलिए फोन किया था कि आज शाम कुछ जरूरी मीटिंग है और मीटिंग होटल ओबराय में है,इसलिए आज रात मेरा डिनर वहीं होगा,तुम मेरा इन्तजार मत करना ,बच्चों को खाना खिलाकर और खुद खाकर सो जाना,हो सकता है कि मुझे देर हो जाए,अम्बर ने सुप्रिया से कहा...
जी! अच्छा! ठीक है,सुप्रिया बोला।।
ठीक है तो मैं फोन रखता हूँ,बाय! इतना कहकर अम्बर ने फोन काटा और मीटिंग में शामिल होने चला गया...
मीटिंग हुई ,डील भी पक्की हो गई और उसके बाद डिनर,डिनर है तो पीना पिलाना तो होगा ही,सब मीटिंग के बाद बार-रेस्टोरेंट में पहुँचे,अम्बर के साथ और भी लोंग थे लेकिन उसे अकेले पीना ही पसंद है,सबके साथ बैठकर पीने से ज्यादा हो जाती है फिर घर पहुँचते ही सुप्रिया नाराज ना होने लगती है.....
फिर अम्बर ने देखा कि एक मोटा सा आदमी किसी बात को लेकर वेटर से बहस कर रहा है,अम्बर ने सोचा मुझे क्या लेना देना और उसने अपने लिए दूसरे वेटर से कहकर एक पैग मँगवाया.....
लेकिन तभी वो मोटा आदमी बहस करने के बाद उसके पास आकर बोला....
अकेले अकेले ही पिएगा,दोस्त को भूल गया क्या?
उसकी आवाज़ मुझे जानी पहचानी सी लगी और फिर मैने चश्मा लगाकर उसकी ओर ध्यान से देखा....
वो मेरे स्कूल का दोस्त सौरभ था....
मैं अचानक उसे देखकर हैरान हो गया फिर मैने कहा....
यार! सौरभ ! तू! माफ़ करना भाई! पहचान नहीं पाया....
मोटा जो हो गया हूँ,सौरभ बोला।।
वो तो है यार! इसलिए तो पहचान नहीं पाया,पहले तू कितना हैंडसम और छरहरा हुआ करता था,अम्बर बोला।।
हाँ! तू तो सब जानता है मेरे बारें में तुझसे क्या छुपाना? सौरभ बोला।।
ये सब छोड़ और बता क्या कर रहा है आजकल? अम्बर ने पूछा।।
बस,कुछ नहीं एक महिला सेवा केन्द्र चला रहा हूँ,बेसहारा गरीब महिलाओं की मदद करता हूँ और ऐसी भी कुछ महिलाएं हैं मेरे महिला सेवाकेंद्र मे ,जो कि पहले वैश्या थीं,बारगर्ल थी लेकिन अब उनकी उम्र ढ़ल चुकी है इसलिए उन्हें कोई पूछता नहीं है तो उन्हें मेरे महिला सेवा केन्द्र में सिर छुपाने की जगह और दो वक्त की रोटी मिल जाती है,अच्छा लगता है उनके लिए कुछ करके, दिल को सुकून मिलता है,मन को शांति मिलती है,सौरभ बोला।।
और शादी वगैरह की या नहीं,अम्बर ने पूछा।।
उन्हीं में से एक बारगर्ल थी,जिसके साथ किसी ने जबरदस्ती की थी और वो माँ बनने वाली थी,तो मैनें उसे उसके बच्चे सहित अपना लिया,सौरभ बोला।।
मुझे विश्वास नहीं होता कि तू वही सौरभ है ,अम्बर बोला।।
हाँ! मैं वही रईस बाप की बिगडै़ल औलाद हूँ,जिसने ना जाने कितनी लड़कियों के साथ प्यार का नाटक रचाकर धोखा दिया,मै वही बिगड़ैल सौरभ हूँ जिसे सोने के लिए हर रात नई लड़की चाहिए थी,मैं वही सौरभ हूँ जिसने एक लडकी के रेप के जुर्म में कई साल जेल में सजा काटी है,तू यही कहना चाहता था ना!,सौरभ बोला।।
यार! इतना बदलाव कैसे आया तुझ में,अम्बर ने पूछा।।
तुझे पता है कि मेरी माँ नहीं थी,बाप के पास खूब पैसा था,इसलिए मैं बहुत अय्याश था,जिस लड़की का मैनें रेप किया था वो मेरी नौकरानी की बेटी थी,मेरा जुर्म साबित होने के बाद मैं तो जेल चला गया क्योंकि सारे सुबूत मेरे खिलाफ़ थे, लेकिन उस लड़की को समाज के तानों ने इतना परेशान किया कि उसने आत्महत्या कर ली,ये ख़बर देने उसकी माँ मेरे पास जेल आई और जो उसने बोला वो सुनकर मेरी आँखें खुल गई....,सौरभ बोला।।
ऐसा क्या कहा था नौकरानी ने,अम्बर ने पूछा...
वो बोली,मेरी बेटी तुमको चाहती थी छोटे साहब! और आपने उसके साथ ही ऐसा किया,आपको पता है जब एक लड़की का बलात्कार होता है तो उसी दिन उसका तन और मन दोनों मर जाते हैं और अगर लड़की थोड़ी हिम्मत दिखाएं भी तो ये समाज उसे कोस कोस कर उसे आत्महत्या करने पर मजबूर कर देता है,बलात्कार का कलंक बहुत घिनौना होता है साहब!
अगर कोई औरत किसी मर्द के घर रातभर ठहर भी जाएं तो फिर वो चाहे निष्कलंक ही क्यों ना हो उसको समाज कलंकनी कहने से नहीं चूकता,अगर ऐसा होता तो गर्भवती सीता को राम जंगल ना भेजते और इतना कहकर वो चली गई,लेकिन मैं उस रात सो ना सका,मेरे गुनाह की सजा उस लड़की ने भुगती,फिर धीरे धीरे मुझ मे बदलाव आया और आज तुम्हारे सामने एक नया सौरभ खड़ा है,सौरभ बोला।।
मान गए भाई! सलूट करता हूँ तुझे ,तूने अपनी सोच को एक अलग ही ऊँचाईयों पर पहुँचा दिया है,अम्बर बोला।।
और उस रात दोनों दोस्तों के बीच और भी बातें होतीं रहीं....

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....