एपीसोड - 3
तीसरे दिन भी डल लेक में झील के बीच में सामने आकर किनारे पर सामने सड़क के किनारे बने होटलों की, टूरिस्ट की चहल पहल दिखाई दे रही है. सरसराती हवा के कारण वह बाल स्कार्फ में बाँध लेती है. शिकारा चलाते रफ़ीक भाई बताते जा रहे हैं, ''दुनियाँ में सिर्फ़ दो ही जगह ' फ़्लोटिंग गार्डन्स 'है एक तो भारत के कश्मीर में व थाईलैंड में. यहाँ की ख़ास बात ये है कि झील की घास के ऊपर सब्ज़ी उगाई जाती है. वहां नहर के किनारे की ज़मीन पर. इस बरस तो इतनी बारिश हुई कि सारा श्रीनगर ही फ़्लोटिंग गार्डन बन बहुत दिनों पानी में डूबा रहा था. ' नेहरू गार्डन से शिकारा आगे निकला ही है वे भी जाने अनजाने उन गुजरे किस्सों को ले बैठते हैं. , '' आपने सुना तो होगा शान्ति के बाद डल लेक में अचानक विस्फ़ोट हुआ था. ''
''हाँ. ''
''वह मनाली के टूरिस्ट एजेन्सी की मालिकों ने चिढ़कर करवाया था क्योंकि वहां जो अधिक टूरिस्ट जाने लगे थे, वापिस अब कश्मीर ही घूमना चाहते थे. ''
सच ही कोई खूबसूरत औरत हो या कश्मीर पता नहीं कितने लोगों की आँखों की किरकिरी बन जाता है.
--------- वैसे तो सब जगह दिन ढलते हैं, किसी भी पर्यटन स्थल पर ये दिन उड़ते है लेकिन कश्मीर में ये ख़ूबसूरत लैंडस्केप बने बर्फ़ की मानिंद दिल में फ्रीज होते चलते है ----लेकिन दिन चलते तो है ही इसलिए इनकी यात्रा का अंत तो होना ही है. जो कश्मीर में एक बार घूम ले वह यहां की ख़ूबसूरती में ऐसे कैद हो जाता है --कैसे कोई अपने देश का चिनार के पेड़ों की कतारों से सजा, बर्फ़ की परतों से लिपटे, भेड़ों के झुंडों से सजे इतने खूबसूरत हिस्से को किसी और देश को दे सकता है?.
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श्रीनगर से दिल्ली जाते प्लेन में उसकी नज़रें पास की सीट पर बैठी चालीस पैंतालीस वर्ष की उम्र की कश्मीरी औरत का जायजा ले रही हैं या कहना चाहिये उसकी अमीर शख्सियत, सिर पर कसी चुन्नी व गहरे प्रिंट का कुर्ता, उसका संतुष्टि से चमकता गोरा भरा भरा चेहरा, व गुलाबी रंगत लिए हुए उभरे हुए गाल, खुशी छलकाती बड़ी बड़ी आँखें. उसकी उँगली में पहनी मोटी मोटी अंगूठियां, खासकर चांदी में जड़ी एक बड़े हरे पन्ने की अँगूठी उसे मजबूर कर रही है कि वह उसे कनखियों से देखती रहे. वह खातून एक दो ढाई बरस के बेटे को गोद में लेकर बैठी है. आगे वाली वाली प्लेन की सीट पर उसकी चार पाँच बरस की बेटी सूती क्रीम कलर पर लाल पीली हरे उजबक प्रिंट का टॉप व पायजामा -अफ़्रीकन ड्रेस पहने अपने पापा के साथ बैठी है --बस उसे बातचीत करने का सूत्र मिल जाता है. वैसे भी उसकी आदत है किसी टूर में वहां के प्रदेश के लोगों से खोद खोद का बात करे, उनके रीति रिवाज जाने. वह पूछती है, 'आपकी बेटी अफ़्रीकन ड्रेस पहने है ?''
वह भरी पूरी औरत गर्मजोशी से मुसकरा उठती है, ''जी. ''
''हम लोग अभी उदयपुर में शादी में शामिल होकर आ रहे हैं, वहां एक लड़के को ये ड्रेस पहने देखा था. आप कश्मीरी हैं ?'
''जी हाँ. मै रहती हूँ सउदी अरेबिया में, माँ के घर मिलने को आई थी. हम लोग दुबई घूमने जा रहे हैं ''
''सउदी अरेबिया तो औरतों की आज़ादी के खिलाफ है. ''
''सच है लेकिन इधर छ; सात सालो से समय बदला है औरते दुकानों पर काम करने लगी हैं. मै डेंटल कॉलेज में लेक्चरार हूँ लेकिन हां, वहां किसी औरत को वेहिकल ड्राइव करने का अधिकार नहीं था लेकिन वह अधिकार भी औरतों को मिल गया है।. ''
''आपका नाम क्या है ?''
''खालिदा. ''
''अब तो कश्मीर में शान्ति है ?'
''बिलकुल, हमने तो वो ज़माना देखा है जब हमे स्कूल कॉलेज जाने नहीं दिया जाता था या हफ़्ते में एक या दो बार भाई के साथ जाते थे. '
''कैसे पढ़ाई करते होंगे ?''
''पूछिये मत, उन दिनों तो घरों से निकालकर या सड़क से लड़कियों या साठ बरस की औरतों तक को उठाकर ले जाते थे, ''गहरी तकलीफ़ उसकी आँखों में छलक उठी है, वह कुछ उसकी तरफ झुककर, फुसफुसाकर कहती है ''ये सब हमने अपनी आँखों से देखा है. घर के बंद दरवाज़ो के पीछॆ हम सब थर थर काँपते रहते थे, जब ऎसी कोई ख़बर आती थी. ''
इस स्वर्ग का वो बदनुमा समय एक टी ----स है जो देश के हर कोने में टीसती रह्ती है जैसे कि किसी खूबसूरत पेंटिंग पर खरोंचों के निशान. लड़कियों को या औरतों को खींचकर ले जाने वाले कौन थे, वह जानबूझकर पूछ्ना नहीं चाह्ती ---सभी जानते है वो चेहरे कोई भी होते थे 'मिलिटेंट या अपने ही वर्दी वाले वादियों मे दबी उन सिसकियों को सुनने की ताकत नहीं है उसमें.
''आप कैसे पढ़ पाई होंगी. '
''मेरे अब्बा हुज़ूर पैसे वाले थे, उन्होंने सात लाख रुपया देकर मुझे बी डी एस [बैचलर ऑफ़ डेंटल. करने बिहार भेज दिया था. ''
और खालिदा का जीवन संवर. गया, इन तमाम विस्फ़ोटक बातों से दूर -----. एक सफ़ल औरत उसके बाज़ू में दिल से मुसकरा रही थी.
उसके आगे रियाज़ का चेहरा घूम गया, कहता हुआ, ''बस दूसरी क्लास के बाद ज़िन्दगी का कत्ल हो गया. ''
दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरकर वह लगेज बेल्ट के पास खड़ी सउदी अरेबिया की किसी कम्पनी के एच. आर. हैड अपने पति से बहुत गर्मजोशी से मिलवाती है. सारा परिवार बहुत संतुष्ट लग रहा है, उत्साह से भरा दुबई जाता हुआ. वह उसकी प्यारी सी बेटी से पूछती है, ''तुम्हारा क्या नाम है ?''
''नुशीम ''
''अरे बड़ा विचित्र सा नाम है. ''
खालिदा ग्लोबलाइज़्द मुस्कान से मुस्करा उठती है, ''ये इजिप्शियन नेम है. नुशीम एक इजिप्शियन देवी का नाम है. ''
उसकी हंसी निकल जाती है, '' नुशीम !तुम कश्मीरी हो, रहती सउदी अरेबिया में हो, ड्रेस अफ़्रीकन पहने हो, नाम तुम्हारा इजिप्शियन है और तुम घूमने दुबई जा रही हो. ''
वह् नन्ही लड़की भी इस तुकबन्दी से खिलखिला पड़ती है. सारा परिवार अपने ट्रॉली बैग्स लिए बाय कहता चला जाता है.
--------वह् ट्रॉली बैग खींचती आगे बढ़ रही है, मन कुछ घंटे पहले श्रीनगर में एयरपोर्ट की तरफ़ बढ़ती टैक्सी में अयाज़ के सूखे, लुटे चेहरे को याद कर उदास हो रहा है ------. उसने एयरपोर्ट से कुछ दूर सड़क के एक बैरियर के सामने टैक्सी रोक दी थी. श्रीनगर के एयरपोर्ट पर जाने के लिए दो बार सामान चैक किया जाता है. एक ऑफ़िस के बरामदे में अपना सामान लिए क्यू लगा हुआ था. स्क्रीनिंग के बाद दूसरी तरफ से सामान लेकर हम लोग टैक्सी में चल दिए थे. वह फिर बोल उठा था, ''हमें बहुत बर्बाद किया गया है. यहाँ कुछ लोग कश्मीर में ग़ैर मुल्की लोगों से अपना वतन आज़ाद करवाने की कोशिश में है. ''
उन सबको उसके तीखे तेवर अच्छे नहीं लग रहे थे. ऎसा लग रहा था कोई बिगड़ैल भाई जैसे घर में से अपना हिस्सा माँगकर इसके टुकड़े करना चाह रहा हो. या उसे उसके कश्मीर में घूमते ये लोग भी गैर मुल्की लग रहे हैं ? जिन लोगों के यहाँ घूमने आने से इनकी रोज़ी रोटी जुड़ी हुई है उनके लिए इनके मन में इतनी कड़वाहट ?
'' अयाज़ ! कभी सोचा है कि लोगों को अगर पासपोर्ट व वीसा लेना हो, करेन्सी बदलवाने का चक्कर शुरू हो जाए तो कितने कम लोग यहाँ आयेंगे ?''
उस ढीठ ने फिर भी जवाब दिया था, ''फिर भी लोग अपने मुल्क को आज़ाद करवाने के लिए गुपचुप संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें मुज़ाहिद कहा जाता है. आप लोग उन्हें पहचान भी नहीं पाओ, जो छिपकर रह रहे हैं. ''
''क्यों ?''
''कोई होटल में बेयरे का काम कर रहा है, कोई टैक्सी ड्राईवर है, कोई ट्रैवल एजेंट है, कोई शिकारा वाला है लेकिन इनमें बहुत से मुज़ाहिद हैं. ''
' 'अयाज़ !मै एक पत्रकार व लेखिका हूँ मै तुम्हारी कहानी ज़रूर लिखूंगी. ''
बस इस बात के बाद धाराप्रवाह बोलने वाला वह् टैक्सी ड्राईवर पता नहीं क्यो एकदम चुपचाप एयरपोर्ट की तरफ टैक्सी ड्राइव करता रहा था, होंठ सिले हुए. अलबत्ता वह संशंकित आँखों से व्यू मिरर में कनखियों से उसे बार बार घूर रहा था.
नीलम कुलश्रेष्ठ
ई –मेल—kneeli@rediffamil. com