Considerate Damsel in Hindi Short Stories by Shiv Shanker Gahlot books and stories PDF | नेक लड़की

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नेक लड़की

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पुराने शहर की गलियां बड़ी संकरी थीं । गलियों मे इटों के ऊबड़ खाबड़ खड़ंजे डले थे जिन पर कहीं भी पांव ऊपर नीचे पड़ जाता था । दोनो ओर ऊँची ऊंची हवेलियां थी जो लखौरी ईंटों से बनी थीं । ये पुराना शहर था जो तब का बसा हुआ था जब लोगों के पास खुद की मोटर गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं । गली के दोनो ओर बनी हवेलियों का मेन दरवाजा गली की तरफ था । ये दरवाजे लकड़ी के बड़े-बड़े नक्काशी वाले पल्ले के होते थे जो हवेली के अन्दर की तरफ खुलते थे । बाहर आगन्तुकों के बैठने के लिये दरवाजे के दोनो साइडों में ऊँची सीमेंट से बनी चौकियां होती थी । हवेली की निचली मंजिल वाले कमरों मे रोशनी नहीं आती थी । इसलिये खिड़कियों की ऊँचाई दरवाजे के बराबर की रखीं जाती थीं और इन्हें लोहे के सींखचों से सुरक्षित किया जाता था । इन कमरों मे प्राकृतिक रोशनी का साधन यही खिड़कियां थीं । और ये कमरे को खुलेपन का एहसास दिलाती थीं । एक कमरे में तीन खिड़कियां गली की तरफ होती थीं । इन्ही खिड़कियों मे से मे एक को बाहर आना जाने के लिये दरवाजा बना दिया जाता था । ऐसी ही लगभग उजाड़ पड़ी हवेली नितिन जैन की भी थी जिसमे उसकी मां और वो दोनों अकेले रहते थे । नितिन के पिताजी गुजर चुके थे और बड़े भाई की शादी हो चुकी थी जो दूसरे शहर मे नौकरी कर रहे थे । नितिन की मां कड़क नेचर की थी और उन्होंने बच्चों को हमेशा कड़े डिसिप्लिन मे ही पाला था । पुराने शहर की इन अंधेरी गलियों में कोई रहना नहीं चाहता था इसलिये इस तीन मंजिला हवेली मे दसियों कमरे खाली पड़े थे । सूरज की रोशनी तीसरी मंजिल में ही आती थी इसलिये नितिन की मां तीसरी मंजिल पर रहतीं थी । नितिन ने पढ़ने के लिये नीचे की मंजिल के एक बड़े कमरे को अपना ठिकाना बनाया हुआ था । उसके कमरे मे एक बड़ा पलंग, एक स्टडी टेबल, उस पर टेबल लैम्प और कुछ कॉपी किताबें पड़ी थी । बाकि कि किताब कॉपियां दीवार मे बनी खुली अलमारी की तीन पत्थर की बनी शैल्फों मे सजी हुई थीं । कमरे मे एक तरफ थ्री सीटर सोफा पड़ा था जो काफी पुराना था । इसके अलावा दो लकड़ी की नक्काशी वाली कुर्सियां थीं जिनकी सीटें और बैक बेंत से बुनी हुई थीं । पलंग के साथ ही एक पुराना घिसा हुआ कार्पेट बिछा था जिसका रंग सालों के इस्तेमाल के बाद उड़ चुका था । कमरे मे रखा साजो सामान और उसकी साज सज्जा इसे उजड़ता हुआ रॉयल लुक देते थे ।


शहर फैल गया था और पुराने शहर की सीमाओं से बाहर नयी बस्तियां बस गयीं थीं जहां सड़के भी चौड़ी थी और मकान भी नये डिजाइन वाले थे और धूप आने का पूरा ध्यान रखा गया था । इसलिये पुराने शहर की गलियों मे वो रौनक नहीं रह गयी थी जो कभी थी । सस्ते किराये के चक्कर में इक्का दुुक्का किरायेदार इन अंधेरी हवेलियों मे रहकर गुजारा करते थे ।


नितिन चार दोस्तों की उस मंडली मे शामिल था जिसमें उसके दोस्त ब्रिजेन्द्र उर्फ बिरजू, नवीन राणा और धर्मेश अरोड़ा एक ही कॉलेज मे पढ़ते थे । बिरजू भी हवेलीनुमा अपने पुश्तैनी मकान मे ही रहता था । ये हवेली नितिन की हवेली से कुछ दूर ऐसी ही एक संकरी गली मे थी । नितिन जैन और बिरजू दोनों क्योंकि पास पास ही रहते थे एक दूसरे के घर आना जाना कुछ ज्यादा था ।


नितिन की हवेली के सामने दाहिनी ओर दूसरी हवेली थी । उस हवेली के ऊपर के फ्लोर की खिड़की नितिन के कमरे से दिखायी देती थी । खिड़की मे अक्सर एक लड़की नजर आती थी । नितिन ने पहले कभी ध्यान नहीं दिया था पर एक बार नजर पड़ी और नज़रें मिलीं तो आकर्षण बढ़ गया । पढ़ाई के साथ साथ नजरें वहीं जाकर टिक जातीं । बिरजू भी पढ़ने आता तो फिर दोनों इसी शगल मे लगे रहते । दोनों खिड़की पर अक्सर आने वाली 17-18 साल की उस नौजवान लड़की से आंखें मिलाने का मौका ताड़ते रहते थे । लड़की से जब नजरें मिलतीं तो वो मुस्कुरा देती थी । उसका नाम नोनी था । वो काफी समय पहले से किराये पर यहां रहते थे । उसके पिता अनाज मंडी मे किसी दुकान पर नौकरी करते थे । घर मे उसकी मां और उसके एक चाचा भी रहते थे । बाजार का काम करने की जिम्मेदारी नोनी पर थी । जब जब वो मकान से उतर कर बाजार की ओर जाती तो नितिन की ओर देख कर मुस्कुरा कर निकलती थी । अक्सर तो नितिन अकेला ही होता था पर कभी कभी बिरजु भी कमरे मे होता था । दोनों होते तो भी लड़की को कोई फर्क नहीं पड़ता था । लड़की छरहरे बदन की थी और उसका चेहरा कुछ भरा हुआ सा था । उसका रंग गोरा था और आँखें चमकदार बड़ी बड़ी थीं । उसका कद ठीक ठाक था । उसकी चाल मे मस्ती थी । वो सलवार कुर्ता पहने होती थी । उसकी दो चोटियां कभी आगे की ओर डली होती कभी पीछे की ओर ।


नितिन आते जाते उसे छेड़ते हुए कुछ बोल देता था तो वो मुस्कुरा कर निकल जाती थी । एक दिन जब नितिन अकेला था तो उसने हिम्मत करके नोनी को कमरे मे बुलाने की सोची । जैसे ही नोनी बाजार जाने के लिये अपने दरवाजे से निकल कर नितिन के कमरे की तरफ बढ़ी तो नितिन तुरन्त उठकर दरवाजे के साथ खड़ा हो गया । जैसे ही नोनी दरवाजे के नजदीक पहुंची नितिन ने उसे कमरे के अन्दर आने का इशारा करते हुए कहा:


“आजा ना ।"


सुनकर वो हंसी और फिर मुस्कुराते हुए बाजार की तरफ निकल गयी । नितिन कुछ निराशा का भाव लिये वापस अन्दर आकर कुर्सी पर बैठ गया । उसने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया ताकि लौटते हुए नोनी को देख सके । पता नहीं उसने क्या सोचा होगा इसी उधेड़बुन मे बैठा रहा । उसकी कुर्सी ऐसे लगी हुई थी कि बाजार से लौटते हुए नोनी दूर से ही आती दिख जाये । दरवाजा भी उसने ऐसे खुला छोड़ा था कि बाहर गली से पता चल जाये कि खुला है । अभी थोड़ा समय ही गुजरा होगा कि वो बाजार से वापस आते हुए दिखाई दी । नितिन की धड़कने तेज हो गयी । जैसे जैसे वो पास आ रही थी नितिन के शरीर मे सिहरन होने लगी । जैसे ही वो दरवाजे के पास पहुंची उसने ऊपर अपनी खिड़की की तरफ एक नज़र डाली और झट से दरवाजा खोलकर अन्दर आ गयी । नितिन तो वहीं दरवाजे पर खड़ा था जो उसने तुरन्त बन्द कर लिया । नोनी दरवाजे से हटकर एक तरफ ओट मे खड़ी हो गयी थी । नितिन ने आनन फानन मे दोनों खिड़कियों और दरवाजे का पूरा परदा खींच दिया । अब कमरे मे बाहर से रोशनी आनी बन्द हो गयी और कमरे मे जल रहे बल्ब की रोशनी मुखर हो गयी । दालान की तरफ वाला दरवाजा बन्द था और नितिन ने उसमें अन्दर से संकल लगा ली ताकि मां अचानक कमरे मे ना आ जाये । नोनी अन्दर जबसे आयी थी मुस्कुराना भूल गयी थी । नोनी के हाथ मे सामान का थैला था जिसे नितिन ने लेकर अपनी टेबल पर रख दिया । नितिन फिर उसके पास गया और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास पलंग पर बैठाया । दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करें कहां से शुरू करें ।


फिर झिझकते हुए नितिन ने पूछा:


“आपका नाम क्या है।”


तब तक उसे नोनी का नाम पता नही था ।


“नोनी” - उसने जनाब दिया ।


“कौन से कॉलेज मे पढ़ती हो” - नितिन ने पूछा ।


“अहिल्या बाई कन्या विद्यालय मे पढ़ती हूँ ।” - नोनी बोली ।


“कौन सी क्लास मे हो”


“ग्यारहवीं क्लास मे”


“घर मे कौन कौन हैं?”


“अम्मा पिता जी हैं और चाचा जी भी साथ रहते हैं”


“आप कौन से कॉलेज मे पढ़ते हो”- नोनी ने पूछा ।


“मै सर छोटू राम कॉलेज मे”


“किस क्लास मे”


“ट्वैल्फ्थ मे”


“और वो आपके दोस्त”


“वो बिरजू ! उसका नाम ब्रिजेन्द्र है वो मेरा क्लास फैलो है”


नितिन ने नोनी के हाथ पर अपना हाथ रखा हुआ था । रह रह कर उसके बदन मे सिरहन दौड़ रही थी । इधर उधर की बात होती रही और फिर नितिन ने नोनी का हाथ अपने दोनों हाथों के बीच लेकर अपने सीने से लगा लिया । फिर वो उठ खड़ा हुआ और उसने नोनी को उठाकर दोनों हाथ उसकी कमर मे डालकर सीने से लगा लिया । नोनी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया । बल्कि नितिन से लिपट गयी और अपना सर उसके सीने पर रख दिया । नितिन ने उसका चेहरा दोनों हाथों मे लेकर अपने पास लाकर उसके गाल को चूम लिया । यूं ही काफी देर लिपटा चिपटी चलती रही । कुछ ज्यादा परिचय तो था नहीं जो लम्बी बात चल सके । बीच बीच मे कुछ बात हो जाती थी । दस पन्द्रह मिनट गुजरे तो नोनी अलग होकर जाने को तैयार हुई और टेबल से सामान वाला झोला उठा लिया ।


”जाती हूँ । मां इंतजार कर रहा होगी । सामान लायी हूँ बाजार से ।” अब मुस्कुराहट उसके चेहरे पर वापस आ गयी थी और वो कुछ सहज हो गयी थी ।


”फिर कब आओगी ।” पहली मुलाकात थी तो बातचीत मे आदर का भाव था । नितिन की धड़कनें कम हो गयीं थी पर रोमांस के अतिरेक का आनन्द जैसे रोम रोम मे भर गया था ।


“कल आऊँगी ।” नितिन से आंखें मिलाकर उसने कहा और हंस दी । वो नीतिन की उत्सुकता देखकर मजा ले रही थी ।


“जरूर आना । मै इंतजार करूँगा ।”


“पक्का आऊँगी”


नितिन ने बढ़कर धीरे से दरवाजे का परदा सरकाया । बन्द दरवाजे से ही उसने नोनी की खिड़की की ओर देखा जो खाली थी । दरवाजा खोलकर गली मे इधर उधर नजर मारी तो कोई नहीं था । नितिन ने नोनी के लिये दरवाजा ये कहकर खोल दिया:


"कोई नहीं है । जल्दी निकल जाओ ।"


नोनी झट से गली मे निकल कर अपने मकान की तरफ बढ़ गयी । नितिन तो जैसे सपने मे ही था । उसका पूरा तन बदन आनन्द के अतिरेक मे मुदित था । उसने तीनों खिड़की दरवाजे से परदा हटा दिया था । आकर कुर्सी पर बैठा और जो कुछ हुआ था उसे समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या वो सच था ।


धीरे धीरे दोनों अक्सर मिलने लगे और ये मुलाकातें सहज होती गयीं । मुलाकातें बढ़ीं तो औपचारिक सम्बोधन का स्थान अंतरंग सम्बोधन ने ले लिया । दोनों दोस्त नोनी को तू कहकर बुलाते । नोनी हालांकि तू कभी नहीं कहती थी । हां वो आप से तुम पर आ गयी थी । कई बार जब नोनी कमरे मे आती तो बिरजू भी वहीं होता था । दोनों ही नोनी के साथ लिपटा चिपटी और चुम्मा चाटी मे लगे रहते । बिरजू लड़कियों से चिकनी चुपड़ी बातें करने मे यकीन नहीं रखता था । नितिन आगे बढ़ने से हिचक रहा था और जो चल रहा था वो उसी से बड़े आनन्द मे था । कुछ दिन गुजरे तो अगली एक मुलाकात मे बिरजू ने नोनी को उठाकर पलंग पर डाल लिया और ऊपर कम्बल खींच लिया । नोनी कुछ नहीं बोली । बिरजू ने अपने कपड़े उतार लिये । नोनी नीचे दबी थी । बिरजू ने नोनी के कपड़े नीचे खिसका दिये । फिर कम्बल ऊपर नीचे होने लगा । धीरे धीरे मोशन की गति बढ़ी और पीक पर पहुंच कर शांत हो गयी । अब सब कुछ शांत हो गया था । बिरजू की हिम्मत देख नितिन की हिचक भी जाती रही । बिरजू के बाद वो भी कपड़े उतार कम्बल मे घुस गया ।


कॉलेज मे नितिन और बिरजू जब नवीन और धर्मेश से मिले तो नोनी पर चर्चा हुई जो अक्सर होती रहती थी । पूरा हाल सुनकर नवीन तो कूद कर आगे आया और कहने लगा- कि "मैं भी चलूंगा कमरे पर" । धर्मेश ने भी इंटरेस्ट तो दिखाया पर नवीन जितना उत्साहित या उत्तेजित नहीं था । नितिन को तो कोई ऐतराज़ नहीं था । सबने मिलकर नितिन के घर नोनी के साथ प्रोग्राम बना लिया । तय हुआ कि अगले रविवार शाम साढ़े तीन बजे मोती महल मार्केट में मिलेंगे और वहीं से नितिन के घर चलेंगें ।


रविवार को शाम साढ़े तीन बजे के करीब मोती महल मार्केट मे चारों दोस्त मिले और नितिन की हवेली की तरफ चल दिये । नितिन ने नोनी को पहले ही बता दिया था कि चारों दोस्त आयेंगें और उसे चार बजे जरूर आना है । उसने हामी भी भर ली थी । ठीक चार बजे सभी कमरे मे जा बैठे । नितिन की निगाहें नोनी की खिड़की पर टिकी थीं । काफी देर हो गयी थी और नोनी ना ही खिड़की पर नज़र आयी और ना ही नीचे गली मे उतरी । बिरजू आराम से बैठा था और उसे कोई उत्ससुकता नहीं थी । नितिन जरूर थोड़ा बेचैन हो रहा था कि आखिर क्या हुआ क्यों नहीं आयी । धर्मेश कुछ बोर हो रहा लगता था । जब बीस पच्चीस मिनट गुजर गये तो वो उठकर बाजार की तरफ ये कहकर निकल गया कि अभी आता हूँ । नवीन भी बेसब्री से नोनी का इंतजार कर रहा था ।


धर्मेश को गये पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए होंगें कि नोनी अपनी हवेली के गेट से बाहर निकलती दिखाई दी । नितिन ने फौरन लोहे के सींखचों वाला दरवाजा थोड़ा खोल दिया । नोनी कमरे के पास आयी तो उसने ऊपर अपनी खिड़की पर नज़र डाली । जब वहां किसी को नहीं देखा और गली मे भी कोई नहीं दिखा तो वो एकदम कमरे मे आकर ओट मे खड़ी हो गयी । नितिन ने दरवाजे खिड़कियों के परदे खींच दिये ।


नितिन ने उसे पलंग पर बैठाकर खींच कर अपने से सटा लिया । उसके दूसरी ओर नवीन ने भी उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपनी तरफ खींच कर सटाया । नोनी कुछ नहीं बोली । बिरजू सोफे पर आराम से बैठा था ।


कम्बल मे जाने की पहली बारी बिरजू की ही रही और पैंट उतार कर वो कम्बल मे घुस गया । काफी देर तक कम्बल मे जिस्म ऊपर उठते और नीचे आते रहे । और बिरजू बाहर आया तो नितिन कम्बल मे जा घुसा और वही सब कुछ एक बार फिर हुआ । जिस्म ऊपर उठता और नीचे आता रहा और फिर सब कुछ शांत हो गया । नवीन इंतजार कर ही रहा था । उसने भी कपड़े उतारे और कम्बल मे घुस गया । थोड़ी देर बाद कुछ गर्मी बढ़ी तो कम्बल मे मोशन ऊपर नीचे होने लगा । धीरे धीरे गति बढ़ने लगी । सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा था । परन्तु ये क्या? अचानक गति असाधारण रूप से उग्र हो गयी । ये उग्रता नवीन की चेष्टा से नहीं थी । नोनी की कामनाएं जग गयीं थी और वो आनन्द के अतिरेक के क्षण पर दौड़ कर पहुंचना चाहती थी ।


ये अजीब उग्रता देख बिरजू हंसने लगा ।


“अबे! ये क्या हो रहा है” बिरजू मजाक के लहजे मे हंसते हुए बोला । नितिन भी कुछ अचरज से देख रहा था ।


पर नोनी बिरजू के हंसने या उसकी बातों का बिल्कुल नोटिस नहीं ले रही थी । नवीन को तो पता था ही कि क्या हो रहा था । वो समझ रहा था कि आखिर नोनी की भी तो कुछ जरूरत है । वो जैसे उग्र गति से बहती नदी थी जो समुद्र को पास देख उसमें पूरी तरह डूब जाने की जल्दी मे थी । कुछ देर मे सब कुछ शांत हो गया पर नोनी ने नवीन को जकड़ रखा था । जिस्म से जिस्म पूरी तरह से मिले थे । कुछ समय लगा सामान्य होने मे जब नोनी की जकड़ ढीली हुई और धीरे धीरे छूट गयी ।


अब चारों शांत बैठे थे । नोनी पलंग पर बिरजू और नवीन कुर्सियों पर और नितिन सोफे पर । धर्मेश को गये काफी देर हो गयी थी । वो अभी तक नहीं लौटा था । साढ़े पांच बज गये थे और सर्दियों के दिन थे तो अंधेरा होने लगा था ।


“वो आये नहीं अभी तक” - नोनी ने कुछ उदास लहजे मे कहा ।


“पता नहीं कहां रह गया । थोड़ी देर मे आने को कहकर गया था” - नितिन बोला ।


"एक घंटे से ज्यादा हो चुका है उसका आना मुश्किल है।" - नवीन बोला ।.


“मुझे जाना भी है । ज्यादा देर हुई तो मां गुस्सा ना हों” - नोनी ने धीरे से कहा ।


“अबे यार ! अब नहीं आयेगा” - बिरजू बोल उठा ।


“तुुझे जाना हो तो चली जा”- नितिन नोनी की तरफ देखकर बोला ।


“चली तो जाऊँ पर …”


“पर क्या.. ?” नितिन बोला ।


“वो आ जाते तो अच्छा था । नहीं तो… “ - नोनी कुछ उदास सी आवाज मे बोली ।


“नहीं तो… क्या?” नितिन ने प्रश्नवाचक निगाहों से नोनी को देखा ।


“नहीं तो, पता नहीं वे क्या सोचेंगे”



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